मीना भरद्वाज जी ( ब्लॉग मंथन ) ओर श्वेता सिन्हा जी ( मन का पाखी ) लगभग एक साल से दोनों को ब्लॉग के माध्यम से पढ़ रहा हूँ एक से बढ़कर एक मर्मस्पर्शी व सटीक रचनाएँ कुछ कविताओं ओर हाइकु ने सीधे दिल पर दस्तक दी है दोनों ही लेखिकाओं का कम समय में बढ़िया लेखन पढ़ने को मिला दोनों की लेखनी से प्रभावित होकर ही दोनों के बारे में लिख रहा हूँ पर शायद किसी के बारे में लिखना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है दोनों लेखिकाओं के ब्लॉग से कुछ पंक्तिया साँझा कर रहा हूँ उम्मीद है सभी पसंद आये ........!!
मीना भरद्वाज की लिखी मेरी पसंदीदा रचना......पुरानी फाइलों में पड़ा खत एक खत
एक दिन पुरानी फाइलों में
कुछ ढूंढते ढूंढते
अंगुलियों से तुम्हारा
ख़त टकरा गया
कोरे पन्ने पर बिखरे
चन्द अल्फाज़…, जिनमें
अपने अपनेपन की यादें
पूरी शिद्दत के साथ मौजूद थी
मौजूद तो गुलाब की
कुछ पंखुड़ियां भी थी
जो तुमने मेरे जन्मदिन पर
बड़े जतन से
खत के साथ भेजी थी .,
उनका सुर्ख रंग
कुछ खो सा गया है
हमारे रिश्ते का रंग भी अब
उन पंखुड़ियों की तरह
कुछ और सा गया है !
-- मीना भरद्वाज
कडी़ निंदा करने का अच्छा दस्तूर हो गया
कब समझोगे फिर से बेटा माँ से दूर हो गया
रोती बेवाओं का दर्द कोई न जान पाया
और वो पत्थरबाज देश में मशहूर हो गया
कागज़ पर बयानबाजी अब बंद भी करो तुम
माँगे है इंसाफ क्या वीरों का खूं फिजूल हो गया
सह रहे हो मुट्ठीभर भेड़ियों की मनमानी को
शेर ए हिंदुस्तान इतना कबसे मजबूर हो गया
दंड दो प्रतिशोध लो एक निर्णय तो अब कठोर लो
हुक्मरानों की नीति का हरजाना तो भरपूर हो गया
उपचार तो करना होगा इस दर्द बेहिसाब का
सीमा का जख्म पककर अब नासूर हो गया
-- श्वेता सिन्हा
मीना भरद्वाज की लिखी मेरी पसंदीदा रचना......पुरानी फाइलों में पड़ा खत एक खत
एक दिन पुरानी फाइलों में
कुछ ढूंढते ढूंढते
अंगुलियों से तुम्हारा
ख़त टकरा गया
कोरे पन्ने पर बिखरे
चन्द अल्फाज़…, जिनमें
अपने अपनेपन की यादें
पूरी शिद्दत के साथ मौजूद थी
मौजूद तो गुलाब की
कुछ पंखुड़ियां भी थी
जो तुमने मेरे जन्मदिन पर
बड़े जतन से
खत के साथ भेजी थी .,
उनका सुर्ख रंग
कुछ खो सा गया है
हमारे रिश्ते का रंग भी अब
उन पंखुड़ियों की तरह
कुछ और सा गया है !
-- मीना भरद्वाज
श्वेता सिन्हा की लिखी मेरी पसंदीदा रचना .............शहीदों के लिए
कडी़ निंदा करने का अच्छा दस्तूर हो गया
कब समझोगे फिर से बेटा माँ से दूर हो गया
रोती बेवाओं का दर्द कोई न जान पाया
और वो पत्थरबाज देश में मशहूर हो गया
कागज़ पर बयानबाजी अब बंद भी करो तुम
माँगे है इंसाफ क्या वीरों का खूं फिजूल हो गया
सह रहे हो मुट्ठीभर भेड़ियों की मनमानी को
शेर ए हिंदुस्तान इतना कबसे मजबूर हो गया
दंड दो प्रतिशोध लो एक निर्णय तो अब कठोर लो
हुक्मरानों की नीति का हरजाना तो भरपूर हो गया
उपचार तो करना होगा इस दर्द बेहिसाब का
सीमा का जख्म पककर अब नासूर हो गया
-- श्वेता सिन्हा
मेरी और से एक बार पुन: दोनों को निरंतर लेखन के लिए को ढेरों शुभकामनाएँ............!!
-- संजय भास्कर