30 नवंबर 2010

मेरी जिंदगी की झील में ..........संजय भास्कर


 उन्होंने कहा सबसे प्यार करो 
जिन्दगी खुद ही प्यारी हो जाएगी
मैंने कोशिश की पर कर नहीं पाया

हर किसी को प्यार दे नहीं पाया
उसने भी मेरा साथ न दिया 
चाहा न उसने मुझे बस देखती रही 
मेरी जिंदगी से 
वो इस तरह खेलती रही ,
न उतरी वो कभी 
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर 
फेकती रही  ............

......................संजय भास्कर

102 टिप्‍पणियां:

kunwarji's ने कहा…

"बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............"

malaal ho raha hai na...

khubsurati se btaa di apne man ki baat..

kunwar ji,

कडुवासच ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............
... vaah vaah ... kyaa baat hai ... mohabbat aur lekhan dono gambheer hote jaa rahaa hai ... badhaai !!!

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

सही लिखा है संजय जी. कभी कभी या अक्सर ऐसा होता है कि हर किसी को उस तरह का प्यार नहीं मिलता जैसा वो सोचता है. हम तो डूब जाते हैं किसी की आँखों की गहराई में लेकिन कोई झांककर नहीं देखता हमारी जिंदगी में. बहुत खूब. बधाई.

Arvind Jangid ने कहा…

"बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही"

दिल से सुन्दर भाव पिरोये हैं, आपने कविता में.

सुन्दर रचना, आपका आभार.

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

उन्होंने कहा सबसे प्यार करो
जिन्दगी खुद ही प्यारी हो जाएगी
मैंने कोशिश की पर कर नहीं पाया
हर किसी को प्यार दे नहीं पाया
उसने भी मेरा साथ न दिया
चाहा न उसने मुझे बस देखती रही

बहुत सुन्दर...

Unknown ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ......

गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

Unknown ने कहा…

bahut khoobsurt
mahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.

naresh singh ने कहा…

प्यार है,कोइ परसाद नहीं है कि सबको बांटता फिरू |कोशिस भी करू, लेकिन कोइ हाथ फैलाने वाला भी मिले |यंहा तो जो भी मिला झील में पत्थर फेंकता ही मिला |

sonal ने कहा…

bahut khoob

vandana gupta ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

और मेरी मोहब्बत अपने
मुकाम को तरसती रही

अब और क्या कहूँ?…………नाकाम हसरतों की बानगी लिये है कविता।

मंजुला ने कहा…

hmmm.......nice kuch jani pahchani si lines lagi.....

Kunwar Kusumesh ने कहा…

प्रेमपरक सुन्दर अभिव्यक्ति

Minakshi Pant ने कहा…

जिंदगी कोशिश करते रहने का ही नाम है
अपने लक्ष्य को मत भूलना कभी येसे तुम
अगर एक कोशिश बेकार हुई तो क्या हुआ
उसी लक्ष्य को दुसरे तरीके से पाने को
हो जाओ फिर से तैयार तुम !
सुन्दर रचना !

Deepak Saini ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Deepak Saini ने कहा…

कविता पढ कर दिल मे टिस सी हुई
पुराने जख्म को कुरेद गई

Deepak Saini ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

बेहरतीन पक्तियाँ है
सुन्दरतम

अक्सर प्यार मे यही होता है

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

क्या पत्थर तबीयत से उछालकर मारा है आपने।

arvind ने कहा…

sundar bhaav....sabse pyaar karo....jo pyaar karataa hai use hi to dhokhaa milta hai...our rahi jindagi ke jheel me saath utarane ki baat to ultimately paar to akele hona hai fir kyaa chintaa.

POOJA... ने कहा…

वाह भाई वाह... क्या बात है...
पर एक बात बताइए... ये "वो" है कौन??? ;)

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही.....
वाह! हू ब हू मन की हालत को चित्रित कर दिया. फोटो भी अच्छा है.

priyankaabhilaashi ने कहा…

क्या-क्या कह गयीं..यह पंक्तियाँ..!!

Aashu ने कहा…

achhi lagi kavita!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया संजय भाई!

Satish Saxena ने कहा…

पत्थर जोर से तो नहीं लगा :-)
शुभकामनायें !

