अक्सर जीवन कभी
इतनी तेज़ गति से
गुज़रता है
तब वह कुछ अहसास करने का
और समझने का
समय नहीं
देता पर जब कभी-कभी
जीवन इस कदर
ठहर जाता है
तब कुछ अहसास होने ही नहीं देता
तब ऐसा लगता है
जैसे हमारे अंदर
एक महाशून्य उभरता
जा रहा है
शायद इसी मनोदशा में
महसूस होती है
बेहद थकान
और हो जाती है शिथिल
सी ज़िंदगी
तब वक़्त के तेज गुजरते
लम्हों में कई बार मन
कहता है
सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूं ही तमाम होती है !!
- संजय भास्कर
14 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
संजय ji,
आपने अपनी रचना के ममाधयम से जाने कितने बोझिल मनो को शब्द को आवज़ दे दी। ...ये एहसास ये ख्याल जाने कितनो के मन में उथल पुथल मचाते हैं... कभी कभी तो सोच में पढ़ जाते हैं की। .. जा कहाँ रहें हम सब इस अंधी एकाकी दौड़ में। hmmmm,
rchnaa soch ko aur gehraa le jaati he ...
ye panktiyan bahut praabhshaali
बेहद थकान
और हो जाती है शिथिल
सी ज़िंदगी
हमारे अंदर
एक महाशून्य उभरता
जा रहा है
bahut bdhaai..saarthak rchnaa ke liye
दोनों ही स्थितियां इंसानी जीवन पे अपना प्रभाव छोडती हैं पर ये भी सच है की जोंदगी यूँ ही तमाम होती है ...
अच्छी रचना है ...
बहुत गहरी और चिंतन परक रचना, जीवन की अलग अलग समय की गति अलग होती है और मनोभाव भी सदा बदलते रहते हैं पर ये सोच तो शायद हर एक को जीवन में कभी न अवश्य होती है...
सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूं ही तमाम होती है !!
बहुत सुंदर अप्रतिम।
भागती दौड़ती जिन्दगी और उसके साथ कभी कभी ठहराव में सोचना वाकई में शून्यता की सी स्थिति उत्पन्न करता है.... मन की उलझन को रचना में गहराई से उतारा है आपने । बहुत सुन्दर सृजन संजय जी ।
सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूं ही तमाम होती है !! बहुत सुंदर रचना
अहसासों का शून्य हो जाना जीवन की दो स्थितियों में....सचमुच ऐसा होता है ....पर कैसा और कब होता है हर जुवां के बस की बात नहीं बयां करना...ऐसे भावों को अहसासों को शब्दों में पिरोकर लाजवाब चिन्तनपरक रचना का रूप देना...अद्भुत....
वाह!!!!
बहुत ही लाजवाब
अच्छे दिन जल्दी और कठिन दिन बड़ी मुश्किल से कटती है
बहुत अच्छी रचना
गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाये
कभी-कभी जीवन में शून्य और ठहराव की स्थिति लाज़मी है। अनुभवपरक रचना !
बहुत खूब संजय भैया, बहुत समय बाद पढ़ा आपको। अच्छा लगा।
बहुत ही सुन्दर ढंग से परिभाषित किया है आप ने ज़िंदगी को
एक-एक लम्हें में गूँथा है एहसास को आप ने
सादर
सुंदर रचना
तब वक़्त के तेज गुजरते
लम्हों में कई बार मन
कहता है
सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूं ही तमाम होती है !!
वाह बहुत सुंदर
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
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