29 मई 2010

क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!


भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय इस देश में बेटियों के लिए बड़े-बड़े प्रोत्साहन की घोषणाये करता है, राज्य सरकारें बेटी होने पर पता नहीं क्या-क्या खाते खुलवाकर इनाम बाटती फिरती है, उन्हें मुफ्त शिक्षा और पता नहीं क्या-क्या सुविधाए उपलब्ध कराती है। मगर फिर सवाल वही की हकीकत में क्या सचमुच ऐसा होता है? सुनने और पढने में यह भली ही हास्यास्पद लगता हो लेकिन हकीकत भी इससे बहुत दूर नहीं है।
आज देश सेटेलाईट तक की कीमतों का निर्धारण दुनिया के तमाम बाजारी शक्तियां निर्धारित करती है। और आज जिन खुले बाजार की ताकतों के बलबूते पर, वायदा कारोबारियों की मिलीभगत के चलते सोना आसमान चढ़ता जा रहा है उससे तो नहीं लगता कि आने वाले समय में इस देश में पहले ही बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहा एक गरीब, अपनी बेटी की शादी कर पायेगा |
सरकार कुछ भी नियंत्रण रख पाने में अपने को इन शक्तियों के आगे असमर्थ पा रही है, यदि वाकई सरकार लड़कियों के विषय में गंभीर है तो लड़कियों के बेहतर भविष्य और प्रोत्साहन के नाम पर कोरे प्रोत्साहनों और करोडो रूपये इधर से उधर करने के बजाये, उन गरीब लोगो को हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराये, जिससे गरीब लोगो अपनी बेटियाँ की शादी आराम से कर सके |
जिससे गरीबो के बच्चे भी सुखी रह सके |उन्हें कम कीमतों पर सभी साधन उपलब्ध करवाए जिससे गरीब लोगो अपनी बेटियाँ की शादी आराम से कर सके |
परन्तु आज के कालाबाजारी युग में ये सब असंभव लगता है |

111 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

सरकार अब लोभी और लालची लोगों का एक समूह बनता जा रहा है जो इंसानियत के वजूद पे ही सवालिया निशान लगा चूका है /

Sadhana Vaid ने कहा…

आपकी चिंता सर्वथा विचारणीय है ! इसमें कोई दो राय नहीं कि महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है ! सोने की कीमतें आसमान पर चढ़ रही हैं ! इसके लिए ज़रूरी है कि शादी विवाह में सोने चाँदी व हीरे मोती की जगह फूलों के जेवर चढ़ाने के लिए युवा वर्ग स्वयं पहल करे और इस पर दृढता के साथ कायम रहे ! हाँ दहेज लोभियों के लिए अवश्य इस पहल से चिंता का कारण पैदा हो जाएगा लेकिन समाज में एक अच्छी परम्परा का सूत्रपात हो जाएगा ! अर्थ शास्त्र का सिद्धांत है जब माँग कम होगी तो कीमतें अपने आप कम हो जायेंगी ! अच्छी पोस्ट के लिए आभार !

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बालिकाओं की जन्मदर कम रहने का मुख्य कारण ही उन की शादी में होने वाला भारी खर्च, बाद में ससुराल में होने वाली परेशानियाँ और लगातार किसी न किसी बहाने से उपहारों की मांग है। यह एक सामाजिक समस्या है जिसे कानून और सामाजिक आंदोलन दोनों के सहयोग से ही समाप्त किया जा सकता है।

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

आपकी चिंता सर्वथा विचारणीय है.
पर इसका कोई समाधान नहीं दिखलाई पड़ता.
अब भईया सब बाजार से ही चलता है.
आने वाली स्थिति बदले की कोई संभावना नहीं दिखती और स्थिति और भी खराब होने के आसार दिखलाई पड़ रहे हैं.

M VERMA ने कहा…

विचारणीय और ज़ायज चिंता.
बाजारवादी संस्कृति के साये तले खुद के बिक जाने तक चैन नहीं है

रश्मि प्रभा... ने कहा…

uthaai gai awaaz vyarth nahi jati, waqt jo lage

Gaurtalab ने कहा…

bahut achhi baat uthhaye hai aapne..prayasrat rahiye

कडुवासच ने कहा…

...प्रसंशनीय पोस्ट !!!

