कल जब मैं अपने ऑफिस से घर के लिए निकला तो देखा एक काफी शॉप पर कुछ युवा मदहोश होकर धूम्रपान कर रहे है व नशे में डूबे हुए है तथा थोड़ी ही देर में एक दुसरे को गलियां देने लगे व मार पीट पर उतर आये
जो कुछ देर पहले तक एक दुसरे के साथ मदमस्त थे वही एक दुसरे को मारने पर उतारू है ....यह सब देख कर यह छोटी सी कविता लिखी है .....उम्मीद है आपको पसंद आएगी ............ !काफी हाउस में बैठा
आज का युवा वर्ग
मदहोश , मदमस्त, बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
तो ऐसे कंधो पर
देश का बोझ
कैसे टिक पायेगा ? जो
या तो खोखले हो गये है
या जिनको उचका लिया गया है
ए - दोस्त -
बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढी आँखों से .....................!
चित्र :- ( गूगल से साभार )
117 टिप्पणियां:
बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
Sachchi tasveer hai aaj ke Bharat ki.. Jo khud ko nahi sambhal sakte desh ko samaj ko kya sambhalenge.. kya hoga is desh ka bhavishya??
सही सन्देश ...अच्छी पोस्ट
बहुत सुंदर संदेश,,,,,,,,
जी तो कुत्ते भी लेते हैं ... मजे भी खूब करते हैं ...
.... हम भी तो मजे में जिए जा रहे हैं
@http://prakashpankaj.wordpress.com
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
aksar yuva varg rasta bhatak jata hai.......
मदहोश , मदमस्त, बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
.
लाजवाब
सन्देश भी बहुत भावुक और सन्देश देने के लिए चुने गए शब्द भी बहुत भावपूर्ण...
बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो ...।
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
युवा पीढ़ी के लिए अच्छा सन्देश ...
सुखद है की यह सन्देश एक युवा का ही है !
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो.....exactly.
संजय .जी ...ये सब नैतिक शिक्षा के आभाव का प्रतिफल है //
बधिया
बहुत सुंदर संदेश दिया आप ने इस भटकी हुयी युवा पीढी को धन्यवाद
सबको उनकी राह मिले।
सार्थक सन्देश देती शसक्त रचना ! सुन्दर लेख हेतु साधुवाद
भटकती युवा पीढी को
रास्ते में लाने की कवायद ।
क्योंकि धरती का बोझ
अब बुढे कंधे नहीं उठा सकते।
युवा तुझे धरती का बोझ उठाना है
हरक्युलिस की तरह।
संजय भाई,
आपकी कविता में भटके हुए नवयुवकों के लिए चिंतन का विस्तृत फ़लक समाहित है !
वर्तमान दौर में ऐसी ही रचनाओं की आवश्यकता है !
आपकी सृजनशीलता वंदनीय है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आज का युवा वर्ग
मदहोश , मदमस्त, बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
bahut pyari rachna ban pari hai...
lekin aapke iss baat se sahmat nahi hoon ki aaj ka yuva warg desh ke bhavishya ko sambhalne ke layak nahi...sach kahun aaj ka yuva khub masti karta hai, kuchh jayda hi...lekin fir bhi apne bhavisya ke liye bahut chintit hai...aur sach me hamare bharat ko aage le jane layak hai....:)
haan main dhumrapaan aur sharab ka sewan nahi karta, fir bhi iss baat ko maan raha hoon, ki aaj ka yuva warg sab kuchh karte hue, apne ko unchai pe jane ko sakshaam hai..:)
long live india...:)
आज की युवा पीढ़ी का तो सचमुच बड़ा बुरा हाल है ।
पेपर में देखकर हैरानी होती है , इस मानसिकता पर ।
sahi kaha aapne
bahut upyogi rachna ...samyik chinta ko darshaati hui...dhumrpaan to aaj ek shouk ke rup me tabdil hoti jaa rahi hai ..chinta ka vishay hai...
@ संध्या जी..
युवा पीढ़ी के लिए सन्देश देने की कोशी की है कविता के ज़रिये
@ मंजुला जी..
@ सत्यम शिवम् जी..
@ प्रकाश पंकज जी..
@ ॐ जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और भी प्रगति कर पाऊं ....आप सबका धन्यवाद
@ एस.एम.मासूम जी..
@ प्रज्ञा जी..
@ सदा जी..
@ वाणी गीत जी..
@ अरविन्द जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और भी प्रगति कर पाऊं ..............
bahut khoob likha hai sanjay bhai...
sach ko dikhati hui yah kavita bahut kuchh sochne pe majboor karti hai...
