मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए सीमा सिंघल यानि मेरी दीदी ( सदा जी जो आवाज है दिल की ) ब्लॉगजगत में सभी परिचित है सदा जी की की रचनाएँ अपने आप में अनूठी है जो सीधे दिल को छूती है हर व्यक्ति की संवेदनाओ को आकृति देती कविताये जीवंत लगती है सदा जी रचनाओं की एक और खासियत इनकी रचनाओ के भाव मन को झकझोर देते है सदा जी की रचनाये मात्र शब्द कौशल की बानगी नहीं है इनकी कविताये सहज होते हुए भी पाठक के चिंतन को कुरेदता है .....!!
मेरी देह अधूरी है सदा दी की लिखी पंक्तियाँ जिसे मैं लगभग 20 बार पढ़ चूका हूँ रचना की पंक्तियाँ आज साँझा कर रहा हूँ उम्मीद है सभी पसंद आएगी ............!!
ये सच है
मेरी देह अधूरी है
पर मेरी आत्मा पूरी है
इसमें भी वैसे ही सपने बसते हैं
जैसे किसी सक्षम व्यक्ति के होते हैं
मेरे लिये बैसाखियां भी सहारा नहीं बनी
मुझे हांथों से ही सारा काम करना होता है
खाना भी बनाती हूं, चलती भी हूं, इन्हीं हांथों से
पर आश्रित नहीं हूं मैं किसी की
मेरी ही तरह स्वाभिमानी हैं वो भी साथी मेरे
जो चलते हैं बैसाखियों के सहारे
या अंधेरा है जिनके जीवन में जन्म से
फिर भी एक ऊर्जा है जीवन में कुछ कर गुजरने की
जाने क्यों लोग हम पर तरस खाते हैं,
सच कहूं तो.... हमें दया से
आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं मिलती ....
हम पल दो पल के लिए दिशाविहीन हो जाते हैं
लोगों के परोपकार से,
पर दूसरे ही पल फिर तैयार हो जाते हैं
ईश्वर ने जो हमें अधूरी देह के साथ इस धरा पर भेजा है
हम उसकी कभी शिकायत नहीं करते
आगे बढ़ने का हौसला कायम रखते हैं
निराशा के पलों मे
आंसुओं की बूंदों से आशा के मोती सहेजती
हमारी हथेलियां कुछ कर गुज़रने की चाहत में
स्वयं ही पोछती हैं अश्को को
मंजिल की तलाश में हमारे कदम
स्वयं ही आगे बढ़ते जाते हैं
हम आधी-अधूरी जिन्दगी से
पूरे जीवन को सच्चाई से जीते जाते हैं .....!!
( C ) संजय भास्कर
मेरी देह अधूरी है सदा दी की लिखी पंक्तियाँ जिसे मैं लगभग 20 बार पढ़ चूका हूँ रचना की पंक्तियाँ आज साँझा कर रहा हूँ उम्मीद है सभी पसंद आएगी ............!!
ये सच है
मेरी देह अधूरी है
पर मेरी आत्मा पूरी है
इसमें भी वैसे ही सपने बसते हैं
जैसे किसी सक्षम व्यक्ति के होते हैं
मेरे लिये बैसाखियां भी सहारा नहीं बनी
मुझे हांथों से ही सारा काम करना होता है
खाना भी बनाती हूं, चलती भी हूं, इन्हीं हांथों से
पर आश्रित नहीं हूं मैं किसी की
मेरी ही तरह स्वाभिमानी हैं वो भी साथी मेरे
जो चलते हैं बैसाखियों के सहारे
या अंधेरा है जिनके जीवन में जन्म से
फिर भी एक ऊर्जा है जीवन में कुछ कर गुजरने की
जाने क्यों लोग हम पर तरस खाते हैं,
सच कहूं तो.... हमें दया से
आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं मिलती ....
हम पल दो पल के लिए दिशाविहीन हो जाते हैं
लोगों के परोपकार से,
पर दूसरे ही पल फिर तैयार हो जाते हैं
ईश्वर ने जो हमें अधूरी देह के साथ इस धरा पर भेजा है
हम उसकी कभी शिकायत नहीं करते
आगे बढ़ने का हौसला कायम रखते हैं
निराशा के पलों मे
आंसुओं की बूंदों से आशा के मोती सहेजती
हमारी हथेलियां कुछ कर गुज़रने की चाहत में
स्वयं ही पोछती हैं अश्को को
मंजिल की तलाश में हमारे कदम
स्वयं ही आगे बढ़ते जाते हैं
हम आधी-अधूरी जिन्दगी से
पूरे जीवन को सच्चाई से जीते जाते हैं .....!!
मेरी और से एक बार पुन: सदा जी को निरंतर लेखन के लिए को ढेरों शुभकामनाएँ........!!
( C ) संजय भास्कर
13 टिप्पणियां:
बहुत खूब ...., हमेशा की तरह एक और नायाब लेख ...., एक और खूबसूरत सा परिचय . सदा जी की रचना बेहद हृदयस्पर्शी हैं .उन्हें लेखन जगत में अपार सफलताएँ मिलें ऐसी मंगल कामना है उनके लिए.
बहुत खूब
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १९०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, 1956 - A Love story - १९०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शुक्रिया मीना जी ...
अरे वाह!! भाई आपके इस स्नेह ने तो भावुक कर दिया ... आपने बहुत ही बेहतरीन बना दिया इस पोस्ट को ... आभार सहित शुभकामनाएं 💐💐
लाजवाब
वाह्ह्ह...सच में सदा जी की कविताएँ बेहद उम्दा होती है।विचार भाव सुघढ़ शिल्प गूँथना उनकी विशेषता है।संजय जी आपकी लेखनी से प्रसवित सदा जी रचनात्मक विशेषता और भी विशेष लगी।
हार्दिक बधाई सदा जी को।
एक अच्छी पोस्ट अच्छी लेखिका की ...
सदा जी को पढता हूँ हमेशा ... मेरी बहुत बहुत शुभकामनायें ...
such a nice post
हृदयस्पर्शी सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
सदा जी की मैं ने यह पहली पोस्ट पढ़ी है। सच में अद्भुत हैं। बहुत खूब।
सदा जी की अनुपम और हृदयस्पर्शी रचना..
साँझा करने के लिए धन्यवाद संजय जी...
मर्मस्पर्शी रचना सदा जी को बधाई हो
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