21 फ़रवरी 2011

लड़की की दास्तान............संजय भास्कर


लड़की होने पर दुनिया वाले क्यों मनाते है शोक
लड़की को बोझ क्यों समझते है लोग
हर काम में ये आगे है ये मर्दों से
कभी पीछे नहीं हटती अपने फर्जो से
इसके जन्म पर क्यों नहीं बांटता कोई भोग |
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एक पडोसी थे मेरे, न थी उनके कोई औलाद
हाथ जोड़कर ईश्वर से करते थे वो फ़रियाद
कर्म खुदा का उनके आँगन में खिली एक कली
मायूस होकर बोले कि हुई है एक लड़की
मैंने कहा अंकल कुछ खिला पिला तो जाते
कहने लगे लड़का होता तो जरूर खिलाते  |
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सुनते ही दिल मेरा तड़प उठा
ये क्या उल्टा रिवाज़ है दुनिया का
कभी देते है देवी या कन्या का नाम इसे
कभी पैदा होते ही करते है बदनाम इसे
चाहते हुए भी कुछ न कर सकी
दुखी ह्रदय  से कविता लिख डाली |
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मैं न किसी पर बोझ बनूंगी , जग में ऊँचा नाम करूंगी
फिर देखूँगी कौन करेगा लड़की होने पर मातम |
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अरे नादान लोगो , जरा समझ लो
न होगी लड़की तो समाप्त हो जायेगा जीवन
इसके जज्बात को न कोई समझा है
न कोई समझ सकेगा ..............!
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-- संजय कुमार भास्कर



203 टिप्‍पणियां:

«सबसे पुराना   ‹पुराने   203 का 201 – 203
मदन शर्मा ने कहा…

क्या बात है बहुत ही सुन्दर......
दिल को छू गई प्रस्तुति!!

मदन शर्मा ने कहा…

क्या बात है बहुत ही सुन्दर......
दिल को छू गई प्रस्तुति!!

Monika Jain ने कहा…

pata nahi samaj ki ye betuki mansikta kab khtm hogi. bhut hi sundar rachna :)

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