17 मार्च 2010

मजबूत नींव के कमजोर रिश्ते

मजबूत नींव के कमजोर रिश्ते


एक या दो जेनरेशन यानी कि पीढि़यों के बीच के बीच अंतर के फासले को जेनरेशन गैप कहते है। आम भाषा में तो ये सिर्फ उम्र के फासले के रूप में ही नजर आता है। लेकिन ये सिर्फ उम्र का फासला नहीं होता है। ये सोच, पसंद, नापसंद, जिंदगी जीने के अंदाज, रहन-सहन और न जाने कितनी ही चीजों का फासला होता है। यह वह कारण है जिसकी वजह से अभिभावक अपने बच्चों को और बच्चे अपने अभिभावकों को समझ नहीं पाते।
जिम्मेदार कौन-
कई बार इन बातों को सोच कर मन में ख्याल आता है कि आखिर इस जेनरेशन गैप का जिम्मेदार कौन है। वो अभिभावक जो सदियों से अपनी सोच के सहारे एक सफल जिंदगी जीते आये है। जो ये नहीं चाहते जिन रास्तों पर चल कर उन्होंने ठोकरे खाई है, वहां पर उनके बच्चे भी चल कर ठोकर खाये और टूटे। या फिर वो युवा जो आज की तेज रफ्तार जिंदगी से कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते है। जो अपने हर रिश्ते को साथ लेकर चलने की चाहत रखते है। जिनके लिए उनके पेरेट्स के साथ-साथ दोस्त, कलिग्स भी मायने रखते है। जो ढलती उम्र में ये नहीं कहना चाहते 'काश, मैंने ये किया होता..' जो अपनी जिंदगी से इस 'काश' शब्द को मिटा देने की चाहत रखते है।
क्यों नहीं समझ पाते-
जेनरेशन गैप का एक बहुत बड़ा कारण कम्युनिकेशन गैप है। आजकल के युवा अपने अभिभावकों से ज्यादा अपने दोस्तों को तरजीह देते है। उन्हे खुद के ज्यादा करीब पाते है। पर जब भी कुछ डिसकस करने बैठो खत्म बहस से ही होता है, तो इससे बेहतर तो यही है न कि उनको ज्यादा इंवाल्व ही न किया जाय। जब हम झूठ बोलते है, तो उन्हें सच लगता है और सच बोलते है तो झूठ। कुछ भी कर लो उन्हे अपनी बात समझाना नामुमकिन है। क्या ये जरूरी है कि जो हमारे लिए इम्पोर्टेस रखे वो उनके लिए भी रखे। नहीं न जब हम ये शर्त नहीं रखते तो फिर वो क्यों रखते है। वो हमें समझने की कोशिश ही नहीं करते। अपनी ही बात पर अड़े रहते है। हमारी बात सुनते तो है, पर समझते नहीं।'
माँ बाप कहते है  कि 'हमें पता है कि बच्चों के लिए क्या सही है और क्या गलत क्योंकि हमें जिंदगी का तजुर्बा है। हम नहीं चाहते जो गलती हमने की वे भी वहीं करें और फिर पछताए। लेकिन बच्चे तो बात ही नहीं सुनते।' ये दोनों ही पीढ़ी अपनी-अपनी जगह सही है। दोनों की अपनी सोच है जो आपस में कहीं भी मेल नहीं खाते है। क्योंकि अभिभावक अपनी परंपराओं का दामन नहीं छोड़ पा रहे |
बच्चो के जवाब पर उनकी  मम्मी दंग रह जाती । कब कहां, कैसे ओवर कान्फिडेस होना रूडनेस बन गया।  'बहुत सोचने पर लगा शायद हम ने ही उसे इतने दूर चले जाने की इजाजत दी थी। हर जगह बच्चों की च्वाइस को तवज्जाों दो तो वे आपको ही एक दिन गलत ठहरा देता है।'
वास्तव में, दिल कचोट उठता है माता-पिता का जब उन्हे अपने बच्चों से ऐसा व्यवहार मिलता है। बचपन से जब बच्चों को अपनी पसंद की चीजें चुनने की आजादी दे दी जाती है, ऐसे में यह कोई आश्चर्य नहीं कि बड़े होने पर वही बच्चे पेरेंट्स की च्वाइस को ही रिजेक्ट कर दें।
हर घर में बच्चों का अलग कमरा होता है। जहां उनकी जरूरत की सारी चीजें सुविधा के लिए रख दी जाती है। पढ़ना हो या-सोना उन्हे कमरे से बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। यहां तक की फुर्सत मिली तो इंटरनेट या दोस्तों से हो रही मोबाइल फोन पर बातचीत कमरे के बाहर कदम नहीं रखते। ऐसे में धीरे-धीरे वहीं कमरा उनकी छोटी-सी दुनिया बन जाता है। 'प्राइवेसी' अहम हो जाती है। जिसे लांघने की इजाजत किसी को नहीं।
बच्चों के पास यदि समय होता है तो वे टीवी देखते है। टीवी, नेट, मोबाइल, पढ़ाई के बीच बसी इनकी अपनी दुनिया सबसे अहम है। यहां पेरेंट्स को यह सोचने की जरूरत है कि क्या जो आजादी आज वे अपने बच्चों को दे रहे है कल क्या उसकी कीमत चुकाने को वे तैयार हैं? आज के बच्चे मानसिक व भावनात्मक रूप से पिछली जेनरेशन से अधिक मजबूत है। ऐसे में यह कहना तो ठीक नहीं कि उन्हे दी गयी आजादी कल को महंगी पड़ेगी। मगर हमें बच्चों के साथ स्ट्रिक्ट नहीं बल्कि फ्रेंडली होने की जरूरत है। वरना ये कोल्ड वार जेनरेशन गैप के सिवा कहीं और नहीं ले कर जाएगी। इसीलिए यह जरूरी है कि बच्चों के साथ समय गुजारा जाये। साथ समय बिताने से आप न केवल उनकी छोटी-बड़ी प्राब्लम साल्व कर सकते है बल्कि उन्हे सही-गलत के बारे में भी बता सकते है। आप उनकी अपनी बसायी अलग दुनिया में पेरेण्टस के साथ दोस्त की भूमिका भी अदा कर पाएंगे।
ऐसा कैसे हो सकता है कि इस समस्या का समाधान न हो। आज के इस जेनेरेशन गैप और कम्युनिकेशन गैप के बीच भी कुछ पेरेंटस और बच्चे ऐसे हैं जिन्हें ये शब्द छू भी नहीं पाते है। जो इन सबसे परे है। लेकिन इन पेरेंट्स का ये मानना है कि अगर आप इस गैप को भरना चाहते हैं तो पहल तो बड़ों को ही करनी होगी।

