26 मई 2010

विलुप्त नहीं हुई बस बदल गई हैं पंरंपराएं.......!!!

 पैर छू कर प्रणाम करना एक अदब एक इज्जत होती थी। जिसे संस्कार के रूप में भी आंका जाता था पर अब ये नमस्ते, हाय हेलो तक सीमित होकर रह गई है। .
ऐसा नहीं है कि वह उनको प्यार नहीं करता या फिर उनका सम्मान नहीं करता। बस उसे पाव छूना अटपटा सा लगता है, उसे यह पसंद नहीं। वो नमस्ते से ही अपना काम चला लेता है। आज के इस दौर में जहा सब कुछ बदल रहा है। वहा युवाओं की सोच भी बदल रही है। वे बड़ों को सम्मान देते हैं, उनका आदर भी करते हैं। लेकिन वे पुरानी सभ्यताओं के नाम पर कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं।
भारतीय सभ्यता की निशानी बड़ों के पांव छूकर आर्शीवाद लेना एक बहुत ही पुरानी भारतीय परंपरा है। यहा पर पैर छूना सामने वाले को सम्मान देने की दृष्टि से देखा जाता है। जब भी हम किसी बड़े से मिलते हैं जिसका हम सम्मान करते हैं, तो उसका पैर छूकर उसका आर्शीवाद लेते हैं। भारतीय परंपराएं और तहजीब तो दुनिया भर में मशहूर हैं। और आर्शीवाद लेने की यह प्रक्रिया भी इसी का ही एक हिस्सा है। लेकिन आज के दौर में इसमें जरा सा बदलाव आ गया है। इनके मायने तो नहीं बदले हैं लेकिन इसे व्यक्त करने का तरीका जरूर बदल गया है।
अपना अलग है अंदाज-आज की पीढ़ी के लिए वह उनके सबसे करीब है जिसके सामने वे खुलकर खुद को व्यक्त कर सकें और न कि वह जिसके सामने वे नार्मल भी बिहेव न कर पाएं। सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा। ऐसे में यह जेनरेशन रिश्तों को एक नया रूप देने में लगी है जिससे वक्त की इस तेज दौड़ में जाने-अंजाने भी उसके अपनों का साथ न छूटे। जो चीज आज की जेनरेशन को नहीं भाती वे उसे करना तो दूर उसके बारे में सोचते भी नहीं हैं।
 अभिषेक का सोचना भी कुछ ऐसा ही है। वह कहता है कि मुझे पैर छूना अच्छा नहीं लगता। मैंने कभी भी किसी भी अपने बड़े से व्यक्ति से बूरी तरह बात नहीं की। क्योंकि मैं उनका सम्मान करता हूं। लेकिन पैर छूना, नहीं। वह नहीं। हर किसी की अपनी सोच होती है। और मेरी नजर में सम्मान देना ज्यादा जरूरी है और वह कैसे दिया जा रहा है वह नहीं। हैं इसके भी फायदे कई लोगों का मानना है कि पैर छूने से सामने वाले की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह आपके अंदर होता है। इसके साइंटिफिक मायने से भी बहुत फायदे हैं। आज यह परंपरा शहरों में अपने मायने जरूर खोती जा रही है। लेकिन गांवों में आज भी यह जीवित है। समय के साथ इस जेनरेशन ने हर बात में अपनी दखलंदाजी जरूर शुरू कर दी है लेकिन आज भी यह अपनी जड़ों से जुड़ी है। अपनों के लिए इसके दिल में आज भी वहीं सम्मान है बस जरूरत है उसे गलत न समझकर उसकी बातों को और उसके विचारों को समझने की कोशिश करने की।

56 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सही कहा है मेरे दोस्त आपने बहुत अच्छा लगा आपका अंदाज

माधव( Madhav) ने कहा…

बिलकुल सही कहा

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

hum sab bhartiya, paramparon ke liye hi jaane jaate hain

bhaskarji aapne achchha likha
aur sahi baat kahi

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

kunwarji's ने कहा…

"सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा।"

बिलकुल सही बात कही आपने,पर सम्मान को दिखाने में जिझक कैसी?ये कैसी आधुनिकता या समझदारी है?

