किस बात का गुनाहगार हूँ मैं,
खुशिया भरता हूँ सबकी जिंदगी में ,
टूटे दिलो को दुआ देता हूँ ,
दुश्मन का भी भला करता हूँ |
क्या इसी बात का गुनाहगार हूँ ,
मेरी जिंदगी में कांटे डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
बचाता हूँ दोस्तों को हर इलज़ाम से
कहीं दोस्त बदनाम न हो जाये
मेरे लिए यही जिंदगी का दस्तूर है |
क्या इसीलिए मैं गुनाहगार हूँ ,
साथ निभाता हूँ सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा ,
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मे
किस बात का.................... गुनाहगार हूँ मैं !
चित्र :- ( गूगल से साभार )
..................... संजय कुमार भास्कर
110 टिप्पणियां:
अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
... bahut khoob ... behatreen ... dhamaakedaar !!
किसने कहा आपको गुनहगार और आपने मान भी या.
क्या इसीलिए मैं गुनाहगार हूँ ,
साथ निभाता हूँ सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा ,
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मे
किस बात का.................... गुनाहगार हूँ मैं !
बेहतरीन प्रस्तुति...
हाँ भाई यहाँ तो यही गुनाह है ....हम तो तुम्हें शुभकामनायें ही दे सकते हैं!
bahut bada gunah kar rahe ho bloggers ke Sachin tendulkar....:)
jinagi me khushi failane ka kaam, ye to bahut hi badi galti hai...:D
kya baat hai...chha gaye guru..
वाह! क्या बात है!
कभी पढ़ा था ...नेकी कर दरिया में डाल//
आपने क्या सोचा ...
sundar
साथ निभाता हूँ सभी अपनों का
जिंदगी की हर राह पर ....
बहुत ही सुन्दर भावमय करते हुये शब्द ...
बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
आपकी कविता में गहराई आ रही है संजय जी.. सुन्दर कविता..
अत्यंत गंभीर भाव लिए सुन्दर रचना.....वैसे लगता नहीं की आपने कोई गुनाह किया है......साधुवाद.
अरे भाई, क्या हो गया, इतनी सी उम्र में ऐसा क्या हो गया।
दर्द उठता है तो उठने दे, बयॉं मत करना
इसका अहसास ज़माने पे अयॉं मत करना।
संजय भाई, आपका अंदाजे बयां दिल को छूने वाला है। बधाई।
---------
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
संजय भाई
जो दुसरो को अमृत बाँटता है अंत मे उसके लिए विष ही बचता है।
अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
sundar panktiyan
आपको गुनाहगार किसने कह दिया ?
सुन्दर रचना, बधाई
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मे
किस बात का.................... गुनाहगार हूँ मैं !
......दुःख से ही तो आदमी दुनियादारी अछि तरह समझ पाता है! ऐसा सबको एक न एक दिन अनुभव होता ही है.
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ....
bahut sunder bhav hai.
किसी की मदद गुनाह हो ही नहीं सकती |बहुत भावनात्मक रचना |बहुत बहुत बधाई |अब स्वास्थ्य कैसा है |
आशा
मेरी जिंदगी में कांटे डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली ....
काफी सकारात्मक सोच ली हुई कविता ....धन्यवाद
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मे
किस बात का.................... गुनाहगार हूँ मैं !
Ishi bat ke to gunahgaar ho !
गुनाहगार तो वो हैं जिनसे औरों की अच्छाई सहन नहीं होती है।
कर भला , हो भला । फिर कैसा गुनाह !
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ....
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
बेहतरीन रचना!
मेरी शुभकामनायें हैं.चिंता न करें.
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा ,
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
भाई आपने सच कह दिया ..जिन्दगी में शायद कोई ही ऐसा व्यक्ति हो जिसने किसी को खुशियाँ देनी चाही हों और उसे गम न मिलें हों ...पर फिर भी खुशियाँ देने वालों के हौंसले कभी पस्त नहीं होते ..आपकी भावनाएं बहुत उत्तम है ..बनाये रखें
आपकी पूरी कविता जीवंत सच्चाई के बहुत करीब है ..पर आप कभी भी गुनहगार नहीं हो बस मददगार हो और ऐसे ही बने रहना ...शुक्रिया
मेरी जिंदगी में कांटे डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
इंसानों से प्रेम करने वाले हमेशा ऐसा ही करते आये हैं ...इतिहास उन्हें स्मरण करता है ..आप भी उस रह पर हो ...शुक्रिया
अरे ये क्या संजयजी, आपका तो ब्लॉग ही मुकुराहट बाटता है फिर इतनी मायूसी की बाते आप के ब्लॉग पर अच्छी नहीं लगती ... नहीं न, हौसला दीजिये हमें भी और खुद भी बढ़ते रहिये निरंतर और मुस्कुराते रहिये हमेशा हमेशा हमेशा ...........