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut hi acchi soch ...ekdam sahi baat kahi hai...balikaaon ke liye dunia bhar ke project chal rahe hain lekin kya sachmuch mein iska faayda ladkiyon ya unke maa-baap tak pahunch raha hai...yah ek veichaarneey prashn hai...
bahut hi acchi post...
..didi

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

संजय जी,
आपका चिंतन प्रचलित धारणाओं के साथ चलते हुए समाज के हिसाब से बहुत सार्थक है| महंगाई अपने आप में समस्या है, ये अलग प्रश्न है| आपने महंगाई से लड़की की शादी को जोड़ा है| यूँ आपके विचार और चिंता जायज़ है, परन्तु क्या आपको नहीं लगता कि लड़की या स्त्री को समाज में पुरुष के सामान अधिकार होने चाहिए? लड़की की शादी आख़िर क्यों इतनी बड़ी समस्या है? सरकार चाहे कितने भी क़ानून बनाये या उत्थान केलिए सहायता उपलब्ध कराये, क्या ये समाज का कर्तव्य नहीं कि स्त्री को पुरुष के बराबर माना जाये? विवाह केलिए क्यों लड़की का पिता हीं परेशान हो या दहेज़ के नाम पर महंगाई को कारण माना जाये? महंगाई की मार हर इंसान झेल रहा| लेकिन अगर युवा वर्ग अपनी सोच बदलें तो मुमकिन है कि विवाह की प्रचलित प्रथा ख़त्म हो, और लड़की का बाप बेचारा न रह जाये| आडम्बर और परंपरा के नाम पर अंधाधुन खर्च कहाँ से मुनासिब है? अगर दहेज़ प्रथा और पारंपरिक विवाह प्रक्रिया को ख़त्म किया जाए तो हर ग़रीब की बेटी की शादी स्वयं हो जाएगी| सामजिक सोच में परिवर्तन की ज़रूरत है| सार्थक लेखन, शुभकामनाएं!

चैन सिंह शेखावत ने कहा…

स्थिति वास्तव में चिंताजनक है.बाजारी ताकतों के आगे निर्धन असहाय है.लेकिन इस चकाचौंध में कौन इस बात की परवाह करता है. आपके सरोकार प्रशंशनीय हैं.

kshama ने कहा…

Baat kewal shadi ki nahee hai..shiksha tatha vaidykeey suvidhaye pahlen kram pe honi chahiyen...jab tak ladikayan swawlambi nahi hoti, janjagruti sambhav nahi..

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
Jai kumar jha ji @Sadhna ji @Dinesh Divedi ji @Rajeev ji @ M Vema ji @Rasimprabha mummy ji @Gaurtalab ji @Uday ji @ Ada Didi @ Janny shabnam ji @ shekhwat ji

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संजय भास्‍कर ने कहा…

Kshama ji ,
aapne bikul sahi kahan shadi hi nahi shikhsa.tahta aur bhi kai chije hai no nahi mil pa rahi...

Yaad dilne ke liye dhanwaad...

Vijay K Shrotryia ने कहा…

sanjay ji
We dont need to blame the government for everything that it provides..... I am not talking as a representative of the government, but for all good reasons for people themselves. Education is more important an issue. The wedding of a daughter or son is an issue to be tackled at family level or personal level. We need to empower women and educate them so that the issue of getting them married is taken care off by themselves. A recent example is of a girl who exposed dowry demanding family in Mumbai. This is what education and empowerment is all about. Why do we need to depend on government, we should refuse such schemes of the government and ask them to help the cause of women education....
We dont need to live on the mercy of the government. I shall be happy to have comments of people on my thinking......

बेनामी ने कहा…

aapki chinta jayaj hai..
lekin main sadhna ji ke baat se sehmat hoon...
yuva warg ko pehal karne ki jaroorat hai.....

Ra ने कहा…

आपनी चिंता जायज है पर इसका समाधान बहुत मुश्किल है .....देहाती गावो की हालत तो बहुत ही बदतर है ....कल की तरह यह भी आपकी विचारणीय सोच का परिणाम है जो ...ऐसा चिंतन कर ये सब लिखते हो ,,,,आपको और आपकी सोच दोनों को सदर नमन

मीनाक्षी ने कहा…

ग़रीब की बेटी को शिक्षा ही मिल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी..बेटी आत्मनिर्भर होगी तो माँ बाप निश्चिन्त होगें. जहाँ तक महँग़ाई का सवाल है उसने तो समाज के हर तबके को परेशान कर दिया है..

