20 अक्तूबर 2021

......तुम कभी नही आओगी माँ :)


ये मैं अच्छी तरह से 
जानता हूँ माँ
तुम कभी नही आओगी 
फिर भी 
मैं तुम्हारी प्रतिक्षा करता 
रहूँगा 
कि तुम मेरी दुनिया मे कब 
वापस लौट कर आओगी
और मुझे सोते देख 
अपना हाथों से 
प्यार भरा स्पर्श कर जाओगी
मुझे उठा कर अपनी बातों से 
मेरी हिम्मत बढ़ाओगी
जिसे खो चुका हूँ मैं
माँ तुम्हारे जाने के बाद !!

- संजय भास्कर

01 अप्रैल 2021

.......वो आकर्षण :)

 


कॉलेज को छोड़े करीब 

नौ साल बीत गये !
मगर आज उसे जब नौ साल बाद 
देखा तो 
देखता ही रह गया !
वो आकर्षण जिसे देख मैं 
हमेशा उसकी और
खिचा चला जाता था !
आज वो पहले से भी ज्यादा 
खूबसूरत लग रही थी 
पर मुझे विश्वास नहीं 
हो रहा था !
की वो मुझे देखते ही 
पहचान लेगी !
पर आज कई सालो बाद 
उसे देखना 
बेहद आत्मीय और 
आकर्षण लगा 
मेरी आत्मा के सबसे करीब .....!!

-- संजय भास्कर  

11 मार्च 2021

Memories Of School Days एक पिता का वात्सल्य गुलाबी चूड़ियाँ - बाबा नागार्जुन

जब भी कभी नागार्जुन बाबा का नाम दिमाग में आया सबसे पहले दिमाग में गुलाबी चूड़ियाँ ही याद आई कभी कभी पुरानी यादें लौट आती है याद नहीं कौन सा वर्ष रहा होगा पर इतना जरूर याद है स्कूल में हिंदी की क्लास में एक ट्रक ड्राईवर के बारें में ऐसे पिता का वात्सल्य जो परदेस में रह रहा है घर से दूर सड़कों पर महीनों चलते हुए भी उसके दिल से ममत्व खत्म नहीं हुआ जो अपनी बच्ची से बहुत प्यार करता है ! यह कविता है नागार्जुन बाबा की “गुलाबी चूड़ियाँ”  जिसे उसने अपने ट्रक में टांग रखा है ये चूडियाँ उसे अपनी गुड़िया की याद दिलाती और वो खो जाता है हिलते डुलते गुलाबी चूड़ियाँ की खनक में ....!!


कविता के अंश…...गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…

झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने


मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !

-- बाबा नागार्जुन


18 फ़रवरी 2021

.... बदलाव :)

सभी साथियों को नमस्कार कुछ दिनों से व्यस्ताएं बहुत बढ़ गई है इन्ही कारणों से ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा हूँ पर....आज आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी नई रचना उम्मीद है आपको पसंद आये.........!!

घर से दफ्तर के लिए
निकलते समय रोज छूट
जाता है 
मेरा लांच बॉक्स और साथ ही
रह जाती है मेरी घड़ी
ये रोज होता हो मेरे साथ 
और
मुझे लौटना पड़ता है उस गली के
मोड़ से
कई वर्षो से ये आदत नहीं बदल पाया मैं
पर अब तक मैं यह नहीं
समझ पाया
जो कुछ वर्षो से नहीं हो पाया
वह कुछ महीनो में कैसे हो पायेगा
अखबार के माध्यम से की गई
तमाम घोषणाएं
समय बम की तरह लगती है
जो अगर नहीं पूरी हो पाई
तो एक बड़े धमाके के साथ
बिखर जायेगा सबकुछ......!!


- संजय भास्कर