03 मई 2014

वक्त के साथ चलने की कोशिश -- वन्दना अवस्थी दुबे :)

ब्लॉगजगत में वन्दना अवस्थी दुबे एक जाना पहचाना नाम है (अपनी बात -- वक्त के साथ चलने की लगातार कोशिश है वंदना जी की ) से प्रभावित है ! वंदना दुबे जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है ....हमेशा ही संवेदन शील विषय पर किस्सा कहानी हमेशा ही दिल को छूकर गुजरता है और हमेशा ही कुछ नया और छाप छोड़ता हुआ विषय चाहे कोई भी हो शब्द बनते चले जाते है  क्योंकि उनका मानना है वक्त के साथ ही चलने में भलाई है और मुझे तो हमेशा ही उनकी हर पोस्ट से एक नई प्रेरणा मिलती है..........!!!


एक लम्बे समय से मैं वंदना दीदी के ब्लॉग पढ़ रह हूँ परिकल्पना समारोह लखनऊ में उनसे मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था और उनसे मिल कर बहुत प्रभावित हुआ और आज समय मिलते ही सोचा वंदना जी के बारे में कुछ लिखा जाये
क्योकि उनके लिखने का अंदाज ही ऐसा है कि पाठक अपने आप ही उनके ब्लॉग पर खिंचा चला आता है....उनके लेखन ने हमेशा ही प्रेरणा मिली है  ब्लॉगजगत को प्रभावित किया है और उनके अपार स्नेह के कारण ही आज ये पोस्ट लिख पाया हूँ...!!!

वंदना दुबे जी की एक पुरानी रचना दो घड़ी का सन्नाटा ,हम कहाँ से पायें? की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ.............!!

मुट्ठी भर दिन
चुटकी भर रातें,
गगन सी चिंताएँ,
किसको बताएं?
जागती सी रातें,
दिन हुए उनींदे,
समय का विलोम
कैसे सुलझाएं?
भागती सी सड़कें,
खाली नहीं आसमान,
दो घड़ी का सन्नाटा ,
हम कहाँ से पायें ?

वंदना दीदी की लेखनी से प्रभावित होकर ही आज उनके के बारे में लिख पाया हूँ ...पर शायद किसी के बारे में लिखना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है......!!

सुंदर लेखन के लिए वंदना दीदी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ........!!


(C) संजय भास्कर

21 अप्रैल 2014

अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती -- संजय भास्कर



अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती। शहर में आजकल वो बात ही नहीं पर पर अभी कुछ साल पहले तक जब  भी जब गाँव जाता था देखा करता था हर सुबह दादी और चाची आंगन में चावल साफ़ करती है  तो आंगन की मुंडेर पर कुछ गौरैया अपने आप ही मंडराने लगती है और चाची के थाली लेकर हटते ही गौरैया आंगन में बिखरे चावलों पर टूट पड़ती थी पर अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती !
बटेर अब कभी-कभार ही दिखते है। वनों की कटाई और वन क्षेत्र में बढ़ते मानवीय दखल से पंछियों की दुनिया प्रभावित हुई है और पंखों वाली कई खूबसूरत प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है ! 
'मसूरी की पहाड़ियों की सैर करने वाले सैलानियों के लिए बटेर एक खास आकर्षण होती थी। अब कभी कभार ही यह बटेर नजर आती है। यह लुप्त होती जा रही है। हर घर के आंगन में गौरैया को फुदकते हुए देखा जाता था। आज गौरैया नजर नहीं आती....!!!


( c)  संजय भास्कर 



02 अप्रैल 2014

.............कल्पना नहीं कर्म :))

कल शाम जब मैं अपने ऑफिस से घर के लिए निकला तो देखा एक कॉफी शॉप पर कुछ युवा मदहोश होकर धूम्रपान कर रहे है व नशे में डूबे हुए है तथा थोड़ी ही देर में एक दूसरे को गलियां  देने लगे व मार पीट पर उतर आये 
जो कुछ देर पहले तक एक दूसरे के साथ मदमस्त थे वही एक दुसरे को मारने पर उतारू है यह सब देख कर यह छोटी सी कविता लिखी है.........उम्मीद है आपको पसंद आएगी  !!!
चित्र :- ( गूगल से साभार  )
कॉफी हाउस में बैठा
आज का युवा वर्ग
मदहोश , मदमस्त, बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
तो ऐसे कंधो पर
देश का बोझ
कैसे टिक पायेगा ? जो
या तो खोखले हो गये है
या जिनको उचका लिया गया है
ए - दोस्त -
बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढी आँखों से...........!!!

(c) संजय भास्कर


15 मार्च 2014

........ धूम मची है चारो ओर:))


धूम मची है चारो ओर
इस जग में
क्योंकि आज होरी है
होरी है जी होरी है
रंग बिरंगी होरी है
रंग बिरंगे सजे है सभी
प्यार के रंगों में सभी
खूब उड़ाओ गुलाल
मिलकर सब
ढोल मंजीरा बजा कर
गाओ फाग
चारों और फैला दो
होरी का राग
सखा - सहेली बनाओ मिलकर होली
खेलो मिलकर सब प्यार की होली
वैर भाव को कोसो दूर रखो आज
गले लग सबके
बढाओ प्यार की मिठास ......!!!!