Ra ने कहा…

आपकी इस रचना पर विचार किया तो कुछ सीखा ..ऐसा जो सबको प्रेरणा दे....फिर से आभार ...मन को भायी हर रचना को मैं एक से अधिक बार पढता हूँ

Ra ने कहा…

प्रतिदिन एक ज्वलंत मुद्दा लाते हो ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

First of all
special thanks to all of you my blog members

thanks to apriciate my post...

SANSKRITJAGAT ने कहा…

bahut sundar lekh

aapki baat se shat pratishat sahmat hun

Publisher ने कहा…

सोचते कहां हैं लोग भास्कर साहब। आप, हम जैसे लोग जरूर कभी उस दर्द को महसूस करते हुए कोई कदम उठा लें, क्योंकि हम फिर भी गांव और माटी से जुड़े लोगों में हैं।
ज्वलंत मुद्दा, सुंदर विचार, उत्कृष्ट प्रयास।
आप धन्यवाद के पात्र हैं, ऐसे ही मुद्दे उठाते रहें।

संजय भास्‍कर ने कहा…

Thanks to VK shorya ji @ Shekhar bhai @ Rajender mina @ Minakhi mom

aap sabne sahi kaha education is must important...

iagree with u...

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
आनन्‍द पाण्‍डेय जी@ प्रवीण जाखड़ जी


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धन्यवाद
संजय भास्कर

Yogi ने कहा…

सब से पहले तो दहेज प्रथा बंद होनी चाहिए.

उसके लिए दोनों लड़के और लड़की वालो को संकल्प लेना होगा.

लड़की वाले दहेज देने से मना करें और लड़के वाले दहेज लेने से.

अगर दहेज खतम हो जायेगा तो शायद कुछ मददमिल पाएगी बेटी की शादी में.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

क्या बिना सोने के शादी नहीं हो सकती ?
हो सकती है , लेकिन इसके लिए हमें अपना नजरिया बदलना पड़ेगा ।
दहेज़ जैसी कुरूतियों के विरुद्ध लड़ना पड़ेगा ।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

संजय जी, पोस्ट अच्छी है, लेकिन क्या लड़कियों की शादी ही एकमात्र चिन्ता है? इस विवाह-चिन्ता की जगह यदि हम बेटियों को पढा-लिखा के योग्य बनाने और अपने पैरों पर खड़ा करने की चिन्ता करें तो फिर शादी कोई चिन्ता ही नहीं रह जायेगी. रही बात शासकीय योजनाओं की, तो निश्चित रूप से सरकार ने बेटियों को तमाम सुविधाएं मुहैया कराई हैं, स्कूल शिक्षा में यूनिफ़ॉर्म, किताबें और साइकिलें तक सरकार दे रही है, और ये सामान उन तक पहुंच भी रहा है. लाड़ली योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र की बेटियों को उनकी शिक्षा पूरी होने तक स्कॉलरशिप दी जा रही है.कम से कम मध्य-प्रदेश में तो ये हो रहा है. हां कहीं कहीं भ्रष्ट अधिकारी अपना फ़र्ज़ मुस्तैदी से नहीं निभा रहे. तो ऐसा तो हर विभाग में है. आवाज़ इस भ्रष्टाचार के लिये उठानी ज़रूरी है, सोने के बढते दामों के लिये नहीं.

माधव( Madhav) ने कहा…

real concern for india

Unknown ने कहा…

सामजिक सोच में परिवर्तन की ज़रूरत है| सार्थक लेखन

Unknown ने कहा…

आपका चिंतन प्रचलित धारणाओं के साथ चलते हुए समाज के हिसाब से बहुत सार्थक है|

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

शादी से पहले तो बेटी की शिक्षा की चिन्ता करनी चाहिए.....वायदे बहुत होते हैं पर कितने पुरे होते हैं ये देखने की बात है

दीपक 'मशाल' ने कहा…

साधना वैद्य जी, क्षमा जी और वंदना जी ने पहले ही बात को स्पष्ट कर दिया है.. जब बात शादी पर पहुँचती है तो युवाओं को चाहिए कि दहेज़ का सख्ती से विरोध करें.. भले ही इसके लिए उन्हें अपने परिवार का विरोध करना पड़े. उम्मीद है संजय तुम भी समर्थन करोगे इस बात का(सिर्फ कागजी तौर पर नहीं बल्कि अमल में.. ;) )

Renu goel ने कहा…

agar hamaare desh ke neta jinki"kamaayi huyi daulat" million ke aankde ko paar karti jaa rahi hai , apni us daulat se 1 gm sona har gareeb ladki ko de den to har gareeb kanya ka vivaah sambhav hi nahi hoga balki uski jindgi khushhaal ho jaayegi .. bas samasya ek hi hai , "SHURUAAT KAREGA KAUN " ...?

