17 मार्च 2013

अक्सर मैं -- संजय भास्कर

आप सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर नमस्कार काफी दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ  पर अब आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी नई कविता के साथ उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी.......!!

 
अक्सर मैं यह
नहीं समझ पाता
की लोग प्रायः
गंदे व फटे हुए हुए
कपड़ो में
मासूम बचों का
यही रूप क्यों 
देखते है
कि वह भिखा
री है
वह उसके कपड़ो के
पीछे की जर्जर व्यवस्था
उसकी गरीबी ,लाचारी
समाज की प्रताडना
को क्यों नहीं देख पाते .............!!!

चित्र - गूगल से साभार
 
@ संजय भास्कर