शब्दों की मुस्कुराहट ब्लॉग की ओर से ब्लॉग जगत के सभी साथियों को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
- संजय भास्कर
जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर शब्दों से मुस्कुराहट बाँटने की कोशिश :)
शब्दों की मुस्कुराहट ब्लॉग की ओर से ब्लॉग जगत के सभी साथियों को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
- संजय भास्कर
पुस्तक चर्चा कुछ मेरी कलम से युगांतर संग्रह समीक्षा.....लेखिका आशालता सक्सेना :)
कुछ दिनों से व्यस्तताएँ बढ़ गई है पर व्यस्त जीवन से कुछ समय बचाकर आज की चर्चा मे आदरणीय आशालता सक्सेना जी के काव्य संग्रह .....युगांतर.....
जो विविध आयाम का अनोखा लेखन उजागर करता है
आदरणीय आशा जी रचना संसार का एक पड़ाव है युगांतर जिसमे लेखिका ने बदलते युग का आकलन करते हैं अपनी अनुभूतियों को रेखांकित किया है संकलन मे वर्तमान युग के मर्मस्पर्शी चित्र है कल और आज की सोच मे उपजे अंतर के कारण वृद्दों के सम्मान मे हो रही कमी की टीस,बिना बेटी के घर सूना, शिक्षा के क्षेत्र परिवर्तन न दिखाई देने की पीड़ा, कलम की आज़ादी याए सब कविताओं मे रेखांकित की है
उनका कहना है मैं तो बस लिख रही हूँ और क्यों लिख रही हूँ, यह नहीं जानती मेरे मन में तरह तरह के विचार उठते है और इन विचारो के साथ जीवन के कड़वे मीठे अनुभवों का सिलसिला खुलता जाता है अनुभूतिय शब्दों का लिबास पहन कर अभिव्यक्त होने लगती है यह क्रम पिछले दस-बारह सालो से सतत चल रहा है उन्हे लेखन के संस्कार ममतामयी श्रेष्ठ कवियित्री माता से मिले है ! यह उनकी संस्कारो का ही फल है विवाह के बाद घर गृहस्थी और शिक्षा सेवा में व्यस्त रही और सेवानिवृति के बाद अध्यन व लेखन से जुडी हूँ जिसमे मुझे मेरी छोटो बहन कवियित्री श्री मति साधना वैद का भरपूर प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है.......आपके अब तक काव्य संग्रह
मार्च 2022 में मुझे श्रीमती आशालता सक्सेना जी का युगांतर संकलन पढने को मिला जो बहुत ही पसंद आया आशा सक्सेना जी जिन्हें आप सभी आकांशा ब्लॉग में पढ़ते रहे है उनकी ज्यादा तर प्रकृति पर उनकी कविताये मन को बहुत प्रभावित करती हैं श्रीमती आशा लता सक्सेना उन्ही में से एक है युगांतर संकलन की भूमिका डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने लिखी है !
पसंकलन मे कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है अंग्रेजी की प्राध्यापिका होने के बावजूद कवयित्री ने हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग व्यक्त करते हुए लिखा है
कवयित्री ने काव्य को सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक युगांतर को प्रभावशाली बनाया है आशा जी की पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन है आज के समय में साहित्य जगत में अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप देना हर किसी के बस की बात नहीं है युगांतर संग्रह की कविताएँ एकदम सटीक है ढेरों शांनदार कविताएँ है......
