27 जून 2023

मेरी कलम से संग्रह समीक्षा कोशिश माँ को समेटने की....संजय भास्कर

आज की चर्चा मे आदरणीय दिगंबर नासवा जी के कविता-संग्रह "कोशिश माँ को समेटने की" 

दिगंबर जी चाहते थे जब भी उनकी पहली किताब का प्रकाशन हो माँ को समर्पित हो क्योंकि लिखने की प्रेरणा उन्ही से मिली....इसमे नासवा जी लिखते है इसे किताब कहूँ, डायरी या कुछ और जो भी नाम दूँ इसे पर ये गुफ्तगू है मेरी मेरे अपने साथ आप कहेंगे अपने साथ क्यों... माँ से क्यों नहीं? मैं कहूँगा माँ मुझसे अलग कहाँ लम्बा समय माँ के साथ रहा लम्बा समय नहीं भी रहा पर उनसे दूर तो कभी भी नहीं रहा... ये एक ऐसा अनुभव जिसको सोते जागते, हर पल मैंने महसूस किया है... मैं मानता हूँ हर किसी के जीवन में माँ के महत्त्व से ज्यादा कुछ नहीं माँ ही है जो जीवन का आधार, प्रेरणा और धुरी होती हैं। लम्बे समय तक बच्चे के मन में माँ से ज्यादा सुन्दर, सौम्य, साहसी कोई नहीं होता वो ईश्वर का ऐसा रूप होती हैं जिनके साये से रहमत बरसती है। ये शब्द हर संवेदनशील हृदय के दिल की भावनाएँ हैं और हर किसी के दिल से निकले हुए शब्द हैं जिनको मैं बस का$गज़ पर उतारने का यत्न कर रहा हूँ, कैनवस पर एक ऐसा चित्र बनाने की कोशिश है जो हर किसी के दिल में रहता है और जहाँ सिर्फ और सिर्फ माँ की छवि है अनेक रचनाएँ इस कड़ी में जुड़ती रहती हैं

माँ के लिए समर्पित किताब हैं उसमे लिखी हर एक कविता मन को छू जाती किताब को पढ़ते हुए कभी मन में एक डायरी पढ़ने जैसा सुखद अहसास जगता हैं बहुत मार्मिक जीवंत चित्र उकेरती रचनाएँ माँ तो परिवार की आत्मा होती है ,और माँ के बारे में जितना लिखे उतना ही कम है, 

दिगंबर जी का स्वपन मेरे ब्लॉग काफी चर्चित ब्लॉग है संग्रह की सभी रचनाएँ माँ के लिए है संग्रह की एक रचना आपके साथ साझा कर रहा हूँ.......!! 

तमाम कोशिशों के बावजूद 
उस दीवार पे
तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया

तूने तो देखा था
चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के

एक कील भी नहीं ठोक पाया था   
सूनी सपाट दीवार पे

हालांकि हाथ चलने से मना नहीं कर रहे थे 
शायद दिमाग भी साथ दे रहा था
पर मन ...
वो तो उतारू था विद्रोह पे 

ओर मैं ....

मैं भी समझ नहीं पाया
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में  

तुम से बेहतर मन का द्वन्द कौन समझ सकता है माँ ... 
जीवंत चित्र उकेरती रचनाएँ माँ के बारे में जितना लिखे उतना ही कम है, 

पुस्तक का नाम - कोशिश माँ को समेटने की 
लेखक – दिगम्बर नासवा 
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन
सी-46 सुदर्शनपुरा एरिया एक्सटेंशन नाला रोड 22 जयपुर 302006

- कोशिश माँ को समेटने की

- संजय भास्कर

20 अप्रैल 2023

मुमताज़ नाम से ही हिट हो जाती थी फिल्में ......संजय भास्कर

 

