05 मई 2010

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया


मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ाता चला गया

बरबादियों का शोक मानना फिजूल था
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ा…

जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया में उसको भूलता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ा…

ग़म और खुशी में फर्क महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मुकाम पे लाता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ा…

मेरा पसंदीदा गाना जिसमें एक प्रेरणा है - जीने की।