सभी साथियों को मेरा नमस्कार कुछ व्यस्ताओ के चलते ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा था पर अब आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी नई रचना के साथ
जिंदगी में इंसान अकेले ही आया है ओर उसे अकेले ही जाना है छाया तो फिर भी उम्र भर साथ देती है मरने के बाद भी साथ देती है इसी से उपजी है ये कुछ लाइने .... उम्मीद है आपको पसंद आये.....!!
जिंदगी में इंसान अकेले ही आया है ओर उसे अकेले ही जाना है छाया तो फिर भी उम्र भर साथ देती है मरने के बाद भी साथ देती है इसी से उपजी है ये कुछ लाइने .... उम्मीद है आपको पसंद आये.....!!
( चित्र - गूगल से साभार )
मैं अकेला चलता हूँ
चाहे कोई साथ चले
या न चले
मैं अकेले ही खुश हूँ
कोई साथ हो या न हो
पर मेरी छाया
हमेशा मेरे साथ होती है !
जो हमेशा मेरे पीछे- २
अक्सर मेरा पीछा करती है
घर हो या बाज़ार
हमेशा मेरे साथ ही रहती है
मेरी छाया से ही मुझे हौसला मिलता है !
क्योंकि नाते रिश्तेदार तो
समय के साथ ही चलते है
पर धूप हो या छाँव
छाया हमेशा साथ रहती है
और मुझे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देती
इसलिए मैं अकेला ही चलता हूँ ......!!
-- संजय भास्कर
18 टिप्पणियां:
छाया बनी रहे। सुन्दर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत गहरा जीवन दर्शन लिए अति सुन्दर सृजन....,
"धूप हो या छाँव
छाया हमेशा साथ रहती है
और मुझे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देती
इसलिए मैं अकेला ही चलता हूँ ......!!'
सुंदर रचना
जीवन का सच्चा फलसफा, बस छाया ही साथ होती है वाह ।
बहुत सुन्दर भास्कर जी. पर याद रखिएगा कि साहिर कह गए हैं - 'हमको अपना साया तक, अक्सर बेज़ार मिला.'
वाह!!संजय जी ,लाजवाब !!
सत्य के करीब है आपकी रचना
बहुत सुंदर।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विजय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
Nice
भावपूर्ण सुंदर रचना
छाया हमेशा साथ रहती है
और मुझे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देती
इसलिए मैं अकेला ही चलता हूँ ......!! बहुत सुंदर रचना 👌👌
ही जीवन इसी का नाम है ... अकेले जी। हाल आ होता है अपने ख़ुद के साथ अपना साया ही रहता है साथ ...
बहुत दार्शनिक अन्दाज़ की रचना ... स्वागत है आपका नियमित होना ...
चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला...तेरा मेला पिछे छूटा राही चल अकेला...आपकी रचना पढ़ कर अचानक यह पंक्तियां याद आ गई। सचमुच इंसान भीड़ में भी अपनेआप को अकेला ही पाता हैं। सुंदर प्रस्तूति,संजय जी।
बहुत सुंदर ...
जिन्दगी की लड़ाई अकेले ही लड़नी पडती है |
bahut khoob sir..
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
वाह
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