13 फ़रवरी 2013

आने वाले दिनों में -- संजय भास्कर


आने वाले दिनों में जब 
हम सब        
कविता लिखते पढ़ते बूढ़े
हो जायेंगे !
उस समय लिखने के लिए
शायद जरूरत न पड़े
पर पढने के लिए 
एक मोटे चश्मे की
जरूरत पड़ेगी 
जिसे आज के समय में हम
अपने दादा जी की आँखों पर
देखते है !
तब पढने के लिए
ये मोटा चश्मा ही होगा
अपना सहारा
आने वाले दिनों में
देखता हूँ यह स्वप्न
मैं कभी - कभी  
क्‍या आपको भी
ऐसा ही
ख्‍याल आता है कभी ........:) 


@ संजय भास्कर  


61 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब संजय जी ... उस समय को याद कर के हूबहू ऐसा ही चित्र उभरता है ... मोटे चश्में वाले दादा जी ... बहुत अच्छा लिखा है ...

kunwarji's ने कहा…

bahut door ki sochi h sanjay bhai....
klpna ki udaan me jane kaha pahunch h..

kunwar ji

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

यहाँ तो चश्मा चढ़ भी गया :-)

बहुत बढ़िया लिखा है ....

अनु

राहुल ने कहा…

ऐसा ही
ख्‍याल आता है कभी ....
......................................
ekdam..ekdam...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूब,,,संजय जी,
आप तो आने वाले समय में चश्मा लगने की बात सोच रहे है और यहाँ सोचने के(४५ साल पहले)ही चश्मा लग गया,,,,


RECENT POST... नवगीत,

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

चस्मा दूसरी आँख है कबसे हमारे साथ है -चिंता किस बात की --बहुत खूब
Latest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !

Rajesh Kumari ने कहा…

हमारा तो अभी से सहारा है वाह क्या भविश्य का चित्र उकेरा है

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

कविता लिखने वाले चाहे बूढ़े हो जाए चाहे चश्मे के नंबर बढ़ जाए। वे लेखन रोग के रोगी उससे मुक्त नहीं हो पाते और लिखते लिखते ही मर जाते हैं . अच्छी बात सोची है।

Sadhana Vaid ने कहा…

लिखने पढ़ने का शौक है तो चश्मे से कैसा संकोच ! हम तो सालों से चढ़ाए हुए हैं ! बुढापे का अच्छा चित्र खींचा है !

Girish Kumar Billore ने कहा…

हमको लग गया
दांत हिल रहे है संजय
पर हमने लिखा है अभी अभी
लबों का थोड़ा सा खुलना
पलक का हौले से गिरना
समझ लेता हूं प्रिया तुम
चाहती हो क्या है कहना !!
http://voi-2.blogspot.in/2013/02/blog-post.html

राज चौहान ने कहा…

Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems...Sanjay bhai

राज चौहान ने कहा…

आने वाले दिनों में
देखता हूँ यह स्वप्न
मैं कभी - कभी
क्‍या आपको भी
ऐसा ही
ख्‍याल आता है कभी ........:)
......बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....!!!

shashi purwar ने कहा…

bahut khoob ...khyal ka kya hai kabhi bhi bin bulaye chale aate hai aur apne kal ko dikha jate hai :)

kavita verma ने कहा…

bahut aage ki soch sundar

संध्या शर्मा ने कहा…

चष्मे से ही सही शब्दों की मुस्कुराहटें देखने तो मिलेंगी न... बहुत सुन्दर रचना... शुभकामनायें

Unknown ने कहा…



बहुत खूब संजय जी, बहुत अच्छा लिखा है

Unknown ने कहा…



बहुत खूब संजय जी, बहुत अच्छा लिखा है

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

एक कोकिला से दूसरी कोकिला तक - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें ।

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

chashma pahne na pahne par dadajee to banna hi hai ....ho sakta hai ki aapki aankhen us samay bhi majboot hon ...hamari aankhon par to 9th se hi chashma lag gaya tha sanjay jee....bahut acchi kalpana .....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

उस समय लिखने के लिए
शायद जरूरत न पड़े
पर पढने के लिए
एक मोटे चश्मे की
जरूरत पड़ेगी

यथार्थपरक कविता....

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |
शुभकामनायें आदरणीय भास्कर जी -

mridula pradhan ने कहा…

badi swabhavik soch hai.......