बहुत सही फ़रमाया संजय भाई ....आपकी पोस्ट में वर्तमान वातावरण का सटीक वर्णन हुआ है ...आज युवा पीढ़ी अपने आदर्शों को भूल कर पीछे हट रही है उनका अनुसरण करने से ...आपने बहुत शिद्दत से इस समस्या पर अपनी कविता के मध्यम से सन्देश दिया है ...आपका आभार
You might have written something true but it is the complaint mentality.
I extremely disagree with you. All the "SANSKAR" that a child gets is from its family and environment around him.
You can't just blame that kid.
Please think about it once although what you said about today's situation is true but causes are different.
आज का युवा वर्ग
मदहोश , मदमस्त, बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
बहुत सटीक ...बहुत खूब ...आज का युवा वर्ग ...अपनी आन- वान और शान से किस कदर दूर है ...जहाँ पर कर्म ही पूजा का उपदेश और उसे क्रियात्मक रूप दिया जाता है ..वहां का युवा वर्ग ...कितना मदहोश है ...अपने मद के नशे में ...और बहार का नशा भी उस पर उतना ही असर ही कर रहा है ...बहुत आभार आपका इस अर्थपूर्ण पोस्ट के लिए ...शुक्रिया
satik likha
ek dam sahi
aabhar
... bahut sundar ... de-danaa-dan ... behatreen rachanaa !!
सार्थक सन्देश देती शसक्त रचना !
bahut khoobsurt
mahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.
or haan deri ke liye sorry.kai dino baad aana hua
regards
Preeti
@ बबन पाण्डेय जी.
@ माधव
@ राज भाटिया जी..
@ प्रवीण पाण्डेय जी..
@ अरविन्द जांगिड जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और भी प्रगति कर पाऊं ..............
@ ललित शर्मा जी..
छह लीनो में सार्थक सन्देश दे दिया आपने ललित जी..
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी..
युवा पीढ़ी के लिए सन्देश देने की कोशी की है कविता के ज़रिये
@ मुकेश सिन्हा जी..
बहुत बहुत आभार आपका
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और भी प्रगति कर पाऊं .
सही सन्देश ...अच्छी पोस्ट
बहुत ही सुन्दर भावमय शब्द ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो. सही सन्देश. बेहतरीन प्रस्तुति
Wah,bhai wah! Bahut khoob!
Excellent!!! aasha karti hoon ki yeh sandesh door door tak pahunche!!!
ए - दोस्त -
बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढी आँखों से .....................!
बेहतरीन प्रस्तुति...
आपकी कविता में भटके हुए नवयुवकों के लिए चिंतन का विस्तृत फ़लक समाहित है|
sahI kahA hai...
सार्थक और बेहद बेहद खूबसूरत रचना
नव वर्ष की मंगलकामनायें
अच्छा संदेश देती रचना
संजय जी हर युग में कौरव भी होते है और अर्जुन भी
ये अलग बात है कि आज के समाज मे कौरव सौ नही लाखो हो गये है । मगर आप जैसे अर्जुनो की नजरे और प्रयास हमारे समाज को हर बुराई से बचा लेगी ऐसा मेरा विश्वास है ।
शुक्रिया , आपको भी मुबारक हो .
मुस्कुराने की आदत बनाये रखिये
अच्छा सन्देश .....
@ डॉ टी एस दराल जी..
आपने सही कहा युवा पीढ़ी पर बहुत ही बुरा असर होता जा रहा है
@ अलोकिता
@ मार्क रॉय जी..
@ वंदना जी...
आपका बहुत बहुत शुक्रिया कि हमारी रचना को आपने चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने लायक समझा।
@ अमित तिवारी जी..
मेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
@ केवल राम जी..
.आपका किस तरह शुक्रिया अदा करूँ भाई ...आपने मुझे इस तरह प्रोत्साहित करने के लिए आपका शुक्रगुजार हूँ ....
@ अरविन्द मोहन जी..
आपका शुक्रिया पहली बार आप ब्लॉग तक आये ..टिप्पणी के लिए शुक्रिया
@ अरूण साथी जी..
आपका आभार ..इस टिप्पणी के लिए
@ उदय जी..
@ प्रीती जी..
आपका आभार ...अपना मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखना
स्थिति का वास्तविक चित्रण और सामयिक आह्वान। ईश्वर करे, 'वे' आपकी बात सुन लें।
आपने अपनी रचना के माध्यम से प्रेरणा भी दी है और सच्चाई की बात भी की है ...
बहुत सुन्दर !
ए - दोस्त -
बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढी आँखों से .......
