23 नवंबर 2022

मेरी कलम से संग्रह समीक्षा युगांतर.......आशालता सक्सेना

पुस्तक चर्चा कुछ मेरी कलम से युगांतर संग्रह समीक्षा.....लेखिका आशालता सक्सेना :)

कुछ दिनों से व्यस्तताएँ बढ़ गई है पर व्यस्त जीवन से कुछ समय बचाकर आज की चर्चा मे आदरणीय आशालता सक्सेना जी के काव्य संग्रह .....युगांतर..... 

जो विविध आयाम का अनोखा लेखन उजागर करता है 

विकराल रूप ले लहरों ने
बीच भँवर तक पहुचाया 
जीवन नैया डूब रही
असंतोष के भँवर मे 
जीवन भार सा हुआ
संतुष्टि के आभाव मे 
खुशीयां सारी खो गई 
जीवन के अंतिम पड़ाव में! 

आदरणीय आशा जी रचना संसार का एक पड़ाव है युगांतर जिसमे लेखिका ने बदलते युग का आकलन करते हैं अपनी अनुभूतियों को रेखांकित किया है संकलन मे वर्तमान युग के मर्मस्पर्शी चित्र है कल और आज की सोच मे उपजे अंतर के कारण वृद्दों के सम्मान मे हो रही कमी की टीस,बिना बेटी के घर सूना, शिक्षा के क्षेत्र परिवर्तन न दिखाई देने की पीड़ा, कलम की आज़ादी याए सब कविताओं मे रेखांकित की है 

उनका कहना है मैं तो बस लिख रही हूँ और क्यों लिख रही हूँ, यह नहीं जानती मेरे मन में तरह तरह के विचार उठते है और इन विचारो के साथ जीवन के कड़वे मीठे अनुभवों का सिलसिला खुलता जाता है अनुभूतिय शब्दों का लिबास पहन कर अभिव्यक्त होने लगती है यह क्रम पिछले दस-बारह सालो से सतत चल रहा है उन्हे लेखन के संस्कार ममतामयी श्रेष्ठ कवियित्री माता से मिले है ! यह उनकी संस्कारो का ही फल है विवाह के बाद घर गृहस्थी और शिक्षा सेवा में व्यस्त रही और सेवानिवृति के बाद अध्यन व लेखन से जुडी हूँ  जिसमे मुझे मेरी छोटो बहन कवियित्री श्री मति साधना वैद का भरपूर प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है.......आपके अब तक काव्य संग्रह 

1 ....अनकहा सच  2 ....अंत:प्रवाह
3 .....प्रारब्ध         4.....शब्द प्रपात 
5 ....सुनहरी धूप   6....सिमटते स्वप्न, 
7 ....काव्य सुधा   8....यायावर, 
9 .....पलाश      10....आकांक्षा 
11 ...निहारिका   12....अपराजिता 
13 .....विभावरी  14......युगांतर
प्रकाशित हो चुके हैं! 

मार्च 2022 में मुझे श्रीमती आशालता सक्सेना जी का युगांतर संकलन पढने को मिला जो बहुत ही पसंद आया आशा सक्सेना जी जिन्हें आप सभी आकांशा ब्लॉग में पढ़ते रहे है उनकी ज्यादा तर प्रकृति पर उनकी कविताये मन को बहुत प्रभावित करती हैं श्रीमती आशा लता सक्सेना उन्ही में से एक है युगांतर संकलन की भूमिका डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने लिखी है !

पसंकलन मे कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है अंग्रेजी की प्राध्यापिका होने के बावजूद कवयित्री ने हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग व्यक्त करते हुए लिखा है 

कवयित्री ने काव्य को सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक युगांतर को प्रभावशाली बनाया है आशा जी की पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन है आज के समय में साहित्य जगत में अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप देना हर किसी के बस की बात नहीं है युगांतर संग्रह की कविताएँ एकदम सटीक है ढेरों शांनदार कविताएँ है...... 

संग्रह की पहली कविता की शुरुआत गणेश जी पर कविता से

हे गणनायक सिद्धिविनायक
प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता
कामना मेरी पूर्ण करो प्रभु
आया शरण तेरी......... 
विचलन कविता मे विचलित मन की कुछ पंक्तिया
मन की बातें मन मे ही 
उलझी सी सदा बनी रहती है
गंगा मैली! 
प्रकृति का आलम......... 
भावों की उत्तंग तरंगें
जब विशाल  रूप लेतीं
मन के सारे तार छिड़ जाते
उन्हें शांत करने में .....
पर कहीं कुछ बिखर जाता
किरच किरच हो जाता
कोई उसे समेंट  नहीं पाता
अपनी बाहों में |
संसार अनोखा लेखन का
वाक्य एक अर्थ अनेक
विविध रंग उन अर्थों के
लेखन की सोच दर्शाते है....... 

कुछ रचनाओं मे ईश्वर के प्रति समर्पण भाव भी प्रदर्शित हुआ है संग्रह की कविताएँ एकदम सटीक है !! 
प्रश्न कैसे कैसे...... 

अनगिनत सवाल मन में उठते 
किसी का उत्तर मिल पाता 
किसी को बहुत खोजना पड़ता 
तब जा कर मिल पाता |
कुछ सवाल ऐसे होते 
जिनके उत्तर बहुत दिनों के बाद मिलते 
तब तक आशा छोड़ चुके होते 
सोचते अब न मिलेंगे
पर अचानक मिल जाते .... 
बरसात का आलम......
उमढ घुमड़ जब बादल आए 
 वायु जब मंद मंद चले महकाए 
मेरे बदन में सिहरन  सी दौड़े 
एक अनोखा सा एहसास हो 
जो छू जाये तन मन को .....
संग्रह मे ढेरों कविताएँ है जैसे.....
घर या अखाड़ा..... अंतर का व आज मे...... सत्य आज का....... रिश्ते बदल गये...... एक दिन और बीता......नारी आज की.....बदलता युग.....असलियत भूल गए.....रोटी.... आज़ाद कलम...... शिकायत...... मेरी लाडली...... ठहराव.....आदि.....आशा सक्सेना जी को सभी काव्य संकलनो के लिए हार्दिक शुभकामनाये.....!! 
  
