28 अप्रैल 2010

जारी है सिलसिला सरहदों पर

 दो आतंकी ढेर
दो जवान शहीद
कुल मिलाकर
चार घरों में अँधेरा
दो इधर तो दो घर उधर
जारी है अभी
सिलसिला
सरहदों पर 

..आमीन..

26 अप्रैल 2010

जिंदगी एक चाहत का सिलसिला है

 जिंदगी एक चाहत का सिलसिला है ,
कोई मिल जाता है तो कोई बिछड़ जाता है  
जिसे मांगते है हम अपनी दुआओं में ,
वो किसी और को बिना मांगे ही मिल जाता है |

.....संजय भास्कर.... 

24 अप्रैल 2010

वाशिंग पाउडर के विज्ञापन में सलमान खान कुछ हट के करना चाहिए।

विज्ञापनों की दुनिया भी बड़ी अजीब है। कुछ का कुछ दिखाने की कुव्वत रखते हैं। इन दिनों एक नया विज्ञापन देख रहा हूं। वाशिंग पाउडर का। न्यू एक्टिव व्हील। शायद आपने भी देखा होगा। इसकी खास बात यह है कि इसमें सलमान खान के दो फोटो लगे हैं, जिनके हाथ में पाउडर के दो पैक हैं। कुछ फूलों से इस विज्ञापन को सजाने की कोशिश की गई है। लगता है किसी 'महान रिसर्चरÓ से शोध कराया गया होगा। उसने घर बैठे शोध किया और कुछ पन्नों की रिपोर्ट बनाई। इसी रिपोर्ट में सलमान जैसे किसी चेहरे को लेने की बात कही गई होगी। ओह... हे भगवान।
 अरे भई, यह तो हद है। कहा जाता है कि कुछ हट के करना चाहिए। लेकिन कुछ लोग हट के कुछ एेसा पका डालते हैं कि सबका हाजमा खराब हो जाए। यह विज्ञापन भी कुछ हजम नहीं हो रहा। इसके कुछ कारण हैं-
1. सलमान खान की एेसी छवि कभी नहीं रही कि वे एक वाशिंग पाउडर की एड करें।
2. एक आदमी उस चीज की एड करता है, जिसका इस्तेमाल और खरीद महिलाएं ही करती हैं। यदि महिलाओं को आकर्षित करना ही था तो कोई चॉकलेटी चेहरा लिया जाता।
3. विज्ञापन में केवल और केवल सलमान खान को दिखाया गया है। किसी क्वालिटी का कोई उल्लेख नहीं है। ये कहां की समझदारी है?
ये तो रहे मुख्य कारण। कुछ और भी होंगे। एक बात और, हो सकता है कि कंपनी उसी शोधकर्ता को फिर से यह रिसर्च करने का ठेका दे दे कि इस विज्ञापन के बाद कितनी ब्रिकी बढ़ी। और यह भी संभव है कि वह शोधकर्ता कुछ प्रतिशत बढ़ी ब्रिकी को अपने विज्ञापन की का असर बता दे। और हां, फिर मार्केट में कुछ और शोधकर्ता इसी लीक पर चल पड़ें।

23 अप्रैल 2010

सरकार हमसे उम्मीद कर रही है की हम बिजली बचायेंगे.


वो आती है तो पूरा शहर जश्न मनाता है. लोगों के चेहरे खिल जाते हैं. और उसके जाते ही हो जाता है सन्नाटा. न घर में चैन न बाहर. पर अफ़सोस की पहले इसने मोहाली से मुहं मोरा और अब चंडीगढ़ को भी दरसन देने कम कर दिये हैं. खूब नखरे दिखा रही है बिजली रानी. दिखाएँ भी क्यों नहीं. आखिर हमने उसे इतना सर जो चढा लिया है. हवा और पानी से जरूरी जो बना लिया है. एक दिन भूखे तो रह सकते हैं पर बिन बिजली के नहीं. अब पुरवाई से हमें शीतलता का अहसास नहीं होता. अपनी काया को तो कूलर की हवा लगनी चहिये. सूरज की रोशनी से अपना गुजारा नहीं होता बलब रोशन होना चाहिए. कोढ़ में खाज यह है की इसे बर्बाद करने के भी पुरे प्रबंध हमने कर लिए है. बचत अब हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं रही. जब हम पानी ही नहीं बचा रहे तो हमसे बिजली की बचत की उम्मीद करना बेमानी है. भले ही सरकार हमसे कितनी ही विनती करे की बिजली बचाओ, नही तो अँधेरे में रहना परेगा. कौन परवाह करता है. परसासन ने चंडीगढ़ में लॉन सिचने पर रोक लगाई है. फिर भी अपने लॉन की घास का गला तो हम रोज तर करतें हैं भले ही परोसी के बच्चे प्यासे रह जाएँ. और मुर्ख सरकार हमसे उम्मीद कर रही है की हम बिजली बचायेंगे. हमारा कम बिजली, पानी बर्बाद करना और फिर इनकी कमी होने पर सरकार को कोसना है.

22 अप्रैल 2010

ऐसे जल और घट रही है लकड़ी तो सास लेना भी होगा मुश्किल




हमारी आने वाली पीढि़या भी होली की मस्ती ले सकें, रंगों में सराबोर हो सकें और स्वच्छ वातावरण में होलिका जला सकें, इसके लिए हम सबको ही पहल करनी होगी। वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखना है तो लकड़ी कम जलानी होगी। होलिका सजाने के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की आपूर्ति या तो पेड़ काटकर की जाती है या फिर टाल से होती है।
ऐसे घट रही है लकड़ी
बड़े पैमाने पर पौधारोपण होने के बाद भी दस साल में वन आच्छादित या ट्री क्षेत्र में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।
ऐसे बढ़ रहा है प्रदूषण
इन दोनों स्थानों पर ग्रीन बेल्ट नहीं है, जिस कारण यह असर पड़ रहा है। कमोवेश यही स्थिति पूरे शहर की है।
ये पड़ रहा है असर
सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर हवा में मौजूद वे तत्व हैं जो त्वचा से लेकर फेफड़े तक के लिए सबसे घातक हैं। हर माह शहर में टीबी व फेफड़ों के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। देश में हर साल 42 हजार लोगों की मौत इसी बीमारी से हो रही है।
आइए संकल्प लें.
स्वच्छ हवा में अगर हम सास नहीं ले पा रहे हैं तो इसके लिए कोई दूसरा नहीं काफी हद तक हम खुद जिम्मेदार हैं। कभी विकास के नाम पर तो कभी परंपराओं को निभाने के लिए प्रकृति की प्यारी वस्तु पेड़ों को काटते रहे हैं। होली के पर्व पर आइये हम सब मिलकर कम से कम एक पौधा रोपने का संकल्प लें और प्रण करें कि होली पर वृक्षों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। धरती हरी भरी रहेगी तभी तो हमें स्वच्छ हवा मिलेगी।