अक्सर जीवन कभी
इतनी तेज़ गति से
गुज़रता है
तब वह कुछ अहसास करने का
और समझने का
समय नहीं
देता पर जब कभी-कभी
जीवन इस कदर
ठहर जाता है
तब कुछ अहसास होने ही नहीं देता
तब ऐसा लगता है
जैसे हमारे अंदर
एक महाशून्य उभरता
जा रहा है
शायद इसी मनोदशा में
महसूस होती है
बेहद थकान
और हो जाती है शिथिल
सी ज़िंदगी
तब वक़्त के तेज गुजरते
लम्हों में कई बार मन
कहता है
सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूं ही तमाम होती है !!
- संजय भास्कर