पता - श्रीमती आशा लता सक्सेना
सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456010 
पुस्तक प्राप्ति हेतु लेखिका आशा सक्सेना जी से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।

#युगांतर काव्य संकलन (155 कविताएँ ) 

- श्रीमती आशालता सक्सेना

- संजय भास्कर

14 अक्टूबर 2022

मेरी कलम से संग्रह समीक्षा टंगी खामोशी .....रचना दीक्षित

पुस्तक चर्चा कुछ मेरी कलम से टंगी खामोशी संग्रह समीक्षा.....लेखिका रचना दीक्षित :)

कुछ दिनों से व्यस्तताएँ बढ़ गई है पर व्यस्त जीवन से कुछ समय बचाकर....आज दीदी रचना दीक्षित जी के संग्रह "टंगी खामोशी" की चर्चा......पहले रचना दी के संग्रह की कविता.......विकास की इबारत पढ़ते है फिर आगे

विकास की इबारत
आज कल देखती हूँ 
हर शाम
लोगों को बतियाते, फुसफुसाते
जाती हूँ करीब
करती हूँ कोशिश
सुनने की समझने की
कि पास के बाग में
पेड़ों पर रहते हैं भूत
नहीं करती विश्वास उन पर
पहुँचती हूँ बाग में
देखती हूँ हरी भरी घास
छोटे नन्हें पौधों को अपनी छत्रछाया में
बढ़ने और पनपने का अवसर देते
चारों तरफ फैले बड़े ऊँचे दरख़्त
कुछ भी असहज नहीं लगता
बढती हूँ दरख्तों की ओर
अचानक कुछ आहट, सरसराहट
पत्तों में कंपकंपाहट
अचानक सांसों को रोकने से
उठती अकुलाहट
बडबडाती हूँ मैं
मैं अदना सा इंसान
न बाउंसर, ना बौडी बिल्डर
भला मुझसे क्या और कैसा डरना
मेरी बात से हिम्मत पा
एक नन्हा पौधा बोल ही पड़ा
हम तो डरते हैं
आप जैसे हर किसी से
क्योंकि हम नहीं जानते
कब किस वेश में आ जाय
यमराज रूपी कोई बिल्डर...... 

आभासी दुनिया में लिखते पढ़ते बहुत सारे ब्लॉग से जुड़ा और तभी रचना दी के ब्लॉग को पढ़ा जो की रचना रविंद्र" ब्लॉग के माध्यम से ब्लॉगिंग मे सक्रिय थी उनकी बहुत सारी कवितायें पढ़ने को मिली और बहुत कुछ सीखने को मिला बहुत से विषयों पर कविताएँ पढ़ी साथ ही साथ ही मुझे और मेरी पत्नी प्रीति को रचना दीक्षित दीदी से मिलने का सौभाग्य और दीदी का आशीर्वाद भी मिला दी से पहली बार उनसे मिलने पर मुझे बेहद अपने अपने पन का अहसास हुआ.....कभी लगा ही नहीं कि मैं बड़ी लेखिका से मिल रहा हूँ.... 

आज रचना दी के कविता संग्रह " टंगी खामोशी " (शब्दों की मित्वयता के साथ जीवन जीने की विवशता)  के बारे मे "टंगी खामोशी" पिछले कुछ वर्षो में लिखी कविताओं का शानदार संग्रह है........काव्य संग्रह जिसे पढ़ने के बाद एक अलग ही अनुभव हुआ उसी से जुड़े कुछ विचार आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ रचना दी को "रचना रविंद्र" ब्लॉग के माध्यम से ब्लॉगिंग मे सक्रिय है रचना दीदी के काव्य संग्रह की कवितायेँ ख़ामोशी और शब्दों के बीच का सेतु है संग्रह मे देहलीज़, फुर्सत, अहसास, समय का दर्द, इमारतें, गुमनाम विरासत, धागे, दस्तक, ख्वाब और खामोशी, साँसे, अब से रावण नही मरेगा, दायरे, अनेको रचनाएँ बेहतरीन है...... 

संग्रह पर रचना दीक्षित दी भी लिखती है ये किताब मेरी कविताओं का एक पुलिंदा नहीं, ये आइना है, जिसके सामने मैं अपने आप को रोज़ खड़ा पाती हूँ ! देखती हूँ दबे पाँव सरकता समय, कभी सैलाब में बहती खामोशी, कभी सलीब पर टंगी खामोशी, कभी आँगन में बिखरी खामोशी। बस यही सब भूला, बिसरा, छूटा, छिटका, ठिठका सहेजने की कोशिश मात्र है ये संकलन  बचपन के बीते बहुत सी स्मृतियों को सामने को आज के समय मे ढूढने का अनर्थक प्रयास! 

रिश्ते खून के, हूँ प्यार के, दोस्ती के, समाज के जिस भी रिश्ते को ताउम्र पकड़ कर, जकड कर रखना चाहा सूखी सूनी रेत की तरह भरभराकर कर गिरते रहे। नहीं जानती रिश्तों की नीव कमजोर थी या मेरी उन पर पकड़ जरूरत से ज्यादा सख्त। सभी के साथ होता है ये सब पर सब के अनुभव अलग अलग है, उनकी छाप अलग अलग है! मन के किस हिस्से में कितना प्रभाव शब्दों के माध्यम से उतरता है

मेरी कविताओं में कहीं विचार उद्वेलन तो कहीं भावों की तीव्रता मिलेगी, कहीं बेचैनी,आकांक्षाएँ और चिंताएं इनके  जन्मे शब्द मुझे मुंह न खोलने को मजबूर करते रहे और रचनाएं रचती गयीं कुछ रचनाएँ सीधा प्रश्न करती है जैसे 

कविता हाथ का मैल...... 
बचपन से सुनती आई हूँ 
आप सब की ही तरह  
पैसा ही जीवन है. 
पैसा आना जाना है.
पैसा हाथ का मैल है ! 

