02 दिसंबर 2015
29 अक्टूबर 2015
एक पिता का वात्सल्य गुलाबी चूड़ियाँ - संजय भास्कर :)
जब भी कभी नागार्जुन जी का नाम दिमाग में आया सबसे पहले गुलाबी चूड़ियाँ ही याद आई ......कभी कभी पुरानी यादें लौट आती है आज भी याद है स्कूल में हिंदी की क्लास में एक ट्रक ड्राईवर के बारें में ऐसे पिता का वात्सल्य जो परदेस में रह रहा है घर से दूर सड़कों पर महीनों चलते हुए भी उसके दिल से ममत्व खत्म नहीं हुआ जो अपनी बच्ची से बहुत प्यार करता है !............. यह कविता है नागार्जुन की “गुलाबी चूड़ियाँ” जिसे उसने अपने ट्रक में टांग रखा है ! ये चूडियाँ उसे अपनी गुड़िया की याद दिलाती और वो खो जाता है हिलते डुलते गुलाबी चूड़ियाँ की खनक में .........!!
कविता की पंक्तियाँ ..........
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !
-- नागार्जुन
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !
-- नागार्जुन
07 अक्टूबर 2015
बेमिसाल नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी-- मांझी: द माउंटेन मैन
दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से से सम्बन्ध रखते है जी की दलित जाति से है । शुरुआती जीवन में ही उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुया जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फगुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अतरी व वजीरगंज की दूरी को कम करेगा।गया जिले के गहलौर गांव की जरूरत की हर छोटी बड़ी चीज, अस्पताल, स्कूल सब वजीरगंज के बाजार में मिला करते थे लेकिन इस पहाड़ ने वजीरगंज और गहलौर के बीच का रास्ता रोक रखा था। इस गाँव के लोगों को 80 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करके वजीरगंज तक पहुंचना पड़ता था। ना बड़ी बड़ी मशीनें थीं और ना ही लोगों का साथ – दशरथ मांझी अकेले थे और उनके साथ थे बस ये छेनी, ये हथौड़ा और 22 बरस तक सीने में पलता हुआ एक जुनून। उन्होंने छेनी व हथौड़े की मदद से दो दशक में गहलौर की पहाड़ियों को काटकर 20 फीट चौड़ा व 360 फीट लंबा रास्ता बना दिया। इस रास्ते के बन जाने से अतरी ब्लॉक से वजीरगंज की दूरी मात्र 15 किलोमीटर रह गई। जबकि वजीरपुर और गहलौर के बीच की दूरी मात्र 2 किलोमीटर रह गयी।
अगर आप में से किसी ने अभी तक ये फिल्म नहीं देखी तो जरूर देखें और देखने के बाद ज़रूर बताईयेगा कि कैसी लगी .......!!!
-- संजय भास्कर
25 अगस्त 2015
तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा -- संजय भास्कर
चित्र - गूगल से साभार
कोरा कागज़ और कलम
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने
जिसमें तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा
आज ये ठान कर बैठा हूँ
कलम कोरे पन्नें को भरना चाहती है
पर कोई ख्याल आता ही नही
शब्द जैसे खो गए है मानो
क्योंकि अगर मैं तुमको छोड़ता हूँ
तो शब्द मुझे छोड़ देते है
पता नहीं आज
उन एहसासो को
शब्दो में बांध नही पा रहा हूँ मैं
क्योंकि आज
ऐसा लग रहा है की मुझे
मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
शायद तुम जो साथ नहीं हो
और ये सब तुम्हारे प्यार का असर है
हाँ हाँ तुम्हारे प्यार का असर है
जो तुम बार बार आ जाती हो
मेरे ख्यालों में
तभी तो आज ठान का बैठा हूँ
कि तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा ................!!
( C ) संजय भास्कऱ
कोरा कागज़ और कलम
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने
जिसमें तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा
आज ये ठान कर बैठा हूँ
कलम कोरे पन्नें को भरना चाहती है
पर कोई ख्याल आता ही नही
शब्द जैसे खो गए है मानो
क्योंकि अगर मैं तुमको छोड़ता हूँ
तो शब्द मुझे छोड़ देते है
पता नहीं आज
उन एहसासो को
शब्दो में बांध नही पा रहा हूँ मैं
क्योंकि आज
ऐसा लग रहा है की मुझे
मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
शायद तुम जो साथ नहीं हो
और ये सब तुम्हारे प्यार का असर है
हाँ हाँ तुम्हारे प्यार का असर है
जो तुम बार बार आ जाती हो
मेरे ख्यालों में
तभी तो आज ठान का बैठा हूँ
कि तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा ................!!
