20 दिसंबर 2019

मुमताज़ नाम से ही हिट हो जाती थी फिल्में :)

बॉलीवुड ऐसी दुनिया है जहाँ जब इंसान का सिक्का चलता है तो तमाम बुलंदियां उसके आगे छोटी दिखाई देती है आज हम आपको ऐसी ही एक अभिनेत्री के बारे में  जो कभी अपनी मधुर मुस्कान और नटखट अदाओं के लिए इतनी मशहूर थी की फिल्म में उनका होना यानि फिल्म के हिट होने की गारंटी सत्तर के दशक में अभिनेत्री मुमताज अपनी ख़ूबसूरती से लेकर अभिनय तक के लिए चर्चित रही थीं। उनकी एक झलक पाने को दर्शक बेताब रहा करते थे 70 के दशक की सबसे कामयाब जोड़ी मुमताज और राजेश लोग के इस कद्र दीवाने थे जब राजेश खन्ना ने मुमताज को 
देखकर गुनगुनाया, 'करवटें बदलते रहे सारी रात हम', तो लगा कि हिंदी के सुपरस्टार वाकई में मुमताज की यादों में रात भर करवटें बदलते रहे हों। कुछ हद तक सच भी था क्योंकि 60-70 के दशक में राजेश खन्ना और मुमताज की जोड़ी ने कई हिट फिल्मों में काम किया। इस जोड़ी की साथ में जितनी भी फिल्में रहीं उन सभी ने सफलता के कदम छुए.....ये जोड़ी पर्दे पर जितने करीब नजर आती थी दरअसल वास्तविक जिंदगी में भी ये जोड़ी उतने ही करीब मानी जाती थी। 70 के दशक में फैंस मुमताज और राजेश के ढेरों दीवाने थे,70 के दशक में इन दोनों के इश्क की खबरों ने जमकर सुर्खियां भी 
बटोरीं दोस्तीं एक दौर था जब सब के दिल में राज करने वाली मुमताज जब परदे पर आतीं थी तो दर्शकों के दिल की धड़कनें रुक सी जाती थी.हर कोई उनकी अदाओं और अदाकारी का दीवाना था.लेकिन, साठ और सत्तर के दशक की इस हसीन नायिका को आज भुला दिया गया है. 69 वर्षीय मुमताज बचपन से ही अभिनेत्री बनना चाहती थी मुमताज़ का जन्म 31 जुलाई, 1947 को मुंबई में हुआ था और बचपन से ही उनका सपना एक अभिनेत्री बनने का ही था.उस समय मुमताज की मां नाज और आंटी नीलोफर दोनों ही एक्टिंग की दुनिया में सक्रिय थीं, लेकिन वह महज जूनियर आर्टिस्ट के ही रूप में काम किया करतीं थी. साठ के दशक में मुमताज ने भी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने शुरू कर दिए थे.
मुमताज़ के साथ राजेश खन्ना पर फिल्माए गाने लोगों को आज भी याद हैं। सावन के महीने में सुने जाने वाले, ‘जय जय शिवशंकर’ की हो, या फिर ‘गोरे रंग पर इतना…’ सबके सब सदाबहार गाने हैं !!

- संजय भास्कर 

02 दिसंबर 2019

पापा आप हो सबसे ख़ास -2 दिसम्बर जन्मदिन :)

2 दिसम्बर आज मेरे पिता जी का जन्मदिन है सबसे पहले पिता जी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें माँ के बाद अगर कोई हमारे दिल के करीब होता है वो है पिता पिता का प्यार माँ की तरह दिखता नहीं है पर हमे अंदर से बहुत मजबूती देता है पापा अपने प्यार को दिखा नहीं पाते जिस तरह माँ करती है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है की पापा हमसे कम प्यार करते हैं. बल्कि पापा तो वो हैं जो हमारी जरुरत पूरा करने के लिए और परिवार को खुश रखने के लिए कभी उनके चेहरे पर वो अपनी बाहरी तकलीफ को नहीं दिखाते हैं ..!!


पापा आप कभी प्यार नहीं जताते
कभी पसंद नहीं पूछते फिर भी
हमारी पसंद की हर चीज़
बिन कहे ही ला देते हो जाने कैसे
यही तो खासयित है आपकी
कि मन की सारी बातें फिर भी
जान जाते हो 
आप मेरे जीवन में
अदृश्य रूप से 
अपना अस्तित्व बोध 
करवाते हो  
बेशक माँ नहीं
मगर माँ से कम भी नहीं
मगर आपको 
जिसके कारण मेरा वजूद 
मेरी ज़िन्दगी 
के हर कदम पर
मेरी ऊंगली थामे
आपका स्नेहमय स्पर्श
मेरे साथ होने 
के अहसास को
पुख्ता करता गया
मेरे हर कदम में
हौंसला बढाता गया
मुझे दुनिया से 
लड़ने का जज्बा
देता गया
मुझे पिता में छुपे
दोस्त का जब 
अहसास हुआ 
तब मैंने खुद को

संपूर्ण पाया 

आप अब भी
मेरे लिए 
फिक्रमंद नज़र आते हो
चाहे खुद हर 
तकलीफ झेल जाओ
अब मैं चाहता हूँ
कुछ करूँ 
आपके लिए
मगर आपके
स्नेह,त्याग और समर्पण
के आगे मेरा 
हर कदम तुच्छ 
जान पड़ता है
पर मेरी यही कामना है 
आपके हर कदम पर
आपके साथ खड़ा रहूँ मैं.....

पिताजी को जन्मदिवस की ढेर सारी शुभकामनायें.......!!