इस लेख में सही निरिक्षण किया आपने भटके हुए युवा का या अपरिपक्व युवा का...

कुंवर जी,

हर्षिता ने कहा…

अच्छी पोस्ट लगाई है आपने तथा सही मुद्दा भी उठाया है।

Asha Lata Saxena ने कहा…

समाज में हो रहे परिवर्तन को बहुत छोटे पर महत्वपूर्ण
उदाहरण दे कर बहुत अच्छा लेख लिखा है |बहुत अच्छा लगा |
आशा

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

"वो नमस्ते से ही अपना काम चला लेता है। आज के इस दौर में जहा सब कुछ बदल रहा है। वहा युवाओं की सोच भी बदल रही है। वे बड़ों को सम्मान देते हैं, उनका आदर भी करते हैं। लेकिन वे पुरानी सभ्यताओं के नाम पर कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं। "

मुझे इसमें कोई बुराई नहीं दिखती !

Ra ने कहा…

जो भी हो भाई ...सबके बारे में कहना मुश्किल है ,,,में तो आपसे सहमत हूँ ,,,और हां यही भी सही है जहाँ पहले बड़ो के चरण छूना श्रृद्धा समझा जाता था वही आज नयी पीढ़ी इसमे झिझक का अनुभव करती है ....समाज में नैतिक मूल्यों का निरंतर पतन हो रहा है जो बड़ा ही सोचनीय बिंदु है...जहाँ तक बड़ो को सम्मान देने का प्रश्न है इसमे भी वक़्त के साथ गिरावट आरही है ...जो दुखद है ,,,आपके विचार जानकर अच्छा लगा ...अच्छा लेखन

kshama ने कहा…

Sahi kaha aapne..jin gharon me pair chhoone ka kisi karan riwaj nahi hai,aise gharse gar ladki sasural aati hai,to use atpata lag sakta hai!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

bahut saarthak aalekh... jaankari deti aur aankhen kholti ... vicharotakjak prastuti ke liye badhai!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

bahut saarthak aalekh... jaankari deti aur aankhen kholti ... vicharotakjak prastuti ke liye badhai!

Unknown ने कहा…

.........में तो आपसे सहमत हूँ

Unknown ने कहा…

विचारणीय लेख ...

Unknown ने कहा…

आपके विचार जानकर अच्छा लगा

राजभाषा हिंदी ने कहा…

सार्थक पोस्ट।

M VERMA ने कहा…

मेरी नजर में सम्मान देना ज्यादा जरूरी है और वह कैसे दिया जा रहा है वह नहीं।
सही बात है सम्मान का तरीका क्या होगा यह मह्त्वपूर्ण नहीं है सम्मान ज्ररूरी है

कडुवासच ने कहा…

...बात में दम है !!!

कविता रावत ने कहा…

...Samay se saath aaye es badlav ke prati man ko behad dukh pahunchta hai.. lekin kaun samjhaye aaj kee yuwa peedhi ko?
Saarthak lekh ke liye bahut shubhkamnayne.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहत सुंदर पोस्ट....

Yogi ने कहा…

Sach kaha dost..

जब मैं छोटा था तब मुझे भी पैर छूना अजीब लगता था, इस लिए मैं अपनी माँ के पैर बहुत कम छूता हूँ.

लेकिन ज्यो ज्यो उम्र बढ़ी, तो सीखी ये परम्परा भी, अभी रिश्तेदारों के पैर फिर भी छू लेता हू, लेकिन अपनी माँ के पैर छूने में जाने एक अजीब सी शर्म महसूस होती है.