( C ) संजय भास्कऱ
01 अगस्त 2015
बड़े लोग - संजय भास्कर :)
आधी रात को अचानक
किसी के चीखने की आवाज़ से
चौंक कर
सीधे छत पर भागा
देखा सामने वाले घर में
कुछ चोर घुस गये थे
वो चोरी के इरादे में थे
हथियार बंद लोग
एक बार
चिल्लाने से
पर कुछ देर चुप रहने के
बाद
मैं जोर से चिल्लाया
पर कोई असर न हुआ
मेरे चिल्लाने का
बड़ी बिल्डिंग के लोगो पर
.....क्योंकि सो जाते है
घोड़े बेचकर अक्सर
बड़ी बिल्डिंग के बड़े लोग ......!!
( C ) संजय भास्कर
13 जून 2015
बूढ़े का घर बनाना :))
चित्र - गूगल से साभार
साठ बरस की उम्र में घर बनाने की सोचना
दुस्साहस तो है, मगर उसने किया
वह एक-एक कर लाया
ईट-पत्थर -रेत लकड़ी
सरिया व सीमेंट
जैसे सामने के पेड़ पर
घर बनती हुई चिड़िया
एक-एक कर लाई
घास -तिनके -कपड़े की चिंदी
सींके या सुतली
बूढ़े और चिड़िया ने नहीं पूछी एक दूसरे की उम्र
घर बनाना दुस्साहस नहीं
किसी भी उम्र में
अगर चिड़िया से मांग सके कोई
थोड़ा सा धीरज
थोड़ा सा उड़ना !!
लेखक परिचय - ब्रजेश कृष्ण
सभी साथियों को मेरा नमस्कार कुछ दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ ज़िंदगी की भागमभाग से कुछ समय बचाकर आज आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ ...!!
-- संजय भास्कर
02 मई 2015
वो आकर्षण -- संजय भास्कर
चित्र - गूगल से साभार
कॉलेज को छोड़े करीबआठ साल बीत गये !
मगर आज उसे जब 8 साल बाद
देखा तो
देखता ही रह गया !
वो आकर्षण जिसे देख मैं
हमेशा उसकी और
खींचा चला जाता था !
आज वो पहले से भी ज्यादा
खूबसूरत लग रही थी
पर मुझे विश्वास नहीं
हो रहा था !
की वो मुझे देखते ही
पहचान लेगी !
पर आज कई सालो बाद
उसे देखना
बेहद आत्मीय
और आकर्षण लगा
मेरी आत्मा के सबसे करीब !!
( C ) संजय भास्कर
24 मार्च 2015
मुसीबत के सिवा कुछ भी नहीं !!
सभी साथियों को मेरा नमस्कार कुछ दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ पर अब आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी एक गजलनुमा रचना के साथ उम्मीद है आप सभी को पसंद आये .....!!
चित्र - गूगल से साभार
जिंदगी तो एक मुसीबत है मुसीबत के सिवा कुछ भी नहीं !!
पत्थरो तुम्हे क्यूँ पूजूं
तुमसे भी तो मिला कुछ भी नहीं !!
रोया तो बहुत हूँ आज तक
अब भी रोता हूँ नया कुछ भी नहीं !!
चाहा तो बहुत कुछ था मैंने
कोशिश की पर कर न सका कुछ भी नहीं !!
प्रेम है तो सब के अन्दर
पर इस दुनिया में प्रेम से बुरा कुछ भी नहीं !!
ये दौर है आज कलयुग का
जिसमे धोखा फरेब के सिवा कुछ भी नहीं !!