-- संजय भास्कर

14 नवंबर 2019

.... चाय के बहाने :(


एहसासों को सहलाती हुई
शक्कर की तरह मीठी
एक कप चाय
जब कोई पूछता है
बड़े प्यार से
तो महज वो
दूध और चायपत्ती
को उबालकर बनी हुई एक कप चाय
नहीं होती
वो एक माध्यम होती है
एहसासों को सहलाने की
क्योंकि चाय के बहाने
साँझा होती है हम सब की
कुछ चीनी सी
मीठी यादें
कुछ चायपत्ती सी कड़वी
बातें.......
अपने कुछ
अनुभव,कुछ आशाएं
कुछ नयी उम्मीदें..?
और कुछ ही समय में
उस एक प्याली
चाय के साथ
बट जाते है
जिंदगी के वो पल
जो अक्सर अनकहे रह जाते है  !!

- संजय भास्कर

02 नवंबर 2019

चिड़िया का हमारे आँगन में आना :)

चिड़िया की चहचहाट में जिंदगी के सपने दर्ज हैं और चिड़िया की उड़ान में सपनों की तस्वीर झिलमिलाती है चिड़िया जब चहचहाती है तो मौसम में एक नई ताजगी और हवाओं में गुनगुनाहट सी आ जाती है चिड़िया का हमारे आँगन में आना हमारी जिंदगी में लय भर देता है। चिड़िया जब दाना चुनती है तो बच्चे इंतज़ार में देर तक माँ को निहारते रहते हैं और घर बड़े बुजुर्ग चिड़ियों को दाना डाल कर एक अलग ही सुकून का अनुभव करते है 
कितना मनमोहक लगता है जब गौरेया एक कोने में जमा पानी के में पंख फड़फड़ाकर नहाती है और पानी उछालती है. इसके अलावा चिड़िया एक कोने में पड़ी मिट्टी में भी लोटपोट करती है ........तभी तो चिड़िया का
हर मनुष्य के साथ एक भावनात्मक रिश्ता है पर आज के समय में चिड़ियों का संसार सिमटता जा रहा है और इस संतुलन को बिगड़ने में जाने-अनजाने मनुष्य का बहुत बड़ा रोल है तथा शहरों में तो ऐसी स्थिति है बन गई गई कि लगता है एक दिन आगन चिड़ियों से सूना हो जाए और चिड़िया की चहचहाट के लिए मौसम तरस जाए, हवाएं तरस जाए और हम सब तरस जाए आज के समय में हो रहे शहरीकरण की मार भी सीधे रुप से इन्हीं पर पड़ी है। जिसकी वजह से घरेलू चिड़ियों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है और घरेलू चिड़ियों का अस्तित्व लगातार संकट में है। जब से खेती में नई-नई तकनीकें प्रयोग में आई हैं, खेतों में उठने-बैठने वाली घरेलू चिड़ियों पर भी बुरा असर पड़ा है। जिस तेजी से इधर कुछ सालों में घरेलू चिड़ियों की संख्या में कमी आई है, वह चिंताजनक है। प्राय: यह चिड़िया गावों में ज्यादा पाई जाती थीं। लेकिन आजकल गावों में भी घरेलू चिड़िया कम ही नजर आती हैं जो की चिंताजनक है अगर हम सचेत होंगे तो शायद गौरेया को एकदम लुप्त होने से अभी भी बचा पाएंगे. अगर हम प्रयास करेंगे तो आने वाले सालों में शायद दूसरे पंछियों को भी लुप्त होने से बचा पाएंगे..!!

- संजय भास्कर 

17 अक्तूबर 2019

... जिन्दा जड़ें :)

                                            ( चित्र गूगल से साभार  )

पेड़ के मरने पर 
साथ नहीं छोड़ती 
उसकी जड़ें 
वो हमेशा कोशिश में रहती है 
दोबारा उगने की 
बार- बार 
फूटती है कोपलें ठूँठ में  
और ताकत देती है 
तेजी से उठने की पेड़ों को 
पर पेड़ के मरने पर भी 
जिन्दा जड़ों को धरती के गर्भ में 
रहता है  
हमेशा नया तना उगने का 
इंतज़ार  !!

- संजय भास्कर 

28 सितंबर 2019

कल्पना नहीं कर्म :(

एक दिन आफिस से घर लौटते हुए एक कॉफी शॉप पर कुछ युवा मदहोश व नशे में डूबे हुए मदमस्त आधुनिकता कि आड़ में घिरे युवाओं की आज की जिन्दगी का सच देखर कुछ पंक्तियाँ उम्मीद है पसंद आये ........!!

कॉफी हाउस में बैठा
आज का युवा वर्ग
मदहोश,मदमस्त,बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
तो ऐसे कंधो पर
देश का बोझ
कैसे टिक पायेगा ? 
जो
या तो खोखले हो गये है
या जिनको उचका लिया गया है
पर आज के युवा को विसंगतियों में
भटक जाना स्वाभाविक है
पर ए - दोस्त
अब बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं
कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढ़ी आँखों से.........!!

-- संजय भास्कर

02 सितंबर 2019

वक़्त के तेज गुजरते लम्हों में :)


अक्सर जीवन कभी 
इतनी तेज़ गति से 
गुज़रता है 
तब वह कुछ अहसास करने का
और समझने का  
समय नहीं 
देता पर जब कभी-कभी
जीवन इस कदर 
ठहर जाता है 
तब कुछ अहसास होने ही नहीं देता
तब ऐसा लगता है 
जैसे हमारे अंदर 
एक महाशून्य उभरता 
जा रहा है
शायद इसी मनोदशा में 
महसूस होती है 
बेहद थकान 
और हो जाती है शिथिल 
सी ज़िंदगी 
तब वक़्त के तेज गुजरते 
लम्हों में कई बार मन 
कहता है 
सुबह होती है शाम होती है 
उम्र यूं ही तमाम होती है !!

