25 फ़रवरी 2015

किस बात का गुनाहगार हूँ मैं -- संजय भास्कर

पुरानी डायरी से कुछ पंक्तियाँ

चित्र - ( गूगल से साभार )
किस बात का
गुनाहगार हूँ मैं,
खुशियाँ भरता हूँ
सबकी जिंदगी में
टूटे दिलों को दुआ देता हूँ
दुश्मन का भी भला करता हूँ,
क्या इसी बात का
गुनाहगार हूँ ,
मेरी जिंदगी में कांटे
डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
बचाता हूँ दोस्तों को
हर इलज़ाम से
कहीं दोस्त बदनाम
न हो जाये
मेरे लिए यही है
जिंदगी का दस्तूर
क्या इसलिए गुनाहगार हूँ मैं
साथ निभाता हूँ
सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा
हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
भास्कर पूछता है
क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मेरा
आखिर
किस बात का ... गुनाहगार हूँ  मैं  !!

( C )  संजय भास्कर

33 टिप्‍पणियां:

Sanjay Kumar Garg ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति साभार! संजय जी!
धरती की गोद

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दुनिया हर किसी को कटघरे में खड़ा कर देती है उसका क्या ... अपना कर्म किये जाना चाहिए ... बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है संजय जी ...

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…

क्या इसलिए गुनाहगार हूँ मैं
साथ निभाता हूँ
सभी अपनों का

बहुत खूब.
जनाब मगर हर सवाल का जवाब नही मिल सकता.

Rewa Tibrewal ने कहा…

wah sanjay umda abhivyakti...ye aise kuch sawal hain jinke jawab milna bahut mushkil

Rahul... ने कहा…

कुछ गुनाह हम सबसे कराये जाते हैं। बस आपको अपनी गवाही खुद देनी है और सजा भी। बड़ा दिलचस्प खेल है। बढ़िया पोस्ट।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-02-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1901 में दिया जाएगा
धन्यवाद

shalini rastogi ने कहा…

मन की बात कह दी आपने कविता के माध्यम से . भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
न्यू पोस्ट अनुभूति : लोरी !

Himkar Shyam ने कहा…

जिंदगी एक सवाल ही तो है...तलाशते रहते है हम जवाब उम्र भर… सुंदर कविता प्रस्तुत करने के लिए बधाई संजय जी...!!

कविता रावत ने कहा…

दुनिया कुछ भी कहे लेकिन अपना कर्म करने से पीछे नहीं हटना चाहिए ...अच्छे का एक न एक दिन भले ही बहुत देर से सही अच्छा परिणाम जरूर मिलता है .....कठिन परिस्थितियों में ही मनुष्य की परीक्षा होती है...उसे ऐसे में खुद पर भरोसा करना चाहिए ...

रश्मि शर्मा ने कहा…

सुंदर अभि‍व्‍यक्‍ति‍

कहकशां खान ने कहा…

बहुत ही सुंदर पंक्तियां और उनका भाव।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

संवेदनशील लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है पर क्यों होता है ? इसी सम्वेदना से भरी सुन्दर कविता .

Harshita Joshi ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ

शिवनाथ कुमार ने कहा…

जो हम सही रहे तो समय के साथ जमाने की सोच बदल ही जाएगी
इसी आशा और सोच के साथ कर्त्तव्य पथ पर चलते जाना चाहिए
संवेदनापूर्ण और बहुत ही सुन्दर रचना संजय जी !!

Asha Joglekar ने कहा…

कोई कोई सवाल अनुत्तरित रहने के लिये ही होता है। पर नासवा जी की तरह मैं भी कहूंगी कर्म करते जाइये।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं

कलाधर्मी इसी तरह के गुनहगार होते हैं,
तभी तो नया सृजन कर पाते हैं।

Anita ने कहा…

यह आपकी ही नहीं सबकी कहानी है....तभी तो भगवान बुद्ध ने कहा है...जीवन दुःख है, मरण दुःख है, रोग दुःख है, जरा दुख है...यहाँ कोई गुनाहगार हो इसलिए ही दुखी नहीं है..बल्कि जीवन को जैसा हम जानते हैं वह दुःख रूप ही है...तभी तो बुद्ध पुरुष महाजीवन की तलाश करते हैं...

Satish Saxena ने कहा…

हर प्रश्न का जवाब नहीं होता , संजय !!

Free Ebook Publisher ने कहा…

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प्रभात ने कहा…

old is gold.......सही है मस्त आपकी डायरी की इतनी सुन्दर और भावपूर्ण रचना .......पता ही नहीं लगा ये सवाल है या जवाब .

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति साभार

KAHKASHAN KHAN ने कहा…

बहुत खूब सर जी। क्‍या खूब लिखा है।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

KAHKASHAN KHAN ने कहा…

भाई बहुत लंबे वक्‍त से आपकी नई पोस्‍ट ब्‍लाग पर नहीं आई। आशा है कि जल्‍दी ही आएगी।

Prabodh Kumar Govil ने कहा…

Achchha lagaa.

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
संजय भाई ..पुरानी डायरी में मन को छूने वाली नयी बातें
आनंद दाई
भ्रमर ५

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

हाँ हाँ शायद ... यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के ग़मों को
छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हँसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में
आंसू बहाता रहा हूँ मैं
संजय भाई ..पुरानी डायरी में मन को छूने वाली नयी बातें
आनंद दाई
भ्रमर ५

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

क्या बात है संजय भाई। सही है।

virendra sharma ने कहा…

बढ़िया रचना ,अपनी अपनी आदत है अपना एक स्वभाव ,कबहू न खावो ताव।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

Unknown ने कहा…

बहुत खूब सर जी। क्‍या खूब लिखा है

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर और सच्चाई लिए होती हैं आपकी रचनाएँ .