14 अक्टूबर 2022

मेरी कलम से संग्रह समीक्षा टंगी खामोशी .....रचना दीक्षित

पुस्तक चर्चा कुछ मेरी कलम से टंगी खामोशी संग्रह समीक्षा.....लेखिका रचना दीक्षित :)

कुछ दिनों से व्यस्तताएँ बढ़ गई है पर व्यस्त जीवन से कुछ समय बचाकर....आज दीदी रचना दीक्षित जी के संग्रह "टंगी खामोशी" की चर्चा......पहले रचना दी के संग्रह की कविता.......विकास की इबारत पढ़ते है फिर आगे

विकास की इबारत
आज कल देखती हूँ 
हर शाम
लोगों को बतियाते, फुसफुसाते
जाती हूँ करीब
करती हूँ कोशिश
सुनने की समझने की
कि पास के बाग में
पेड़ों पर रहते हैं भूत
नहीं करती विश्वास उन पर
पहुँचती हूँ बाग में
देखती हूँ हरी भरी घास
छोटे नन्हें पौधों को अपनी छत्रछाया में
बढ़ने और पनपने का अवसर देते
चारों तरफ फैले बड़े ऊँचे दरख़्त
कुछ भी असहज नहीं लगता
बढती हूँ दरख्तों की ओर
अचानक कुछ आहट, सरसराहट
पत्तों में कंपकंपाहट
अचानक सांसों को रोकने से
उठती अकुलाहट
बडबडाती हूँ मैं
मैं अदना सा इंसान
न बाउंसर, ना बौडी बिल्डर
भला मुझसे क्या और कैसा डरना
मेरी बात से हिम्मत पा
एक नन्हा पौधा बोल ही पड़ा
हम तो डरते हैं
आप जैसे हर किसी से
क्योंकि हम नहीं जानते
कब किस वेश में आ जाय
यमराज रूपी कोई बिल्डर...... 

आभासी दुनिया में लिखते पढ़ते बहुत सारे ब्लॉग से जुड़ा और तभी रचना दी के ब्लॉग को पढ़ा जो की रचना रविंद्र" ब्लॉग के माध्यम से ब्लॉगिंग मे सक्रिय थी उनकी बहुत सारी कवितायें पढ़ने को मिली और बहुत कुछ सीखने को मिला बहुत से विषयों पर कविताएँ पढ़ी साथ ही साथ ही मुझे और मेरी पत्नी प्रीति को रचना दीक्षित दीदी से मिलने का सौभाग्य और दीदी का आशीर्वाद भी मिला दी से पहली बार उनसे मिलने पर मुझे बेहद अपने अपने पन का अहसास हुआ.....कभी लगा ही नहीं कि मैं बड़ी लेखिका से मिल रहा हूँ.... 

आज रचना दी के कविता संग्रह " टंगी खामोशी " (शब्दों की मित्वयता के साथ जीवन जीने की विवशता)  के बारे मे "टंगी खामोशी" पिछले कुछ वर्षो में लिखी कविताओं का शानदार संग्रह है........काव्य संग्रह जिसे पढ़ने के बाद एक अलग ही अनुभव हुआ उसी से जुड़े कुछ विचार आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ रचना दी को "रचना रविंद्र" ब्लॉग के माध्यम से ब्लॉगिंग मे सक्रिय है रचना दीदी के काव्य संग्रह की कवितायेँ ख़ामोशी और शब्दों के बीच का सेतु है संग्रह मे देहलीज़, फुर्सत, अहसास, समय का दर्द, इमारतें, गुमनाम विरासत, धागे, दस्तक, ख्वाब और खामोशी, साँसे, अब से रावण नही मरेगा, दायरे, अनेको रचनाएँ बेहतरीन है...... 