- संजय भास्कर 

05 अगस्त 2019

कुछ हट के राजस्थान सालासर बालाजी मंदिर दर्शन :(

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ब्लॉग पर इस बार कुछ हट आप सभी मित्रो के लिए घुमने तो अक्सर जाना हो ही जाता है पर पहले कभी इतना विशेष ध्यान नहीं दिया पर इस साल दो बार सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान जाने का मौका मिला तोबालाजी के दर्शन किये और मंदिर को बारीकी से देखा व मंदिर के बारे में काफी जानकारी मिली जिसे आपके सामने चित्रों के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! ब्लॉग जगत में घुमक्कड़ तो बहुत है पर कुछ से मैं परिचित हूँ इसमें नीरज भाई, संदीप भाई, योगी सारस्वत जी रितेश गुप्ता जी मुकेश पांडेय जी जी तस्वीरों के साथ यात्रा संस्मरण लिखने के लिए जाने जाते है जो सभी ब्लॉग मित्रो की पसंद है ये जहाँ भी जाते है चित्रों के साथ पूरा संस्मरण लिखते है ।
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 राजस्थान के चुरू जिले के सालासर में स्थित भगवान बालाजी का मंदिर एक पवित्र धार्मिक स्थल है। भगवान हनुमान जी को समर्पित यह मंदिर सालासर के बालाजी नाम से भी विख्यात है। मंदिर में हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है, दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पर भगवान हनुमान जी के दर्शनों हेतु आते रहते हैं। सालासर में स्थित हनुमान जी को लोग बड़े बालाजी के नाम से भी पुकारते हैं प्रत्येक वर्ष अश्विन पूर्णिमा एवं चैत्र पूर्णिमा के पावन समय पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दौरान लाखों की संख्या में भक्त भगवान बालाजी के दर्शन के लिए यहां पहुँचते हैं। इसके अलावा हर मंगलवार
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एवं शनिवार के दिन भी यहां  भक्तों की भारी भीड़ रहती है यह भी प्रचलित है कि सालासर के बालाजी सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।  सालासर का बालाजी मंदिर अनेक रूपों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस मंदिर में स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा जो दाढ़ी मूंछ लिए हनुमान जी के व्यस्क रूप को दर्शाती है हनुमान जी ऐसा रूप कहीं और देखने को नहीं मिलता, केवल यहीं पर आपको भगवान हनुमान जी का ऐसा रूप देखने को मिलता है........!! सालासर बालाजी मंदिर में हनुमान जयंती, राम नवमी के
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अवसर पर भंडारे और कीर्तन इत्यादि का विशेष इंतजाम होता है इस दिन भारी संख्या में लोग यहां भगवान के दर्शनों के लिए आते हैं। लगभग बीस सालों से यहां पर रामायण का अखंड पाठ होता चला आ रहा है लोग यहां स्थित एक प्राचीन वृक्ष पर नारियल बांध कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति करते है सालासर धाम अपने चमत्कारों है और भक्तों की मनोकामनाओं के पूर्ण होने के लिए प्रसिद्ध है। लाखों श्रद्धालु  इस मंदिर में आते है और नारियल बांधने, सवामनी  इच्छाओं को पूरा करने के लिए सवानी परंपराओं का अभ्यास करते हैं। हनुमान सेवा समिति द्वारा प्रबंधित और रखरखाव, हनुमान जयंती, चैत्री पौर्णिमा और अश्विन पौर्णिमा पर एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
अगर आप धार्मिक स्थानों पर जाने के शौक़ीन है और ऐसी जगहों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित सालासर बालाजी जाकर आप निराश नहीं होंगे रुकने के लिए ... सालासर बालाजी में रुकने के लिए मंदिर के आस-पास कई शहरों के नाम से धर्मशालाएँ और होटल है, जिनका किराया भी 400 रूपए से शुरू होकर 1000 रुपए तक है ! इन धर्मशालाओं में लगभग ज़रूरत की सभी सुविधाएँ मौजूद है आप अपनी सहूलियत के हिसाब से कहीं भी रुक सकते है !!
आशा है आप सभी भी समय निकल कर बालाजी के दर्शन करने जाये !!
............. धन्यवाद !!

- संजय भास्कर

08 जुलाई 2019

.... इश्‍तेहार :)


इश्‍तेहार
चाहे किसी कंपनी का हो या
किसी स्कूल,दुकान का
उसे पढ़ना चाहिए
क्योंकि उसे पढ़ने में कोई ड़र नहीं
समय ही ऐसा हो गया है
सब काम ही इश्‍तेहारो से होते है
नई दूकान बनाओ
तो इश्‍तेहार
अस्पताल बनाओ
तो इश्‍तेहार
इश्‍तेहार जिसमे होती है
कुछ सूचनाएं कुछ सन्देश
कुछ आकड़े
कुछ वादे
जिसे खुद भी पढ़ो दूसरो को भी
सुनाओ और हमारी
सेवाओं व् वस्तुओ का फायदा उठाओ
पर इश्‍तेहार के चक्कर में
ठगे जाते है भोले भाले गरीब लोग
अक्सर
इसलिए इश्‍तेहार पढ़े जरूर
पर फैसला ले सोच समझकर
क्योंकि इश्‍तेहार का काम है
सिर्फ सूचना पहुँचाना !!

