01 अक्टूबर 2016

मैं और मृदुला प्रधान जी कुछ बातें और धड़कनों की तर्जुमानी :)

ये सौभाग्य की बात है कि आकाशवाणी पर कुछ साल पहले कवितायेँ सुना करता था उन्ही दिनों मृदुला जी की रचनाओँ का प्रसारण सुना पर अनसुना कर देता था साहित्य का शौक ही नहीं था पर जब ब्लॉगिंग से जुड़ा और कुछ समय बाद मृदुला जी के ब्लॉग से परिचय हुआ उनकी कविताये पढ़ने को मिली और बहुत कुछ सीखने को मिला और मुझे .... बड़ी माँ के रूप में उनका आशीर्वाद भी मिला अब तक तीन बार मृदुला जी मिला बेहद अपने अपने पन का अहसास .... कभी लगा ही नहीं कि किसी बड़े रचनाकार से मिल रहा हूँ हमेशा ऐसा लगा अपने घर ही जा रहा हूँ इस बार फिर 17 सितंबर 100 कदम का विमोचन और फिर से मुलाकात का एक मौका !


मृदुला जी जब 2014 में पहली बार मिला मिलने पर कुछ पंक्तियों ने मन में ऐसे जन्म लिया  :-

उनकी ममता बहुत प्यारी थी
उनका आँचल बहुत सुंदर था

मैं एक छोटे शहर से आया था
उनकी ऊँगली थामे मैं पहुच गया

उनके घर तक था  !!

रिश्तो से विश्वास
निकल जब
दूर चला जाता है
समय सिमट कर छोटे से
बिंदु में रह जाता है
हलकी सी कोई टीस आँखों में
कुछ खारा सा
अक्सर सीने में कोई मोम पिघल जाता है
जरा जरा सी याद दर्द सा
कहीं सुनी कोई बात
जख्म सा
दबे पाँव कोने में छुपकर
आ जाता है
रिश्तो से विश्वास
निकल जब
दूर चला जाता है !

मृदुला प्रधान जी का कविता संग्रह " धड़कनों की तर्जुमानी " पिछले कुछ वर्षो में लिखी कविताओं का संकलन है प्रकृति प्रेमी और रिश्तों के विश्वास का संग्रह  जिसमे कवयित्री अपनी हर बात को विश्वास और रिश्तों के माध्यम से कहने की कोशिश की है... खेत खलिहान, बरगद का पेड़ ,महानगर की धुप,  जाने कितनी ही कवितायेँ और हैं जहाँ प्रकृति के रंगों की छटा के साथ दिल के रंग भी उकेरे हैं कवयित्री ने अपने आप में कुछ अलग सा प्रकृति को देखने और समझने के नज़रिये को भी प्रस्तुत करता है ज़िन्दगी सबका अपना एक परिवेश है  जिनका सीधा सा सम्बन्ध मानव जीवन से है !
मृदुला जी का लेखन बहुत ही कमाल का है मेरी और से मृदुला जी को काव्य संकलन धड़कनों की तजुर्मानी के लिए ढेरों शुभकामनाएं !

-- संजय भास्कर

03 सितंबर 2016

शब्दों से मुस्कुराहट बाँटने की कोशिश जन्मदिन पर विशेष :)



सभी मित्रो को मेरा प्यार भरा नमस्कार शब्दों से यूँ ही मुस्कुराहट बाँटने की कोशिश आज जन्मदिन पर और हमेशा ही आप सभी ने इस दिन को बहुत ही स्नेह के साथ आशीर्वाद प्रदान कर ख़ास बनाते रहे आज फिर इस अवसर पर फिर आप सभी अपना प्रेम और आशीर्वाद चाहिए !!


इस अवसर पर एक छोटी सी कविता बहन पूजा की ओर से  !!
जन्मदिन की बधाईयाँ ढेर सारी हार्दिक बधाईयाँ
 देना चाहती हूँ !
 जो
जो कुछ अलग हो 
  कुछ खास हो
  कुछ जुदा हो
 और हमेशा आपके साथ हो
पर क्या 
 जो एक छोटी बहन 
अपने बड़े भाई को दे सके 
 कुछ मिलता ही नहीं 
 कोई नज्म नहीं
  कोई कविता नहीं
 कोई गिफ्ट नहीं
इसलिए
 सिर्फ और सिर्फ
बधाईयाँ
 ढेर सारी बधाईयाँ..........!!!

पूजा बहुत बहुत आभार !!