विकास की इबारत........ 
प्रकृति की विनाश लीला को दर्शाती रचना जो बिल्डर, टिंबर मर्चेन्ट, नदियां प्रदूषित करने वाले उद्योगपती, कितने कितने रूप में आते हैं यमराज

जेठ की दुपहरी में............ 
जेठ की दुपहरी का अनोखा रोमांस...पिया मिलन और रोमांस को एक बेहतरीन अंदाज़ में प्रस्तुत किया है।

दायरे कविता.............. 
सभी अपने दायरों में सीमित हैं शायद प्रकृति से जाने अनजाने सीख ही लेते हैं हम.कुछ अच्छा या कुछ बुरा....
एक वयोवृद्ध बांस
झुकता नहीं
टूटता है टूट कर गिरता है
उस नन्हीं कोपल पर
कभी अपने आप से अलग करने
कभी उस समूह से अलग करने को
बनी हैं ये दूरियां आज भी
कोई सुखी है या नहीं
प्रकृति की घटनाओं के साथ जीवन का अद्भुत सामंजस्य है।
प्रकृति का सूक्ष्मावलोकन प्रशंसनीय है

संकेत.............. 
प्रकृति अनेकों रूप में उपलब्ध है .. शायद हम अभी तक नहीं समझ पाएपरमात्मा की इस सृष्टि में कुछ भी व्यर्थ नहीं होता..इसके पीछे भी कोई राज होता है 

महाभारत............... 
महाभारत घर घर में ही होता है द्वंद्व भी सम्बन्धों का यहीं है रावण भी हमारे अन्दर है दिल ओर दिमाग का द्वंद तो जीवन भर चलता रहता है न खत्म होने वाली जंग है जिसका धागा दिमाग के पास रहता है

अनभुझे प्रश्न.............. 
क्यू कागज़ पर लिखा रिश्ता नही होता आबाद शायद रिश्ता मन पर लिखा होता है गहरी अभिव्यक्ति...दस्तक देते रहते हैं कितने ही ऐसे प्रश्न........ 

यूँ तो मैं कुछ बोलती नहीं..... 
पर कलम को बोलना आ गया
यूँ तो मैं जुबान खोलती नहीं
पर आँखों को खोलना आगया
लोगों को कभी तोलती नहीं
पर शब्दों को तोलना आ गया
अपनी गांठे कभी खोलती नहीं
पर यूँ लगता है अब खोलना आ गया
बहुत खूब....... 

परिस्थितियाँ मन कि मिठास को कहीं पीछे कर देती हैं .... इसको पुन: स्थापित कर लेना कठिन सा लगता है मिठास बरकरार रहे समय के साथ साथ बहुत कुछ भूलने लगता है ... कठोर लम्हे भी कभी कभी कड़वाहट भर देते हैं 

ऐसा ही कुछ कहती है रचना.....विरक्ति
सब कहते हैं
मेरी माँ ने
मेरे शरीर में रोपी थीं कुछ 
नन्हीं कोपलें गन्ने की
तब जब थी मैं उनके गर्भ मे
समय के साथ बढती रही
मैं और वो फसल हंसना, खिलखिलाना...... 

मेरी और से काव्य संग्रह के लिए रचना दी को हार्दिक बधाई 
Bluerose Publisher से प्रकाशित इस संग्रह को प्राप्त कर सकते हैं या फिर रचना जी से भी संपर्क कर सकते है

पुस्तक का नाम –  टंगी खामोशी
रचनाकार --    रचना दीक्षित 
पुस्तक का मूल्य – 180/-
प्रकाशक - Blue Rose Publisher Dehli- 110002

#टंगी खामोशी काव्य संग्रह (100 कविताएँ ) 

- संजय भास्कर

29 अगस्त 2022

उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते - विभारानी श्रीवास्तव :)


विभारानी श्रीवास्तव ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ नाम है ( विभारानी श्रीवास्तव  --  सोच का सृजन यानी जीने का जरिया ) विभारानी जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है  एक से बढ़कर एक हाइकू लिखने की कला में माहिर कुछ भी लिखे पर हर शब्द दिल को छूता है हमेशा ही उनकी कलम जब जब चलती है शब्द बनते चले जाते है ...शब्द ऐसे जो और पाठक को अपनी और खीचते है और मैं क्या सभी विभा जी के लेखन की तारीफ करते है...........!!
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कुछ दिन एहले विभा ताई जी की एक पोस्ट पढ़ी
मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर :))))
.......मेरी आदरणीय ताई जी ये शब्द मुझे भावुक कर गए उनके लिखे शब्द बहुत ही अपनेपन का अहसास कराते है !
मौके कई मिले पर परिस्थियाँ ही कुछ ऐसी थी जिसकी वजह से आज तक ताई जी से मिलने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ !
क्योंकि एक लम्बे समय से मैं विभा ताई जी का ब्लॉग पढ़ रह हूँ और फेसबुक स्टेटस भी अक्सर पढता रहता हूँ पर ताई जी के लिए कुछ लिखने का समय नहीं निकल पाया पर आज समय मिला तो तो पोस्ट लिख डाली !
................ विभा ताई जी की उसी रचना की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ जिसे याद कर आज यह पोस्ट लिखने का मौका मिला....

.............मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर
जब किसी ने कहा
सखी
बुई
ताई
बड़ी माँ
चाची
भाभी
दीदी
दीदी माँ दीदी माँ तो कानो में शहनाई सी धुन लगती है .....
यही बात आज मैं ने फूलो से भी कहा
सभी को अपने बांहों के घेरे में लेकर बताना चाहती हूँ ...

