एक दिन आफिस से घर लौटते हुए एक कॉफी शॉप पर कुछ युवा मदहोश व नशे में डूबे हुए मदमस्त आधुनिकता कि आड़ में घिरे युवाओं की आज की जिन्दगी का सच देखर कुछ पंक्तियाँ उम्मीद है पसंद आये ........!!
कॉफी हाउस में बैठा
आज का युवा वर्ग
मदहोश,मदमस्त,बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
तो ऐसे कंधो पर
देश का बोझ
कैसे टिक पायेगा ?
जो
जो
या तो खोखले हो गये है
या जिनको उचका लिया गया है
पर आज के युवा को विसंगतियों में
भटक जाना स्वाभाविक है
पर ए - दोस्त
अब बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं
कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढ़ी आँखों से.........!!
-- संजय भास्कर
16 टिप्पणियां:
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
29/09/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
29/09/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (29-09-2019) को "नाज़ुक कलाई मोड़ ना" (चर्चा अंक- 3473) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
समाज की विसंगतियों या कहें वास्तविकता पर सटीक प्रहार।
सादर
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढ़ी आँखों से.........!!
बहुत प्रभावी संदेश...सुन्दर सृजन ।
दर्पण सरीखी रचना।
सुंदर अभिव्यक्ति
लाजवाब प्रस्तुति संजय जी समय का आईना और सुंदर सकारात्मक उम्मीद ।
वाह।
पर ए - दोस्त
अब बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं
कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढ़ी आँखों से.........
बहुत ही सुंदर और गहरी बात कही आपने संजय भाई ,बेहतरीन विचारो से सजी सुंदर रचना
कल्पना के मोहजाल में ग्रस्त युवाओं को प्रेरित करती सुंदर पंक्तियाँ
कल्पना के इस संसार से बाहर नहीं आना चाहते कई बार लोग ... खोये रहना चाहते हैं सच से रूबरू नहीं होना चाहते ... जबकि कर्म से रूबरू होना ही जीवन है ...
सचेत करते भाव है रचना में ... बहुत सुंदर ...
सुन्दर पंक्तियाँ पर आज का युवा वर्ग वर्क हार्ड और पार्टी हार्डर की सूक्ति पर विश्वास करता है। वो मेहनत से काम भी करता है और फिर ज़िन्दगी के मज़े भी उतने ही लेता है। मैं कई ऐसे युवाओं को जानता हूँ। हाँ, अति किसी भी चीज की बुरी होती है।
बड़ी बिडम्बना है देखने वाला कोई नहीं
सचमुच युवाओं के कंधे पर राष्ट्र निर्माण का दायित्व होता है। श्रेष्ठ रचना।
आजकल युवा अपनी जिंदगी में किसी की दखलअंदाजी भी तो बर्दाश्त नहीं करते। कमाओ और उड़ाओ यही उनका उसूल बन गया है।
बहुत सुंदर रचना !
बेहतरीन प्रस्तुति
एक टिप्पणी भेजें