( C ) संजय भास्कर
25 फ़रवरी 2015
किस बात का गुनाहगार हूँ मैं -- संजय भास्कर
पुरानी डायरी से कुछ पंक्तियाँ
गुनाहगार हूँ मैं,
खुशियाँ भरता हूँ
सबकी जिंदगी में
टूटे दिलों को दुआ देता हूँ
दुश्मन का भी भला करता हूँ,
क्या इसी बात का
गुनाहगार हूँ ,
मेरी जिंदगी में कांटे
डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
बचाता हूँ दोस्तों को
हर इलज़ाम से
कहीं दोस्त बदनाम
न हो जाये
मेरे लिए यही है
जिंदगी का दस्तूर
क्या इसलिए गुनाहगार हूँ मैं
साथ निभाता हूँ
सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
भास्कर पूछता है
क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मेरा
आखिर
किस बात का ... गुनाहगार हूँ मैं !!
( C ) संजय भास्कर
चित्र - ( गूगल से साभार )
किस बात कागुनाहगार हूँ मैं,
खुशियाँ भरता हूँ
सबकी जिंदगी में
टूटे दिलों को दुआ देता हूँ
दुश्मन का भी भला करता हूँ,
क्या इसी बात का
गुनाहगार हूँ ,
मेरी जिंदगी में कांटे
डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
बचाता हूँ दोस्तों को
हर इलज़ाम से
कहीं दोस्त बदनाम
न हो जाये
मेरे लिए यही है
जिंदगी का दस्तूर
क्या इसलिए गुनाहगार हूँ मैं
साथ निभाता हूँ
सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
भास्कर पूछता है
क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मेरा
आखिर
किस बात का ... गुनाहगार हूँ मैं !!
( C ) संजय भास्कर
06 फ़रवरी 2015
मेरी नजर से चला बिहारी ब्लॉगर बनने - संजय भास्कर
सलिल वर्मा जी का ब्लॉग करीब चार वर्षो से एक लम्बे समय से पढ़ रह हूँ उनके दिए कमेंट से तो हर कोई प्रभावित है सलिल वर्मा जी लिखने का अंदाज ही ऐसा है कि चाहे महीने बाद भी पोस्ट आती है पाठक को बेसब्री से इंतज़ार रहता है और पाठक खुद ही खिंचा चला आता है उनकी कलम शब्दों में जान दाल देती है और उनके जैसा कोई कलाकार ह्रदय ही उसमे जान डालकर जानदार शानदार बनाता है ऐसा शानदार लेखन है सलिल जी का उनके अपार स्नेह के कारण ही आज ये पोस्ट लिख पाया हूँ...!!
सलिल जी की लेखनी से मैं बहुत प्रभावित होता हूँ वो बहुत ही जिम्मेदारी से हर ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते है उनके बारे में लिखना शायद मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है....!!
और अंत में सलिल जी के ब्लॉग से पढ़िए गुलज़ार साहब की कुछ लाइनें दर्द के बारे में: -
दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं
जिस तरह शाख से तोड़े हुए इक पत्ते का रंग
माँद पड़ जाता है कुछ रोज़ अलग शाख़ से रहकर
शाख़ से टूट के ये दर्द जियेगा कब तक?
ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद
टिमटिमाएगा ज़रा देर को बुझते बुझते
और फिर लम्बी सी इक साँस धुँए की लेकर
ख़त्म हो जाएगा, ये दर्द भी बुझ जाएगा
दर्द कुछ देर ही रहता है, बहुत देर नहीं !!
( C ) संजय भास्कर
15 जनवरी 2015
लेखन तो जिन्हे विरासत में मिला है ऐसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी है - साधना वैध
साधना वैद ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ नाम है और आशालता सक्सेना मासी और माँ खुशकिस्मत हूँ
दोनों का आशीर्वाद मुझ पर बना हुआ है दोनों ही हमेशा मुझे प्रोत्साहित करती है अच्छा लिखने के लिए
( सुधिनामा ब्लॉग की मालकिन ) सुप्रसिद्ध कवियित्री स्व. डॉ. (श्रीमती ) ज्ञानवती सक्सेना जी की पुत्री और श्रीमती आशा लाता सक्सेना जी (आकांशा ब्लॉग ) की छोटी बहन
भाषा पर अधिकार उन्हें अपनी माता जी प्रसिद्ध कवित्री (श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना )जी से विरासत में मिला है ! इसीलिए साधना जी के शब्द चयन बहुत ही सरल और सुंदर है !
