पुरानी डायरी से कुछ पंक्तियाँ
गुनाहगार हूँ मैं,
खुशियाँ भरता हूँ
सबकी जिंदगी में
टूटे दिलों को दुआ देता हूँ
दुश्मन का भी भला करता हूँ,
क्या इसी बात का
गुनाहगार हूँ ,
मेरी जिंदगी में कांटे
डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
बचाता हूँ दोस्तों को
हर इलज़ाम से
कहीं दोस्त बदनाम
न हो जाये
मेरे लिए यही है
जिंदगी का दस्तूर
क्या इसलिए गुनाहगार हूँ मैं
साथ निभाता हूँ
सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
भास्कर पूछता है
क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मेरा
आखिर
किस बात का ... गुनाहगार हूँ मैं !!
( C ) संजय भास्कर
चित्र - ( गूगल से साभार )
किस बात कागुनाहगार हूँ मैं,
खुशियाँ भरता हूँ
सबकी जिंदगी में
टूटे दिलों को दुआ देता हूँ
दुश्मन का भी भला करता हूँ,
क्या इसी बात का
गुनाहगार हूँ ,
मेरी जिंदगी में कांटे
डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
बचाता हूँ दोस्तों को
हर इलज़ाम से
कहीं दोस्त बदनाम
न हो जाये
मेरे लिए यही है
जिंदगी का दस्तूर
क्या इसलिए गुनाहगार हूँ मैं
साथ निभाता हूँ
सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
भास्कर पूछता है
क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मेरा
आखिर
किस बात का ... गुनाहगार हूँ मैं !!
( C ) संजय भास्कर
33 टिप्पणियां:
सुन्दर अभिव्यक्ति साभार! संजय जी!
धरती की गोद
दुनिया हर किसी को कटघरे में खड़ा कर देती है उसका क्या ... अपना कर्म किये जाना चाहिए ... बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है संजय जी ...
क्या इसलिए गुनाहगार हूँ मैं
साथ निभाता हूँ
सभी अपनों का
बहुत खूब.
जनाब मगर हर सवाल का जवाब नही मिल सकता.
wah sanjay umda abhivyakti...ye aise kuch sawal hain jinke jawab milna bahut mushkil
कुछ गुनाह हम सबसे कराये जाते हैं। बस आपको अपनी गवाही खुद देनी है और सजा भी। बड़ा दिलचस्प खेल है। बढ़िया पोस्ट।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-02-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1901 में दिया जाएगा
धन्यवाद
मन की बात कह दी आपने कविता के माध्यम से . भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
न्यू पोस्ट अनुभूति : लोरी !
जिंदगी एक सवाल ही तो है...तलाशते रहते है हम जवाब उम्र भर… सुंदर कविता प्रस्तुत करने के लिए बधाई संजय जी...!!
दुनिया कुछ भी कहे लेकिन अपना कर्म करने से पीछे नहीं हटना चाहिए ...अच्छे का एक न एक दिन भले ही बहुत देर से सही अच्छा परिणाम जरूर मिलता है .....कठिन परिस्थितियों में ही मनुष्य की परीक्षा होती है...उसे ऐसे में खुद पर भरोसा करना चाहिए ...
सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत ही सुंदर पंक्तियां और उनका भाव।
संवेदनशील लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है पर क्यों होता है ? इसी सम्वेदना से भरी सुन्दर कविता .
सुन्दर पंक्तियाँ
जो हम सही रहे तो समय के साथ जमाने की सोच बदल ही जाएगी
इसी आशा और सोच के साथ कर्त्तव्य पथ पर चलते जाना चाहिए
संवेदनापूर्ण और बहुत ही सुन्दर रचना संजय जी !!
कोई कोई सवाल अनुत्तरित रहने के लिये ही होता है। पर नासवा जी की तरह मैं भी कहूंगी कर्म करते जाइये।
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
कलाधर्मी इसी तरह के गुनहगार होते हैं,
तभी तो नया सृजन कर पाते हैं।
यह आपकी ही नहीं सबकी कहानी है....तभी तो भगवान बुद्ध ने कहा है...जीवन दुःख है, मरण दुःख है, रोग दुःख है, जरा दुख है...यहाँ कोई गुनाहगार हो इसलिए ही दुखी नहीं है..बल्कि जीवन को जैसा हम जानते हैं वह दुःख रूप ही है...तभी तो बुद्ध पुरुष महाजीवन की तलाश करते हैं...
हर प्रश्न का जवाब नहीं होता , संजय !!
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old is gold.......सही है मस्त आपकी डायरी की इतनी सुन्दर और भावपूर्ण रचना .......पता ही नहीं लगा ये सवाल है या जवाब .
सुन्दर अभिव्यक्ति साभार
बहुत खूब सर जी। क्या खूब लिखा है।
सुन्दर अभिव्यक्ति
भाई बहुत लंबे वक्त से आपकी नई पोस्ट ब्लाग पर नहीं आई। आशा है कि जल्दी ही आएगी।
Achchha lagaa.
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
संजय भाई ..पुरानी डायरी में मन को छूने वाली नयी बातें
आनंद दाई
भ्रमर ५
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
संजय भाई ..पुरानी डायरी में मन को छूने वाली नयी बातें
आनंद दाई
भ्रमर ५
क्या बात है संजय भाई। सही है।
बढ़िया रचना ,अपनी अपनी आदत है अपना एक स्वभाव ,कबहू न खावो ताव।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
बहुत खूब सर जी। क्या खूब लिखा है
बहुत सुन्दर और सच्चाई लिए होती हैं आपकी रचनाएँ .
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