    बॉलीवुड ऐसी दुनिया है जहाँ जब इंसान का सिक्का चलता है तो तमाम बुलंदियां उसके आगे छोटी दिखाई देती है आज हम आपको ऐसी ही एक अभिनेत्री के बारे में  जो कभी अपनी मधुर मुस्कान और नटखट अदाओं के लिए इतनी मशहूर थी की फिल्म में उनका होना यानि फिल्म के हिट होने की गारंटी सत्तर के दशक में अभिनेत्री मुमताज अपनी ख़ूबसूरती से लेकर अभिनय तक के लिए चर्चित रही थीं। उनकी एक झलक पाने को दर्शक बेताब रहा करते थे 70 के दशक की सबसे कामयाब जोड़ी मुमताज और राजेश लोग के इस कद्र दीवाने थे जब राजेश खन्ना ने मुमताज को देखकर गुनगुनाया, 'करवटें बदलते रहे सारी रात हम', तो लगा कि हिंदी के सुपरस्टार वाकई में मुमताज की यादों में रात भर करवटें बदलते रहे हों। कुछ हद तक सच भी था क्योंकि 60-70 के दशक में राजेश खन्ना और मुमताज की जोड़ी ने कई हिट फिल्मों में काम किया। इस जोड़ी की साथ में जितनी भी फिल्में रहीं उन सभी ने सफलता के कदम छुए.....ये जोड़ी पर्दे पर जितने करीब नजर आती थी दरअसल वास्तविक जिंदगी में भी ये जोड़ी उतने ही करीब मानी जाती थी। 70 के दशक में फैंस मुमताज और राजेश के ढेरों दीवाने थे,70 के दशक में इन दोनों के इश्क की खबरों ने जमकर सुर्खियां भी बटोरीं दोस्तीं एक दौर था जब सब के दिल में राज करने वाली मुमताज जब परदे पर आतीं थी तो दर्शकों के दिल की धड़कनें रुक सी जाती थी.हर कोई उनकी अदाओं और अदाकारी का दीवाना था.लेकिन, साठ और सत्तर के दशक की इस हसीन नायिका को आज भुला दिया गया है. 69 वर्षीय मुमताज बचपन से ही अभिनेत्री बनना चाहती थी मुमताज़ का जन्म 31 जुलाई, 1947 को मुंबई में हुआ था और बचपन से ही उनका सपना एक अभिनेत्री बनने का ही था.उस समय मुमताज की मां नाज और आंटी नीलोफर दोनों ही एक्टिंग की दुनिया में सक्रिय थीं, लेकिन वह महज जूनियर आर्टिस्ट के ही रूप में काम किया करतीं थी. साठ के दशक में मुमताज ने भी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने शुरू कर दिए थे.
मुमताज़ के साथ राजेश खन्ना पर फिल्माए गाने लोगों को आज भी याद हैं। सावन के महीने में सुने जाने वाले, ‘जय जय शिवशंकर’ की हो, या फिर ‘गोरे रंग पर इतना…’ सबके सब सदाबहार गाने हैं !!


- संजय भास्कर 

25 मार्च 2023

माँ के हाथों की बनी रोटियाँ :)

 

( चित्र गूगल से साभार  )

रोजगार की तलाश में 
घर से बहुत दूर 
बसे लोग 
ऊब जाते है जब 
खाकर होटलो का बना खाना 
तब अक्सर ढूंढते है 
माँ के हाथों की बनी रोटियाँ  
पर नहीं मिलती 
लाख चाहने पर भी वो रोटियाँ  
क्योंकि कुछ समय बाद 
याद आता है घर तो छोड़ आये 
इन्ही रोटियों के लिए..... !!

- संजय भास्कर   

14 जनवरी 2023

सभी मित्रों को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं :)

 



शब्दों की मुस्कुराहट ब्लॉग की ओर से ब्लॉग जगत के सभी साथियों को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !  

- संजय भास्कर

23 नवंबर 2022

मेरी कलम से संग्रह समीक्षा युगांतर.......आशालता सक्सेना

पुस्तक चर्चा कुछ मेरी कलम से युगांतर संग्रह समीक्षा.....लेखिका आशालता सक्सेना :)

कुछ दिनों से व्यस्तताएँ बढ़ गई है पर व्यस्त जीवन से कुछ समय बचाकर आज की चर्चा मे आदरणीय आशालता सक्सेना जी के काव्य संग्रह .....युगांतर..... 

जो विविध आयाम का अनोखा लेखन उजागर करता है 

विकराल रूप ले लहरों ने
बीच भँवर तक पहुचाया 
जीवन नैया डूब रही
असंतोष के भँवर मे 
जीवन भार सा हुआ
संतुष्टि के आभाव मे 
खुशीयां सारी खो गई 
जीवन के अंतिम पड़ाव में! 

आदरणीय आशा जी रचना संसार का एक पड़ाव है युगांतर जिसमे लेखिका ने बदलते युग का आकलन करते हैं अपनी अनुभूतियों को रेखांकित किया है संकलन मे वर्तमान युग के मर्मस्पर्शी चित्र है कल और आज की सोच मे उपजे अंतर के कारण वृद्दों के सम्मान मे हो रही कमी की टीस,बिना बेटी के घर सूना, शिक्षा के क्षेत्र परिवर्तन न दिखाई देने की पीड़ा, कलम की आज़ादी याए सब कविताओं मे रेखांकित की है 