संग्रह पर रचना दीक्षित दी भी लिखती है ये किताब मेरी कविताओं का एक पुलिंदा नहीं, ये आइना है, जिसके सामने मैं अपने आप को रोज़ खड़ा पाती हूँ ! देखती हूँ दबे पाँव सरकता समय, कभी सैलाब में बहती खामोशी, कभी सलीब पर टंगी खामोशी, कभी आँगन में बिखरी खामोशी। बस यही सब भूला, बिसरा, छूटा, छिटका, ठिठका सहेजने की कोशिश मात्र है ये संकलन  बचपन के बीते बहुत सी स्मृतियों को सामने को आज के समय मे ढूढने का अनर्थक प्रयास! 

रिश्ते खून के, हूँ प्यार के, दोस्ती के, समाज के जिस भी रिश्ते को ताउम्र पकड़ कर, जकड कर रखना चाहा सूखी सूनी रेत की तरह भरभराकर कर गिरते रहे। नहीं जानती रिश्तों की नीव कमजोर थी या मेरी उन पर पकड़ जरूरत से ज्यादा सख्त। सभी के साथ होता है ये सब पर सब के अनुभव अलग अलग है, उनकी छाप अलग अलग है! मन के किस हिस्से में कितना प्रभाव शब्दों के माध्यम से उतरता है

मेरी कविताओं में कहीं विचार उद्वेलन तो कहीं भावों की तीव्रता मिलेगी, कहीं बेचैनी,आकांक्षाएँ और चिंताएं इनके  जन्मे शब्द मुझे मुंह न खोलने को मजबूर करते रहे और रचनाएं रचती गयीं कुछ रचनाएँ सीधा प्रश्न करती है जैसे 

कविता हाथ का मैल...... 
बचपन से सुनती आई हूँ 
आप सब की ही तरह  
पैसा ही जीवन है. 
पैसा आना जाना है.
पैसा हाथ का मैल है ! 

विकास की इबारत........ 
प्रकृति की विनाश लीला को दर्शाती रचना जो बिल्डर, टिंबर मर्चेन्ट, नदियां प्रदूषित करने वाले उद्योगपती, कितने कितने रूप में आते हैं यमराज

जेठ की दुपहरी में............ 
जेठ की दुपहरी का अनोखा रोमांस...पिया मिलन और रोमांस को एक बेहतरीन अंदाज़ में प्रस्तुत किया है।

दायरे कविता.............. 
सभी अपने दायरों में सीमित हैं शायद प्रकृति से जाने अनजाने सीख ही लेते हैं हम.कुछ अच्छा या कुछ बुरा....
एक वयोवृद्ध बांस
झुकता नहीं
टूटता है टूट कर गिरता है
उस नन्हीं कोपल पर
कभी अपने आप से अलग करने
कभी उस समूह से अलग करने को
बनी हैं ये दूरियां आज भी
कोई सुखी है या नहीं
प्रकृति की घटनाओं के साथ जीवन का अद्भुत सामंजस्य है।
प्रकृति का सूक्ष्मावलोकन प्रशंसनीय है

संकेत.............. 
प्रकृति अनेकों रूप में उपलब्ध है .. शायद हम अभी तक नहीं समझ पाएपरमात्मा की इस सृष्टि में कुछ भी व्यर्थ नहीं होता..इसके पीछे भी कोई राज होता है 

महाभारत............... 
महाभारत घर घर में ही होता है द्वंद्व भी सम्बन्धों का यहीं है रावण भी हमारे अन्दर है दिल ओर दिमाग का द्वंद तो जीवन भर चलता रहता है न खत्म होने वाली जंग है जिसका धागा दिमाग के पास रहता है

अनभुझे प्रश्न.............. 
क्यू कागज़ पर लिखा रिश्ता नही होता आबाद शायद रिश्ता मन पर लिखा होता है गहरी अभिव्यक्ति...दस्तक देते रहते हैं कितने ही ऐसे प्रश्न........ 

यूँ तो मैं कुछ बोलती नहीं..... 
पर कलम को बोलना आ गया
यूँ तो मैं जुबान खोलती नहीं
पर आँखों को खोलना आगया
लोगों को कभी तोलती नहीं
पर शब्दों को तोलना आ गया
अपनी गांठे कभी खोलती नहीं
पर यूँ लगता है अब खोलना आ गया
बहुत खूब....... 