-- संजय  भास्कर  


09 अगस्त 2016

आदिवासियों के मसीहा बाबा आमटे :)

कई दिनों बाद आज सुबह जैसे ही ब्लॉग पढ़ने बैठा नर्मदा के बारे में पढ़ रहा था तभी अचानक नर्मदा बचाओ आंदोलन की याद आई और नाम उभर कर आया बाबा आमटे नर्मदा घाटी के आदिवासी मछुआरों, किसानों की आवाज बुलन्द कर नर्मदा बचाओ आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले बाबा आमटे
तभी तुरंत कविता दीदी के ब्लॉग पर गया उनके ब्लॉग पर बाबा आमटे के बारे में एक आलेख पढ़ा था कुछ दिनों
नर्मदा बचाओ आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को हिंगणापुर में हुआ। बाबा जीवन भर दुःखी और रोगी लोगों की सेवा में लगे रहे। युवाओं के लिए वे हमेशा प्ररेणास्रोत बने रहे, जिनके लिए उनका मूल मंत्र था- "हाथ लगे निर्माण में, नहीं मांगने, मारने में।" वे एक संवेदनशील कवि और साहित्यकार जिन्होंने सरकार द्वारा उपेक्षित आदिवासियों के दर्द को उन्होंने करीब से जिया और उनके लिए जिन्दगी भर आखिरी सांस तक जूझते-लड़ते रहे, लेकिन हारे नहीं, यह बात उनकी कई कविताओं में साफ देखने को मिलती हैं। ऐसी ही एक कविता "एक  कुम्हलाते फूल का उच्छ्वास" में वे कहते हैं
कविता दीदी के ब्लॉग से साभार 

मैं सतासी का हूँ
एक रीढ़हीन व्यक्ति जो बैठ नहीं पाता
मुरझा  रहा हूँ मैं पंखुरी-ब-पंखुरी

लेकिन, क्या तुम नहीं देखते
मेरा रक्तास्रावी पराग?
मैं निश्चयी हूँ,
मगर ईश्वर मदद करे मेरी
कि रत रहूँ मैं गहरी हमदर्दी में
जो आदिवासियों की बेहाली से है।

वंचित विपन्न आदिवासियों की व्यथा का
किसी भी सत्ता द्वारा अपमान
अश्लील है और अमानवीय
सतासी पर
उम्र मुझे बांधे है दासता में
मैं पा चुका हूँ असह्य आमंत्रण अपने
आखिरी सफर का,
फिर भी मैं डटा हूँ

पाठको, मत लगाओ अवरोधक अपने
आवेग पर
कोई नहीं विजेता
सब के सब आहत हैं, आहत!
एक फूल की इस आह को कान दो!!

एक सच्चे निस्स्वार्थ समाजसेवी बाबा आमटे जी को विनम्र नमन

-- संजय भास्कर 


08 जून 2016

कुछ अधूरी सी कवितायेँ पुरानी डायरी के पन्ने - संजय भास्कर


अक्सर जब कभी मिल जाती है
पुरानी डायरी
तब लगभग हर उस शख्स के चेहरे पर
मुस्कराहट आ जाती है
जिसने कभी इस डायरी में
कुछ सपने संजोये होंगे !                        
डायरी में कैद होते है चंद खुबसूरत लब्ज,
कुछ बीती हुई यादें
कुछ ऐसी पंक्तियाँ
जिनमे में जिक्र होता है
कुछ पुरानी यादों का
हर उन खुबसूरत लम्हों का
तुम्हारी हँसी का
जो कैद होता है
डायरी के उन पन्नो में
ऐसा हर याद का जिक्र जो
समय के साथ धुँधली याद बन गई है !!
और आज नजर गई जब
उस डायरी पर
तब एक लम्हे में जिंदगी जी
लेने का अहसास
मुस्कुराहटें कुछ तस्वीरें
और कुछ अधूरी सी कवितायेँ
और बहुत कुछ बीते कल के बारे में
पुरानी यादों को ताजा कर गया !!

- संजय भास्कर

27 जनवरी 2016

मैं बस जीना चाहता हूँ :))

चित्र - गूगल से साभार
उड़ जाना चाहता हूँ मैं
खोल के बाहें अपनी
थामना चाहता हूँ मैं
सारे आसमान को,
मैं बस उड़ना चाहता हूँ
मत रोको अब
मुझ मतवाले को,
मैं जीना चाहता हूँ !
बस अपनी धुन में
नापना चाहता हूँ
सागर की गहराइयों को,
घर बनाना चाहता हूँ
आसमान में
दोस्ती कर पर्वतो से
हिमालय को झुकाना चाहता हूँ !
मैं बस जीना चाहता हूँ.......!!

-- संजय भास्कर

सभी साथियों को मेरा नमस्कार कुछ दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ ज़िंदगी की भागमभाग से कुछ समय बचाकर आज आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ  !