पर आपकी कविता बहुत ही अच्छी है, सुंदर मन को छू लेने वाली .........
संजय जी आप बिल्कुल भी गुनहेगार नहीँ । किसने कह दिया आपसे ?
बहुत ही शानदार कविता है। लाजबाव भावोँ को कलमबद्ध किया है आपने ।
"गजल...........आईँ थी जब सामने मेरे तुम"
@ उदय जी..
@ राहुल सिंह जी..
@ फ़िरदौस ख़ान जी..
@ सतीश सक्सेना जी..
@ मुकेश सिन्हा जी..
आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया ...
यह सब आपकी शुभकामनाओं का ही परिणाम है
आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत आभार ! इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !
@ निलेश माथुर जी..
@ बबन पाण्डेय जी..
@ मृत्युंजय कुमार रॉय जी..
@ सदा जी ..
@ अरुण रॉय जी..
आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया ...
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
snjay bhayi bhut bhtrin lekin bhaai ko yaad nhin krte iske to aap bhi or hm bhi donon hi gunaahgar hen lekin tobaa ab glti nhin hogi aapko dil men bsaa liyaa he . akhtar khan akela kota rajsthan
nice...very nice....
भावपूर्ण प्रस्तुति।
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये धन्यवाद
इतिहास गवाह है साहब की लोगों ने अच्छा बनने की मोती कीमत चुकाई है.
अच्छा लगा.
ओह...लगता है आने में देर हो गयी..
क्या करें तबियत थोड़ी ख़राब चल रही है..
बेहतरीन रचना.....
कुछ सवालों का कोई उत्तर नहीं होता...
@ अरविन्द जांगिड जी..
@ तिलक राज कपूर जी..
@ जाकिर अली जी..
@ दीपक सैनी
@ संजय चोरासिया जी..
आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत आभार ! इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !
@ कविता रावत जी..
सत्य कहा आपने सबको एक न एक दिन अनुभव होता ही है.
बहुत बहुत आभार आपका
@ सुमन जी..
@ आशा माँ
अब तबियत ठीक है
@ मार्क रॉय जी..
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत" जी..
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
@ प्रवीण पाण्डेय जी..
@ डॉ टी एस दराल जी..
@ सुशील बाकलीवाल जी.
@ कैलाश शर्मा जी..
@ ॐ जी..
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
@ समीर लाल जी
@ कुंवर कुसुमेश जी..
@ केवल राम जी..
@ संध्या जी..
@ डॉ अशोक जी..
आप सभी शुभकामनाये मेरे साथ है साथ आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरा होसला बढ़ाने के लिए
मेरी जिंदगी में कांटे डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली ,
बेहतरीन रचना....आपकी भावनाएं बहुत उत्तम है ..बनाये रखें.
बेहतरीन प्रस्तुति
दूसरों के लिए अच्छा करने वाले को यह दुनिया हमेशा गुनाहगार ही मानती है ! दुनियाँ का यही दस्तूर है !
सुन्दर प्रस्तुति !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
कोंन कहता है कीससे कि भास्कर गुनाहगार है !
मैने तो सबसे सुना है कि भास्कर एक अच्छा इन्सान है !
बहुत सुन्दर कविता !
बधाई दोस्त !
दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति...सच है, जो जितना अपने ग़मों को छुपाकर दूसरों का भला करता है दुनिया उसे उतना ही बड़ा गुनाहगार महसूस करने को विवश कर देती है....
।जो कोई गुनाह नही करता वो ही सबसे बडा गुनहगार होता है………सामयिक प्रस्तुति।
मेरी ज़िंदगी के बिलकुल पास की कविता निकली संजय
आभार
मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं........
