03 जनवरी 2019

..... अपना घर :)

                         ( चित्र गूगल से साभार  )

जवान बेटी को बाप ने कहा
जाना होगा अब तुम्हे अपने घर ,
बी.ए की करनी वही पढाई
मैंने
ढूंढ़ लिया तेरे लायक वर ,
अब तक तुम हमारी थी
पर अब हमे छोड़ जाना होगा
बसाना होगा
नया घर
बेटी ने बहू बनकर
बी.ए वाली बात दोहरायी
सुनकर उसकी बातें उसकी सास गुर्राई 
अगर आगे ही पढना था
तो पढ़ती 'अपने घर '
बहू है हमारी अब सेवा कर ,
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर
बेटियां दुनिया में होती है
बे घर ....!!

- संजय भास्कर

27 टिप्‍पणियां:

Meena Bhardwaj ने कहा…

अपने घर की तलाश सफर कठिन होता है लड़कियों के लिए....,काश यह बात माता-पिता और सास-श्वसुर समझ पाते । हृदयस्पर्शी रचना संजय जी ।

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

Kailash Sharma ने कहा…

एक शाश्वत सटीक प्रश्न...किस घर को अपना घर समझे नारी..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...

मन की वीणा ने कहा…

मन को छूती सहज सरल प्रस्तुति ।

Prakash Sah ने कहा…

अत्यंत भावुक रचना...।

Sarita Sail ने कहा…

बेटीयाँ जिवन भर ढुँढती रहती है अपना घर
अच्छी रचना
नये साल कि ढेर सारी शुभकामनाऐ

रवीन्द्र भारद्वाज ने कहा…

बहुत ही सुन्दर..

बेहद हदयस्पर्शी।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुभाष बाबू जिन्दाबाद का जयघोष और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Kamini Sinha ने कहा…

सच कहा संजय जी आपने ,हर घर बेटियों से ही बसता है फिर भी बेटियों का कोई घर नहीं होता कितनी अजीब बिड़बना है समाज की। मर्मस्पर्शी रचना..... सादर नमन

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना

deepa joshi ने कहा…

Very nice .....

पल्लवी गोयल ने कहा…

मार्मिक सच है संजय जी... अनेक योग्यताएं सड़ी- गली व्यवस्था के नीचे दब के दम तोड़ देती है। सुंदर रचना के लिए शुभकामनाएं...

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर... हृदयस्पर्शी रचना...
बे घर सी बेटी बहु...

Sadhana Vaid ने कहा…


एक शाश्वत प्रश्न जिसका उत्तर कभी न मिल सका ! अत्यंत हृदयग्राही प्रस्तुति ! अति सुन्दर !

Nitish Tiwary ने कहा…

बिल्कुल सत्य लिखा है आपने। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.blogspot.in

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बेटियों के मर्म को लिखा है ... पर क्यों ऐसा होता है ... ये समझ से परे है ... ऐसी रीत क्यों है अपने समाज में ... सको मिल के इसे बदलना होगा ... बेटियों के दोनों अपने घर हैं ऐसा माहोल बनाना होगा ...
चिंता व्यक्त करती है आपकी रचना समाज की इस दशा पर ...

शुभा ने कहा…

वाह!!संजय जी ,बहुत ही हृदयस्पर्शी ,मन की गहराइयों तक उतर गई आपकी रचना । सही भी तो है ,बेटियाँ ताउम्र समज नहीं पाती ,आखिर उनका घर है कहाँ ...

Anita ने कहा…

मार्मिक रचना

Meena Bhardwaj ने कहा…

आपको सपरिवार मकर संक्रांति पर्व के शुभ अवसर अनन्त बधाइयाँ एवं हार्दिक मंगलकामनाएँ संजय जी ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह सटीक

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

सुन्दर एवं सटीक

Pammi singh'tripti' ने कहा…

हृदयस्पर्शी रचना.. सत्यता के करीब।

Viraj verma ने कहा…

सुन्दर एवं सटीक

Jaishree Verma ने कहा…

बेघर सी बेटी बहू ! अपने आप में यथार्थ समेटे हुए यह रचना !

Meena Bhardwaj ने कहा…

जी नमस्ते,

आपकी लिखी रचना बुधवार १५ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

विश्वमोहन ने कहा…

सत्य और मार्मिक।

रेणु ने कहा…

प्रिय संजय - यही प्रश्न सदियों से पूछती आई है बेटियां पर ये अभी तक प्राय अनुत्तरित है | यूँ तो बेटियों का कोई घर नहीं होता पर उनके बिना कोई भी घर नहीं होता | ये भी कहा है किसी ने मैंने नहीं कहा | बहुत ही सार्थक रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें और स्नेह |