- संजय भास्कर

24 जून 2019

व्यस्तताओं के जाल में :)


अक्सर हो जाती है 
इकट्ठी
ढेर सारी व्यस्तताएँ
और आदमी 
फस जाता है इन व्यस्तताओं 
के जाल में  
पर आदमी सोचता जरूर 
है की छोड़ आएँ
व्यस्तताएँ कोसो दूर अपने से 
पर जब हम निकलते 
व्यस्तताओं को 
दूर करने के लिए 
तब लाख कोशिशों 
के बाद पीछा नहीं छोड़ती 
ये व्यस्तताएँ हमारा  
और हमे 
मजबूरन जीना पड़ता है 
ये व्यस्तताओं भरा जीवन 
और लड़ना पड़ता है अपने आपसे 
और व्यस्तताओं से 
तब इन व्यस्तताओं से बचने के बहाने
तलाशता आदमी 
हमेशा व्यस्त नजर आता है  !!

- संजय भास्कर 

13 जून 2019

गंभीर नजर आने वाली बेहतरीन अदाकारा एक्ट्रेस स्मिता :)

स्मिता पाटिल एक ऐसा चेहरा जिसके सामने आते ही कई किस्‍से बयां हो जायें......उनका लफ्जों से बयां न कर आंखों से अपनी बात कह जाना वाकई काबिलेतारीफ था. ऐसी दमदार अदाकारी कि लोग देखे तो देखते ही रह जाये. स्मिता पाटिल अपने संवेदनशील किरदारों के लिए खूब चर्चित हुईं. हालांकि मात्र 31 साल की उम्र में वे इस दुनियां को अलविदा कह गईं. स्मिता पाटिल का फिल्‍मी करियर भले ही 10 साल का रहा हो लेकिन उनकी दमदार अदाकारी आज भी लोगों के जेहन में हैं स्मिता पाटिल का जन्‍म 17 अक्‍टूबर 1955 को हुआ था. उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद  उनकी 14 फिल्‍में रिलीज हुई थी ...
पर्दे पर गंभीर नजर आने वाली एक्ट्रेस स्मिता पाटिल की अदाकारी से सभी वाक‍िफ हैं, लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि वो असल ज‍िंदगी में पर्दे से ब‍िल्कुल अलग थीं हमारा ये दुर्भाग्य रहा कि हमने महज 31 वर्ष की छोटी सी उम्र में हिंदी सिनेमा की सबसे संवेदनशील और प्रतिभाशाली अभिनेत्री को खो दिया। महज 31 साल की उम्र में दुन‍िया को अलव‍िदा कहने वाली इस एक्ट्रेस की ज‍िंदगी में हर रंग शामिल थे.......अपने सांवले रंग के बावजूद उसका चेहरा यूं दमकता था जैसे बादलों के बीच चांद, लेकिन वो सांवली लड़की जीवन की सांझ आने से पहले ही सो गई। अपनी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंखों और सांवली-सलोनी सूरत से सभी को आकर्षित करने वाली अभिनेत्री स्मिता पाटिल ने महज 10 साल के करियर में दर्शकों के बीच खास पहचान बना ली। उनका नाम हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अदाकाराओं में शुमार है। स्मिता को आज भी कोई कहां भूल पाया है।
स्मिता पाटिल ने अपने छोटे से फिल्मी सफर में ऐसी फिल्में कीं, जो भारतीय फिल्मों के इतिहास में मील का पत्थर बन गईं।...उन्हें ह‍िंदी स‍िनेमा में बेहतरीन अदाकारी के लिए 2 नेशनल अवॉर्ड, 1982 में फिल्मफेयर और साल 1985 में पद्मश्री से नवाजा गया था. ..उनकी कुछ चर्चित फिल्‍मों में 'निशान्त', 'आक्रोश', 'चक्र', 'अर्धसत्य', 'मंथन', 'अर्थ', 'मिर्च मसाला', 'शक्ति', 'नमक हलाल' और 'अनोखा रिश्ता' फ़िल्म 'भूमिका' और 'चक्र' में दमदार अभिनय के लिए उन्‍हें दो राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार के अलावा चार फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले.....!!

-- संजय भास्कर


27 मई 2019

आने वाले दिनों में :)


आने वाले दिनों में जब
हम सब       
कविता लिखते पढ़ते बूढ़े
हो जायेंगे !
उस समय लिखने के लिए
शायद जरूरत न पड़े
पर पढ़ने के लिए
एक मोटे चश्मे की
जरूरत पड़ेगी
जिसे आज के समय में हम
अपने दादा जी की आँखों पर
देखते है !
तब पढने के लिए
ये मोटा चश्मा ही होगा
अपना सहारा
आने वाले दिनों में
देखता हूँ यह स्वप्न
मैं कभी - कभी 
क्‍या आपको भी
ऐसा ही
ख्‍याल आता है कभी !!