उनका कहना है मैं तो बस लिख रही हूँ और क्यों लिख रही हूँ, यह नहीं जानती मेरे मन में तरह तरह के विचार उठते है और इन विचारो के साथ जीवन के कड़वे मीठे अनुभवों का सिलसिला खुलता जाता है अनुभूतिय शब्दों का लिबास पहन कर अभिव्यक्त होने लगती है यह क्रम पिछले दस-बारह सालो से सतत चल रहा है उन्हे लेखन के संस्कार ममतामयी श्रेष्ठ कवियित्री माता से मिले है ! यह उनकी संस्कारो का ही फल है विवाह के बाद घर गृहस्थी और शिक्षा सेवा में व्यस्त रही और सेवानिवृति के बाद अध्यन व लेखन से जुडी हूँ  जिसमे मुझे मेरी छोटो बहन कवियित्री श्री मति साधना वैद का भरपूर प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है.......आपके अब तक काव्य संग्रह 

1 ....अनकहा सच  2 ....अंत:प्रवाह
3 .....प्रारब्ध         4.....शब्द प्रपात 
5 ....सुनहरी धूप   6....सिमटते स्वप्न, 
7 ....काव्य सुधा   8....यायावर, 
9 .....पलाश      10....आकांक्षा 
11 ...निहारिका   12....अपराजिता 
13 .....विभावरी  14......युगांतर
प्रकाशित हो चुके हैं! 

मार्च 2022 में मुझे श्रीमती आशालता सक्सेना जी का युगांतर संकलन पढने को मिला जो बहुत ही पसंद आया आशा सक्सेना जी जिन्हें आप सभी आकांशा ब्लॉग में पढ़ते रहे है उनकी ज्यादा तर प्रकृति पर उनकी कविताये मन को बहुत प्रभावित करती हैं श्रीमती आशा लता सक्सेना उन्ही में से एक है युगांतर संकलन की भूमिका डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने लिखी है !

पसंकलन मे कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है अंग्रेजी की प्राध्यापिका होने के बावजूद कवयित्री ने हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग व्यक्त करते हुए लिखा है 

कवयित्री ने काव्य को सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक युगांतर को प्रभावशाली बनाया है आशा जी की पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन है आज के समय में साहित्य जगत में अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप देना हर किसी के बस की बात नहीं है युगांतर संग्रह की कविताएँ एकदम सटीक है ढेरों शांनदार कविताएँ है...... 

संग्रह की पहली कविता की शुरुआत गणेश जी पर कविता से

हे गणनायक सिद्धिविनायक
प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता
कामना मेरी पूर्ण करो प्रभु
आया शरण तेरी......... 
विचलन कविता मे विचलित मन की कुछ पंक्तिया
मन की बातें मन मे ही 
उलझी सी सदा बनी रहती है
गंगा मैली! 
प्रकृति का आलम......... 
भावों की उत्तंग तरंगें
जब विशाल  रूप लेतीं
मन के सारे तार छिड़ जाते
उन्हें शांत करने में .....
पर कहीं कुछ बिखर जाता
किरच किरच हो जाता
कोई उसे समेंट  नहीं पाता
अपनी बाहों में |
संसार अनोखा लेखन का
वाक्य एक अर्थ अनेक
विविध रंग उन अर्थों के
लेखन की सोच दर्शाते है....... 

कुछ रचनाओं मे ईश्वर के प्रति समर्पण भाव भी प्रदर्शित हुआ है संग्रह की कविताएँ एकदम सटीक है !! 
प्रश्न कैसे कैसे...... 

अनगिनत सवाल मन में उठते 
किसी का उत्तर मिल पाता 
किसी को बहुत खोजना पड़ता 
तब जा कर मिल पाता |
कुछ सवाल ऐसे होते 
जिनके उत्तर बहुत दिनों के बाद मिलते 
तब तक आशा छोड़ चुके होते 
सोचते अब न मिलेंगे
पर अचानक मिल जाते .... 
बरसात का आलम......
उमढ घुमड़ जब बादल आए 
 वायु जब मंद मंद चले महकाए 
मेरे बदन में सिहरन  सी दौड़े 
एक अनोखा सा एहसास हो 
जो छू जाये तन मन को .....
संग्रह मे ढेरों कविताएँ है जैसे.....
घर या अखाड़ा..... अंतर का व आज मे...... सत्य आज का....... रिश्ते बदल गये...... एक दिन और बीता......नारी आज की.....बदलता युग.....असलियत भूल गए.....रोटी.... आज़ाद कलम...... शिकायत...... मेरी लाडली...... ठहराव.....आदि.....आशा सक्सेना जी को सभी काव्य संकलनो के लिए हार्दिक शुभकामनाये.....!! 
  
पता - श्रीमती आशा लता सक्सेना
सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456010 
पुस्तक प्राप्ति हेतु लेखिका आशा सक्सेना जी से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।

#युगांतर काव्य संकलन (155 कविताएँ ) 

- श्रीमती आशालता सक्सेना

- संजय भास्कर