पापा जी ने कहा…

पुत्र
तू बचपन से ही जज्बाती है
हर पल दूसरों के दुखों में खोया रहता है
कुछ तो खुद का ख्याल रखे कर
पापा जी

Tapashwani Kumar Anand ने कहा…

shadi ka plan bana rahe hai kya bhaskar ji, ;-)

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
Yogesh ji i m agree with u..DAHEJ PRATHA jaroor band honi chaiye

ji ha daral sahab sone ke bina shadi ho sakti hai

Vandna didi main aap se sehmat hoo...
sabse pehle shiksh jaroori hai,
shadi to baad ki baat hai


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धन्यवाद
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
mdhav @ karan ji @ bhushan ji @ Sangeeta mummy ji शादी से पहले तो बेटी की शिक्षा की चिन्ता करनी चाहिए |


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धन्यवाद
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
Deepak ji @ Pukhraaj ji @Papa ji @ Tapaswani anand ji shadi karege to jaroor batayege sir,

मेरे ब्लॉग बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
धन्यवाद
संजय भास्कर

शमीम ने कहा…

संजय साह्ब आपने बहुत अच्छा और गम्भीज सवाल प्रस्तुत किया है .

भुवन भास्कर ने कहा…

दहेज के खिलाफ चलाए गए सभी आंदोलनों में सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि ये सामाज के माध्यम से व्यक्ति को साधने के सिद्धांत पर चलाए गए हैं। नतीजा यह होता है कि आंदोलन का मुखिया ख़ुद मौका पड़ने पर दहेज लोभी बन जाता है। दहेज के विरोध का आंदोलन दरअसल व्यक्ति से समाज की ओर चलाए जाने की जरूरत है। तभी इसका कोई स्थाई समाधान संभव है। दूसरी बात, दहेज को आर्थिक भ्रष्टाचार के बढ़ते चलन से भी जोड़ कर देखा जाना चाहिए। कम से कम समय और मेहनत कर ज़्यादा से ज़्यादा धन जमा करने की बढ़ती भूख इसकी जड़ में है, इसलिए इसे ख़त्म करने के लिए भ्रष्टाचार की जड़ों पर भी चोट करना ज़रूरी है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

चिंता वाजिब है आपकी ... इसका उत्तर भी अधिकतर लड़के के पास ही निहित है ... हमारी सामाजिक व्यवस्था में ये कदम लड़के वाले ही उठा सकते हैं ..

Alpana Verma ने कहा…

aap ne sahi chinta vyakt ki hai...

lekin yah sarkar ke nahin khud samaaj kee bhi jimmedari honi chaheeye..

kahan tak har baat ke liye Sarkaar ki taraf bahagte rahenge?


Ladake wale pahal karen to behtar!

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

सामजिक सोच में परिवर्तन की ज़रूरत है1यदि हम बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा करने की चिन्ता करें तो फिर शादी कोई चिन्ता ही नहीं रह जायेगी.

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
शमीम जी @ भुवन भास्कर जी @ दिगम्बर नासवा जी @ अल्पना वर्मा जी @ RAJNISH PARIHAR JI

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धन्यवाद
संजय भास्कर

Dev K Jha ने कहा…

बेटियां... पिछले लगभग आधे घन्टे से प्रयास कर रहा हूं की इस पोस्ट पर टिप्पणी में क्या लिखूं। अपनी भी बहन की शादी के लिए पिता जी की स्थिति को देख रहा हूं... और अपनें आप को भी देख रहा हूं।

शायद बाज़ार हावी है, हर रीति पर... हर रस्म और हर धर्म पर। शब्द कम हैं और मन में बहुत कुछ आ रहा है...

हमेशा से यही रीति चली आ रही है...

Unknown ने कहा…

buri situation hai bhai...

hem pandey ने कहा…

सरकार को बेटियों की शादी की चिंता करने के बजाय उन्हें आत्म निर्भर बनाने की चिंता करनी चाहिए.

संजय भास्‍कर ने कहा…

Dev ji is mehgai ko dekh kar ye sab bada muskil lagta hai...


behen ki shadi ke liye
ढेर सारी शुभकामनायें.

Urmi ने कहा…

बेटा हो या बेटी हर बच्चे को अच्छी शिक्षा देने की ज़रुरत है फिर शादी के बारे में सोचना चाहिए! बहुत ही विचारणीय और चिंतापूर्ण आलेख प्रस्तुत किया है आपने !