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

bahut badiya janab

Archana writes ने कहा…

very nice kavita...

36solutions ने कहा…

कविता का रूप लेते भावपूर्ण शब्‍दयुग्‍म, धन्‍यवाद.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सुन्दर रचना संजय भाई!

Unknown ने कहा…

बहुत गम्‍भीर शब्‍दों में मन की बात को उतारा है।
सुन्‍दर और भावपूर्ण अभिव्‍यक्ति ..

तदात्मानं सृजाम्यहम् ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना बन पड़ी है। हर कोमल दिल की संवेदना सिमट आई है। अभिव्यिक्त का यह रूप अच्छा है।

Bharat Bhushan ने कहा…

हूँ कई चोटें खा कर बड़े हुए हो संजय साहब. बात कहने का अंदाज़ अच्छा लगा.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये हसीनों की आदत है संजय जी ....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आप पत्थर खा कर भी अपने जख्म नहीं दिखा पायेंगे ....
गज़ब लिखा है आपने ..

बेनामी ने कहा…

देरी के लिए माफ़ी....
संजय भाई क्या खूब लिखा है आपने..
शायद ये दर्द तो हमारा भी है... जिसे चाह वो तो पत्थर फेक कर चली गयी...

बेनामी ने कहा…

मेर ब्लॉग पर

मुट्ठी भर आसमान...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही.....

बहुत खूब संजय जी, कविता के भाव बहुत गहरे हैं...बधाई।

आशीष मिश्रा ने कहा…

bahot khub..........

ZEAL ने कहा…

उन फेंके हुए पत्थरों को पंखुड़ी समझ संजो लीजिये।

Unknown ने कहा…

बहुत खूब संजय जी, कविता के भाव बहुत गहरे हैं...बधाई।

केवल राम ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............
सही कहा भाई ...अगर झील में उतरती तो डूब जाती ...और डूबने के डर से वो पत्थर फेकती रही ...उसे गलत मत समझो ......शुक्रिया

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ....

बहुत खूब....अक्सर ऐसा ही होता है...अच्छे भाव

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ कुंवर जी..
@ 'उदय' जी..

@ नरेश चन्द्र बोहरा जी..
कभी कभी या अक्सर ऐसा होता है
बिलकुल सही कहा आपने नरेश जी.

@ अरविन्द जांगिड जी..
@ फ़िरदौस ख़ान जी..
@ ॐ जी..
@ नरेश सिह राठौड़ जी..
यंहा तो जो भी मिला झील में पत्थर फेंकता ही मिला |
बिलकुल सही कहा नरेश जी.

आप सबका शुक्रिया जिन्होंने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

रामराम.

daanish ने कहा…

बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

mn ki baat
lafzon ka bayaan
ek achhii rachnaa

aur
Digambarji ki baat theek hi lagti hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ सोनल रस्तोगी जी..

@ वन्दना जी..
बहुत बहुत धन्यवाद कविता पूरी करने के लिए

@ मंजुला जी..
@ कुंवर कुसुमेश जी..
@ मीनाक्षी पन्त जी..
आप सबका शुक्रिया जिन्होंने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं |

मनोज कुमार ने कहा…

कंकड़ फेंकने से उत्पन्न तरंगों को समेट लें। प्यार हो जाएगा।

Taarkeshwar Giri ने कहा…

Lagta hai ki tagda wala jhatka laga hai apko.

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

संजय जी प्यार के Side effect को बहुत ही खूबसूरती से अभिव्यक्त किया। इस लाजबाव रचना के लिए बधाई!

-: VISIT MY BLOG :-
आप पढ़ सकते हैँ कविता/गीत......... दो दिल टूटे , बिखरे टुकड़े सारे,
तड़प तड़प वो दिन कैसे गुजारे,

सुज्ञ ने कहा…

वेदना कहुं या सम्वेदना!!

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

Amit Chandra ने कहा…

सब ने इतना कुछ कहा है कि अब मैं क्या कहुं। जितनी सुन्दर कविता उतने ही सुन्दर शब्द संयोजन।

Unknown ने कहा…

ये "वो" है कौन??? ;)

mark rai ने कहा…

बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ...
bahut hi sunder line....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............
Sach ...behtreen bhav utare hain.... khoob

अजय कुमार झा ने कहा…

यार संजय तुम्हें कित्ती बार तो कहा था कि झील में पानी बढवाओ ...मगर नहीं माने न

अच्छा ये बताओ कि , पत्थर कौन से साईज़ का था ..सरकमफ़्रैंस बता सको तो और भी बेहतर prescription दिया जा सकता है ..


