आज मैं क्या लिखूं?
हाँ बहुत दिन होगए है,
ख्यालों के बादल भी कम हो गए है,
साफ़ साफ़ सा है विचारों का आसमां
इसी सोच में हूँ की आज मैं क्या लिखूं?
कुछ दिनों से परेशां था मैं,
कुछ दिनों से खुश भी था,
आज फिर हुई है वो नाराज़ मुझसे,
फिर इसी सोच में हूँ की उन्हें मनाने के लिए आज मैं क्या लिखूं?
लगता है जैसे इक अरसे से खामोशी से दिल लगाकर बैठा हूँ,
बह जाने के अरमान से साहिल पे घर बनाकर बैठा हूँ,
किया है बेसब्री से इंतज़ार जज्बातों की लहरों के आने का,
सोचता हूँ इन लहरों को बुलाने के लिए आज मैं क्या लिखूं?
अब वक्त भी कम मिलता है उनसे मुलाकात का,
की अब दिन भर काम में उलझा रहता हूँ,
करता हूँ आस की लौट आये मेरे फुर्सत के दिन,
इसलिए सोचता हूँ फुर्सत पर आज मैं क्या लिखूं?
एक वो ही तो है जिसके दम से निराशाओं को आशाओं में बदलता हूँ मैं,
वो जिससे ख़ुशी हो या ग़म हर बात कहता हूँ मैं,
नहीं लिखा उसके लिए भी कुछ बड़े दिनों से मैंने,
इसलिए सोचता हूँ उस खुदा के मान में आज मैं क्या लिखूं?
हाँ बहुत दिन होगए है,
ख्यालों के बादल भी कम हो गए है,
साफ़ साफ़ सा है विचारों का आसमां
इसी सोच में हूँ की आज मैं क्या लिखूं?
कुछ दिनों से परेशां था मैं,
कुछ दिनों से खुश भी था,
आज फिर हुई है वो नाराज़ मुझसे,
फिर इसी सोच में हूँ की उन्हें मनाने के लिए आज मैं क्या लिखूं?
लगता है जैसे इक अरसे से खामोशी से दिल लगाकर बैठा हूँ,
बह जाने के अरमान से साहिल पे घर बनाकर बैठा हूँ,
किया है बेसब्री से इंतज़ार जज्बातों की लहरों के आने का,
सोचता हूँ इन लहरों को बुलाने के लिए आज मैं क्या लिखूं?
अब वक्त भी कम मिलता है उनसे मुलाकात का,
की अब दिन भर काम में उलझा रहता हूँ,
करता हूँ आस की लौट आये मेरे फुर्सत के दिन,
इसलिए सोचता हूँ फुर्सत पर आज मैं क्या लिखूं?
एक वो ही तो है जिसके दम से निराशाओं को आशाओं में बदलता हूँ मैं,
वो जिससे ख़ुशी हो या ग़म हर बात कहता हूँ मैं,
नहीं लिखा उसके लिए भी कुछ बड़े दिनों से मैंने,
इसलिए सोचता हूँ उस खुदा के मान में आज मैं क्या लिखूं?