-- संजय भास्कर 

14 मई 2019

आई ऍम सॉरी मैने तुम्हारा दिल तोड़ा कहाँ से आया ये सॉरी :)

सॉरी, मैं लेट हो गया सॉरी मैं वो काम पूरा नहीं कर पाया..... मेरी वजह से तुम्हारी ट्रेन छूट गई, आई एम सॉरी.... मैने तुम्हारा दिल तोड़ा, सॉरी....सॉरी, मैने तुम्हें गलतफहमी में थप्पड़ मार दिया। ये क्या अब क्यों गुस्सा हो रहे हो सॉरी बोल तो दिया। अक्सर ही इस ' सॉरी ' के शिकार हुए लोगों के मुंह से निकल ही जाता है कि 'अंग्रेज चले गये लेकिन ' सॉरी ' छोड़ गए। चाहे कितनी ही बड़ी गलती कर दो बस एक सॉरी बोला और हो गया काम पूरा
वहीं सॉरी कहने वालों की सोच होती है कि अब माफी तो मांग ली अब क्या सिर्फ एक गलती के लिए फांसी दे दोगे। बड़ी से बड़ी गलती हो जाने पर भी ये बस एक सॉरी के सहारे सभी गलतियों कि माफी पाने की तमन्ना रखते हैं। कितना छोटा सा शब्द होता है सॉरी......अंग्रेजी में माफी मांगने के लिए प्रयोग होने वाले इस शब्द को समझो तो इसके मायने कितने गहरे होते हैं। अपनी गलती को मान कर उसे दोबारा न करने और उसके लिए शर्मिदा होने के भाव को व्यक्त करता है। लेकिन कितने लोग ऐसे हैं जो इसके असली भावों से वाकिफ हैं। कई बार लोग इनके इस झूठे शब्दों के जाल में फंस जाते हैं तो कुछ इसकी असलियत को जानते हुए इसकी परवाह ही नहीं करते।
आज कितने ही लोग बचे हैं जो सॉरी कहने के बाद फिर से वो गलती नहीं करते। वे तो बस उस समय बात बिगड़ने के डर से इस सॉरी का सहारा लेते हैं। आजकल की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हर व्यक्ति जल्दी में रहता है और दूसरों को आगे निेकले का प्रयास करता रहा है। इस दौरान ना जाने उसने कितनों को कई बार धक्का दिया होगा, नुकसान पहुंचाया होगा, मगर हर बार वह उसे सॉरी बोलकर और अपनी गलतियों को नजरअंदाज कर आगे निकल जाता है ऐसे लोगो की वजह से सारी शब्द अपने असली मायने खो रहा है......आज जरुरत है हमें भी कुछ ऐसा करने की जिससे पूरा जनसमुदाय इस शब्द के मायने और अर्थ को समझ कर सॉरी बोलने से पहले एक बार सोचें और अपनी जिंदगी में इस तरह के शब्दों का कम से कम प्रयोग करें.......!!

- संजय भास्कर

01 मई 2019

कुछ मेरी कलम से अनीता सैनी, रेणु, अनुराधा चौहान :)

आदरणीय रेणु जी ( ब्लॉग क्षितिज ) अनुराधा चौहान जी ( Poet and Thoughts ) और अनीता सैनी जी ( गूंगी गुड़िया ) काफी समय से तीनो को ब्लॉग के माध्यम से पढ़ रहा हूँ इनकी हर विषय पर एक से बढ़कर एक मर्मस्पर्शी व सटीक रचनाएँ और हाइकु ने सीधे दिल पर दस्तक देते है सभी लेखिकाओं का कम समय में बढ़िया लेखन पढ़ने को मिला तीनो की लेखनी से मैं बहुत ही प्रभावित हूँ होकर ही इनके बारे में लिख रहा हूँ पर शायद किसी के बारे में लिखना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है तीनो लेखिकाओं के लिए कुछ शब्द साँझा कर रहा हूँ उम्मीद है सभी पसंद आये..........!!

रेणु जी ज़िंदगी पर जिस यथार्थता से रेणु जी की कलम चली है उतनी ही मर्मस्पर्शी व सटीक रचनाएँ लिखी है.... वैसे भी कवि हृदय में प्रेम का एक विशिष्ट स्थान होता है और इसे रेणु जी ने अपने अनुभव से और भी विशिष्ट बना दिया है उनकी कुछ रचनाएँ सच ही मन को भावुक कर जाती हैं रेणु जी की लिखी कुछ मेरी पसंदीदा रचनाये ......
घर से भागी बेटी के नाम, मैं श्रमिक, सुन ओ वेदना, भैया तुम हो अनमोल, स्मृति शेष पिताजी, उदासियों के बियाबान, मेरी पसंदीदा रचनाये !!  मेरी और से  रेणु जी को निरंतर लेखन के लिए को शुभकामनाएँ............!!


अनुराधा चौहान जी की कुछ रचनाये बड़ी सहजता से अपनी व्यथा व्यक्त करती है उनकी कवितायें इस बात को
प्रमाणित भी करती हैं संवेदनशील मन मात्र अपनी ही व्यथा कथा नहीं कहता इनसे जुड़े हर शख़्स की भावनाओं को कवयित्री ने कविता में बुन डाला है उनकी कुछ रचनाएँ सच ही मन को भावुक कर जाती हैं
अनुराधा चौहान की लिखी कुछ मेरी पसंदीदा रचनाये.......
एक गरीब बेचारा, अधूरे ख्वाब, वक़्त के घाव, जीवन का सत्य, मैं ही प्रलय हूँ, ग़रीब की ज़िंदगी, काश न होती यह सरहदें इत्यादि, मेरी और से अनुराधा जी को निरंतर लेखन के लिए को शुभकामनाएँ...........