और सुनो अब समझ में आ गया तुम जरूर इस झील के ठंडे पानी में नहा कर ही पेन लेकर बैठ गए होगे ..अब ये तो होना ही थी ...



नहाते रहो यार ...ये झील और ये पत्थर सलामत रहे ...बस यही दुआ है

Alokita Gupta ने कहा…

achi rachna

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

perfect....

Sushil Bakliwal ने कहा…

बहुत बढिया भावाभिव्यक्ति. एक शुभकामना मेरी भी...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कुछ तो हिस्से में आया
पत्थर ही सही.

रचना दीक्षित ने कहा…

बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ...
"वो कौन थी"
सुन्दर भाव पिरोये हैं

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

gahre jajbat ke sath dil men utarti hui kavita. mere blog par apna kimati samay dene ke liye aapka aabhar.

Girish Kumar Billore ने कहा…

अति सुंदर भाव एवम अभिव्यक्ति

Dr Xitija Singh ने कहा…

वाह!! बहुत खूब संजय जी ...

रविंद्र "रवी" ने कहा…

"बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............"
वाह! बहुत खूब संजयजी!

रविंद्र "रवी" ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना!

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ deepak bhai
bilkul sahi kaha pyar me kabhi kabhi aisa hota hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ arvind ji..
@ parveen pandy ji..
@ pooja
@ vandana ji..
@ Priyankaabhilaashi ji..
@ Aashu ji..

thanks to u supported me...

वाणी गीत ने कहा…

बस किनारे पर बैठ कर पत्थर फेंकती रही ...
सुन्दर कविता !

pragya ने कहा…

ख़ूबसूरत...

Asha Lata Saxena ने कहा…

संजय बहुत अच्छा लगता है जब तुम्हाती कोई रचना
पढ़ती हूं बहुत अच्छी लगी यह रचना भी |बहुत बहुत बधाई |तुम्हारा मेरे ब्लॉग पर आने का भी बहुत
इन्तजार रहता है |सबसे अच्छा लगता है स्नेह से आशा माँ का संबोधन |
आशा

Rajiv ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

behad sunder.

S.M.Masoom ने कहा…

बहुत सुंदर

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन रचना.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब ...ऐसे में पत्थरों से प्यार हो जायेगा ...

सुन्दर रचना ...

निर्मला कपिला ने कहा…

अरे बेटा कहीँ ये रोहतक वाली झील तो नही थी? वो क्यों किनारे बैठी रही जरूर तुम्हारी कोशिश मे कुछ कमी होगी। बहुत अच्छी लगी कविता--- उसे भी पढवाओ न । आशीर्वाद।

मेरे भाव ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ........

प्रेम के मोती तुम चुन लाओ
पिरो के उनको प्रीत सजाओ .

Unknown ने कहा…

Wah ......sanjay bahut khoob.
sabhi ne sab kuch to keh diya.....
..........lajwaab likha hai

regards
Preeti

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ यशवंत जी..
@ सतीश सक्सेना जी..
नहीं सतीश जी नहीं लगा
@ संजय चौरसिया जी..
@ अर्चना धनवानी जी..
@ संजीव तिवारी जी..
@ अरुण चन्द्र रॉय जी..
@ अमित तिवारी जी..
@ तदात्मानं सृजाम्यहम् जी..
@ भूषण जी..

आप सबका शुक्रिया जिन्होंने अपने
बेशकीमती विचारों की टिप्पणियां दी
और मेरा हौसला बढाया

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ दिगम्बर नासवा जी
बिलकुल सही कहा है जी आपने हसिनाये बहुत ही हसीं और खतरनाक होती है.........

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ शेखर भाई
@ महेंदर वर्मा जी..
@ आशीष मिश्रा जी..
@ दिव्या जी..
@ बजरंग जी..

@ केवल राम जी..
सही कहा भाई ...अगर झील में उतरती तो डूब जाती ...और डूबने के डर से वो पत्थर फेकती रही ...उसे गलत मत समझो ......शुक्रिया

@ वीणा जी..
सही कहा जी.

