अक्सर आ जाती है याद
मुझे बचपन की बातें |
कितने सुहाने दिन थे वो कितनी मीठी बातें |
ना घर की चिंता थी
न खाने पिने की फिकर ,
कूदते थे दिन भर कभी इधर कभी उधर |
ना खवाबो मै हकीकत थी न दिल मै मलाल ,
वो नंगे पाँव दौड़ना याद है मुझे
वो चोरी से फल तोड़ना याद है मुझे
शाम को देर से आना याद है मुझे
वो गाँव की गलियां और चोराहे याद है मुझे
माँ की डाट से बचने का बहाना याद है
मुझे छुट्टी होते ही शोर मचाना याद मुझे भूल नही सकता
उन यादो को जो दिल मै बसी है
मेरे उन यादो को याद करना याद है मुझे ....|
44 टिप्पणियां:
वो चोरी से फल तोड़ना याद है मुझे
शाम को देर से आना याद है मुझे
वो गाँव की गलियां और चोराहे याद है मुझे
माँ की डाट से बचने का बहाना याद है
आपने तो गाँव और बचपन दोनों की याद दिला दी
बहुत मासूम होता है बचपन
बहुत सुन्दर रचना
बचपन के अपने फितुर होते है, न दिन की चिन्ता, न रात की चिन्ता होती है।
सुन्दर रचना।
बचपन की यादें भूलती नही ... दिल के कोने में ताज़ा रहती हैं .. सुंदर लिका है संजय जी ...
bahut badiya sanjay jee, aapne hame aapne bachpan ke yadon main khone par mazboor kar diya. kafe dino bad koi bat se man ka mayura ik bar fir uchalne ko mazboor ho gaya, keep it up
बचपन के दिन भी क्या दिन थे!!!!
खूबसूरत रचना!
masoom bachpan ki masoom rachna.badhayi.
...बहुत खूब ... बचपन की यादें बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!
बहुत अच्छा लिखा है, इसे आपके ब्लॉग पर मैं पहले भी पढ़ चूका हूँ
यार पढ़कर गाँव का बचपना याद आ गया बहुत सुन्दर बधाई.
संजय जी आपने तो सचमुच बचपन की यात्रा करवा दी...''बचपन के दिन भी क्या दिन थे, उड्ते फिरते तितली बन के..''
बहुत आभार।।
बचपन की यादो का यह सफ़र नामा बहुत ही बढिया ।
अच्छी रचना । तस्वीर ने तो गाँव की याद दिला दी ।
दिल खुश कर दिया संजय.. और दिल से ही कह रहा हूँ कविता तो बहुत सुन्दर है ही साथ में चित्र देख कर लग रहा है कि उड़ कर इसी गाँव में पहुँच जाऊं.. ऐसे गाँव को कौं भूल पायेगा भला लेकिन अब कहाँ ऐसे गाँव होते हैं... :(
haye kya din the wo bhi kya din the
प्रिय संजय ,
आपकी कविता पढता रहा हूं बचपन की यादों को बहुत ही खूबसूरती से सहेजा आपने ..मगर रचना की दृष्टि से अभी बहुत सुधार की गुंजाईश है न सिर्फ़ शब्दों के संयोजन और उनके प्रस्तुतिकरण में ..बल्कि शब्दों की शुद्धता में भी ..चोराहे ...चौराहे
..डाट....डांट ..
आपका ये आग्रह कि भईया ..कमियां जरूर बताएं ...ये लिख जाने को विवश कर देता है ...इसलिए लिख जाता हूं ..वैसे भी अनुज तो हैं ही आप
अजय कुमार झा
सब कुछ भुलाया जा सकता है पर बचपन की यादे बहुत गहरी होतीहै| बार बार बचपन में खो जाने का
मन होता है |एक प्यारी कविता |
आशा
बहुत बेहतरीन रचना.
रामराम.
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
प्रभावी फोटो।
फोटो देख कर हर कोई यादों की गलियों में उछलना चाह रहा होगा।
'wo gaanv nigahonme basta hai,
Phir sabkuchh ojhal ho jata hai..."
Mere bachpanka gaanv nigahonme chha gaya!
thnk u sanjay ji for sharing yr childhood days. nice attempt.