विभा ताई जी के अपार स्नेह और आशीर्वाद पाकर खुशकिस्मत हूँ मैं की उनके लिए आज यह पोस्ट लिख पाया सुंदर लेखन के लिए विभा ताई जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ....!!!

-- संजय भास्कर

05 अगस्त 2022

कुछ मेरी कलम से सुधा देवरानी :)

मुझे याद है करीब तीन वर्ष पहले मैंने ब्लॉग नई सोच पर एक रचना पढ़ी थी.....बेटी.. माटी सी ..जिस पढ़कर एक गहरी टीस सी उठी जिसमे एक माँ ने मर्म को छूती  एक हकीकत बयां की तब से लेखिका के ब्लॉग पर आना जाना लगा रहा और बहुत सी सुंदर रचनाएँ पढ़ने को मिली जी मैं बात का रहा हूँ 
एक कुशल कवियत्री,ब्लॉगर आदरणीय सुधा देवरानी जी की ब्लॉग ( नई सोच ) उनका दृष्टिकोण हम उनकी कुछ कविताओं मे देख सकते है करीब पांच वर्षों से सुधा जी का लेखन पढ़ रहा हूँ सुधा जी बेहद संवेदनशील रचनाकार के रूप में अपने आप को स्थापित किया है उनकी रचनायें जीवन के प्रति उनके विशिष्ट दृष्टिकोण को भी दर्शाती हैं और नियमित रूप से काफी ब्‍लॉग पर अपनी निरंतरता बनाये रखती है मुझे सुधा जी कलम से निकली रचनाएँ बहुत प्रभावित करती है बेटी माटी सी रचना ने बहुत प्रभावित किया जिसमे बेटियां जो समाज की संजोयी निधि की तरह है उनके विकास हेतु एक अलग नजरिया होना अति आवश्यक है कविता मे नारी मन की वेदना को लिखा है सुधा जी कुछ रचनाएँ जैसे 
....विचार मंथन, ....लघु कथा सिर्फ गृहिनी, ....अपने हिस्से का दर्द, .....चल ज़िंदगी तुझको चलना ही होगा आदि सुधा जी के बारे मे कुछ लिखना चाहता था पर समय नही मिला पर जा आज समय मिलते ही उनके बारे मे लिखा रहा हूँ पोस्ट के अंत मे सुधा जी की एक रचना साँझा का रहा हूँ उमीद है सबको पसंद आये......!! 


शीर्षक है.....बेटी माटी सी

कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते 
मन हल्का वह कर पायेगी ?

हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ....?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ....?

गर कुछ अच्छा हो जाता है
तो श्रेय तुम्ही को जाता है
इज्ज़त है तुम्हारी परमत भी
उससे कैसा ये नाता है......?

दिन रात की ड्यूटी करके भी
करती क्या हो सब कहते हैं
वह लाख जतन कर ले कोशिश
पग पग पर निंदक रहते हैं

खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक  विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है

सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन 
इतिहास वही दुहराती है

बेटी को वर देती जल्दी
दुख सहना ही तो सिखाती है
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती है !!

- संजय भास्कर

26 जुलाई 2022

कुछ मेरी कलम से कुसुम कोठारी :)

आदरणीय कुसुम कोठारी ब्लॉग (मन की वीणा) की लेखिका कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी की किसी भी रचना को पढ़ने का अर्थ होता है उस विषय को गहनता से समझना और प्रेरित होना करीब चार वर्ष से लेखिका कुसुम कोठारी का ब्लॉग पढ़ रहा हूँ  उनकी लिखी रचनाओं में बात चाहे प्रकृति के श्रृंगार की हो या अन्य कोई भी विषय हो ,कुसुम जी हर विधा में माहिर हैं कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं काव्य की अनेक विधाओं पर इन्हें महारत हासिल है. मुख्यतः शुद्ध प्रांजल हिंदी में कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी की किसी भी रचना को पढ़ने का अर्थ होता है उस विषय को गहनता से समझना और प्रेरित होना। वह एक बहुत अच्छी लेखिका होने के साथ ही बहुत अच्छी पाठिका भी हैं और हमेशा से रचना के मर्म को समझ कर अपनी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से कलमकारों को ऊर्जावान बनाती आई हैं कभी राजस्थानी में और कभी-कभी उर्दू में भी इनकी रचनाएँ देखने को मिलती हैं आदरणीय कुसुम जी के प्रकृति श्रृंगार के तो क्या कहने ? ऐसा छायाचित्र उकेरती हैं कि पाठक सम्मोहित हुए बिना न रह सके, विविधता भरा उनका लेखन बड़ी प्रेरणा देता है हम उनसे निरंतर सीख लेते हैं जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। जितना निर्मल इनका सृजन है उतने ही निर्मल हृदय की स्वामीनी है। 

इनके नवगीतों में अद्भुत बिम्ब एवं व्यंजनाएं पाठक को विस्मित कर देती हैं......कुसुम कोठारी जी से मिलने का सौभाग्य अभी तक नही प्राप्त हुआ कुसुम जी के लिए कई दिनों से लिखने का मन था पर समय नही मिला पर आज समय मिलते ही सोचा प्रज्ञा जी के बारे में कुछ लिखा जाये उनके लेखन से मैं बहुत ही प्रभावित हूँ अंत मे कुसुम जी की एक रचना साँझा कर रहा हूँ.......... 

शीर्षक है.....जीवन चक्र यूँ ही चलते हैं

साल आते हैं जाते हैं
हम वहीं खड़े रह जाते हैं

सागर की बहुरंगी लहरों सा
उमंग से उठता है मचलता है
कैसे किनारों पर सर पटकता है
जीवन चक्र यूँ ही चलता है
साल आते है... 

कभी सुनहरे सपनो सा साकार
कभी टूटे ख्वाबों की किरचियाँ
कभी उगता सूरज भी बे रौनक
कभी काली रात भी सुकून भरी
साल आते हैं....