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
आमीन जी
hem pandy ji main aap se sehmat hoo....

मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
धन्यवाद
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,
Babli ji

शादी से पहले तो बेटी की शिक्षा की चिन्ता करनी चाहिए |


मेरे ब्लॉग बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
धन्यवाद
संजय भास्कर

Asha Lata Saxena ने कहा…

अपने बहुत सटीक लिखा है |सच में मंहगाई ने अच्छों की कमर तोड़ दी है तब बिचारे गरीब का क्या हाल
होगा यह प्रश्न बिचारणीय है |अच्छी पोस्ट के लिए बधाई |
आशा

शरद कोकास ने कहा…

विवाह संस्था का आरम्भ परिवार को व्यवस्थित करने के लिये हुआ था । इस प्रक्रिया को प्रदर्शन का बायस बना दिया गया । ग़रीब इस प्रदर्शन की होड में अपनी क्षमता से अधिक खर्च करने लगा ।उसमे दहेज जैसी कुरीतियाँ जुड़ गईं सरकार ने इस समस्या के मूल में ध्यान देने के बजाय इसका राजनीतिक लाभ लेना शुरू किया । इस तरह यह समस्या अब एक परम्परा बन गई है और इसका समाधान सिर्फ पढ़े-लिखे और प्रगतिशील सोच के युवा ही कर सकते हैं यह प्रण करके कि वे अपने विवाह को अत्यंत सादे ढंग से करेंगे कोई अनावश्यक खर्च नहीं करेंगे और दहेज या उपहारों का बहिष्कार करेंगे ।
सवाल यह है कि क्या ऐसे युवा हैं ?????????

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

main kahti hu kya har baat k liye sarkar ka ya auro ka hi muh dekhte rahenge...kya yuva varg iske liye dahez na lene ki pratigya karke aage nahi aa sakta? har koi dusre ki ungli pakad k peechhe chalna chaahta hai? koi aage aa kar ye kyu nahi kahta ki ham bina dahej k hi shadi karenge? aap bhi aaj usi varg me khade hai. kya aap pratigya kar sakte hai? kya aap apne parents ko is baat k liye mana sakte hai ki bina dahej k vo apne baccho ki apne ladko ki shadi kare? kahin se to shuruaat kijiye.

aaj aap shuruaat karenge tabhi to kal jab aapki behen/betiya byahi jayengi to aap vinamr nivedan to karne ke kam se kam hakdar honge ki aap apni behen/betiyo ki bina dahej k shadi karana chaahte hain.

Shah Nawaz ने कहा…

बहुत ही ज्वलंत मुद्दा उठाया है आपने भास्कर साहब. सरकार सिर्फ आंकड़े भरने के लिए कार्य करती है, अगर जनता के लिए करती तो उसका असर थोडा ही सही, परन्तु दिखाई अवश्य ही देता.

मेरे विचार से दो बातें इस विषय में अवश्य होनी चाहिए. एक तो दहेज़ पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लग्न चाहिए, दूसरी बात यह कि विवाह समारोह में खाने देने पर भी पूर्णत: प्रतिबन्ध लगना चाहिए ताकि गरीब से गरीब भी अपनी बेटियों का विवाह कर सके तथा साथ ही साथ फ़िज़ूल खर्ची तथा अनावश्यक दिखावे पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सके.

स्वाति ने कहा…

आपने विचारणीय मुद्दा उठाया है .सटीक पोस्ट ..

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,

Asha ji @ Sharad ji -DAHEJ PRATHA-
ka baghiskar jaroori hai @

Anamika didi apne sahi kahi aaj hum shuruaat karenge tabhi to kal jab humari behen/betiya byahi jayengi

धन्यवाद
Shah nawaz ji @ Swati ji


मेरे ब्लॉग से जुड़ने और मेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
धन्यवाद
संजय भास्कर

Kulwant Happy ने कहा…

बहुत संवेदनशील मुद्दा उठाया है। ऐसे ही निरंतर जारी रखना।

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

ati-sanvedansheel muddaa uthaane ke liye aabhaari hoon.
aise hi mudde uthaate rehiye.
dhanyawaad.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

arvind ने कहा…

bahut hi sahi mudda uthaayaa hai aapne. vaise sedh ki nakammi sarakar se ummid karanaa bevakufi hai.....han yadi yuva varg aage aaye our yuvak pran le ki dahej nahi lenge our ladkiya bhi sapath khaaye ki dahej dekar shaadi nahi karen to revolution aa jaayega. main sochta hun. aisa ho sakta hai.........i have taken the oath that i will never take dowry and never negotiat for that in my life......is there anybody jo mera saath de.... but i m sure log aayenge.......