बहुत अच्छी प्रस्तुति....हमें भी पुराने दिनों में थोड़ी देर के लिए चले गए थे :)
बहुत सुन्दर रचन लिखा है आपने! सही में बचपन के दिन की बात ही कुछ और थी ! सुबह सुबह स्कूल जाना, दादा दादी का भरपूर प्यार पाना, पापा मम्मी जब डांटते तो दादी तुरंत अपनी गोद में ले लेती, दोस्तों के साथ खेलना और न जाने कितनी छोटी छोटी यादें है जो फिर कभी लौटके नहीं आ सकती! मैं तो आपकी कविता पढ़कर अपने बचपन के दिनों को याद करने लगी! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
दिल खुश कर दिया संजय.. और दिल से ही कह रहा हूँ कविता तो बहुत सुन्दर है
यार पढ़कर गाँव का बचपना याद आ गया बहुत सुन्दर बधाई.
सबसे पहले तो भाई, माफ़ करें कि रचना पढने में इतना वक़्त लगा दिया और आपने रोज़ ही मुझे सूचित किया, कई बार शर्मिंदगी खुद मेरे गिरेबान से मुझसे झांकने लगी, किन्तु ब्लोगिंग से कुछ कारणों से दूर हूँ इन दिनों! जल्द सक्रीयहोऊंगा!
ख़ैर, रचना पर आते हैं-
मैं जब छोटा था, बाधों को देखता, तो सोचता कि काश में भी बड़ा होता
मग़र असल में आज चाहता हूँ कि वो बचपन फिर से मिले, फिर से वो बेफिक्री का ज़माना, वो बचकानी बातें, वो बे-बात पर बे-अर्थ महिफिलें संजें.
--
आपने फिर से बचपन में लौटने को मजबूर किया. उम्दा रचना जारी रहें.
Padhkar gaon ki yaad taaji ho gaye... sach mein bachpan ke bhi kya din hote hai....
Bahut shubhkamnayne
bachpan ki har baat niraali,
subah sunahri ,raat wo kaali.
hurdang machate saare bacche,
khel kood aur khaate gaali.
mama chacha naana daada
hamre baag ke sab the maali.
bachpan ki yaadein gar na ho,jeevan lage jaise ki khaali.
sachmuch achhi rachna hai sanjay ji..badhayee.
bachpan ki har baat niraali,
subah sunahri ,raat wo kaali.
hurdang machate saare bacche,
khel kood aur khaate gaali.
mama chacha naana daada
hamre baag ke sab the maali.
bachpan ki yaadein gar na ho,jeevan lage jaise ki khaali.
sachmuch achhi rachna hai sanjay ji..badhayee.
दिल कोई छूती रचना,
मुश्किल है गुरू, टिप्पणी से बचना।
acchi rachna bhai ji...
अक्सर आ जाती है याद
मुझे बचपन की बातें |
bahut hi sunder Bhavon se paripurna hai.
क्या कहूँ. तस्वीर ने तो कमाल की छटा बिखेरी है नायब
बहुत सुन्दर पोस्ट गाँव का बचपना याद आ गया
kaash ye bachpan kabhi na baatey..
na koi gham na chinta..
yaad dila di aapne bachpan ki
bahut sunder prastuti..
बचपन की यादें होती ही हैं जो गुदगुदा कर चली जाती हैं और कुछ पल का सुकून दे जाती है।
यादें ऐसी ही होती हैं जो कभी मिटती नही मेरी अगली रचना भी इसी से जुड़ी है आशा करती हूँ पाठक पसन्द करेंगे
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने !
बोले बिना रहा नही गया !और फोटो ...,
तो बहुत कुछ कह रही है !उन मखमली
यादों के बयान के लिए बधाई !
दिल खुश कर दिया संजय
aap sabhi
Shukriya hausla badhane ka..
kya bat he kya likhate he aap
acha laga pad kar
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
sanjay ji,
mere blog par aapka aana mere liye khushi ki baat hai, shukriya.
''yaadein bachpan ki''rachna padhi, bahut achha laga padhkar aur tasweer dekhkar. kabhi mera bhi gaanw aisa hua karta thaa, par shahrikaran hone ke baad har makan eent-gaare ka ho gaya hai, par pagdandi ab bhi waisi hin hai. bachpan ki yaaden taza ho gai, dhanyawaad. shubhkaamanyen.
अच्छी रचना । तस्वीर ने तो गाँव की याद दिला दी
मन को गुदगुदाती बचपन के मधुर संसार में बरबस खींच ले जाती एक बहुत ही सुन्दर रचना ! बधाई और आभार ! तस्वीर भी बहुत प्यारी है !
मैं तो वैसे ही अपने बचपन को मिस करता हूँ, ऊपर से आपने और याद बढ़ा दी.
आपकी रचना ने मेरी तड़प को बढ़ा दिया हैं.
बहुत बढ़िया.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
Bachpan ki yaad taza ho gayi.............sunder rachna
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