और मेरी माँ को मुझ से हमेशा ये शिकायत रहती है. :)

Tapashwani Kumar Anand ने कहा…

sarthak evam srahniy abhivyakti ke liye hardik shubh kamnaye

चैन सिंह शेखावत ने कहा…

अहंकार इतने गरिष्ठ हो गए हैं कि पैर छूने से अपमान का अहसास होता है. झुकने को गिरने की निशानी समझा जाने लगा है. अहम् इतना बड़ा हो गया है कि खुद से बड़ा कोई नज़र ही नहीं आता, फिर पैर किसके छुएँ .
परम्पराओं में सडांध का अनुभव करना ही विकास का सूचक है, संजय जी.

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सार्थक पोस्ट है! बहुत बढ़िया लगा!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

वो चौपाई याद आ रही है -
'प्रातःकाल उठि के रघुनाथा, मात-पिता गुरु नाभहि माथा.'

ओम पुरोहित'कागद' ने कहा…

BAHUT HI ACHHA LEKH. BADHAI !

sonal ने कहा…

नया और बढ़िया मुद्दा उठाया है आपने और कलम भी गहराई से चलाई है
बधाई स्वीकार करे

Tulsibhai ने कहा…

" ek shahakt aalekh ..sacchai ko samne aapne bakhu bi se rakha hai "

------ eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Tulsibhai ने कहा…

" ek shahakt aalekh ..sacchai ko samne aapne bakhu bi se rakha hai "

------ eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

सुन्दर आलेख है ! दरअसल परंपरा का एक उपयोग यह भी है कि हमें अपने जड़ से जोड़े रखता है ...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सम्मान दिल से होता है , दिखावे से नहीं ।
आजकल पैर छूने में सम्मान कम , अनिवार्यता का दिखावा ज्यादा रह गया है ।

pragya ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा है,,,सम्मान को दिखावा नहीं नहीं दिल चाहिए

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

postr ka vishay achha hai ....samajik badlaw ki or ingit karti yah rachna mulyon me aaye badlwaaon ki or ingit karti hai .....ek bat aur panv..

shareer ke nakhoonon me ek urza ka pravah hota hai ..jab hum pair chhote hain to un nakhoono ko ( ghutnon ko nahi ) choona chahiye jisse saamne wale ki shareer me behti urza ka kuch ansh aap ke shareer me aata hai ..atah paanv chhote waqt ye dhyaan rakhna chahioye ki saamne wale vyakti me kisi tarah ki nakaratmak urza na ho ..

post achhi thi...ise padhna bhi zaroori tha.. warna main bhi ek zumla likh ke chal deta ..
aur wo ye hai ..
"आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,"

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Sach hai jab sammaan karna hai ... dil se karna hai ... to shart nahi honi chaahiye ... dil se hona chaahiye ... khaali dikhaave ke liye kiya gaya sammaan keval dikhaava hai ... achhaa likha hai bahut Sanjay ji ...

shikha varshney ने कहा…

सम्मान दिल से होता है , दिखावे से नहीं ।

बिल्कुल सही लिखा है,

Archana Chaoji ने कहा…

बहुत सी परम्पराए बदल रही है ...........अब फोन पर बेटी से जब बात ख़तम कर विदा लेते हुए चलो अब रखती हूँ ............जबाब मिलता है ------लव यूं मोम.............मै हम्म्म्मम्म्म्म आशीर्वाद कह देती हूँ तो कहती है लव यूं टू बोलो .................और बोलना पड़ता है मुझे ........................ध्यान देने कि बात ये है कि जो भी संस्कार है वे निभाए जाने चाहिए ....................बस !!

सुज्ञ ने कहा…

"सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा।"

- भले हमें थोडा अटपटा लगे,पर बड़ो के प्रति सम्मान का इससे बेहतर तरीका नहीं है.
यदि अपनापन है तो अपनापन उस अपने तक पहुंचना चाहिए .अपनेपन की प्रतिक्रिया तो दिखानी ही होगी.
सामनेवाला आपका दिल थोड़े ही पढ़ लेगा.
चरण छूना, चरनानुकरण का प्रतीक है, "मै आपके चरित्र (आदर्शो) का अनुकरण (अनुगमन) करना चाहता हूँ". उन्ही भावों का यह प्रतीक है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

Aap sabhi ka
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

sanjay bhaskar

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

sanjay ji,
pair chhune ki parampara aaj bhi kaayam hai. waqt ke badalne ke sath is pratha mein badlaaw laajimi hai jise sakaaratmak soch se apnaana chaahiye. sammaan sirf pair chhune se hin maana jaye ye galat soch hai. pariwesh ke sath vichaar mein pariwartan hin baad mein paramapara banti hai, ise bhi na bhoolna chaahiye.
bahut achhi tarah aapne likha hai, bahut badhai aapko.