कभी हल्के जाडे सा सुहाना
कभी गर्मियों सा  दहकता
कभी बंसत सा मन भावन
कभी पतझर सा बिखरता
साल आते हैं....

कभी चांदनी दामन मे भरता
कभी मुठ्ठी की रेत सा फिसलता
जिंदगी कभी  बहुत छोटी लगती
कभी सदियों सी लम्बी हो जाती
साल आते हैं....

-- संजय भास्कर

11 जुलाई 2022

सराहनीय सृजन बहुत-बहुत आभार जिज्ञासा जी :)

मेरे आलेख चिड़ियाँ का हमारे आंगन मे आना को पढ़कर आदरणीय जिज्ञासा जी ने गोरैया दिवस पर लिखी रचना को मेरे आलेख को समर्पित किया जिसे आप सभी के समक्ष साँझा कर रहा हूँ रचना के लिए बहुत- बहुत आभार जिज्ञासा जी
संजय जी, गौरैया पर आपका ये आलेख बहुत ही चिंतनपूर्ण और विचारणीय है, सौभाग्य से मेरे घर बहुत गौरैया आती हैं और घोसला भी बनाती हैं अभी एक महीना पहले गौरैया अपने तीन चिड्डों के साथ मेरा घर गुलजार किए थीं सभी उड़ गए  गौरैया के लिए पानी, दाना और कुछ झुरमुटी पौधों का होना बहुत जरूरी होता है वे बड़े आनंद में रहती हैं, गौरैया दिवस पर लिखी एक रचना आपके आलेख को समर्पित है:

गौरैया को समर्पित गीत🐥🌴
********************
अब उससे हो कैसे परिचय ?
दो पंखों से उड़ने वाली,
दो दानों पे जीने वाली,
जीवन पर फिर क्यूँ संशय ॥

तीर निशाने पर साधे
बड़े शिकारी देखें एकटक,
घात लगाए बैठे हैं
घर अम्बर बाग़ानों तक,
संरक्षण देने वालों ने
डाल दिया आँखों में भय ॥

कंकरीट के जाल
परों को नोच रहे हैं,
जंगल सीमित हुए
सरोवर सूख रहे हैं,
हुआ तंत्र जब मौन
सुनेगा कौन विनय ॥

ये नन्ही गौरैया चिड़ियां
मिट्टी मानव छोड़,
दूर कहीं हैं चली जा रहीं
जग से नाता तोड़,
वहाँ जहाँ पर पंख खुलें
फुर फुर उड़ना निर्भय ॥

-जिज्ञासा सिंह

--संजय भास्कर  

23 जून 2022

कुछ मेरी कलम से संध्या शर्मा :)

एक साहित्यकार होने के साथ ग्राफ़िक्स डिजायनर एवं पुरानी ब्लॉगर दीदी संध्या के बारे मे जो कहती है मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुश्बू और ठंडी हवा के झोंके पेड़ों के साथ - साथ मन भी झूम उठता है ज़िंदगी के सफर में कोई तनहा नहीं होता कुछ चेहरे, कुछ बातें, कुछ लम्हे, कुछ यादें,कुछ सपने, कुछ अपने, कुछ मुश्किलें, तमाम उम्र साथ रहते हैं वक़्त की इस तेज़ ऱफ्तारी में पलों को बरसों में बदलते देखना भी ज़िंदगी ही तो है......मुझे आज भी याद है जब ब्लॉगपरिवार में मेरे समर्थको (Followers) की संख्या 200 हुई थी और मेरी 200 वी फॉलोवर्स थी "मैं और मेरी कवितायें" ब्लॉग लेखिका संध्या शर्मा जी थी मुझे बताते हुए बहुत ही ख़ुशी हुई थी आज एक बार फिर संध्या शर्मा जी के लिए जिनको करीब ११ वर्ष उनका लेखन पढ़ रहा हूँ उनकी लिखी ढेरों कविताएँ और आलेखों पढ़ने को मिले उनकी कविता अपने अनुभवों से निकलती हुईं......नागपुर निवासी संध्या दीदी एक गृहणी होने के साथ हिन्दी की साहित्यकार एवं पुरानी ब्लॉगर अच्छी ग्राफ़िक्स डिजायनर भी है साथ ही पुस्तकों की बड़ी शौकीन है इसी के साथ जब अपने कार्यों से अवकाश मिलने पर घुमक्कड़ी की शौकीन भी है सरल हृदय एवं मृदूभाषी होने के साथ भाषा एवं साहित्य में अच्छी पकड़ है। इनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती हैं वो अक्सर कहती है प्रकृति को जितना देख सको देख लो उन्हे जब भी अवसर मिलता वो पहाड़ों पेड़, लताएं, फूल-पत्तियाँ, लहराती बलखाती नदियाँ, ऊँचे – ऊँचे पहाड़, घने जंगल, जलप्रपात और तालाब,पुरातात्विक महत्व की गुफाएं शैलचित्र देखने परिवार के साथ घूमने निकल पड़ते हैं संध्या दी की कविताओं में उनकी सक्रियता सामाजिक कार्यों तथा प्रकृति संरक्षण में भी है.......मैं एक लम्बे समय से मैं संध्या दी का लेखन पढ़ रहा हूँ उनकी कविताएँ हमारे जीवन की वह जीवन्त कविताएँ हैं जिसे हम सचमुच जीते हैं उन्होंने प्यार भरे रिश्तों को पूरी तरह जीकर अपनी कविताओं मे रचती है .....संध्या दी से मिलने का सौभाग्य अभी तक नही प्राप्त हुआ पर कोशिशे लगातार जारी है पर जब भी कभी नागपुर जाना हुआ मिलूँगा जरूर संध्या दी का मेरे प्रति अपार स्नेह होने के कारण ही उनके लिए लिख रहा हूँ संध्या जी की रचना प्रकृति है तो इंसान है, प्रकृति को बचाना होगा तभी फुदकेगी आंगन में गौरैया....साँझा का रहा हूँ.....!!