बालमुकुन्द अग्रवाल,पेंड्रा ने कहा…

प्रस्तुत तथ्य विचारणीय है !

आचार्य उदय ने कहा…

वत्स
सफ़ल ब्लागर है।
आशीर्वाद
आचार्य जी

chakresh singh ने कहा…

ye vichaar dahej pratha ko dyaan mein rakh kar aapne saamne rakha hia ya sarkaar ki nitiyon ko, ye main abhi bhi nahi samajh paaya hun...mengaagi ka badna ek vishay hai aur shaadi vyaah mein ladki ke pariwaar se maagai gayi mooti rakam ek vishay hai...dono hi aaj ke samaj mein gambheer vishay hain aur dono se nibatane ke liye aam janata ko hi aage aana hoga...jo janata aise logon ko chief minister ki gaddi par bithati hai jo apne janam dinnon par karodon ki noton ki maalayen pahente jara bhi nahi sharmate, yaa pashoowon ka chaara nigal jaate hai to sarkaar par dosh madna theek to nahi...aam janta aage aayegi aur ek bada badlaav laane ki pahel karegi tabhi aaj ki stiti se nikala ja sakta hai....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

संजय जी आपने विचारणीय मुद्दे की और इशारा किया है.

यहाँ दो-तीन चीज़ें आपस में उलझी हुई है. सरकारी घोषणा और उनका जमीन तक न पहुंचना,
गरीब लड़की की शादी से पहले और जो बुनयादी जरुरत उसे चाहिए, उसको प्राथमिक लक्ष्य बनाना. परन्तु लालफीताशाही है. सामाजिक सुधार के लिए युवाओं में हिम्मत का अभाव

बाज़ार के खिलाडयों और भ्रष्टाचारों के कारण सोना/आभूषण ग़रीब परिवारों के लिए अत्यंत मुश्किल हो गया है. एक तरफ सामान्य चीज़े भी मह्नागी होती जा रही है और ऐसे में रस्मो रिवाज के महंगे चीज़ भी आसमान की तरफ भाग रहे हैं.

सरकार को चाहिए की वे इस ओर ज्यादा ध्यान दें जैसे निशुल्क कुशल शिक्षा व्यवस्था और सस्ते वोकेशनल ट्रेनिंग से स्थितियों में सुधार हो सकती है. हमारे आपके लिए चुनौती है "दिखावे के समाज को ठेंगा दिखाना" जो की व्यापक जनजागरण से संभव है.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

.

इस पोस्ट से याद आया की हमारी संस्था इस दिशा में भी काम रही है.

जुलाई माह में ५१ ग़रीब कन्या का सामूहिक विवाह कार्यक्रम तय हुआ है, विस्तृत जानकारी के लिए लिंक देखें.
www.maavaishnoseva.com

Khare A ने कहा…

ek bahut hi bhayankar samajik burai ki aur dhyan kheenchti hui lekhni,

badhai bahut bahut

आचार्य उदय ने कहा…

आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,

Kulwant bhai @ Chander soni ji @ Arvind ji sarkar se koi umeed hi mat rakhna @ Bal Mukund peda ji @ Acharya ji apa sabhi asirwad raha to jaroor safal banuga



मेरे ब्लॉग से जुड़ने और मेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
धन्यवाद
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,

Chakresh bhai @ Sulab ji Yuva sath denge to sari samasyae hal ho jayegi
Apke diye link par jaroor jauga...

Alok ji @ dobara se dhanyawad Acharya ji


मेरे ब्लॉग से जुड़ने और मेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
धन्यवाद
संजय भास्कर

हर्षिता ने कहा…

प्रासंगिक पोस्ट है।

Unknown ने कहा…

सच में मंहगाई ने अच्छों की कमर तोड़ दी है तब बिचारे गरीब का क्या हाल
होगा यह प्रश्न बिचारणीय है

Unknown ने कहा…

विचारणीय और चिंतापूर्ण आलेख प्रस्तुत किया है आपने !

Unknown ने कहा…

सामजिक सोच में परिवर्तन की ज़रूरत है1यदि हम बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा करने की चिन्ता करें तो फिर शादी कोई चिन्ता ही नहीं रह जायेगी.

ajeet ने कहा…

bahut hi sahi mudda uthaayaa hai aapne. vaise sedh ki nakammi sarakar se ummid karanaa bevakufi hai.....

