08 जनवरी 2020

... मेरा मफलर :)

नववर्ष 2020 की मंगलकानाओं के साथ सभी साथियों को मेरा नमस्कार कई दिनों के बाद आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी नई रचना के साथ उम्मीद है आपको पसंद आये......!! 


सर्दी के मौसम में
मैं और मेरा मफलर
बन जाते है 
गहरे दोस्त
मफलर की गर्म बाहें देती है
मुझको एक 
गर्म एहसास हमेशा
जो लिपट कर मेरी
गर्दन से
झूलता रहता है मेरे कांधों पर।
और हमेशा देता है एक गर्म एहसास
पर जब कभी ठिठुरन से
ऐठ जाते है
मेरे कान तो घुमा लेता हूँ
सर के ऊपर से
एक बार
लम्बी बाहों की तरह
क्योंकि मफलर
भी लगता है मुझे मेरा अपना
जो रहता है तैयार
हमेशा बाहें फैलाये .......!!

- संजय भास्कर


19 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 08 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

कविता रावत ने कहा…

मफलर रक्षक का काम करता है अपना बनकर
बहुत खूब सामयिक रचना प्रस्तुति

Meena Bhardwaj ने कहा…

समसामयिक सृजन । आजकल मफलर सच्चा सहसाथी है सर्दी से
बचाव के लिए ।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुंदर..

Anuradha chauhan ने कहा…

वाह बेहतरीन 👌👌

Meena sharma ने कहा…

हल्की फुल्की सुंदर रचना संजय जी। जब ठंड अधिक पड़ती है तब ही मफलर जैसी छोटी सी वस्तु का महत्त्व पता चलता है।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3575 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

मन की वीणा ने कहा…

वाह गजब! अच्छा विषय लिक से हटकर ।
सुंदर।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 09 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



1937...क्योंकि लगी आग में झुलसा अपने घर का कोई नहीं होता है...



Prakash Sah ने कहा…

वाह! मफलर में एक दोस्त ढूंढ लिया आपने। सुन्दर रचना।

Subodh Sinha ने कहा…

मफ़लर तो मफ़लर है ही पर ये शब्द/संज्ञा कुछ ऐसा रच-बस गया है हमारे रोजमर्रे की व्यवहारिक बोलचाल या साहित्यिक भाषा में कि हमारी सभ्यता-संस्कृति के मिटने की गुहार लगाने वाली और मातृभाषा की दुहाई देने वाली भीड़ भी जब इसे धड़ल्ले से बोलती है तो मन को बड़ा सुकून मिलता है, खट्टा नही होता कि चलो कुछ तो स्वीकार्य है। अतीत के दुम से तो नहीं जकड़े ना लोग कम से कम इस संदर्भ में ... क्योंकि मफ़लर शब्द/संज्ञा अंग्रेजों की देन -Muffler - है, जिसे हिन्दी में गुलबंद कहते हैं और ये गुलबंद भी फ़ारसी के गुलूबंद से आया है यानि गुलू अथार्त गला यानि गला को बंद करने वाला गुलूबंद से आया गुलबंद और उस से आया मफ़लर ...
मालूम नहीं, अपनाते तो सब हैं यहाँ व्यंजन खिचड़ी सा सुपाच्य खिचड़ी संस्कृति पर हुआँ-हुआँ कर संस्कृति बचाने का गुहार लगा कर अपनी दोहरी मानसिकता का परिचय देने से हिचकते भी नहीं ... कमाल है यार ....

शुभा ने कहा…

वाह!!संजय जी ,मफलर तो आपका बहुत अच्छा मित्र बन गया है ।

Sudha Devrani ने कहा…

मफलर की गर्म बाहें देती है
मुझको एक
गर्म एहसास हमेशा
जो लिपट कर मेरी
गर्दन से....
बहुत सुन्दर मानवीकरण....
वाह!!!

Jyoti Dehliwal ने कहा…

संजय भाई, बहुत ही सुंदर कविता। मफलर पर भी इतनी गहराई में लिखना। बहुत सुन्दर।

Kamini Sinha ने कहा…

सर्दी का सबसे प्यारा दोस्त मफलर ,बहुत खूब... संजय जी

Abhilasha ने कहा…

वाह सुन्दर रचना

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

बहुत ही सुंदर RCHNAA....kyi log yanz krte hain ki cheezon se gehra rishtaa kyun bnaate hain...pr wo ye nhi smjhte yahaan kisi cheez ka mahtav nhi..usse jude ehsaason ka mahtaw he


bdhaayi

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…

बहुत सुंदर।
आपके प्रतीक और रचना का गढबन्धन बहुत अच्छा लगा।
सादर

Ignou projects ने कहा…

I have been browsing online more than 4 hours today, yet I never found any interesting article like yours.
It's pretty worth enough for me. In my opinion, if all site owners and bloggers made good content as you did,
the internet will be a lot more useful than ever before.


latest news in hindi