रोज देखता हूँ घर की छत से
एक बड़ा सा झुण्ड
चिड़ियों का
जो शाम को लौटती है
अपने घोसलों पर
कई बार सोचा लिखू कुछ चिड़ियों
के लिए
जो सारा दिन जंगलों , शहर की इमारतों
के इर्द- गिर्द
घर के रोशन दानों
से चुनती है दाना
अपने परिवार के लिए
और शाम होते ही लौटती है
अपने घोसलों पर
एक बड़ा झुंड बना कर
पूरे हौसले के साथ ....!!
- संजय भास्कर