Manish ने कहा…

iss topic par kuchh kahne se achchha hai..... ki kuchh kiya jaay....

lekin kya???

isii Q. ka ans. ham sabhi khoj rahe hain.... but life ki iss tezzii me Q. apni jagah hai, ANS. apni jagah aur ham apni jagah.....

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,

Harshita didi @ karan ji @ Amit ji @ Ajeet ji @ Manish ji

मेरे ब्लॉग बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
धन्यवाद
संजय भास्कर

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

bahut umda baat ki

Asha Joglekar ने कहा…

Wicharneey mudda hai . iska ek hee samadhan hai ki har ma bap betiyon ki shadee ki chinta chod unke padhaee ki chinta karen aur apne pairon par khada hone ki shiksha den.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

sarkar ko koshne se nahi hoga........karrti to hai.....kuchh achhhi yojnayen bhi aati hai........bas janta ko jagne ki jarurat hai........aur sayad wo din aane wala hai.....

aapne ek jwalant mudde pe likha hai

saprem!!

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

विचारणीय और चिंतापूर्ण आलेख...

prithwipal rawat ने कहा…

Bahut Khoob ji!

Garib Ki beti,
dalidar hoti hai,
ghar ka
dwar ka
sansaar ka
uska sondarya
garibi ki lash tale
daba rahta hai umr bhar!

सुनील गज्जाणी ने कहा…

संजय जी ,
प्रणाम !
आपने विचारनीय लेख दिया है ,क्षमा चाहुगा ये कहने के लिए की हर माँ - बाप अपनी बेटी की शादी करता है और उसका पहला खवाब ये ही होता है की बिटिया की शादी हो जो अपनी हैसियत के अनुसार करता है , मगर मेरा एक सवाल है की क्या माता -पिता अपनी संतान की उत्पति किसी के भरोसे करता है ? शायद वो अपने सग्गे भाई के भरोसे भी अनहि रहता तो फिर सर्कार के भरोसे वो क्यूँ रहे ? सब का अपना भाग्य होता है जिसे जितना लिखा हो उतना ही प्राप्त होगा !
आभार

अन्तर सोहिल ने कहा…

आदरणीय संजय जी
गरीब को बेटे की शादी भी करनी होती है। क्या शादी के लिये सोना जरूरी है। क्या शादियों के लिये पैसे वालों की तरह दिखावा जरूरी है?
कौन-कौन सी सुविधा मिलनी चाहिये जी, सरकार द्वारा/ कुछ इस बारे में भी तो बताते।

एक गुजारिश है जी आपसे टिप्पणी पाने के लिये टिप्पणी ना किया करें।

प्रणाम

sumit ने कहा…

garib kha le yahi badi baat hai
sanjay ji
saadi to door ki baat hai

बेनामी ने कहा…

vicharaniy hai

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत विचारणीय मुद्दा पर किसी एक को दोष देने से कुछ नहीं होने वाला हम सब ही कहीं न कहीं बराबर के हिस्सेदार हैं

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सचमुच यह एक विस्फोटक स्थिति बन रही है...
--------
क्या आप जवान रहना चाहते हैं?
ढ़ाक कहो टेसू कहो या फिर कहो पलाश...

राज चौहान ने कहा…

सरकार को चाहिए की वे इस ओर ज्यादा ध्यान दें जैसे निशुल्क कुशल शिक्षा व्यवस्था और सस्ते वोकेशनल ट्रेनिंग से स्थितियों में सुधार हो सकती है. हमारे आपके लिए चुनौती है "दिखावे के समाज को ठेंगा दिखाना" जो की व्यापक जनजागरण से संभव है.

राज चौहान ने कहा…

..संवेदनशील मुद्दा उठाया है।

Unknown ने कहा…

अगर दहेज़ प्रथा और पारंपरिक विवाह प्रक्रिया को ख़त्म किया जाए तो हर ग़रीब की बेटी की शादी स्वयं हो जाएगी| सामजिक सोच में परिवर्तन की ज़रूरत है| सार्थक लेखन, शुभकामनाएं!