@ ताऊ रामपुरिया जी.
राम राम जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

The Serious Comedy Show. ने कहा…

nirlipt rahee, achachaa hua, kavita paidaa hui is nirliptataa se.

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

पत्थर को लोग भगवान मानते हैं तो समझिये आप पर भगवान मेहरबान हैं.

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ दानिश जी..
बिलकुल सही.

@ मनोज कुमार जी..
बहुत खूब जी..

@ तारकेश्वर गिरी जी..
@ डॉ. अशोक जी..
@ सुज्ञ जी..
@ एहसास जी..
@ पूर्वीय जी..
@ मार्क रॉय जी..

ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ अजय भैया जी..
चलो झील में पानी बढवा ही लेते है
वह लाजवाब और धाँसू कमेट दिया है..

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ डॉ॰ मोनिका शर्मा जी..
@ आलोकित जी..
@ प्रियंका राठौर
@ सुशील बाकलीवास जी..
@ रचना दीक्षित जी..
@ भारतीय नागरिक जी..
@ उपेन्द्र जी..
बहुत बहुत शुक्रिया..
@ गिरीश बिल्लोरे जी..
@ क्षितिजा जी..

बहुत-बहुत धन्यवाद... बस एक छोटी-सी कोशिश की है... ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

बेनामी ने कहा…

ha ha... bahut ho gaya sanjay ji. Be positive yaar :) aise sochte rahoge to aise hi hota rahega.

बेनामी ने कहा…

sorry mene apna naam nahin likha. and thanks for invitation.
Roshani

Unknown ने कहा…

vaah vaah ... kyaa baat hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ रविन्द्र रवि जी
@ वाणी गीत जी
@ प्रज्ञा जी
@ आशा माँ
@ rajev जी..
@ एस.एम.मासूम जी..
@ sameer lal जी..
@ संगीता स्वरुप ( गीत ) जी..
@ निर्मला कपिला जी..
@ मेरे भाव जी..
@ preeti जी
बहुत-बहुत धन्यवाद... बस एक छोटी-सी कोशिश की है... ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ हर्षवर्धन राणा जी..
@ विजय माथुर जी..
@ रोशनी जी..
@ राहुल जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

मेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !

संजय भास्कर

Ravi Shankar ने कहा…

मैनें पीड़ा को शब्द दिये… जग समझा मैनें कविता की…

बस ऐसे हि एह्सास उकेरे हैं आपने… अच्छी रचना।

अंजना ने कहा…

मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

वाह! बहुत ही अच्छा लिखा है ।

भारत एकता ने कहा…

भास्कर भैया आपने पुछा था की इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है, मगर आपको पड़ने के बाद यह सवाल मै आपसे पूछ रहा हूँ आप इतना बेहतरीन कैसे लिखते हैं

Rewa Tibrewal ने कहा…

wah kya likha hai.....dard bhi sachai bhi....bahut khoob..........


mere blog par dekhe..AZADI

Anand ने कहा…

keep writing...best of luck

Unknown ने कहा…

वाह!! बहुत खूब संजय जी ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ रवि शंकर जी..
@ अंजना जी..
@ राकेश गुप्ता जी..
@ रेवा जी..
@ अनद भाई
@ पवन जी..

आपने ब्लॉग पर आकार अपनी राय और प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
उम्मीद है आप सभी हमेशा ही उत्साहवर्धन करते रहेंगे
बहुत बहुत धन्यवाद

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kitni pyari baat kahi aapne......sundar lafjo me pyari rachna:)

Arun sathi ने कहा…

न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............
aesa hi hota hai aksar

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

वो इस तरह खेलती रही ,
न उतरी वो कभी
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर
फेकती रही ............

hmmmmmmmm.....kyaaa likhte hain aap bhskar ji.......waaah....in lines ne to speechless kr diya...

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ मुकेश सिन्हा जी..
@ अरूण साथी जी
@ वीनस जी..
आपने ब्लॉग पर आकार अपनी राय और प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
उम्मीद है आप सभी हमेशा ही उत्साहवर्धन करते रहेंगे
बहुत बहुत धन्यवाद

Suman Anuragi ने कहा…

commentless