परिस्थितियाँ मन कि मिठास को कहीं पीछे कर देती हैं .... इसको पुन: स्थापित कर लेना कठिन सा लगता है मिठास बरकरार रहे समय के साथ साथ बहुत कुछ भूलने लगता है ... कठोर लम्हे भी कभी कभी कड़वाहट भर देते हैं 

ऐसा ही कुछ कहती है रचना.....विरक्ति
सब कहते हैं
मेरी माँ ने
मेरे शरीर में रोपी थीं कुछ 
नन्हीं कोपलें गन्ने की
तब जब थी मैं उनके गर्भ मे
समय के साथ बढती रही
मैं और वो फसल हंसना, खिलखिलाना...... 

मेरी और से काव्य संग्रह के लिए रचना दी को हार्दिक बधाई 
Bluerose Publisher से प्रकाशित इस संग्रह को प्राप्त कर सकते हैं या फिर रचना जी से भी संपर्क कर सकते है

पुस्तक का नाम –  टंगी खामोशी
रचनाकार --    रचना दीक्षित 
पुस्तक का मूल्य – 180/-
प्रकाशक - Blue Rose Publisher Dehli- 110002

#टंगी खामोशी काव्य संग्रह (100 कविताएँ ) 

- संजय भास्कर

29 अगस्त 2022

उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते - विभारानी श्रीवास्तव :)


विभारानी श्रीवास्तव ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ नाम है ( विभारानी श्रीवास्तव  --  सोच का सृजन यानी जीने का जरिया ) विभारानी जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है  एक से बढ़कर एक हाइकू लिखने की कला में माहिर कुछ भी लिखे पर हर शब्द दिल को छूता है हमेशा ही उनकी कलम जब जब चलती है शब्द बनते चले जाते है ...शब्द ऐसे जो और पाठक को अपनी और खीचते है और मैं क्या सभी विभा जी के लेखन की तारीफ करते है...........!!
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कुछ दिन एहले विभा ताई जी की एक पोस्ट पढ़ी
मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर :))))
.......मेरी आदरणीय ताई जी ये शब्द मुझे भावुक कर गए उनके लिखे शब्द बहुत ही अपनेपन का अहसास कराते है !
मौके कई मिले पर परिस्थियाँ ही कुछ ऐसी थी जिसकी वजह से आज तक ताई जी से मिलने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ !
क्योंकि एक लम्बे समय से मैं विभा ताई जी का ब्लॉग पढ़ रह हूँ और फेसबुक स्टेटस भी अक्सर पढता रहता हूँ पर ताई जी के लिए कुछ लिखने का समय नहीं निकल पाया पर आज समय मिला तो तो पोस्ट लिख डाली !
................ विभा ताई जी की उसी रचना की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ जिसे याद कर आज यह पोस्ट लिखने का मौका मिला....

.............मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर
जब किसी ने कहा
सखी
बुई
ताई
बड़ी माँ
चाची
भाभी
दीदी
दीदी माँ दीदी माँ तो कानो में शहनाई सी धुन लगती है .....
यही बात आज मैं ने फूलो से भी कहा
सभी को अपने बांहों के घेरे में लेकर बताना चाहती हूँ ...

विभा ताई जी के अपार स्नेह और आशीर्वाद पाकर खुशकिस्मत हूँ मैं की उनके लिए आज यह पोस्ट लिख पाया सुंदर लेखन के लिए विभा ताई जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ....!!!

