( चित्र - गूगल से साभार )
उस चौराहे पर
पड़ी वह स्त्री रो रही
है बुरी तरह से
उसका बलात्कार हुआ है
कुछ देर पहले
वह सह रही है असहनीय
पीड़ा कुछ
दरिंदो की दरिंदगी का
भीड़ में खड़े है
लाखो लोग पर मदद का हाथ
कोई नहीं बढाता
इंसानियत नहीं बची
ज़माने में
क्योंकि हम भी डरते है.........!!!
- संजय भास्कर
26 टिप्पणियां:
yah bhi ho sakta hai ! lekin dar kis baat ka hai ?
बहुत सटीक रचना ।
भीड़ का हिस्सा हर कोई बन जाता है ..दु:खद..
डर अपने अपने ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3 - 12 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2179 में दिया जाएगा
धन्यवाद
सुंदर और सार्थक। क्या इंसानियत बची भी है?
सत्य को बयाँ किया है
सत्य को बयाँ किया है
सहीं कहाँ आपने
सत्य कहा आपनें।
डर से ही बढ़ावा मिलता जा रहा है
मर्मस्पर्शी और सटीक रचना...
दुखद स्थिति पर यही आज का सच है.
आपकी लिखी रचना वर्षान्त अंक "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 31 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बेहद संजीदा रचना की प्रस्तुति। बहुत ही अच्छा लिखा है।
Right , hum bhi darte hain. We just choose to paas by troubled by our own issues ....
जाने कितने ही डर बिठा लेते हैं हम कुछ अच्छा करने की सोचने से पहले ..
मर्मस्पर्शी रचना
बहुत ही सुंदर और मर्मस्पर्शी रचना की प्रस्तुति।
यही समाज की कुरूपता है।
काश की चटना जागे समाज की ....
http://zeerokattas.blogspot.in/
ये बहुत अच्छी जानकारी है मेने भी अपना हेल्थ टिप्स इन हिंदी में ब्लॉग लिखना शुरू किया है जिससे सभी भारतवासी आयुर्वेद और घरेलू नस्खों द्वारा विभिन्न रोगों का उपचार कर पाएंगे
बेहद संजीदा रचना की प्रस्तुति। बहुत ही अच्छा लिखा है।
सत्य को बयाँ किया है मर्मस्पर्शी रचना की प्रस्तुति।
आज के विषय को ध्यान में रखते हुए सबसे सटीक रचना
मन को कचोटती है यह रचना.शायद आपकी रचना पढ़ कर लोगों का डर खत्म हो जाए.
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