दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा
चेहरा तेरा लफ्जों में नज़र आएगा
अपने हाथों की लकीरों में न छुपाना मुझे
हाथ छूते हि तेरा चेहरा निखर आएगा
बदल गया है मौसम् महक सी आने लगी
मुझे लगता है जैसे तेरा शहर आएगा
तेरे पहलू में बैठूं तुझसे कोई बात करुँ
एक लम्हा ही सही पर ज़रूर आएगा
एक मुद्दत से आँखे बंद किए बैठा हूँ
कभी तो ख्वाब में मेरा हज़ूर आएगा
चेहरा तेरा लफ्जों में नज़र आएगा
अपने हाथों की लकीरों में न छुपाना मुझे
हाथ छूते हि तेरा चेहरा निखर आएगा
बदल गया है मौसम् महक सी आने लगी
मुझे लगता है जैसे तेरा शहर आएगा
तेरे पहलू में बैठूं तुझसे कोई बात करुँ
एक लम्हा ही सही पर ज़रूर आएगा
एक मुद्दत से आँखे बंद किए बैठा हूँ
कभी तो ख्वाब में मेरा हज़ूर आएगा
दिगम्बर नासवा जी कलम से निकली एक दर्द भरी रचना