-- संजय भास्कर

05 अगस्त 2022

कुछ मेरी कलम से सुधा देवरानी :)

मुझे याद है करीब तीन वर्ष पहले मैंने ब्लॉग नई सोच पर एक रचना पढ़ी थी.....बेटी.. माटी सी ..जिस पढ़कर एक गहरी टीस सी उठी जिसमे एक माँ ने मर्म को छूती  एक हकीकत बयां की तब से लेखिका के ब्लॉग पर आना जाना लगा रहा और बहुत सी सुंदर रचनाएँ पढ़ने को मिली जी मैं बात का रहा हूँ 
एक कुशल कवियत्री,ब्लॉगर आदरणीय सुधा देवरानी जी की ब्लॉग ( नई सोच ) उनका दृष्टिकोण हम उनकी कुछ कविताओं मे देख सकते है करीब पांच वर्षों से सुधा जी का लेखन पढ़ रहा हूँ सुधा जी बेहद संवेदनशील रचनाकार के रूप में अपने आप को स्थापित किया है उनकी रचनायें जीवन के प्रति उनके विशिष्ट दृष्टिकोण को भी दर्शाती हैं और नियमित रूप से काफी ब्‍लॉग पर अपनी निरंतरता बनाये रखती है मुझे सुधा जी कलम से निकली रचनाएँ बहुत प्रभावित करती है बेटी माटी सी रचना ने बहुत प्रभावित किया जिसमे बेटियां जो समाज की संजोयी निधि की तरह है उनके विकास हेतु एक अलग नजरिया होना अति आवश्यक है कविता मे नारी मन की वेदना को लिखा है सुधा जी कुछ रचनाएँ जैसे 
....विचार मंथन, ....लघु कथा सिर्फ गृहिनी, ....अपने हिस्से का दर्द, .....चल ज़िंदगी तुझको चलना ही होगा आदि सुधा जी के बारे मे कुछ लिखना चाहता था पर समय नही मिला पर जा आज समय मिलते ही उनके बारे मे लिखा रहा हूँ पोस्ट के अंत मे सुधा जी की एक रचना साँझा का रहा हूँ उमीद है सबको पसंद आये......!! 


शीर्षक है.....बेटी माटी सी

कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते 
मन हल्का वह कर पायेगी ?

हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ....?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ....?

गर कुछ अच्छा हो जाता है
तो श्रेय तुम्ही को जाता है
इज्ज़त है तुम्हारी परमत भी
उससे कैसा ये नाता है......?

दिन रात की ड्यूटी करके भी
करती क्या हो सब कहते हैं
वह लाख जतन कर ले कोशिश
पग पग पर निंदक रहते हैं

खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक  विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है

सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन 
इतिहास वही दुहराती है

बेटी को वर देती जल्दी
दुख सहना ही तो सिखाती है
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती है !!

- संजय भास्कर

26 जुलाई 2022

कुछ मेरी कलम से कुसुम कोठारी :)

आदरणीय कुसुम कोठारी ब्लॉग (मन की वीणा) की लेखिका कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी की किसी भी रचना को पढ़ने का अर्थ होता है उस विषय को गहनता से समझना और प्रेरित होना करीब चार वर्ष से लेखिका कुसुम कोठारी का ब्लॉग पढ़ रहा हूँ  उनकी लिखी रचनाओं में बात चाहे प्रकृति के श्रृंगार की हो या अन्य कोई भी विषय हो ,कुसुम जी हर विधा में माहिर हैं कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं काव्य की अनेक विधाओं पर इन्हें महारत हासिल है. मुख्यतः शुद्ध प्रांजल हिंदी में कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी की किसी भी रचना को पढ़ने का अर्थ होता है उस विषय को गहनता से समझना और प्रेरित होना। वह एक बहुत अच्छी लेखिका होने के साथ ही बहुत अच्छी पाठिका भी हैं और हमेशा से रचना के मर्म को समझ कर अपनी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से कलमकारों को ऊर्जावान बनाती आई हैं कभी राजस्थानी में और कभी-कभी उर्दू में भी इनकी रचनाएँ देखने को मिलती हैं आदरणीय कुसुम जी के प्रकृति श्रृंगार के तो क्या कहने ? ऐसा छायाचित्र उकेरती हैं कि पाठक सम्मोहित हुए बिना न रह सके, विविधता भरा उनका लेखन बड़ी प्रेरणा देता है हम उनसे निरंतर सीख लेते हैं जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। जितना निर्मल इनका सृजन है उतने ही निर्मल हृदय की स्वामीनी है। 