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा ,
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
बहुत ही भावपूर्ण कविता
जिंदगी की हर राह पर
क्या यही है कसूर मेरा ,
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
बहुत ही भावपूर्ण कविता
hmmmm rachna to achi hai par aapne sawal jo kiya uska jawab bhi milna chahiye na to aapka gunah ye hai ki aap gamo ko dil mein kyun chupate ho? bol kar man shant karlo hahahahaha
दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति.....सच है
keep writing sanjay.....all the best
@ अख्तर खान अकेला जी..
@ प्रियंका राठौर जी..
@ मनोज कुमार जी..
@ राज भाटिया जी..
@ राजेश कुमार जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और भी प्रगति कर पाऊं ....आप सबका धन्यवाद
@ शेखर भाई
@ भारतीय नागरिक जी..
@ शिव जी..
@ दिव्या जी..
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया
@ मीनाक्षी पन्त जी..
@ प्रज्ञा जी..
@ वंदना जी..
@ गिरीश मुकुल जी..
@ P S भाकुनी जी..
आप सबका शुक्रिया जिन्होंने अपने
बेशकीमती विचारों की टिप्पणियां दी
और मेरा हौसला बढाया
एक पुरानी फिल्म का गीत याद आ गया..."बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ, आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ" ये अगर गुनाह है तो मेरी दुआ है के हर इंसान गुनाहगार बन जाए...जबरदस्त कविता है आपकी...बधाई स्वीकार करें...
नीरज
आपकी कविता दिल पर असर करने वाली है ...अच्छे इंसान को समझना मुश्किल होता है ....इसलिए लोग उसे गुनहगार कहने से भी नहीं कतराते ..भावपूर्ण कविता
काश जहाँ मे हर कोई आप सा बने गुनहगार
तो शायद खाली हो जाये दुनिया भर के कारागार
भास्कर जी,
इस कविता ने दिल और दिमाग, दोनों को प्रभावित किया।
भावमयी प्रस्तुति के लिए बधाई।
अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
प्रभावी रचना .....
बहत ही भावपूर्ण व् सुंदर रचना..
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मे
किस बात का.................... गुनाहगार हूँ मैं !
bahut sunder sabd
गुनाह तो बहुत बड़ा कर रहे हैं बन्धु आप पर इल्तिज़ा यही है कि इस गुनाह पर कभी शर्मिन्दा न होइयेगा। ऐसे गुनाहगारों कि फ़ेहरिश्त लम्बी जो जाये तो क्या कहने… :)
कौन क्या करता/कहता है, इसकी चिन्ता किए बिना हम अपने स्वभावानुसार अपना काम करते रहें। हमारा नियन्त्रण केवल अपने आप तक सीमित है।
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......
मकरसंक्रांति की हार्दीक शुभकामनाए..
जी यही जिन्दगी का द्स्तुर है
नेकी कर दरीया मे डाल
@ रश्मि रविजा जी..
@ अलोकिता जी..
@ प्रीती जी..
@ नीरज गोस्वामी जी..
@ केवल राम जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया.........सबका शुक्रिया
संजय जी ... एक मिनट के लिए तो आपका कमेन्ट पढ़ कर मैं डर गयी थी ... की न जाने मैंने ऐसा क्या कह दिया आपसे ... फिर समझ आया की आप अपनी पोस्ट के बारे में लिख रहे हैं ... :) :) ... देरी से आने के लिए माफ़ी चाहूंगी ... और पोस्ट पढ़ कर ये ही कहूँगी की आप बिलकुल गुनेहगार नहीं हैं ... बहुत बढ़िया लिखा है आपने ... धन्यवाद
बेच कर खुशियाँ खरींदु आंख का पानी , हाथ खाली है मगर व्यापार करता हूँ , आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ .
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
bahut khoob. achchhai aur sachchhai ka vajood hamesha raha hai aur rahega.
bahut khoob.....sacchi rachna...man kay gehrayion say likhi gayi
वाह भाई... बहुत प्यार से दर्द उकेर दिया आपने...
बहुत खूब...
चिंता मत करो... सब बढ़िया है...
मकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...
बढ़िया प्रस्तुति. मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....
सुन्दर रचना
बधाई
आभार
मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं
आपको भी मकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...
@ अपर्णा पलाश जी..
