आखिर बुरा क्या है ?
****************************** *****
मन के दरख्त पर
जमा ली
ख्वाहिशो ने अपनी जड़े
और फलती फूलती जा रही है
अमर बेल की तरह उतरोतर.
रसविहीन दरख्त मौन है
बना हुआ पंगु सा
जब होगा एहसास हकीकत का
तो हो जाएगी सारी बेलें
धूल धूसरित.
मन ने सोचा कि
पलने दो अंत में दो
मिटटी ही नसीब है
कुछ पल खुश होने दो
आखिर बुरा क्या ?
****************************** ******************************
संगीता जी अपने बारे में विचार -- कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं.....!
आदरणीय संगीता स्वरुप 'गीत' ब्लॉगजगत की जानी मानी शक्सियत है
जिन्हें ब्लॉगजगत में गीत मेरी अनुभूतियाँ और बिखरे मोती ब्लॉग के माध्यम से जाना जाता है
जिनमे अक्सर संगीता जी मोती जैसी कविताये चुन चुन कर लिखती है ........अभी कुछ दिन पहले संगीता जी का काव्य - संग्रह " उजला आसमाँ " को पढ़ा उसी से जुड़े कुछ विचार आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ !
संगीता स्वरुप जी के काव्य संग्रह की कवितायेँ उस नए युग की कवितायेँ है जहाँ पर कवितायों के प्रकाशन के लिए की संपादक की कृपा द्रष्टि पर निर्भर नहीं रहना पड़ता !
और हा एक अलग बात जो संगीता जी की कवितायेँ में प्रमुख रूप से दिखाई देती है वो है सरोकारों के प्रति सजगता , वो साहित्य सरोकारों को बिलकुल नहीं भूली है .............ये बात उनकी कवितओं से पता चलती है |
...................जैसे भ्रूण हत्या पर संगीता जी की ये पंक्तिया मन को झकझोर देती है
इस बार भी परीक्षण में / कन्या भ्रूण ही आ गया है / इसलिए बाबा ने मेरी मौन पर / हस्ताक्षर कर दिया है |
....................एक और इसी प्रकार की कविता है जो गहरे प्रश्न छोडती हुई एक सन्नाटे को बदती समाप्त होती है पूरी कविता पीड़ा में रची गई है ..................परन्तु जब ये कविता समाप्त होती है आधी आबादी के लिए शोक गीत छोड़ जाती है
एक नवजात कन्या शिशु / जो कचरे के डिब्बे में / निर्वस्त्र सर्दी में ठिठुर / दम तोड़ चुकी थी |
( संगीता जी के कुछ शब्द )
.....मैं स्वयं नहीं जानती की मैं क्यों लिखती हूँ .....शायद निम्न पंक्तियाँ मेरी भावनाओ को वर्णित कर सके ....!!!
जो दिखता है / आस- पास / मन उससे / उदेलित होता है / उन भावो को / साक्ष्य रूप दे /मैं कविता सी / कह जाऊ...........
( रमेश हठीला जी का कथन ......................संगीता जी की कविताओ में कुछ ऐसा है जो उनकी कविताओं को आम कविताओं से अलग करता है ...........ये कवितायेँ अपने समय का सही प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है उनके काव्य संग्रह का शीर्षक उजला आसमाँ वास्तव में स्त्री के
भविष्य की और इंगित करता है और ये कवितायेँ उस आकाश को पाने की कोशिश में समूची नारी जाती की और से के कदम की तरह है
\ ये कदम सफल हो .............शुभकामनाएं !!!!!
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मैं आस्मां हूँ ,
एक ऐसा आसमान
जहाँ बहुत से
बादल आ कर इकठे हो गये है
छा गई है बदली
और आसमान का रंग
कला पड़ गया है |
मेरा विश्वास है यह पुस्तक पठनीय सुखद अनुभूति देने वाली है जो पाठको को बहुत पसंद आयेगी .... !!!!
मेरी और से संगीता स्वरुप जी को काव्य - संग्रह "उजला आसमाँ" के लिए हार्दिक बधाई और ढेरो शुभकामनायें ।
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मन के दरख्त पर
जमा ली
ख्वाहिशो ने अपनी जड़े
और फलती फूलती जा रही है
अमर बेल की तरह उतरोतर.
