24 मार्च 2010

आजादी के महानायक





मेरा रंग दे बसंती चोला, माहे रंग दे। इन लाइनों को सुनने के बाद देश पर जान कुर्बान करने वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की यादें ताजा हो जाती हैं। दो साल पहले भी एक फिल्म रंग दे बसंती के जरिए देश के युवाओं में भ्रष्टाचार आदि से लड़ने की अलख जगाने का प्रयास किया गया। युवाओं के इस देश में कुछ हलचल भी दिखी, लेकिन कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा। सच तो यह है कि आज एक बार फिर ऐसे ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू जैसे युवाओं की जरूरत है जो भारत को भ्रष्टाचार, अपराध समेत कई समस्याओं से निजात दिला सकें। भारत मां के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूमने वाले इन तीनों क्रांतिकारियों को 23 मार्च 1931 को ही फांसी दी गई थी।
आजादी के इन महानायकों को भी हम भी याद करते हैं |


संजय भास्कर