कर्तव्यबोध कराती हुई अच्छी पोस्ट
बहुत सुन्दर आह्वान किया है काल्पनिक दुनिया में जीने वालों से
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढी आँखों से .....................!
बहुत सुंदर लिखा है -
युवा पीढ़ी को अपनी सभ्यता से कैसे अवगत कराया जाये ?
बहुत अच्छी ओर ध्यान आकृष्ट किया है
Unke kandhon par desh kaa bhaar hai isliye use utaarne ke liye kabhee kabhar yah sab karte hai :)
संजय जी , नयी पीढ़ी को आपने इस कविता के माध्यम से अच्छी सीख दी है.. आशा है बहुत लोंगों को इससे सीखने को कुछ न कुछ मिलेगा.
उम्मीदें कीजिये क्या मुल्क के उन नौजवानों से,
जिन्हें बस अपनी जवानी से ही फुर्सत नहीं है.
बढ़िया लेख.
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
सिगरेट पीना शान समझते
लड़ना है पहचान
सभी नहीं
पर
बहुत से युवाओं का
कुछ यही है बखान
आपने सही किया
बखान....
इस शानदार पोस्ट के लिए मेरी और से आपको बधाई.
बहुत अच्छा लगा.
आपके संवेदन शील हृदय को युवाओं की हरकतों ने आन्दोलित किया और आपका दिल तो हल्का हो गया कविता के माध्यम से अपनी बात कहकर काश यह पीड़ा उन लोगों तक भी पहुँचे ! शब्दों के भी पंख होते हैं?
संवेदन शील कविता....shubhkamna
"कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है!"
sanjay bhai shabdo ki jaadugari ka anutha namuna jo yuvaao ki manodasa ka khoob darsa rahi hai....
kunwar ji,
bahut sunder.
आज़ादी से पहले का नौजवान
रग रग में है अंगार जो चमड़ी से ढका है
छेड़ो न इसे दोस्त ये शोलों से बना है।
आज़ादी के बाद का नौजवान
बुझी-बुझी सी राख है सोये मसान की
इस नौजवॉं की आत्मा टूटी कमान सी।
सब पर लागू नहीं होता लेकिन...
बहुत सुन्दर कविता है सर.. नव वर्ष की शुभकमना.. यह वर्ष आपके लिए नै चिंतन लाये..
@ दीपक भाई
@ रचना जी..
@ क्षमा जी..
@ अंजना जी..
@ फ़िरदौस ख़ान जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और भी प्रगति कर पाऊं .
@ Patali-The-Village
@ भारतीय नागरिक जी..
@ विजय वर्मा जी..
@ अपर्णा सेन जी..
@ लता हया जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और भी प्रगति कर पाऊं ....आप सबका धन्यवाद
सुंदर कविता.
संजय जी सार्थक रचना
नव वर्ष की बधाई हो
Waah sanjay ji samja k yuva verg pe karara vyangya......
आशा है बहुत लोंगों को इससे सीखने को कुछ न कुछ मिलेगा.
@ विष्णु बैरागी जी..
@ ईन्द्रनिल भट्टाचार्जी सैल" जी..
@ कुंवर कुसुमेश जी..
@ ऍम वर्मा जी,,
@ अनुपमा सुकृत्य जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत" जी..
@ उपेन्द्र ' उपेन ' जी..
@ हर्षवर्धन वर्मा जी..
@ अरुण रॉय जी..
@ मलखान सिंह जी..
@ अनीता जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
अच्छी लगी ये सन्देश देती सुन्दर सी कविता . काश आज के युवा इस सन्देश को गांठ बांध पाते.
बहुत सुंदर संदेश...गहराई से लिखी गयी सुंदर रचना...
बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
....स्व से ऊपर उठकर देश हित को समर्पित सुन्दर सार्थक सन्देश देती रचना ...
बहुत ख़ूब संजय जी...
उत्तम संदेश देती हुई रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
संजय बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश दिया है इस रचना के माध्यम से। दिन पर दिन कविता मे निखार आ रहा है। लाजवाब। बधाई ,अशीर्वाद।
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
वाह भाई...
बहुत ही प्रेरक रचना...
very good...
Saarthak sandesh deti rachna...
@ मेरे भाव
@ कुंवर जी..
@ पूर्वीय जी..
@ तिलक राज कपूर जी..
@ कुमार पलाश जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ दीपक बाबा जी..
@ अमरजीत जी..
@ अमरेंदर अक्स जी..
@ बजरंग जी..
@ आशीष जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना
bahut sunder sandesh deti kavita......
आपने बिलकुल सही कहा है संजय जी .... इन कन्धों को मज़बूत होना होगा ...
आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
bahut sunder post
nav varsh ki hardik badhayi
is bar mere blog par
"main"
or
" main aa gyi hun lautkar"
yuva varg ki sahi tasveer ukeri hai. kya yahi desh ka bhavishya hai?
bahut sundar rachna.
लिखा बहुत ही खूब भास्कर,
मदिरा कि उलटी धारा को |
पर क्यों कोसें उस मदिरा को,
जो बहती हो अपने रग में |
संजय जी से सहमत हूँ. इस धुंए ने सब को खोखला कर रखा है. इसे लोग सम्पन्नता की निशानी भी मानने लगे हैं. लोग.
समझने वाली बात है. अच्छा लगा आपका लिखना.
अच्छी कविता भास्कर जी,
थोड़ी और मेहनत हो तो कविता और निखर कर आएगी।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
संजय भाई, बहुत सही बात बताई।
---------
पति को वश में करने का उपाय।
गहरी सोच संजय जी ... सोचने को मजबूर करती है आपकी रचना .
thought provoking...nice!!
आज के युवा वर्ग कि बहुत सही तस्वीर उतारी है अपनी रचना में |बधाई
आशा
@ रश्मि रविजा जी..
@ कविता रावत जी..
@ वीरेंदर चोहान जी..
@ निर्मला कपिला जी..
@ निलेश माथुर जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ पूजा
@ मोनिका शर्मा जी..
@ सुमन जी..
@ क्षितिजा जी..
@ दीप्ति शर्मा जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ रेखा श्रीवास्तव जी..
@ तपशवनी आनंद जी..
@ राजेश कुमारजी..
@ प्रकाश बादल जी..
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ जी..
@ दिगम्बर नासवा जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
अच्छा संदेश बिखराया है आपने ।
बधाई।
यह रहा एक और .....
९९ नॉटआउट ....शुभकामनायें संजय
sundar rachna !
संजय भाई, आज फुर्सत से आपकी रचना दोबारा पढ़ी और मत्रमुग्ध हो गया। कैसे लिख लेते हैं आप इतनी शानदार कविता।
---------
पति को वश में करने का उपाय।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
aj k yuva par biilkul satik bethti hai ye kavita...unhein ye samajhana hoga ki wo apni zimmedariyo se bhag nahi sakate....
sundar prastuti...
poonam
नये साल की शुरुयात आपने एक अच्छे सन्देश के साथ किया । उम्मीद है युवा वर्ग आपके सन्देश पर अमल करेगें । सुन्दर रचना ।
नये साल की बधाई स्वीकारे ।
क्या बात है !!!!! आप बस मुस्कराने की आदत बनाये रखिये ! नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
आज के युवा वर्ग का सही चित्रण.....यथार्थ के करीब....ब्लॉग पर आने का शुक्रिया...
bahut badhiya likha hai .badhai aapko
अच्छी पोस्ट..
आप को नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएं....
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो
sarthak lekhan
adhikansh yuwao ka satik chitran pesh kar diya aapne....
@ सौम्य जी..
@ आशा माँ
@ महेंदर वेर्म अजी..
@ सतीश जी..
@ दिव्या जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ जाकिर अली जी..
@ पूनम जी..
@ दीपायन जी..
@ उषा राइ जी..
@ पूनम जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
@ ज्योति सिंह जी..
@ अंजना जी..
@ निर्झर नीर जी..
@ अर्चना धनवानी जी..
बहुत बहुत आभार आप सभी का !
bht accha sandeh diya hai bhaiya.....sochne par majboor kar diya......
is duniya mein sthir kuch bhi nahi hai,isliye badlao hi zindagi ka dastoor hai.........
yahi karan hai ki yuva varg itna badal badal gaya ki jahan khushi ki shuruaat mata pita ke pair chuu kar ki jaati thi wahi aj khushi ki shuraat sharab ki botal khol kar ki jaati hai........
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना|
मदहोश , मदमस्त, बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
bahut khoob likha sir
कल्पना को नहीं कर्म को भोगो. सही सन्देश. बेहतरीन प्रस्तुति
हम तो आए सेंचुरी के बाद, अब कैसे भरोसा न करें युवा कंधों पर.
प्रिय संजय भाष्कर जी ..इस छोटी सी कविता ने अपने नन्हे हाथों से जोर का थप्पड़ मारा उन लोगों को जिनकी माँ ने नहीं मारा होगा और वे भटक गए ..
लाजबाब खुबसूरत --आप की प्रस्तुति सराहनीय है
आभार
शुक्ल भ्रमर५
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
तो ऐसे कंधो पर
देश का बोझ
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