02 दिसंबर 2010

मगर फिर भी चाहता हूँ कुछ करूँ पिता के लिये----जन्मदिन पर विशेष

 २ - दिसम्बर आज मेरे पापा का जन्मदिन है 
पहले पापा को जन्मदिन की  ढेर सारी शुभकामनायें.
उनको एक छोटी सी भेंट कविता के रूप में  

तुम मेरे जीवन में
अदृश्य रूप से
शामिल अपना
अस्तित्व बोध
करवाते
बेशक माँ नहीं
मगर माँ से
कमतर भी नहीं
माँ को तो मैंने
अपनी साँसों के
साथ जान लिया
मगर तुम्हें
तुम जिसके कारण
मेरा वजूद
अस्तित्व पाया
उसे , उसके स्पर्श
को जानने में
पहचानने में
मुझे वक्त का
इंतजार करना पड़ा
और फिर वो
भीना भीना
ऊष्म स्पर्श
जब पहली बार
मैंने जाना
तब खुद को
संपूर्ण माना

मेरी ज़िन्दगी

के हर कदम पर
मेरी ऊंगली थामे
तुम्हारा स्नेहमय स्पर्श
हमेशा तुम्हारे
मेरे साथ होने
के अहसास को
पुख्ता करता गया
मेरे हर कदम में
होंसला बढाता गया
मुझे दुनिया से
लड़ने का जज्बा
देता गया
मुझे पिता में छुपे
दोस्त का जब
अहसास कराया
तब मैंने खुद को
संपूर्ण पाया |

अब एक मुकाम
पा गया अस्तित्व मेरा
मगर तुम अब भी
उसी तरह
फिक्रमंद नज़र आते हो
चाहे खुद हर
तकलीफ झेल जाओ
मगर मेरी तकलीफ में
आज भी वैसे ही
कराहते हो
अब चाहता हूँ
कुछ करूँ
तुम्हारे लिए
मगर तुम्हारे
स्नेह, त्याग और समर्पण
के आगे मेरा
हर कदम तुच्छ
जान पड़ता है
चाहता हूँ
जब कभी जरूरत हो
मेरी तुम्हें
तुम्हारे हर कदम पर
तुम्हारे साथ खड़ा रहूँ मैं
बेशक तुम्हारे ऋण से
उॠण हो नहीं सकता
जीवन देकर भी
वो सुख दे नहीं सकता
मगर फिर भी
चाहता हूँ
कुछ करूँ
तुम्हारे लिए
अपने पिता के लिए 



...............संजय कुमार