शीर्षक है.............ओ गौरैया !
ओ गौरैया
अब लौट आओ
बदल गया है इंसान
प्रकृति प्रेमी हो गया है
आकर देखो तो ज़रा
इसके कमरे की दीवारें
भरी पड़ी है तुम्हारे चित्र से
ऐसे चित्र
जिनमें तुम हो,
तुम्हारा नीड़ है,तुम्हारे बच्चे है
सीख ली है इसने
तुम्हारी नाराज़गी से
सर आँखों पर बिठाएगा
तिनका- तिनका संभालेगा
ओ गौरैया !
आ भी जाओ तुम्हे मिलेगा
तुम्हारे सपनों का संसार !
और तुम
यह सब देखकर
पहले की तरह खुश हो पाओगी
आँगन - आँगन चहकोगी
बाहर-भीतर भागोगी
तो फुदको आकर
मुँडेर - मुँडेर
बना लो न!
हमारे घर को तुम्हारा भी घर....

- संजय भास्कर

15 जून 2022

चिड़िया का हमारे आँगन में आना :)


चिड़िया की चहचहाट में जिंदगी के सपने दर्ज हैं और चिड़िया की उड़ान में सपनों की तस्वीर झिलमिलाती है चिड़िया जब चहचहाती है तो मौसम में एक नई ताजगी और हवाओं में गुनगुनाहट सी आ जाती है चिड़िया का हमारे आँगन में आना हमारी जिंदगी में लय भर देता है। चिड़िया जब दाना चुनती है तो बच्चे इंतज़ार में देर तक माँ को निहारते रहते हैं और घर बड़े बुजुर्ग चिड़ियों को दाना डाल कर एक अलग ही सुकून का अनुभव करते है 
कितना मनमोहक लगता है जब गौरेया एक कोने में जमा पानी के में पंख फड़फड़ाकर नहाती है और पानी उछालती है. इसके अलावा चिड़िया एक कोने में पड़ी मिट्टी में भी लोटपोट करती है ........तभी तो चिड़िया का
हर मनुष्य के साथ एक भावनात्मक रिश्ता है पर आज के समय में चिड़ियों का संसार सिमटता जा रहा है और इस संतुलन को बिगड़ने में जाने-अनजाने मनुष्य का बहुत बड़ा रोल है तथा शहरों में तो ऐसी स्थिति है बन गई गई कि लगता है एक दिन आगन चिड़ियों से सूना हो जाए और चिड़िया की चहचहाट के लिए मौसम तरस जाए, हवाएं तरस जाए और हम सब तरस जाए आज के समय में हो रहे शहरीकरण की मार भी सीधे रुप से इन्हीं पर पड़ी है। जिसकी वजह से घरेलू चिड़ियों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है और घरेलू चिड़ियों का अस्तित्व लगातार संकट में है। जब से खेती में नई-नई तकनीकें प्रयोग में आई हैं, खेतों में उठने-बैठने वाली घरेलू चिड़ियों पर भी बुरा असर पड़ा है। जिस तेजी से इधर कुछ सालों में घरेलू चिड़ियों की संख्या में कमी आई है, वह चिंताजनक है। प्राय: यह चिड़िया गावों में ज्यादा पाई जाती थीं। लेकिन आजकल गावों में भी घरेलू चिड़िया कम ही नजर आती हैं जो की चिंताजनक है अगर हम सचेत होंगे तो शायद गौरेया को एकदम लुप्त होने से अभी भी बचा पाएंगे. अगर हम प्रयास करेंगे तो आने वाले सालों में शायद दूसरे पंछियों को भी लुप्त होने से बचा पाएंगे..!!

- संजय भास्कर  

01 जून 2022

शुभ समाचार मुस्कुराहट भरा ... हार्दिक आभार :)

सभी साथियों को मेरा नमस्कार कई दिनों के बाद आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ एक अच्छी खबर के साथ सम्मान मिलना किसे अच्छा नहीं लगता और जब आपको वो सम्मान अपने गृह राज्य मे मिले सामाजिक संस्था भारत माता अभिनंदन संगठन, हरियाणा द्वारा सामाजिक व साहित्यिक क्षेत्र मे योगदान के लिए 

"भारत माता अभिनन्दन सम्मान-2022"


इस सम्मान के लिए भारत माता अभिनन्दन संगठन संस्था का हार्दिक आभार..........!!

संजय भास्कर 

21 मई 2022

खूबसूरती की मल्लिका रेखा हिंदी सिनेमा की सदाबहार अदाकारा


बॉलीवुड का ऐसा नाम जो आज भी सब के जुबां पर रहता है वो है रेखा सदाबहार अभिनेत्री रेखा हिन्दी फिल्म जगत की शान हैं। उनके चेहरे की चमक आज भी अन्य अभिनेत्रियों की शान को फीका कर देती है। अपने हिस्से आए हर किरदार को दमदार बनाने वाली रेखा के आंचल में कई बड़े पुरस्कार आए। वो राजकीय पुरस्कार पद्मश्री से भी सम्मानित हैं। रहस्यमयी रेखा जैसी खूबसूरती पाना आज भी कई अभिनेत्रियों की हसरत है एक बेहतरीन अदाकारा होने के साथ-साथ एक खूबसूरत इंसान है लेकिन वक्त के साथ उनकी खूबसूरती और भी निखरती जा रही है बॉलीवुड के सदाबाहार और बेहतरीन अदाकारा रेखा ने अपनी करियर की शुरुआत महज 13 साल से की रेखा ने दक्षिण भारतीय फिल्मों से शुरुआत करने के बाद हिंदी सिनेमा में अपनी अदाकारी से मील के कई पत्थर स्थापित किए. 50 से ज्यादा बड़ी हिंदी फिल्मों में काम किया है जिनमें से कई फिल्में ब्लॉकबस्टर साबित हुई हैं बॉलीवुड के सदाबाहार और बेहतरीन अदाकारा रेखा जिनकी आंखों के मस्ताने हजारों तो है ही लेकिन इस हजारों की भीड़ में अकेली रेखा की जिंदगी में बहुत सारी अनकही कहानी है जिसे उनकी आंखों में पढ़ा जा सकता है अभी कुछ दिन पहले ही रेखा जी का जन्मदिन था उनके जन्मदिन पर रेखा की जिंदगी की कुछ बातें जानी है अक्सर बढ़ती उम्र में लोगों की खूबसूरती ढल जाती है लेकिन रेखा के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है वह आज भी अपनी खूबसूरती की वजह से चर्चा में बनी रहती है फिल्म मुकद्दर का सिंकंदर में वे एक बार फिर अमिताभ बच्चन के साथ दिखाई दीं। यह फिल्म उस साल की बड़ी हिट रही और रेखा उस समय की सबसे सफल अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं

फिल्म की काफी तारीफ हुई और रेखा को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का के तौर पर फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया 1981 में आई उनकी उमराव जान। यह फिल्म उनके करियर की बेस्ट फिल्मों ंमें से एक रही और इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया। इसके बाद भी उनकी कई फिल्में आई जो कि काफी हिट हुईं।  रेखा के कैरियर में उमराव जान एक नया मोड़ साबित हुई, जिसमें रेखा ने अदायगी का जादू बिखेरा। इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार जीतना रेखा की अभिनय क्षमता का प्रमाण था। उमराव जान के बाद रेखा के कैरियर में मंदी जरूर आई, लेकिन निजी तौर पर फिल्म-जगत में उनका जादू अब भी बरकरार है। आज भी रेखा की क्षमता और रहस्य हमेशा दिलचस्पी का सबब बना हुआ है और शायद हमेशा बना रहे। अमिताभ के साथ सफलता और प्रेम के रिश्तों ने रेखा की जिंदगी को नई दिशा दी। अब इस खूबसूरत हसीन अदाकारा के बारे में सही शब्द ही है 'संपूर्ण अभिनेत्री'। रेखा की बहुतेरी ऐसी फिल्में हैं, जहा उन की आखों पर फोकस रहा है। रेखा की आखों में मस्ती भी है और भरपूर मादकता भी। तभी तो मुजफ्फर अली को उमराव जान में शहरयार से रेखा की आखों की खातिर एक पूरी गजल ही कहलवानी पडी, 'इन आखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं'.........बात भी सच ही है !!

- संजय भास्कर 

23 अप्रैल 2022

चलो कुछ बात करें लेखिका मृदुला प्रधान जी से संग्रह समीक्षा:)

आज की चर्चा मे आदरणीय मृदुला प्रधान जी के संग्रह "चलो कुछ बात करें"
चलो कुछ बात करें (94 कविताओं का संग्रह) जो देवलोक प्रकाशन दिल्ली से 2006 मे प्रकाशित है 
संग्रह पर आदरणीय लेखिका मृदुला जी कहती है..... कविता लिखते समय सारे भाव चाहे अपने हो चाहे कहीं से चलकर आये हो आपस मे घुल मिल जाते है 
और अनायास ही हम एक दूसरे से जुड़ जाते है "चलो कुछ बात करें" कविता संग्रह  कल्पनाओ के आकाश मे विचारते हुए खग विहागो को उड़-उड़ाकर आप तक लाने का प्रयास है ......मैंने उनके दुसरे काव्य संग्रह के बारे मे भी लिखा है 
मेरा जब आदरणीय मृदुला जी के ब्लॉग से परिचय हुआ उनकी ढेरों कविताये पढ़ने को मिली और बहुत कुछ सीखने को मिला साथ ही मुझे बड़ी माँ के रूप में उनका आशीर्वाद भी मिला उनके ब्लॉग पर मुझे रोज़ मर्रा की छोटी-२ सरल कविताये पढ़ने को मिली और समय के साथ उनकी कविताओं को पढ़ने की भूख बढ़ती गई और उनके संग्रह मंगवा कर पढ़ा और उनका प्रशंसक बन गया........मुझे कई बार मृदुला जी से मिलना का मौका भी मिला और उनके बारे में ज्यादा जानने को मिला.....
मृदुला प्रधान जी का कविता संग्रह " चलो कुछ बात करें " एक प्रकृति प्रेमी का संग्रह है जिसमे कवयित्री अपनी हर बात को प्रकृति को माध्यम बनाकर कहने की कोशिश की है 
....बसंत मालती ....हो या..... बरसात की रात .....या फिर.... पेड़ों के पीछे अलसाया.....होली का त्यौहार... ओस...... गुलमोहर की... या....महानगर की धुप ....जाने कितनी ही कवितायेँ और हैं जहाँ प्रकृति के रंगों की छटा के साथ दिल के रंग भी उकेरे हैं कवयित्री ने अपने आप में कुछ अलग सा प्रकृति को देखने और समझने के नज़रिये को भी प्रस्तुत करता है जो ये बताता है लेखिका का जुड़ाव प्रकृति के हर अंग से है फिर मौसम हो या ज़िन्दगी सबका अपना एक परिवेश है , संरचना है जिनका सीधा सा सम्बन्ध मानव जीवन से है ! 
कुछ प्रकृति से परिचित करती रचनाओं की एक झलक देखिये :
....सूरज की पहली किरण में -- चलो स्वागत करें ऋतु बसंत का.......बादलों के साथ भी उड्ने लगा हूँ.......... मजूरों की रोटी .... मानवीय संवेदनाओं की जीती जागती मिसाल है जहाँ मेहनत की रोटी के स्वाद की बात ही कुछ और होती है को इस तरह दर्शाया है कि आज की हाइटैक होती ज़िन्दगी की सुविधायें भी बेमानी सी लगती हैं एक सजीव चित्रण 
.........थाक रोटी की बडी सोंधी नरम लिपटे मसालों में बना आलू गरम ..... गर्म रोटी... फ़ाँक वाले आलू 
 " विदेशी भारतियों के नाम " एक ऐसी कविता है जिसका चित्रण बेहद खूबसूरती से किया गया है :
" सर्द सन्नाटा" समय के बोये अकेलेपन के बीजों को बिखेरने की व्यथा है ताकि खुद से मुखातिब हुआ जा सके और रूह की गहराई तक उतरा सर्द सन्नाटा कुछ कम हो सके फिर चाहे उसके लिए कुछ लिखना ही क्यों न पड़े!
मृदुला जी का लेखन बहुत ही कमाल का है मृदुला जी को काव्य संकलन
" चलो कुछ बात करें " शानदार संग्रह है मेरी और से काव्य संकलन के लिए हार्दिक बधाई 
देवलोक प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह को प्राप्त कर सकते हैं या फिर मृदुला जी से भी संपर्क कर सकते है !