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

सम्मान दिल में होना चाहिए, नाकि दिखावे में.
दिखाना ही हैं तो, दिखाते रहिये.
ये काम तो सारी दुनिया बखूबी कर ही रही हैं.
सही बात लिखी हैं आपने.
सहमत हूँ.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut khushi hui..jaankar ki tum ek pari pakw vyakti ho..aur tumhaare vichaar sarahneey hain..
bahut acchi post..
likhte raho..
..didi

संजय भास्‍कर ने कहा…

"सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा।"


Aap sabhi ka
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

sanjay bhaskar

arvind ने कहा…

सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा।" bikul sahi , sahmat.

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

आज यह परंपरा शहरों में अपने मायने जरूर खोती जा रही है। लेकिन गांवों में आज भी यह जीवित है। समय के साथ इस जेनरेशन ने हर बात में अपनी दखलंदाजी जरूर शुरू कर दी है लेकिन आज भी यह अपनी जड़ों से जुड़ी है। अपनों के लिए इसके दिल में आज भी वहीं सम्मान है बस जरूरत है उसे गलत न समझकर उसकी बातों को और उसके विचारों को समझने की कोशिश करने की।

हर दौर अपने साथ बदलाव भी लाता है। जरूरत हर चीज के जरूरी और गैरजरूरी को समझने की होती हैं।
परंपराएं हमारे स्थायी जीवन मूल्य हैं जिसे एक अंतराल के लिए लोग भूल जाते हैं। हर वक्त इन्हें याद दिलानेवाले लोग भी तो होते ही हैं। संजय जी !?

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

असल में परम्परा अऊर संस्कृति मन का अंदर से आता है… ऊ कहते हैं न कि जिसको भरोसा है उसको कोनो सबूत अऊर तर्क का जरूरत नहीं होता है, अऊर जिसको भरोसा नहीं उसके लिए सब सबूत, सब तर्क बेकार है...

Vijay K Shrotryia ने कहा…

padkar achcha laga..... dikhave sey achcha hai man ka soch....

Apanatva ने कहा…

ek achhee post. samman dikhava matr ho vo kis kaam ka.........?
vichar acche lage.....

SANSKRITJAGAT ने कहा…

ye sanskaar khatam nahi ho sakte hain


inhi par to bharat ki aatma jeevit hai

Unknown ने कहा…

सम्मान दिल में होना चाहिए, नाकि दिखावे में.

Unknown ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा है,

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

sahi baat hai...dikhava karo aur izzet na karo vo bhi to kuchh mayne nahi rakhta.acchhi post.

हर्षिता ने कहा…

अच्छी पोस्ट है संजय भाई।

arvind ने कहा…

बिलकुल सही कहा.अच्छी पोस्ट

.

ओम पुरोहित'कागद' ने कहा…

KHOOB LIKHA AAP NE !
JAB SAMVEDNAYEN MAR RAHI HAIN TO PRAMPRAYEN KAISE BACHENGI ?

ajeet ने कहा…

सबके बारे में कहना मुश्किल है ,,,में तो आपसे सहमत हूँ ,,,और हां यही भी सही है

अन्तर सोहिल ने कहा…

आपकी बात से पूर्णत: सहमत

बहुत पसन्द आयी जी आपकी यह पोस्ट
धन्यवाद

प्रणाम स्वीकार करें

राज चौहान ने कहा…

सुन्दर और सार्थक पोस्ट है! बहुत बढ़िया लगा