17 अप्रैल 2010

दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा


 दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा
चेहरा तेरा लफ्जों में नज़र आएगा

अपने हाथों की लकीरों में न छुपाना मुझे
हाथ छूते हि तेरा चेहरा निखर आएगा

बदल गया है मौसम् महक सी आने लगी
मुझे लगता है जैसे तेरा शहर आएगा

तेरे पहलू में बैठूं तुझसे कोई बात करुँ
एक लम्हा ही सही पर ज़रूर आएगा

एक मुद्दत से आँखे बंद किए बैठा हूँ
कभी तो ख्वाब में मेरा हज़ूर आएगा 

दिगम्बर नासवा जी कलम से निकली एक दर्द भरी रचना