पुस्तक का नाम –  चलो कुछ बात करें
रचनाकार --    मृदुला प्रधान
पुस्तक का मूल्य – 200/
आई एस बी एन – 81-89373-11-0
प्रकाशक - देवलोक प्रकाशन 1362  कश्मीरी गेट दिल्ली -110006

#चलो कुछ बात करें
- संजय भास्कर

12 अप्रैल 2022

......बेटी के घर से लौटना :)

 चन्द्रकान्त देवताले जी एक कविता बेटी के घर से लौटना साँझा कर रहा हूँ !!


बहुत जरूरी है पहुँचना
सामान बाँधते बमुश्किल कहते पिता
बेटी जिद करती
एक दिन और रुक जाओ न पापा
एक दिन


पिता के वजूद को
जैसे आसमान में चाटती
कोई सूखी खुरदरी जुबान
बाहर हँसते हुए कहते कितने दिन तो हुए
सोचते कब तक चलेगा यह सब कुछ
सदियों से बेटियाँ रोकती 
होंगी पिता को
एक दिन और
और एक दिन डूब जाता होगा पिता का जहाज

वापस लौटते में
बादल बेटी के कहे के घुमड़ते
होती बारीश 
आँखो से टकराती नमी
भीतर कंठ रूँध जाता थके कबूतर का

सोचता पिता सर्दी और नम हवा से बचते
दुनिया में सबसे कठिन है शायद
बेटी के घर लौटना !
- चन्द्रकान्त देवताले

- संजय भास्कर

31 मार्च 2022

तभी तो ख़ामोश रहता है आईना :)

सभी साथियों को नमस्कार कुछ दिनों से व्यस्ताएं बहुत बढ़ गई है इन्ही कारणों से ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा हूँ...आज सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी नई रचना जिसे मैं करीब २ वर्ष पहले लिखा उम्मीद है आपको सभी को पसंद आये......!!


अक्सर हमेशा कुछ कहता है आईना
तभी तो हमेशा ख़ामोश रहता है आईना  !!

जो बातें छिपी है दिल के अन्दर 
उसे बाहर लाने में मददगार होता है आईना  !!

दीवानगी में दीवाने लोगो का दुःख
देखकर चुपचाप सहता है आईना  !!

जब कभी अकेले होता हूँ तन्हा
तन्हाई का सबसे बड़ा साथी है आईना !!

कहते है आईना दिखाता है जाल भ्रम का 
पर बार -बार टूट कर भी धड़कता है आईना !!

-- संजय भास्कर 

20 फ़रवरी 2022

बेटियाँ जानती हैं उनके जन्म के बाद नहीं बजेगी थाली:)

 सभी साथियों को मेरा नमस्कार कई दिनों के बाद आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ पल्लवी विनोद दी की ...रचना की पंक्तियाँ आज साँझा कर रहा हूँ उम्मीद है सभी पसंद आएगी ......!!



बेटियाँ ........
बेटियाँ जानती हैं उनके जन्म के बाद
नहीं बजेगी थाली
देवताओं को पूजा नहीं जाएगा
कोई शोर शराबा नहीं होगा
इसीलिए आमद करती हैं एक दमदार
आवाज़ के साथ
कमरे के बाहर खड़ी बुआ खिलखिला कर कहती है
इस घर में मेरा वंश चलाने वाली आ गयी।
बेटियों को पता है माँ जा चुकी है
अब नहीं आएँगी
वो पिता के कंधे पर सिर रख कर
मायके के हर रिश्ते को गले लगा कर
माँ की गंध महसूस करना चाहती है
आँख में आँसू उमड़ रहे हैं
तब तक भतीजी ने पूछ लिया
‘बुआ तुम ठीक तो हो?’
वो मुस्कुरा रही है,
मेरी उदास आँखों को पढ़ने वाली इस घर में मौजूद है !!

सुंदर लेखन के लिए पल्लवी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ.......!!

18 जनवरी 2022

......तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा :)

 


















कोरा कागज़ और कलम                        
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने
जिसमें तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा
आज ये ठान कर बैठा हूँ
कलम कोरे पन्नें को भरना चाहती है
पर कोई ख्याल आता ही नही
शब्द जैसे खो गए है मानो
क्योंकि अगर मैं तुमको छोड़ता हूँ
तो शब्द मुझे छोड़ देते है
पता नहीं आज
उन एहसासो को
शब्दो में बांध नही पा रहा हूँ मैं
क्योंकि आज
ऐसा लग रहा है की मुझे
मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
शायद तुम जो साथ नहीं हो 
और ये सब तुम्हारे प्यार का असर है
हाँ हाँ तुम्हारे प्यार का असर है
जो तुम बार बार आ जाती हो
मेरे ख्यालों में
तभी तो आज ठान का बैठा हूँ
कि तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा .......!!

- संजय भास्कऱ