घर के बड़े - बूढ़े
जिन्हे नहीं चाहिए ज्यादा कुछ,
चाहिए तो बस
थोड़ी इज्जत और सम्मान,
बदले में ये आपको दे
सकते है ,
ज़िंदगी जीने का वो तजुर्बा
जो शायद कही किसी
किताब में
लिखा ही नहीं
ऐसा बिलकुल भी नहीं हैं
ये कुछ नहीं जानते
ये सब जानते है ,
नए जमाने की बातें
पर ये
उन पेड़ो की तरह
है
जो हर मौसम और समय
के हिसाब से
ढलते रहे है
तभी तो वे किसी भी परेशानी में ,
जल्दी कराहते नहीं
नई पीढ़ी की तरह
- संजय भास्कर