आज सुबह ब्लॉग पढ़ते - पढ़ते अचानक न जाने कब प्रवीण पाण्डेय जी की करीब २ वर्ष पुरानी रचना .....जलकर ढहना कहाँ रुका है की कुछ लाइन याद आ गई ............शायद कुछ लाइन आपको भी याद होगी !
ब्लॉगजगत में मैं
प्रवीण पाण्डेय जी (
न दैन्यं न पलायनम् )से सदा प्रभावित रहा हूँ ! प्रवीण पाण्डेय जी ब्लॉगजगत की ऐसी शख्सियत हैं जिनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है इनका जानकारी भरा लेखन का प्रत्येक शब्द दिल को छूकर गुज़र जाता है चाहे किसी भी विषय पर लिखे शब्द अपने आप बनते चले जाते है जो उनकी ऊर्जावान जीवन शैली का प्रतीक है..............!!!
मैं काफी समय से पाण्डेय जी के बारे में लिखना चाहता था पर...... समय के आभाव के कारण नहीं पता था आज इन पंक्तियो के याद आते ही
प्रवीण जी के लिए लिखने का समय निकल ही लिया और सोचा आप सभी को इस रचना से दोबारा रूबरू करवा दूं करीब चार सालो से पाण्डेय जी को पढ़ रहा हूँ उनके लिखने का अंदाज ही अलग है मुझे क्या पूरे ब्लॉग जगत को बहुत ही भाता है ...... उनकी हर पोस्ट से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है मैं हमेशा ही उनके लेखन से प्रभावित होता हूँ और उनके अपार स्नेह के कारण ही आज ये पोस्ट लिख रहा हूँ ..............................!!!
आशा नहीं पिरोना आता, धैर्य नहीं तब खोना आता,
नहीं कहीं कुछ पीड़ा होती, यदि घर जाकर सोना आता,
मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
सागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया,
औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा,
अधिकारों की होड़ मची थी, जी लेने की दौड़ लगी थी,
भाँग चढ़ाये नाच रहे सब, ढोलक परदे फोड़ बजी थी,
आँखें भूखी, धन का सपना, चमचम सिक्कों की संरचना,
सुख पाने थे कितने, फिर भी, अनुपातों से पहले थकना,
सबके अपने महल बड़े हैं, चौड़ा सीना तान खड़े हैं,
सुनो सभी की, सबकी मानो, मुकुटों में भगवान मढ़े हैं,
जिनको कल तक अंधा देखा, जिनको कल तक नंगा देखा,
आज उन्हीं की स्तुति गा लो, उनके हाथों झण्डा देखा,
सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
आँसू बहते, खून बह रहा, समय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
आज शान्ति के शब्द न बोलो, आज समय का शून्य बह रहा,
आज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
जीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,
मन का कहना कहाँ रुका है, मदमत बहना कहाँ रुका है,
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?
..........................प्रवीण की लेखनी से मैं बहुत प्रभावित होता हूँ वो बहुत ही जिम्मेदारी से हर ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने है उनके बारे में लिखना ही किसी बड़ी उपलब्धि है........पर अभी हमे प्रवीण जी मिलने का सोभाग्य ही प्राप्त नहीं हुआ.........पर यह इच्छा कभी तो पूरी होगी !!
-- संजय भास्कर