सभी साथियों को नमस्कार कुछ दिनों से व्यस्ताएं बहुत बढ़ गई है इन्ही कारणों से ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा हूँ पर....आज आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी नई रचना उम्मीद है आपको पसंद आये.........!!

घर से दफ्तर के लिए
निकलते समय रोज छूट
जाता है
मेरा लांच बॉक्स और साथ ही
रह जाती है मेरी घड़ी
ये रोज होता हो मेरे साथ
और
मुझे लौटना पड़ता है उस गली के
मोड़ से
कई वर्षो से ये आदत नहीं बदल पाया मैं
पर अब तक मैं यह नहीं
समझ पाया
जो कुछ वर्षो से नहीं हो पाया
वह कुछ महीनो में कैसे हो पायेगा
अखबार के माध्यम से की गई
तमाम घोषणाएं
समय बम की तरह लगती है
जो अगर नहीं पूरी हो पाई
तो एक बड़े धमाके के साथ
बिखर जायेगा सबकुछ......!!
- संजय भास्कर
15 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना।
काफी दिनों बाद आपकी उपस्थिति पाकर बेहद ख़ुशी हुई,
एक सुंदर रचना के साथ वापसी का स्वागत है संजय जी
जिन्हें कोई लत पड़ जाय वे फिर बदल नहीं पाते हैं अपने आपको क्योंकि आदतें बदली जा सकती हैं, लेकिन लत नहीं
बहुत अच्छी प्रस्तुति
बहुत समय के बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली । चिंतन भरा
संदेश देती सुन्दर रचना ।
सुन्दर, सारगर्भित संदेश पूर्ण रचना..
आदरणीय/ प्रिय,
कृपया निम्नलिखित लिंक का अवलोकन करने का कष्ट करें। मेरे आलेख में आपका संदर्भ भी शामिल है-
मेरी पुस्तक ‘‘औरत तीन तस्वीरें’’ में मेरे ब्लाॅगर साथी | डाॅ शरद सिंह
सादर,
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
वाह।
बहुत बढ़िया संजय जी। आपको बधाई।
क्या खूब कहा ।
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति।
बहुत खूब..
बहुत बढ़िया रचना संजय जी ।
आपकी बात समझी मैंने संजय जी - वो जो आपने कही और वो भी जो आपने नहीं कही ।
Nice👏👏👏👏
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