24 जून 2012

........मैं लिखता हूँ--संजय भास्कर



इस भाग दौड़ भरी दुनिया में
जब भी समय मिलता है
मैं लिखता हूँ ।
जब समय नहीं कटता मेरा
समय काटने के लिए
मैं लिखता हूँ ।
जब भी लिखता हूँ,
बहुत ध्यान और
शांत मन से लिखता हूँ ,
लिखने से पहले
अपने मन को भेजता हूँ ,
उन गलियारों में
जहाँ से मेरा मन
शब्द इकठ्ठा करता है ,
जिसे मैं कलम के जरिये

अपनी डायरी में सजा सकूं ,
और दुनिया के सामने
अपने मन की बातें 
कह सकूं
कुछ अपने दिल की
सुना सकूँ.... !
आप सबको
अपने शब्‍द संसार से
परिचित करा
सकूँ.............!!

( चित्र गूगल से साभार  )

@ संजय भास्कर  

06 जून 2012

आकांक्षा का दर्पण सदा की " अर्पिता " -- संजय भास्कर


सीमा सिंघल ब्लॉगजगत की जानी मानी शक्सियत है
जिन्हें ब्लॉगजगत में सदा के नाम से जाना जाता  है .........अभी कुछ महीनो पहले सदा जी का कविता- संग्रह " अर्पिता "को पढ़ा उसी से जुड़े कुछ विचार आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ !


मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए ......!!

कविता संग्रह 'अर्पिता' सामाजिक यथार्थ के मध्य से उठते हुए ज्वलंत सवालों का दस्तावेज लगा स्वानुभूति और भावपूर्ण अभियक्ति है "अर्पिता "............इस कविता संग्रह में सीमा सिंघल जी की छन्द मुक्त उदेश्यपूर्ण कवितायेँ है जो अपने सपनो को हकीकत में बदलना चाहती है !

सदा जी की की रचनाएँ अपने आप में अनूठी है जो सीधे दिल को छूती है हर व्यक्ति की संवेदनाओ को आकृति देती कविताये जीवंत लगती है |

सदा जी रचनाओं की एक और खासियत इनकी रचनाओ के भाव मन को झकझोर देते है 
सदा जी की रचनाये मात्र शब्द कौशल की बानगी नहीं है ........इनकी कविताये सहज होते हुए भी......पाठक के चिंतन को कुरेदता है|
.........................आज भी नारी अपने सपनो के प्रति स्वतंत्र क्यों नहीं है ?

जन्म देने वालो होती एक माँ
फिर भी बेटे को कुल दीपक
बेटी को पराई ही कहते
सब लोग|

एक ऐसा दिल जो सुदूर आकाश गंगा के चमकते सितारों को दामन में भर लेना चाहता है , जो चाँद की शीतलता , फूलों की खुसबू और सितारों को दामन में भरना चाहता है ,तो हो जाती है कविता |

................सदा जी की कलम सचेत करती हुई चलती है -
अभिमान का दाना  तुम नहीं खाना तुम्हे भी अभिमान आ जायेगा


ये सत्य अच्छे प्रयास से नया समाज निर्मित होता है सदा जी की कवितायेँ इस शास्वत सत्य को दोहराती है !
रिश्ते न बढ़ते है रिश्ते न घटते है वो तो उतना ही उभरते है जितना रंग हम उनमे अपनी मोहबत का भरते है  

अब आखिर में "अर्पिता" की  गजल - माँ ने छोड़ी न कलाई मेरी -आपको पढवाते है !


माँ ने छोड़ी न कलाई मेरी

नमी आंसुओ की उभर आई आँखों में जब,
गिला कर गई फिर किसी की बेवफाई का ||

बहना इनका दिल के दर्द की गवाही देता ,
ऐतबार किया क्यों इसने इक हरजाई का ||

कितना भी रोये बेटी बिछड़ के बाबुल से,
दब जाती सिसकियाँ गूंजे स्वर शहनाई  का ||

ओट में घूँघट की दहलीज पर धरा जब पाँव,
चाक हुआ कलेजा आया जब मौका विदाई का ||

जार जार रोये बाबुल माँ ने छोड़ी न कलाई मेरी ,
बहते आंसुओ में चेहरा धुंधला दिखे माँ जाई का ||

 मेरी और से सदा जी को कविता- संग्रह "अर्पिता" के लिए हार्दिक बधाई व ढेरो
शुभकामनाये .............!

@ संजय भास्कर