29 अगस्त 2022

उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते - विभारानी श्रीवास्तव :)


विभारानी श्रीवास्तव ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ नाम है ( विभारानी श्रीवास्तव  --  सोच का सृजन यानी जीने का जरिया ) विभारानी जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है  एक से बढ़कर एक हाइकू लिखने की कला में माहिर कुछ भी लिखे पर हर शब्द दिल को छूता है हमेशा ही उनकी कलम जब जब चलती है शब्द बनते चले जाते है ...शब्द ऐसे जो और पाठक को अपनी और खीचते है और मैं क्या सभी विभा जी के लेखन की तारीफ करते है...........!!
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कुछ दिन एहले विभा ताई जी की एक पोस्ट पढ़ी
मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर :))))
.......मेरी आदरणीय ताई जी ये शब्द मुझे भावुक कर गए उनके लिखे शब्द बहुत ही अपनेपन का अहसास कराते है !
मौके कई मिले पर परिस्थियाँ ही कुछ ऐसी थी जिसकी वजह से आज तक ताई जी से मिलने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ !
क्योंकि एक लम्बे समय से मैं विभा ताई जी का ब्लॉग पढ़ रह हूँ और फेसबुक स्टेटस भी अक्सर पढता रहता हूँ पर ताई जी के लिए कुछ लिखने का समय नहीं निकल पाया पर आज समय मिला तो तो पोस्ट लिख डाली !
................ विभा ताई जी की उसी रचना की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ जिसे याद कर आज यह पोस्ट लिखने का मौका मिला....

.............मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर
जब किसी ने कहा
सखी
बुई
ताई
बड़ी माँ
चाची
भाभी
दीदी
दीदी माँ दीदी माँ तो कानो में शहनाई सी धुन लगती है .....
यही बात आज मैं ने फूलो से भी कहा
सभी को अपने बांहों के घेरे में लेकर बताना चाहती हूँ ...

विभा ताई जी के अपार स्नेह और आशीर्वाद पाकर खुशकिस्मत हूँ मैं की उनके लिए आज यह पोस्ट लिख पाया सुंदर लेखन के लिए विभा ताई जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ....!!!

-- संजय भास्कर

05 अगस्त 2022

कुछ मेरी कलम से सुधा देवरानी :)

मुझे याद है करीब तीन वर्ष पहले मैंने ब्लॉग नई सोच पर एक रचना पढ़ी थी.....बेटी.. माटी सी ..जिस पढ़कर एक गहरी टीस सी उठी जिसमे एक माँ ने मर्म को छूती  एक हकीकत बयां की तब से लेखिका के ब्लॉग पर आना जाना लगा रहा और बहुत सी सुंदर रचनाएँ पढ़ने को मिली जी मैं बात का रहा हूँ 
एक कुशल कवियत्री,ब्लॉगर आदरणीय सुधा देवरानी जी की ब्लॉग ( नई सोच ) उनका दृष्टिकोण हम उनकी कुछ कविताओं मे देख सकते है करीब पांच वर्षों से सुधा जी का लेखन पढ़ रहा हूँ सुधा जी बेहद संवेदनशील रचनाकार के रूप में अपने आप को स्थापित किया है उनकी रचनायें जीवन के प्रति उनके विशिष्ट दृष्टिकोण को भी दर्शाती हैं और नियमित रूप से काफी ब्‍लॉग पर अपनी निरंतरता बनाये रखती है मुझे सुधा जी कलम से निकली रचनाएँ बहुत प्रभावित करती है बेटी माटी सी रचना ने बहुत प्रभावित किया जिसमे बेटियां जो समाज की संजोयी निधि की तरह है उनके विकास हेतु एक अलग नजरिया होना अति आवश्यक है कविता मे नारी मन की वेदना को लिखा है सुधा जी कुछ रचनाएँ जैसे 
....विचार मंथन, ....लघु कथा सिर्फ गृहिनी, ....अपने हिस्से का दर्द, .....चल ज़िंदगी तुझको चलना ही होगा आदि सुधा जी के बारे मे कुछ लिखना चाहता था पर समय नही मिला पर जा आज समय मिलते ही उनके बारे मे लिखा रहा हूँ पोस्ट के अंत मे सुधा जी की एक रचना साँझा का रहा हूँ उमीद है सबको पसंद आये......!! 


शीर्षक है.....बेटी माटी सी

कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते 
मन हल्का वह कर पायेगी ?

हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ....?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ....?

गर कुछ अच्छा हो जाता है
तो श्रेय तुम्ही को जाता है
इज्ज़त है तुम्हारी परमत भी
उससे कैसा ये नाता है......?

दिन रात की ड्यूटी करके भी
करती क्या हो सब कहते हैं
वह लाख जतन कर ले कोशिश
पग पग पर निंदक रहते हैं

खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक  विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है

सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन 
इतिहास वही दुहराती है

बेटी को वर देती जल्दी
दुख सहना ही तो सिखाती है
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती है !!

- संजय भास्कर