@ महेंदर वर्मा जी..
@ मोनिका शर्मा जी..
@ महफूज़ अली जी..
बहुत दिनों बाद आना हुआ आपका
@ दीप्ती शर्मा जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया.........सबका शुक्रिया
@ RAVI SHANKAR JI
@ विष्णु बैरागी जी..
@ चैतन्य शर्मा
@ अरूण साथी जी..
@ ASHISH JI..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया.........सबका शुक्रिया
गहरे जज्बात के साथ बेहतरीन कविता...
बहुत उम्दा लिखते हों संजय जी ,,,,,,,,,,शानदार
बहुत उम्दा लिखते हों संजय जी ,,,,,,,,,,शानदार
बस यही अपराध तुम हर बार करते हो
आदमी हो आदमी से प्यार करते हो
:))
@ क्षितिजा जी..
ब्लॉग पढने और ब्लॉग से जुड़ने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
@ मेरे भाव जी..
@ रेवा जी..
@ महेंदर मिश्र जी..
@ क्रिएटिव मंच
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया.........सबका शुक्रिया
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !
@ पूजा
@ संध्या जी..
@ उपेंदर जी..
@ मनीष शुक्ल जी..
आप सभी का बहुत बहुत आभार
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !
shandar rachana....
मेरी जिंदगी में कांटे डाले सबने
मैंने फूलों की बहार दे डाली
बहुत खूब दोस्त. अच्छी ओर मार्मिक रचना. बहुत बहुत बधाई.
.
@--और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं ...
Be brave Sanjay ji !
.
Are Sanjay ji ....aapne koi Gunah nahin kiya hai.
sab khush hai aapse ...Ok.
Rachna badiya hai.
Be happy.
bahut khoob, sundar rachna.......
आपको भी मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई.
सुन्दर रचना है ... जीवन का यही दस्तूर है !
खूब सेंचुरी मार रहे हैं आप.बधाई.
welldone.
sanjay ji
bahut hi behatreen avam yatharthata liye hue bahut hi bhavpurn prastuti.
अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
aapne bilkul sach likha hai aaj samay ki yahi maang hai ki aap yadi dil se kisi ka bhal bhi karenge to log yahi kahenge ,are ,apna jarur koi matlab hoga varna koun paraai aag me kudta hai.
khair logon ko kahne dijiye ,aapdil ke bahut achhe hain aap aise hi ke gunah karte rahen aur apni dil ki awaj ko sunte rahen .ham sabki shubh kamnaye aapke saath hain .
bahut hi man ki bhai aapi nishchhalta se bhari kavita.
poonam
आपको भी मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई|
शानदार कविता...
अच्छी अभिव्यक्ति, सुदर कोमल भावनाएं उतने ही कोमल अहसास हर पल बदलता है हमारा चेहरा भावनाओं के साथ. सराहनीय प्रस्तुति
क्या यही है कसूर मेरा ,
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
' भास्कर ' पूछता है क्या यही जिंदगी का दस्तूर है
कोई बता दे कसूर मे
किस बात का.................... गुनाहगार हूँ मैं
sach hai,....smthing pitching in & m wandering at all...
@ भूषण जी..
@ अर्चना जी..
@ सूर्य गोयल जी..
@ दिव्या जी..
@ वीरेंदर चोहान जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया.........सबका शुक्रिया
@ साहिल जी..
@ कुंवर कुसुमेश जी..
@ इन्देर्निल सैल जी..
@ पूनम जी..
@ अंजना जी..
@ रचना जी..
@ रश्मि सविता जी..
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
संजयजी ,आपकी कुछ कविताए पड़ी ,आप बहुत अच्छी कविता लिखते हे --मिलते हे ----
हाँ हाँ .......यही है कसूर मेरा
जो अपने दिल के गमो को छुपाता रहा हूँ मैं
ज़माने को हसाता रहा हूँ मैं,
और तन्हाई में आंसू बहाता रहा हूँ मैं
apni udasi baant lijiye, aur phir muskura dijiye :-)
sunder rachna!
बहुत खूब ... संजय जी ,.... दिल के भावों को बहुत शशक्त बयान किया है आपने ...
देरी से आने की क्षमा संजय जी ... शहर से बाहर था ...
bahut achhi aur bhaavpurn rachna, badhai.
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