***Punam*** ने कहा…

लगता तो है कुछ ऐसा ही है...!

Sneha Rahul Choudhary ने कहा…

kabhie kabhie nahi balki aksar mahsoos hota hai

शिवा ने कहा…

बहुत खूब संजय जी ...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत बढ़ियाँ..
लगता है ऐसा ही होगा एक दिन....
:-)

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

दादी तो हूँ ही पर चश्मा मोटा नहीं है अभी तक तो ,अब भढ़ेगा तो भी ठीक.जहाँ इतना वहाँ उतना सही !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हूँ..... काफी कुछ शायद ऐसा ही हो....

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

bahut badhiya ...

Unknown ने कहा…

Very nice! Atleast for me spectacles are part of my body!

Shalini kaushik ने कहा…

एकदम सही बात कही है आपने मीडियाई वेलेंटाइन तेजाबी गुलाब आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत सीधे साधे शब्दों में बहुत सही लिखा है |
आशा

सदा ने कहा…

वाह ... बहुत खूब
बेहतरीन प्रस्‍तुति

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आप जैसा ख्याल हमको भी आता है।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bahut sunder...

Unknown ने कहा…

भविष्य को चित्रांकित करती सीधी कविता , खूबसूरत बधाई

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बहुत सही है संजय भाई....कुछ ऐसा ही आने वाला कल

Asha Joglekar ने कहा…

अरे टेक्नॉलॉजी कितनी आगे चली गई है, चश्मा वस्मा कहां सीधे लैंस ही नया लगेगा और आंख नई । चश्मा तो हमारे जैसे सीनियर सिटिजन्स लगाते है ।
निश्चिन्त रहें ।

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है.

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

मोटे चश्में वाले दादा जी
बहुत अच्छा लिखा है
हाँ संजय भाई जब आप ने याद दिलाया तो याद आया कल आने वाला वो ज़माना वैसे भी कम्प्यूटर महाराज आँखों से प्रेम ज्यादा ही करते है ह हा ...
श्री प्रकाश नाना जी की याद आई
ठुल्लम ठुल्लम हाथी की बाल कविता
भ्रमर 5

Jyoti Mishra ने कहा…

hehe...
no I never think about that..
will deal with at that time only :P

Rewa Tibrewal ने कहा…

sahi kaha apne....very nice lines

Satish Saxena ने कहा…

बूढ़े और अभी से ....
शुभकामनायें !

tbsingh ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Dinesh pareek ने कहा…

क्या खूब कहा आपने या शब्द दिए है
आपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बूढ़े होने तक होंगे कि नहीं... पर चिता तक चश्मा... ये तो पक्का है. यही जीवन का सत्य है. सुन्दर रचना, बधाई.

रचना दीक्षित ने कहा…

वाह वाह क्या बात है अभी से क्यों इतनी चिंता. आखिर चश्मा भी और अधिक गहरे से देखने के लिये प्रेरित करेगा क्योंकि उसके साथ ही होगा एक लंबा अनुभव.

शिवनाथ कुमार ने कहा…

बिलकुल सही
एकदम वही चित्र उभर कर सामने आता है
भविष्य दर्शन कराने के लिए शुक्रिया :-)

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

अरुन अनन्त ने कहा…

संजय भाई बहुत ही सुन्दर लाजवाब भविष्य का रूप दिखा दिया आपने.

Satish Saxena ने कहा…

हमें तो यह स्वप्न नहीं आता क्योंकि पहले ही इस स्वप्न में से गुज़र रहे हैं !
हाँ तुम्हारे लिए शुभकामनायें संजय !
:)

priyankaabhilaashi ने कहा…


सही कहा आपने संजय जी..
शायद पड़ ही जाये ज़रूरत..!!

अंजना ने कहा…

बहुत खूब ...

राज चौहान ने कहा…

बहुत सही ...कुछ ऐसा ही आने वाला कल

मन्टू कुमार ने कहा…

Sochna padega :)

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

अब आदमी इतना बूढा कहाँ हो पा रहा है ..आपकी रचना ने भविष्य को सामने लाकर खड़ा कर दिया ..बेहतरीन

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

बहुत खूब संजय जी.....बहुत खूब

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत खूब, बहुत अच्छा लिखा है आपने .........

Kavita Rawat ने कहा…

आपने बिलकुल सही लिखा है....
सुन्दर प्रस्तुति!!!