करीब दो साल पहले साधना जी की लिखी कुछ लाइन पढ़ी थी जो अचानक आज दोबारा याद आ गई
हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ...........साधना जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है हमेशा ही संवेदन शील विषय पर लिखी हर रचना एक अलग ही छाप छोड़ती है साधना जी का लेखन हमेशा ही दिल को छूकर गुजरता है विषय चाहे कोई भी हो
साधना वैद जी रची हुई कुछ पंक्तियाँ उम्मीद है आपको भी पसंद आये .............!!!
हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
सच है तुम्हें सब मानते हैं रौनके महफ़िल ,
हर बात तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !
जो रात की तारीकियाँ लिख दीं हमारे नाम ,
हर सुबह पे भारी हों ज़रूरी तो नहीं !
बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !
तुम ख़्वाब में यूँ तो बसे ही रहते हो ,
नींदें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !
जज़्बात ओ खयालात पर तो हावी हो ,
गज़लें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !
दिल की ज़मीं पे गूँजते अल्फाजों की ,
तहरीर तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !
माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
लम्बे समय से मैं साधना जी का ब्लॉग पढ़ रह हूँ पर उनसे मिलने का सौभाग्य अभी तक नहीं प्राप्त हुआ मैं अक्सर साधना जी के बारे में कुछ लिखना चाहता था और क्यों न लिखे आखिर उनके लिखने का अंदाज ही ऐसा है कि पाठक अपने आप ही उनके ब्लॉग पर खिंचा चला आता है उनका यही प्रेरणादायक लेखन ने हमेशा ही ब्लॉगजगत को प्रभावित किया है निरंतर लेखन के लिए साधना जी को ढेरों शुभ कामनायें........!!
( C ) संजय भास्कर
दोनों का आशीर्वाद मुझ पर बना हुआ है दोनों ही हमेशा मुझे प्रोत्साहित करती है अच्छा लिखने के लिए
( सुधिनामा ब्लॉग की मालकिन ) सुप्रसिद्ध कवियित्री स्व. डॉ. (श्रीमती ) ज्ञानवती सक्सेना जी की पुत्री और श्रीमती आशा लाता सक्सेना जी (आकांशा ब्लॉग ) की छोटी बहन
भाषा पर अधिकार उन्हें अपनी माता जी प्रसिद्ध कवित्री (श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना )जी से विरासत में मिला है ! इसीलिए साधना जी के शब्द चयन बहुत ही सरल और सुंदर है !
करीब दो साल पहले साधना जी की लिखी कुछ लाइन पढ़ी थी जो अचानक आज दोबारा याद आ गई
हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ...........साधना जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है हमेशा ही संवेदन शील विषय पर लिखी हर रचना एक अलग ही छाप छोड़ती है साधना जी का लेखन हमेशा ही दिल को छूकर गुजरता है विषय चाहे कोई भी हो
साधना वैद जी रची हुई कुछ पंक्तियाँ उम्मीद है आपको भी पसंद आये .............!!!
हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
सच है तुम्हें सब मानते हैं रौनके महफ़िल ,
हर बात तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !
जो रात की तारीकियाँ लिख दीं हमारे नाम ,
हर सुबह पे भारी हों ज़रूरी तो नहीं !
बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !
तुम ख़्वाब में यूँ तो बसे ही रहते हो ,
नींदें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !
जज़्बात ओ खयालात पर तो हावी हो ,
गज़लें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !
दिल की ज़मीं पे गूँजते अल्फाजों की ,
तहरीर तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !
माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
लम्बे समय से मैं साधना जी का ब्लॉग पढ़ रह हूँ पर उनसे मिलने का सौभाग्य अभी तक नहीं प्राप्त हुआ मैं अक्सर साधना जी के बारे में कुछ लिखना चाहता था और क्यों न लिखे आखिर उनके लिखने का अंदाज ही ऐसा है कि पाठक अपने आप ही उनके ब्लॉग पर खिंचा चला आता है उनका यही प्रेरणादायक लेखन ने हमेशा ही ब्लॉगजगत को प्रभावित किया है निरंतर लेखन के लिए साधना जी को ढेरों शुभ कामनायें........!!
( C ) संजय भास्कर
सदस्यता लें
संदेश (Atom)