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,

Sanjay ji @ Asha joglekar ji @ Mukesh sinha ji @ Firdaus khan ji @ Sneh ki pati ji @
Sunil Gjjani ji main apse sehmat hoon jinta likha hai use milega
@ Anter sohil ji @ Sumil ji @ Rachna ji @ Racna didi @ jakir ali ji @ Raj kumar ji @ Parveen ji sahi kaha dahej partha khatam hone par hi sab ho sakega

मेरे ब्लॉग बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
धन्यवाद
संजय भास्कर

Unknown ने कहा…

मेरे विचार से दो बातें इस विषय में अवश्य होनी चाहिए. एक तो दहेज़ पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लग्न चाहिए, दूसरी बात यह कि विवाह समारोह में खाने देने पर भी पूर्णत: प्रतिबन्ध लगना चाहिए

Unknown ने कहा…

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है !

dhanyawaad
Tilak

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सहज सरोकार का आलेख... सरकार करना तो चाहती है लेकिन सिस्टम इतना जंग खा चूका है कि नीतियां जमीन तक नहीं पहुँच पाती... सुंदर रचना..

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

देश कदम कदम पर समस्याओं से जूझ रहा है... इससे नई रौशनी चाहिए... इच्छा शक्ति वाले नए लोग जब सिस्टम में आयेंगे तभी कुछ हो सकता है... प्रशंशनीय प्रस्तुति...

मेरे भाव ने कहा…

saarthak post! badhai ho

बेनामी ने कहा…

प्रशंशनीय प्रस्तुति... इस पोस्ट के बहाने आपने हमारा ध्यान एक ज्वलंत मुद्दे की ओर आक्रिस्थ किया है

NEVER HANG THE BOOT ने कहा…

pehli baar apke blog par aaya... aur kai sunder aur saarthak rachna padhne ko mili... badhai ho

IMAGE PHOTOGRAPHY ने कहा…

बधाई हो शतक के लिये

IMAGE PHOTOGRAPHY ने कहा…

आज गरीबो की शादी को लोगो ने मजाक बना दिया है , उसमे सरकारी अमला भी पीछे नही है पैसे तो उपर से चलते तो है मगर आम लोगो के पास नही आ पाता है आजे के काला बाजारी ने गरीबो का जीना मुहाल कर दिया है।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

संजय जी आपके ब्लॉग पर ताजा पोस्ट पर शतक का सैकड़ा पूरा करने पर बधाई... कम समय में यह ए़क बड़ी उपलब्धि है... मुबारक हो... कम शब्दों में कहू.. तो आप... हिंदी ब्लोगिंग संसार के सचिन तेंदुलकर है... कई और शतक आपका इन्तजार कर रही हैं... अपने ब्लॉग मिशन को बनाये रखे.. नए नए विषय पर लिखते रहे... हमारी यही कामना है... सचिन के दोहरे शतक की भांति हमे आपके कमेंट्स के दोहरे शतक की प्रतीक्षा है... इक बार फिर बधाई !

sid ने कहा…

Mujhe nahi lagta ki sirf garibo ki betiyo ko byahna hi humara uddeshya hona chahiye. Asal uddeshya to garibo ko rojgar dilwa kar unhe garibi se mukt karne ka hona chahiye

girish pankaj ने कहा…

ekdam sahi chintaa hai. aane vale samay me gareebo ka jeena kathin hotaa jayega. shadeee karanaa to door kee baat hai. jeene ka samaan jutanaa mushkil ho jayega.

संजय भास्‍कर ने कहा…

धन्यवाद ,

Tilak ji @ Arun ji @ Mere bhav ji @ Benami @ Never hand boot @ Dheeraj bhai Sid ji @ Griesij Pankaj Ji

मेरे ब्लॉग बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
धन्यवाद
संजय भास्कर

Saumya ने कहा…

asambhav sa dikhta to hai par ham aasha kar sakte hain!

Neelam ने कहा…
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Neelam ने कहा…

betiyon ki shaadi se pahle unhe shikshit karne ke baare main sochna chaahiye.ye sach hai, lekin dahej roopi daanav ko hum main se koi bhi maar nahi paaya aaj tak.
aur isi liye betiyon ke vivaah ki chinta har aam aadmi ko sataati hai aur sataati rahegi.

ज्योति सिंह ने कहा…

sabne sab kuchh kah diya ab kya dohrau ,haa itna kahoongi ki kisi bhi niyam ke prati har ek ko wafadaar hona jaroori hai nahi to suvidhaye chahe jitni bhi pradaan ki jaaye pahunch se sada door rahengi .

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

Well.....Sanjay ji ......I Went through your blog first time. It feels great to be here . you raised a quite genuine issue. Though there is no simple solution
of this problem. But still we can hope. it's socioeconomic problem.
So solution can come considring these points. Thanks for this genuine article.

Unknown ने कहा…
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