इनके नवगीतों में अद्भुत बिम्ब एवं व्यंजनाएं पाठक को विस्मित कर देती हैं......कुसुम कोठारी जी से मिलने का सौभाग्य अभी तक नही प्राप्त हुआ कुसुम जी के लिए कई दिनों से लिखने का मन था पर समय नही मिला पर आज समय मिलते ही सोचा प्रज्ञा जी के बारे में कुछ लिखा जाये उनके लेखन से मैं बहुत ही प्रभावित हूँ अंत मे कुसुम जी की एक रचना साँझा कर रहा हूँ.......... 

शीर्षक है.....जीवन चक्र यूँ ही चलते हैं

साल आते हैं जाते हैं
हम वहीं खड़े रह जाते हैं

सागर की बहुरंगी लहरों सा
उमंग से उठता है मचलता है
कैसे किनारों पर सर पटकता है
जीवन चक्र यूँ ही चलता है
साल आते है... 

कभी सुनहरे सपनो सा साकार
कभी टूटे ख्वाबों की किरचियाँ
कभी उगता सूरज भी बे रौनक
कभी काली रात भी सुकून भरी
साल आते हैं....

कभी हल्के जाडे सा सुहाना
कभी गर्मियों सा  दहकता
कभी बंसत सा मन भावन
कभी पतझर सा बिखरता
साल आते हैं....

कभी चांदनी दामन मे भरता
कभी मुठ्ठी की रेत सा फिसलता
जिंदगी कभी  बहुत छोटी लगती
कभी सदियों सी लम्बी हो जाती
साल आते हैं....

-- संजय भास्कर

11 जुलाई 2022

सराहनीय सृजन बहुत-बहुत आभार जिज्ञासा जी :)

मेरे आलेख चिड़ियाँ का हमारे आंगन मे आना को पढ़कर आदरणीय जिज्ञासा जी ने गोरैया दिवस पर लिखी रचना को मेरे आलेख को समर्पित किया जिसे आप सभी के समक्ष साँझा कर रहा हूँ रचना के लिए बहुत- बहुत आभार जिज्ञासा जी
संजय जी, गौरैया पर आपका ये आलेख बहुत ही चिंतनपूर्ण और विचारणीय है, सौभाग्य से मेरे घर बहुत गौरैया आती हैं और घोसला भी बनाती हैं अभी एक महीना पहले गौरैया अपने तीन चिड्डों के साथ मेरा घर गुलजार किए थीं सभी उड़ गए  गौरैया के लिए पानी, दाना और कुछ झुरमुटी पौधों का होना बहुत जरूरी होता है वे बड़े आनंद में रहती हैं, गौरैया दिवस पर लिखी एक रचना आपके आलेख को समर्पित है:

गौरैया को समर्पित गीत🐥🌴
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अब उससे हो कैसे परिचय ?
दो पंखों से उड़ने वाली,
दो दानों पे जीने वाली,
जीवन पर फिर क्यूँ संशय ॥

तीर निशाने पर साधे
बड़े शिकारी देखें एकटक,
घात लगाए बैठे हैं
घर अम्बर बाग़ानों तक,
संरक्षण देने वालों ने
डाल दिया आँखों में भय ॥

कंकरीट के जाल
परों को नोच रहे हैं,
जंगल सीमित हुए
सरोवर सूख रहे हैं,
हुआ तंत्र जब मौन
सुनेगा कौन विनय ॥

ये नन्ही गौरैया चिड़ियां
मिट्टी मानव छोड़,
दूर कहीं हैं चली जा रहीं
जग से नाता तोड़,
वहाँ जहाँ पर पंख खुलें
फुर फुर उड़ना निर्भय ॥

-जिज्ञासा सिंह

--संजय भास्कर