-- संजय भास्कर


25 फ़रवरी 2014

खुशकिस्मत हूँ मैं एक मुलाकात मृदुला प्रधान जी से - चलो कुछ बात करें :))

आकाशवाणी पर कुछ साल पहले कवितायेँ सुनने का बहुत शौक हुआ करता था उन्ही दिनों मृदुला जी की रचनाओ का प्रसारण सुना फिर कुछ समय बाद मृदुला जी के ब्लॉग से परिचय और रोज़  मर्रा की छोटी-२ सरल कविताये पढ़ने को मिली और समय के साथ उनकी कविताओं को पढ़ने की भूख बढ़ती गई और उनके संग्रह मंगवा कर पढ़ा और उनका प्रशंसक बन गया .....और मन में सोचने लगा जिंदगी में कभी तो मृदुला जी से मिलना होगा ही पर अंतरजाल पर चार साल तक जुड़े रहने के बाद आखिर उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो गया.....मृदुला जी से मिलना एक प्रसन्नता का क्षन बन गया जैसा की अक्सर होता है जब किसी बड़े रचनाकार से मिलने पर होता है उनसे मिलकर उनके बारे में ज्यादा जानने को मिला ......!!

मृदुला जी से मिलने पर कुछ पंक्तियों ने मन में ऐसे जन्म लिया  :-

उनकी ममता बहुत प्यारी थी 
उनका आँचल बहुत सुंदर था 

मैं एक छोटे शहर से आया था 
उनकी ऊँगली थामे मैं पहुच गया 

उनके घर तक था  !!

मृदुला प्रधान जी का कविता संग्रह " चलो कुछ बात करें " एक प्रकृति प्रेमी का संग्रह है जिसमे कवयित्री अपनी हर बात को प्रकृति को माध्यम बनाकर कहने की कोशिश की है .....बसंत मालती " हो या..... बरसात की रात .... या फिर.... पेड़ों के पीछे अलसाया.... होली का त्यौहार... ओस ..... गुलमोहर की... या...महानगर की धुप " जाने कितनी ही कवितायेँ और हैं जहाँ प्रकृति के रंगों की छटा के साथ दिल के रंग भी उकेरे हैं कवयित्री ने अपने आप में कुछ अलग सा  प्रकृति को देखने और समझने के नज़रिये को भी प्रस्तुत करता है कि कितना कवयित्री का जुड़ाव प्रकृति के हर अंग से है फिर मौसम हो या ज़िन्दगी सबका अपना एक परिवेश है , संरचना है जिनका सीधा सा सम्बन्ध मानव जीवन से है ! 
कुछ प्रकृति से परिचित करती रचनाओं की एक झलक देखिये :
....सूरज की पहली किरण में -- चलो स्वागत करें ऋतु बसंत का.......बादलों के साथ भी उड्ने लगा हूँ.......... मजूरों की रोटी .... मानवीय संवेदनाओं की जीती जागती मिसाल है जहाँ मेहनत की रोटी के स्वाद की बात ही कुछ और होती है को इस तरह दर्शाया है कि आज की हाइटैक होती ज़िन्दगी की सुविधायें भी बेमानी सी लगती हैं एक सजीव चित्रण 
.........थाक रोटी की बडी सोंधी नरम लिपटे मसालों में बना आलू गरम ..... गर्म रोटी... फ़ाँक वाले आलू 
 " विदेशी भारतियों के नाम " एक ऐसी कविता है जिसका चित्रण बेहद खूबसूरती से किया गया है :
" सर्द सन्नाटा" समय के बोये अकेलेपन के बीजों को बिखेरने की व्यथा है ताकि खुद से मुखातिब हुआ जा सके और रूह की गहराई तक उतरा सर्द सन्नाटा कुछ कम हो सके फिर चाहे उसके लिए कुछ लिखना ही क्यों न पड़े!


मृदुला जी का लेखन का का कमाल है मेरी और से श्रीमति मृदुला जी तीनो काव्य संकलनो के लिए हार्दिक बधाई व ढेरो शुभकामनाएं देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ !! 

देवलोक प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह को प्राप्त कर सकते हैं :

पुस्तक का नाम –  चलो कुछ बात करें
रचनाकार --    मृदुला प्रधान
पुस्तक का मूल्य – 299/
आई एस बी एन – 81-89373-11-0
प्रकाशक - देवलोक प्रकाशन 1362  कश्मीरी गेट दिल्ली -110006

रचनाकार का पता :-
मृदुला प्रधान
डी ---191, ग्राउंड फ्लोर 
साकेत , नयी दिल्ली --११००१७

-- संजय भास्कर  
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