अनीता सैनी जी से ब्लॉग से परिचय हुआ उनकी कविताये पढ़ने को मिली काफी समय से अनीता जी के लेखन
से मैं बहुत प्रभावित हूँ हमेशा ही उनकी हर पोस्ट में कुछ अलग ही पढ़ने को मिलता है खासकर संवेदन शील विषय पर लिखी हर रचना एक अलग ही छाप छोड़ती है लेखिका के पास लेखन का कई वर्षों अनुभव है इसी कारण उन्होंने लेखन में मन में उपजे विचारों को नए अंदाज में लिखती है अनीता जी की रचनाएँ अपने आप में अनूठी है जो सीधे दिल को छूती है अनीता सैनी की लिखी कुछ मेरी पसंदीदा रचनाये.......
बोलता ताबूत, सत्य अहिंसा का पुजारी, ख़ामोशी तलाशती है शब्द, वेदना प्रकृति की, ख़ामोश होते रिश्तें, मुस्कान अश्कों  की ,

मेरी ओर से निरंतर लेखन के लिए आदरणीय तीनो बड़ी बहनो को ढेरों शुभकामनाएँ........!!

-- संजय भास्कर


24 अप्रैल 2019

Memories Of School Days एक पिता का वात्सल्य गुलाबी चूड़ियाँ :)

जब भी कभी नागार्जुन बाबा का नाम दिमाग में आया सबसे पहले दिमाग में गुलाबी चूड़ियाँ ही याद आई ......कभी कभी पुरानी यादें लौट आती है याद नहीं कौन सा वर्ष रहा होगा पर इतना जरूर याद है स्कूल में हिंदी की क्लास में एक ट्रक ड्राईवर के बारें में ऐसे पिता का वात्सल्य जो परदेस में रह रहा है घर से दूर सड़कों पर महीनों चलते हुए भी उसके दिल से ममत्व खत्म नहीं हुआ जो अपनी बच्ची से बहुत प्यार करता है !............. यह कविता है नागार्जुन बाबा की “गुलाबी चूड़ियाँ”  जिसे उसने अपने ट्रक में टांग रखा है ये चूडियाँ उसे अपनी गुड़िया की याद दिलाती और वो खो जाता है हिलते डुलते गुलाबी चूड़ियाँ की खनक में .........!!

कविता के अंश…...गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…

झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने


मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !

-- बाबा नागार्जुन

03 अप्रैल 2019

कुछ मेरी कलम से कामिनी सिन्हा :)

कुछ समय से कामिनी सिन्हा जी के कुछ आलेखों को ( मेरी नज़र से ) ब्लॉग के माध्यम से पढ़ रहा हूँ जीवन का सारा खेल एक नज़र और नज़रिये का ही तो होता है ,किसी को पत्थर में भगवान नजर आते है किसी को भगवान भी पत्थर के नज़र आते है कामिनी जी हिंदी साहित्य मे संमरण आलेखों को काफी गहराई से लिखती है जिंदगी के ढेरों उलझनों से कुछ समय बचाकर कहानी और लेख के माध्यम से साँझा करती है ! जिस तरह हर इंसान का जिंदगी जीने का अपना ही अंदाज़ होता है उसी तरह जीवन को, जीवन की परिस्थितियों को, समाज को और यह तक की व्यक्ति विशेष को देखने का भी उसका अपना एक नज़रिया होता है ,अपना एक दृश्टिकोण होता है. वो अपनी ही नज़रिये से हर परिस्थिति को देखता है, समझता है, संभालता है और सीखता भी है. यूँ कहे कि सारा खेल नज़र और नज़रिये का है ! कुछ दिनों पहले कामिनी जी का एक आलेख एक खत पापा के नाम जो एक दर्द से भीगा हुआ मर्मस्पर्शी बेटी की खत था मन बहुत दुखी हुआ आपकी व्यथा पढ़ कर । दिवंगत पिताजी को समर्पित ये लेख हर उस बेटी के मन की अव्यक्त भावनाओं को शब्द देता है जिन्होंने आपकी ही तरह जीवन में इस स्नेहमयी छाया को खोया है ! एक बेटी और पिता के बीच हमेशा ही स्नेह का अद्भुत नाता रहा है जिसे लिख पाना बिलकुल भी संभव नहीं ! तुमने उन भावनाओं को बहुत ही भावपूर्ण ढंग से लिखा है जो उस समय तुम्हारे भीतर उमड़ी होंगी पापा के अंतिम सफ़र के दृश्य मुझे भी अपने दिवंगत पिताजी के बारे में सुनी बातें याद दिला गये | सखी मैं इतनी भाग्यशाली नहीं थी जो अपने पिताजी के साथ उस समय रहती पर उनके साथ भी दर्दनाक कैंसर का यही अनुभव रहा मन की वेदना के ज्वार को तुमने ज्यों का त्यों लेख में उतार दिया ! शब्द - शब्द पीड़ा बही और सब अनकही कह गई पिता के लिए इतनी गहन अनुभूतियाँ सराहना से परे हैं इनसे तुम्हारे उनके बीच के अद्भुत रिश्ते का पता चलता है  कामिनी सिन्हा जी लेखनी से प्रभावित होकर ही उनके के बारे में लिख रहा हूँ पर शायद किसी के बारे में लिखना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है पिता के लिए बेटी के प्यार को शब्दों में पिरोता खत सीधे  दिल से दिल तक जाने में सक्षम रहा सच में बाप-बेटी का रिश्ता कितना अनमोल होता हैं...........उसे शब्दों में बयान करना बहुत ही मुश्किल हैं कामिनी के बारे जो कुछ भी लिखा उनकी लेखनी से प्रभावित हो कर लिखा उम्मीद है सभी पसंद आये !!
मेरी और से निरंतर लेखन के लिए को कामिनी जी को ढेरों शुभकामनाएँ.........!!