29 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

sahi kaha aapne generation Gap ke liye Communication kayam na rakhna bahut badi samasya hai

रानीविशाल ने कहा…

Bahut bhadiya aalekha ..ek dum sarthak bat kahi hai aapane!

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत बढ़िया लेख । शुभकामनायें

गुलमोहर का फूल

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!

Renu goel ने कहा…

सही कहा , पहल तो बड़ों को ही करनी चाहिए , हमारा एक कदम आगे आना ही काफी है ... मगर बढ़ाएं तो सही

Unknown ने कहा…

सही

Unknown ने कहा…

bahut achchhi baaten hain..

Kapil Sharma ने कहा…

aaha bahut hi rochak prastuti

aur aapke visit ke dhanywaad sanjay ji :)

कडुवासच ने कहा…

...प्रभावशाली लेख!!!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बेहद सार्थक और सटीक आलेख.

रामराम.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Ek dam sahee

EKTA ने कहा…

bilkul sahi kaha aapne gen gap aaj 1 prob ban gaya hai..parents ko jarurat hai bacho ko waqt de or unki feelings ko samjhne ki koshish kare..

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत प्रभावशाली लेख है बधाई

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut uchit vishay ...... aur bahut badhiyaa

राज चौहान ने कहा…

..प्रभावशाली लेख!!!

राज चौहान ने कहा…

BEHTREEN LEKH HAI BHAI

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

bahut hi khoobsurat va prabhavshali aalekh.

समयचक्र ने कहा…

विचारणीय बहुत बढ़िया आलेख प्रस्तुति ...

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

अच्छा चिंतन किया है!

Akanksha Yadav ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति..चिंतनपरक लेख..
__________________
"शब्द-शिखर" पर - हिन्दी की तलाश जारी है

Urmi ने कहा…

बिलकुल सही बात का ज़िक्र किया है आपने! बढ़िया आलेख!

राज चौहान ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति..चिंतनपरक लेख..

S R Bharti ने कहा…

बहुत ही सार गर्भित लेख ,
अपनी गलतियाँ सुधारने का बहुत ही सुंदर और उपयोगी सुझाव ! धन्यवाद

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

bahut hi vichaarniye lekh likhaa hain aapne.
aabhaar.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Unknown ने कहा…

बहुत प्रभावशाली लेख है बधाई

बेनामी ने कहा…

मेरी सारी दौलत , खोखले आदर्श,
नकली मुस्कराहट
सब छीनकर,
दो पल के लिए ही सही
मेरा बचपन लौटा देती है माँ...

Unknown ने कहा…

सार्थक और सटीक आलेख.

priyankaabhilaashi ने कहा…

सुन्दर..!!!

Himkar Shyam ने कहा…

सुंदर, सार्थक और विचारणीय...