रसविहीन दरख्त मौन है
बना हुआ पंगु सा
जब होगा एहसास हकीकत का
तो हो जाएगी सारी बेलें
धूल धूसरित.
मन ने सोचा कि
पलने दो अंत में दो
मिटटी ही नसीब है
कुछ पल खुश होने दो
आखिर बुरा क्या ?
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संगीता जी अपने बारे में विचार -- कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं.....!
आदरणीय संगीता स्वरुप 'गीत' ब्लॉगजगत की जानी मानी शक्सियत है
जिन्हें ब्लॉगजगत में गीत मेरी अनुभूतियाँ और बिखरे मोती ब्लॉग के माध्यम से जाना जाता है
जिनमे अक्सर संगीता जी मोती जैसी कविताये चुन चुन कर लिखती है ........अभी कुछ दिन पहले संगीता जी का काव्य - संग्रह " उजला आसमाँ " को पढ़ा उसी से जुड़े कुछ विचार आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ !
संगीता स्वरुप जी के काव्य संग्रह की कवितायेँ उस नए युग की कवितायेँ है जहाँ पर कवितायों के प्रकाशन के लिए की संपादक की कृपा द्रष्टि पर निर्भर नहीं रहना पड़ता !
और हा एक अलग बात जो संगीता जी की कवितायेँ में प्रमुख रूप से दिखाई देती है वो है सरोकारों के प्रति सजगता , वो साहित्य सरोकारों को बिलकुल नहीं भूली है .............ये बात उनकी कवितओं से पता चलती है |
...................जैसे भ्रूण हत्या पर संगीता जी की ये पंक्तिया मन को झकझोर देती है
इस बार भी परीक्षण में / कन्या भ्रूण ही आ गया है / इसलिए बाबा ने मेरी मौन पर / हस्ताक्षर कर दिया है |
....................एक और इसी प्रकार की कविता है जो गहरे प्रश्न छोडती हुई एक सन्नाटे को बदती समाप्त होती है पूरी कविता पीड़ा में रची गई है ..................परन्तु जब ये कविता समाप्त होती है आधी आबादी के लिए शोक गीत छोड़ जाती है
एक नवजात कन्या शिशु / जो कचरे के डिब्बे में / निर्वस्त्र सर्दी में ठिठुर / दम तोड़ चुकी थी |
( संगीता जी के कुछ शब्द )
.....मैं स्वयं नहीं जानती की मैं क्यों लिखती हूँ .....शायद निम्न पंक्तियाँ मेरी भावनाओ को वर्णित कर सके ....!!!
जो दिखता है / आस- पास / मन उससे / उदेलित होता है / उन भावो को / साक्ष्य रूप दे /मैं कविता सी / कह जाऊ...........
( रमेश हठीला जी का कथन ......................संगीता जी की कविताओ में कुछ ऐसा है जो उनकी कविताओं को आम कविताओं से अलग करता है ...........ये कवितायेँ अपने समय का सही प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है उनके काव्य संग्रह का शीर्षक उजला आसमाँ वास्तव में स्त्री के
भविष्य की और इंगित करता है और ये कवितायेँ उस आकाश को पाने की कोशिश में समूची नारी जाती की और से के कदम की तरह है
\ ये कदम सफल हो .............शुभकामनाएं !!!!!
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मैं आस्मां हूँ ,
एक ऐसा आसमान
जहाँ बहुत से
बादल आ कर इकठे हो गये है
छा गई है बदली
और आसमान का रंग
कला पड़ गया है |
मेरी और से संगीता स्वरुप जी को काव्य - संग्रह "उजला आसमाँ" के लिए हार्दिक बधाई और ढेरो शुभकामनायें ।
पुस्तक का नाम – उजला आसमाँ
रचना कार -- संगीता स्वरुप 'गीत'
पुस्तक का मूल्य – 125/ मात्र
आई एस बी एन – 978-81-909734-6-5
प्रकाशक - शिवना प्रकाशन / पी.सी. लैब / सम्राट काम्प्लेक्स बेसमेंट बस स्टैंड सीहोर - 466001
( मध्य प्रदेश )
@ संजय भास्कर
( मध्य प्रदेश )
@ संजय भास्कर