संग्रह की पहली कविता की शुरुआत गणेश जी पर कविता से
#युगांतर काव्य संकलन (155 कविताएँ )
- श्रीमती आशालता सक्सेना
- संजय भास्कर
पुस्तक चर्चा कुछ मेरी कलम से टंगी खामोशी संग्रह समीक्षा.....लेखिका रचना दीक्षित :)
कुछ दिनों से व्यस्तताएँ बढ़ गई है पर व्यस्त जीवन से कुछ समय बचाकर....आज दीदी रचना दीक्षित जी के संग्रह "टंगी खामोशी" की चर्चा......पहले रचना दी के संग्रह की कविता.......विकास की इबारत पढ़ते है फिर आगे
आभासी दुनिया में लिखते पढ़ते बहुत सारे ब्लॉग से जुड़ा और तभी रचना दी के ब्लॉग को पढ़ा जो की रचना रविंद्र" ब्लॉग के माध्यम से ब्लॉगिंग मे सक्रिय थी उनकी बहुत सारी कवितायें पढ़ने को मिली और बहुत कुछ सीखने को मिला बहुत से विषयों पर कविताएँ पढ़ी साथ ही साथ ही मुझे और मेरी पत्नी प्रीति को रचना दीक्षित दीदी से मिलने का सौभाग्य और दीदी का आशीर्वाद भी मिला दी से पहली बार उनसे मिलने पर मुझे बेहद अपने अपने पन का अहसास हुआ.....कभी लगा ही नहीं कि मैं बड़ी लेखिका से मिल रहा हूँ....
आज रचना दी के कविता संग्रह " टंगी खामोशी " (शब्दों की मित्वयता के साथ जीवन जीने की विवशता) के बारे मे "टंगी खामोशी" पिछले कुछ वर्षो में लिखी कविताओं का शानदार संग्रह है........काव्य संग्रह जिसे पढ़ने के बाद एक अलग ही अनुभव हुआ उसी से जुड़े कुछ विचार आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ रचना दी को "रचना रविंद्र" ब्लॉग के माध्यम से ब्लॉगिंग मे सक्रिय है रचना दीदी के काव्य संग्रह की कवितायेँ ख़ामोशी और शब्दों के बीच का सेतु है संग्रह मे देहलीज़, फुर्सत, अहसास, समय का दर्द, इमारतें, गुमनाम विरासत, धागे, दस्तक, ख्वाब और खामोशी, साँसे, अब से रावण नही मरेगा, दायरे, अनेको रचनाएँ बेहतरीन है......
संग्रह पर रचना दीक्षित दी भी लिखती है ये किताब मेरी कविताओं का एक पुलिंदा नहीं, ये आइना है, जिसके सामने मैं अपने आप को रोज़ खड़ा पाती हूँ ! देखती हूँ दबे पाँव सरकता समय, कभी सैलाब में बहती खामोशी, कभी सलीब पर टंगी खामोशी, कभी आँगन में बिखरी खामोशी। बस यही सब भूला, बिसरा, छूटा, छिटका, ठिठका सहेजने की कोशिश मात्र है ये संकलन बचपन के बीते बहुत सी स्मृतियों को सामने को आज के समय मे ढूढने का अनर्थक प्रयास!
रिश्ते खून के, हूँ प्यार के, दोस्ती के, समाज के जिस भी रिश्ते को ताउम्र पकड़ कर, जकड कर रखना चाहा सूखी सूनी रेत की तरह भरभराकर कर गिरते रहे। नहीं जानती रिश्तों की नीव कमजोर थी या मेरी उन पर पकड़ जरूरत से ज्यादा सख्त। सभी के साथ होता है ये सब पर सब के अनुभव अलग अलग है, उनकी छाप अलग अलग है! मन के किस हिस्से में कितना प्रभाव शब्दों के माध्यम से उतरता है
मेरी कविताओं में कहीं विचार उद्वेलन तो कहीं भावों की तीव्रता मिलेगी, कहीं बेचैनी,आकांक्षाएँ और चिंताएं इनके जन्मे शब्द मुझे मुंह न खोलने को मजबूर करते रहे और रचनाएं रचती गयीं कुछ रचनाएँ सीधा प्रश्न करती है जैसे
परिस्थितियाँ मन कि मिठास को कहीं पीछे कर देती हैं .... इसको पुन: स्थापित कर लेना कठिन सा लगता है मिठास बरकरार रहे समय के साथ साथ बहुत कुछ भूलने लगता है ... कठोर लम्हे भी कभी कभी कड़वाहट भर देते हैं