23 अप्रैल 2022

चलो कुछ बात करें लेखिका मृदुला प्रधान जी से संग्रह समीक्षा:)

आज की चर्चा मे आदरणीय मृदुला प्रधान जी के संग्रह "चलो कुछ बात करें"
चलो कुछ बात करें (94 कविताओं का संग्रह) जो देवलोक प्रकाशन दिल्ली से 2006 मे प्रकाशित है 
संग्रह पर आदरणीय लेखिका मृदुला जी कहती है..... कविता लिखते समय सारे भाव चाहे अपने हो चाहे कहीं से चलकर आये हो आपस मे घुल मिल जाते है 
और अनायास ही हम एक दूसरे से जुड़ जाते है "चलो कुछ बात करें" कविता संग्रह  कल्पनाओ के आकाश मे विचारते हुए खग विहागो को उड़-उड़ाकर आप तक लाने का प्रयास है ......मैंने उनके दुसरे काव्य संग्रह के बारे मे भी लिखा है 
मेरा जब आदरणीय मृदुला जी के ब्लॉग से परिचय हुआ उनकी ढेरों कविताये पढ़ने को मिली और बहुत कुछ सीखने को मिला साथ ही मुझे बड़ी माँ के रूप में उनका आशीर्वाद भी मिला उनके ब्लॉग पर मुझे रोज़ मर्रा की छोटी-२ सरल कविताये पढ़ने को मिली और समय के साथ उनकी कविताओं को पढ़ने की भूख बढ़ती गई और उनके संग्रह मंगवा कर पढ़ा और उनका प्रशंसक बन गया........मुझे कई बार मृदुला जी से मिलना का मौका भी मिला और उनके बारे में ज्यादा जानने को मिला.....
मृदुला प्रधान जी का कविता संग्रह " चलो कुछ बात करें " एक प्रकृति प्रेमी का संग्रह है जिसमे कवयित्री अपनी हर बात को प्रकृति को माध्यम बनाकर कहने की कोशिश की है 
....बसंत मालती ....हो या..... बरसात की रात .....या फिर.... पेड़ों के पीछे अलसाया.....होली का त्यौहार... ओस...... गुलमोहर की... या....महानगर की धुप ....जाने कितनी ही कवितायेँ और हैं जहाँ प्रकृति के रंगों की छटा के साथ दिल के रंग भी उकेरे हैं कवयित्री ने अपने आप में कुछ अलग सा प्रकृति को देखने और समझने के नज़रिये को भी प्रस्तुत करता है जो ये बताता है लेखिका का जुड़ाव प्रकृति के हर अंग से है फिर मौसम हो या ज़िन्दगी सबका अपना एक परिवेश है , संरचना है जिनका सीधा सा सम्बन्ध मानव जीवन से है ! 
कुछ प्रकृति से परिचित करती रचनाओं की एक झलक देखिये :
....सूरज की पहली किरण में -- चलो स्वागत करें ऋतु बसंत का.......बादलों के साथ भी उड्ने लगा हूँ.......... मजूरों की रोटी .... मानवीय संवेदनाओं की जीती जागती मिसाल है जहाँ मेहनत की रोटी के स्वाद की बात ही कुछ और होती है को इस तरह दर्शाया है कि आज की हाइटैक होती ज़िन्दगी की सुविधायें भी बेमानी सी लगती हैं एक सजीव चित्रण 
.........थाक रोटी की बडी सोंधी नरम लिपटे मसालों में बना आलू गरम ..... गर्म रोटी... फ़ाँक वाले आलू 
 " विदेशी भारतियों के नाम " एक ऐसी कविता है जिसका चित्रण बेहद खूबसूरती से किया गया है :
" सर्द सन्नाटा" समय के बोये अकेलेपन के बीजों को बिखेरने की व्यथा है ताकि खुद से मुखातिब हुआ जा सके और रूह की गहराई तक उतरा सर्द सन्नाटा कुछ कम हो सके फिर चाहे उसके लिए कुछ लिखना ही क्यों न पड़े!
मृदुला जी का लेखन बहुत ही कमाल का है मृदुला जी को काव्य संकलन
" चलो कुछ बात करें " शानदार संग्रह है मेरी और से काव्य संकलन के लिए हार्दिक बधाई 
देवलोक प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह को प्राप्त कर सकते हैं या फिर मृदुला जी से भी संपर्क कर सकते है !


पुस्तक का नाम –  चलो कुछ बात करें
रचनाकार --    मृदुला प्रधान
पुस्तक का मूल्य – 200/
आई एस बी एन – 81-89373-11-0
प्रकाशक - देवलोक प्रकाशन 1362  कश्मीरी गेट दिल्ली -110006

#चलो कुछ बात करें
- संजय भास्कर

12 अप्रैल 2022

......बेटी के घर से लौटना :)

 चन्द्रकान्त देवताले जी एक कविता बेटी के घर से लौटना साँझा कर रहा हूँ !!


बहुत जरूरी है पहुँचना
सामान बाँधते बमुश्किल कहते पिता
बेटी जिद करती
एक दिन और रुक जाओ न पापा
एक दिन


पिता के वजूद को
जैसे आसमान में चाटती
कोई सूखी खुरदरी जुबान
बाहर हँसते हुए कहते कितने दिन तो हुए
सोचते कब तक चलेगा यह सब कुछ
सदियों से बेटियाँ रोकती 
होंगी पिता को
एक दिन और
और एक दिन डूब जाता होगा पिता का जहाज

वापस लौटते में
बादल बेटी के कहे के घुमड़ते
होती बारीश 
आँखो से टकराती नमी
भीतर कंठ रूँध जाता थके कबूतर का

सोचता पिता सर्दी और नम हवा से बचते
दुनिया में सबसे कठिन है शायद
बेटी के घर लौटना !
- चन्द्रकान्त देवताले

- संजय भास्कर