-- संजय भास्कर

06 मार्च 2019

लिखता हूँ एक नज्म तुम्हारे लिए सालगिरह पर :)

विवाह कहे अनकहे तरीके से ये एहसास दिलाता रहता है तुम्हारे जीवन का एक मूल्य है और उस मूल्य को समझने वाला एक साथी हमेशा तुम्हारे साथ है जब एक दुसरे की न सिर्फ...अच्छाईयां बल्कि बुराइयाँ भी अच्छी लगने लगे...तो समझ लेने चाहिये की प्यार हो गया है...आज हमारी शादी की सालगिरह है आज कुछ शब्द अपनी पत्नी प्रीती के लिए...आज के ही दिन हम हुए थे एक कुछ खट्टी मीठी यादें ढेर सारा प्यार....मुझे हमेशा ही आप सभी का स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा है आज फिर इस अवसर पर आप सभी का प्रेम और आशीर्वाद चाहिए .....!!

                                                                  ( चित्र:- प्रीती भास्कर और मैं )

अक्सर मैं लिखता हूँ 
तुम्हारी आखों को 
अपने शब्दों में,
एक - एक शब्द जोड़कर कर 
लिखता हूँ एक नज्म तुम्हारे लिए 
क्योंकि तुम्हारा मेरी ज़िंदगी में 
होना भी 
एक खूबसूरत नज्म के समान है    
इन शब्दों को पढ़कर 
क्या तुम प्यार करोगी न 
मुझसे,
क्योंकि सारे रिश्ते छूट जाते हैं 
बदलते वक्त के साथ,
पर पति पत्नी का रिश्ता होता है मजबूत,
वक्त के साथ....!!



-- संजय भास्कर 

21 फ़रवरी 2019

इंदौर की शान छप्पन गली के स्वादिष्ट पकवान :)

भारत का सबसे साफ सुथरा शहर इंदौर सराफा बाजार और छप्पन गली के स्वादिष्ट पकवान
इंदौर शहर के राजवाड़ा के स्वादिष्ट चटपटी चाट सराफा बाजार के मालपुए और बटाला कचौरी इंदौर की छप्पन गली जलेबी और पोहा
पोहा जलेबी 
भारत का ह्रदय मध्य प्रदेश अपनी ऐतिहासिक धरोहरों, प्राकृतिक सौदर्यता और व्यापारिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है,बल्कि इस राज्य को भारत का 'फूड कैपिटल' भी कहा जाता है। मध्य प्रदेश का इंदौर शहर अपने लजीज व्यंजनों के लिए बहुत चर्चा में रहता है। यहाँ जाते ही अक्सर इंदौर की फूड स्ट्रीट याद आती है जो शाम होते ही खाने के शौकीनों से भर जाती हैं। सिर्फ शहर भर से ही नहीं बल्कि यहां के व्यंजनों को चखने के दूर-दूर से से लोग आते रहते है
यह भारत की उन खास फूट स्ट्रीट्स में गिना जाता है जहां खाने-पीने का मजा रात में लिया जा सकता है। यह एक ज्वलरी मार्कट है, लेकिन रात के 9 बजते ही फूट स्ट्रीट्स में तब्दिल हो जाता है। रात से 9 से लेकर यहां की खाने-पीने की दुकाने 2 बजे तक खुली रहती हैं। सराफा बाजार अपने जायके लिए अब सिर्फ शहर तक सीमित नहीं रहा बल्कि यहां चटकारा लगाने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों से खाने-पीने के शौकीन आते हैं। यहां के व्यजनों में आप गराडू, खोपरा पेटिस, बटाला कचौरी, भुट्टे की कीज़ और उत्तर-भारतीय मिठाई जैसे
दालबाटी 
मालपुआ, मूंग की दाल का हलवा, रबड़ी, कुल्फी, केसरीया दूध और गुलाब जामुन का भरपूर आनंद ले सकते हैं। अगर आप यहां आएं तो जोशी के दही बड़े, नागोरी की चिकनजी, राजहंस का दाल बाफला और अन्ना का पान ट्राई करना न भूलें। इंदौर की छप्पन गली जहा 56 छप्पन दुकानों का एक बड़ा समूह है इसी समूह से यहाँ का नाम छप्पन गली  पड़ा है यह एक बड़ा बाजार है। यहाँ पर जलेबी और पोहा के साथ कई प्रकार के फ़ास्ट फ़ूड का आनद लिया जा सकता है अगर आप यहां आएं यहां 'पोहा -जलेबी' खाना न भूलें। यह व्यंजन इंदौर के फूड कल्चर का एक अहम हिस्सा है। यहां लोग नाश्ते के तौर पर इसे खाना पसंद करते हैं। इसके अलावा आप यहां खोपरा पेटिस और इंडियन कॉफी का भी आनंद ले सकते हैं इंदौर शहर के राजवाड़ा के स्वादिष्ट चटपटी चाट
जोशी दही बड़ा हाउस 
है तो आप शहर की प्रसिद्ध चाट गली राजवाड़ा आ सकते हैं। राजवाड़ा अपनी चाट के लिए ही जाना जाता है। यहां का चाट की दुकाने कई सालों से ग्राहकों को चाट खिलाने का काम कर रही हैं। यहां आपको कई तरह की चटपटी चाट खाने का मौका मिलेगा। यहां ज्यादातर परिवार के लोग जिसमें महिलाएं ज्यादा आना पसंद करती हैं। इसके अलावा पर्यटक वर्ग भी यहां चाट का मजा लेते दिख जाएंगे।
24 घंटे चाय मिलेगी आपको यहाँ यूं तो इंदौर के हर गली-कूचे में आपको चाय मिल जाएगी. लेकिन अगर रात को 2 बजे की चाय की तलब लगे तो कहीं नहीं रेलवे स्टेशन पर कल्याण विश्रांति के पास शर्मा, चौरसिया और जैन टी स्टॉल पर चुस्की ले सकते हैं. इसके अलावा राजवाड़े चौराहे पर भी आपको देर रात चाय मिल जाएगी. ये सभी दुकाने अपनी चाय के लिए इंदौरियों की पहली पसंद में से हैं ....!!

