सलिल वर्मा जी का ब्लॉग करीब चार वर्षो से एक लम्बे समय से पढ़ रह हूँ उनके दिए कमेंट से तो हर कोई प्रभावित है सलिल वर्मा जी लिखने का अंदाज ही ऐसा है कि चाहे महीने बाद भी पोस्ट आती है पाठक को बेसब्री से इंतज़ार रहता है और पाठक खुद ही खिंचा चला आता है उनकी कलम शब्दों में जान दाल देती है और उनके जैसा कोई कलाकार ह्रदय ही उसमे जान डालकर जानदार शानदार बनाता है ऐसा शानदार लेखन है सलिल जी का उनके अपार स्नेह के कारण ही आज ये पोस्ट लिख पाया हूँ...!!
सलिल जी की लेखनी से मैं बहुत प्रभावित होता हूँ वो बहुत ही जिम्मेदारी से हर ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते है उनके बारे में लिखना शायद मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है....!!
और अंत में सलिल जी के ब्लॉग से पढ़िए गुलज़ार साहब की कुछ लाइनें दर्द के बारे में: -
दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं
जिस तरह शाख से तोड़े हुए इक पत्ते का रंग
माँद पड़ जाता है कुछ रोज़ अलग शाख़ से रहकर
शाख़ से टूट के ये दर्द जियेगा कब तक?
ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद
टिमटिमाएगा ज़रा देर को बुझते बुझते
और फिर लम्बी सी इक साँस धुँए की लेकर
ख़त्म हो जाएगा, ये दर्द भी बुझ जाएगा
दर्द कुछ देर ही रहता है, बहुत देर नहीं !!
( C ) संजय भास्कर