03 नवंबर 2012

........कहीं तुम वो तो नहीं -- संजय भास्कर

 सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर नमस्कार काफी दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ  पर अब आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ !

.........मेरी कविता .....कुछ खो जाना के लिए प्रतुल वशिष्ठ ने कुछ लाइन लिखी है उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी...........!!




@  रोज़ सुबह उठते हुए

अकसर कुछ खो जाता है ...

कभी अधूरे सपने तो कभी उनका मज़मून.

'क्या देखा था.. कौन-कौन मिले थे' ....प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.


वैसे ही बचपन में साथ पढ़े

जब चेहरा बदलकर बीस-तीस वर्ष बाद मिलते हैं.

तो कुछ खो सा जाता हूँ...

'कहीं तुम वो तो नहीं', 'तुम्हें कहाँ देखा है' जैसे प्रश्न मन में अनायास घुस आते हैं.


संजय भास्कर ,

आपके मनोभावों की यही खासियत है कि वह सहज गति से प्रवाहित हैं.

मुझे बहुत आनंद आया इस मंथर गति (अंदाज़) में अपनी कुछ बातें कहने में.

इसलिये कह सकता हूँ - ये उम्दा रचना है........ !



.......................बहुत - बहुत शुक्रिया  प्रतुल वशिष्ठ ज़ी 


@ संजय भास्कर