-- संजय भास्कर

06 फ़रवरी 2019

तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा :)

( चित्र गूगल से साभार  )

                              कोरा कागज़ और कलम                            
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे   
जिन्हे लेकर बैठा हूँ फिर से
आज बरसो बाद 
कुछ पुरानी यादें लिखने
जिसमें तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा 
आज ये ठान कर बैठा हूँ
कलम आज भरना चाहती है कोरे पन्नें
पर कोई ख्याल आता ही नही
शब्द जैसे खो गए है मानो 
क्योंकि अगर मैं तुमको छोड़ता हूँ 
तो शब्द मुझे छोड़ देते है 
पता नहीं आज
उन एहसासो को 
शब्दो में बांध नही पा रहा हूँ मैं 
क्योंकि आज
ऐसा लग रहा है की मुझे 
मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है 
शायद तुम जो साथ नहीं हो  
और ये सब तुम्हारे प्यार का असर है 
हाँ तुम्हारे प्यार का ही असर है 
जो तुम बार-बार आती हो
मेरे ख्यालों में 
तभी तो आज ठान क बैठा हूँ 
कि तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा ....!!

-- संजय भास्कर 

15 जनवरी 2019

कुछ मेरी कलम से यशोदा अग्रवाल पढ़ने का जूनून :)

यशोदा अग्रवाल जी ब्लॉगजगत में एक पहचान है यशोदा अग्रवाल जी ( मेरी धरोहर , मुखरित मौन विविधा, पाँच लिंकों का आनन्द ) यशोदा जी कई ब्लॉग की संस्थापक है पढ़ने का शौक और लिखने का जूनून उनके अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ है लगभग कई वर्षो से यशोदा दी को ब्लॉग के माध्यम से पढ़ रहा हूँ उनका कई ब्लोगो पर हर दिन दृढ़ता पूर्वक कार्य जारी है अपने कार्यो में कुशल पूर्ण पारिवारिक महिला यशोदा जी अपने कर्तव्यों का दृढ़ता पूर्वक निभा रही हैं समय- समय पर उनकी मर्मस्पर्शी लेखन पढ़ने को मिलता है ब्लॉग के सदस्यों की मेहनत और लगन के कारण हलचल विद पाँच लिंकों का आनन्द वर्तमान में बहुत लोकप्रिय है यशोदा दी लेखन के साथ-साथ अच्छी पाठक भी है जो हमेशा ब्लोगरो की रचनाएँ अपने ब्लॉग पर प्रसारित कर सभी का हौसला बढाती रही है ....लम्बे समय से मैं यशोदा अग्रवाल जी का ब्लॉग पढ़ रहा हूँ पर उनसे मिलने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ मैं अक्सर यशोदा जी जी के बारे में कुछ लिखना चाहता था और क्यों न लिखे आखिर उनका ब्लॉगिंग और ब्लोगरो की रचनाएँ अपने ब्लॉग पर प्रसारित कर बहुत ही बढ़िया कार्य कर रही है उनका अंदाज ही ऐसा है कि पाठक अपने आप ही उनके ब्लोगो पर खिंचा चला जाता है उनके इस योगदान ने ब्लॉगजगत को प्रभावित किया है उनके निरंतर योगदान के लिए यशोदा अग्रवाल जी को ढेरों शुभकामनायें यशोदा दीदी के लेखनी से प्रभावित होकर ही उनके बारे में लिख रहा हूँ पर शायद उनके बारे में लिखना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है यशोदा दी के ब्लॉग से कुछ पंक्तिया साँझा कर रहा हूँ उम्मीद है सभी को पसंद आये ........!!
यशोदा जी की लिखी मेरी पसंदीदा रचना........सात शहीद 
चले गए वो क्यों
क्या दुश्मनी थी उनसे
जो मार दिया छल से
जो चाहते हैं वो
वो होगा जरूर
पर उन्हे... 
देनी होगी तिलाजली
हथियार के रूप में
और सरकार से
विनम्र आग्रह
तलाशें..उन सफेदपोशों
और सरकारी अमले में से
विभीषणों और जयचंदों  को
जो इन आतंकवादियों को 
खबरें मुहैय्या  करवाते हैं
व पनाह भी देते हैं
और तभी..
भारत की जनता
मरते-मरते जीने के
भय से मुक्त होगी !!
मन की उपज

-  यशोदा अग्रवाल 
मेरी और से यशोदा जी को लेखन के लिए लिए को ढेरों शुभकामनाएँ............!!

-- संजय भास्कर 

03 जनवरी 2019

..... अपना घर :)

                         ( चित्र गूगल से साभार  )

जवान बेटी को बाप ने कहा
जाना होगा अब तुम्हे अपने घर ,
बी.ए की करनी वही पढाई
मैंने
ढूंढ़ लिया तेरे लायक वर ,
अब तक तुम हमारी थी
पर अब हमे छोड़ जाना होगा
बसाना होगा
नया घर
बेटी ने बहू बनकर
बी.ए वाली बात दोहरायी
सुनकर उसकी बातें उसकी सास गुर्राई 
अगर आगे ही पढना था
तो पढ़ती 'अपने घर '
बहू है हमारी अब सेवा कर ,
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर
बेटियां दुनिया में होती है
बे घर ....!!

- संजय भास्कर