20 सितंबर 2013

अनकहा सच और अन्तःप्रवाह से प्रारब्ध तक का सफ़र बहुमुखी प्रतिभा -- आशालता सक्सेना :))

श्रीमती आशा लता सक्सेना जी 

आप सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर नमस्कार काफी दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ  पर अब आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ ....!!
 
मई 2012 में मुझे श्रीमती आशालता सक्सेना जी की पुस्तक अनकहा सच ( काव्य संकलन ) पढने को मिला जो  बहुत ही पसंद आया !


जो उन्होंने समर्पण किया है अपने अपनी माता सुप्रसिद्ध कवियित्री स्व. डॉ. (श्रीमती ) ज्ञानवती सक्सेना जी को
 
आशा जी जिन्हें आप सभी आकांशा ब्लॉग में पढ़ते हो आशा जी जिन्होंने हर विषय पर कवितायेँ लिखी है पर ज्यादा तर प्रकृति पर उनकी कविताये मन को बहुत प्रभावित करती हैं |

जीवन में हर व्यक्ति सपने अवश्य देखता है, पर कुछ ही लोगो के सपने साकार होते है जिसे आशा लता जी ने अपने रचना कर्म के स्वप्न को इस आयु में साकार किया है ।
श्रीमती आशा लता सक्सेना उन्ही में से एक है जिन्हें मैं ब्लॉगजगत में माँ का दर्जा देता हूँ !
अनकहा सच की कुछ पंक्तिया  
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उम्र  के आखिती पड़ाव पर यदि अपनों का साथ ना हो तो मन दुखी हो जाता है | मन में कसक गहरी होती है
होती  है कसक
जब कोई साथ नहीं देता 
उम्र के इस मोड़ पर
 नहीं होता चलना सरल 
लंबी कतार उलझनों की 
पार पाना नहीं सहज !!



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मन का प्रवाह (अन्तःप्रवाह)

अन्तःप्रवाह के कुछ लम्हे आपके साथ साँझा कर रहा हूँ  !
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 अन्तःप्रवाह  आशा माँ के मन के प्रवाहों का संकलन है। इस की भूमिका डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने लिखी है !
प्राचार्य (विक्रम विश्वविद्यालय, उजैन ) 
आशा जी सरस्वती अंत सलिला है उसका प्रवाह अन्तः करण में निरंतर चलता रहता है ! 
    कवयित्री ने इस काव्यसंग्रह केअपनी ममतामयी माता सुप्रसिद्ध कवयित्री स्व. डॉ. (श्रीमती) ज्ञानवती सक्सेना किरण को समर्पित किया है। अपनी शुभकामनाएँ देते हुए शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महाविद्यालय, भोपाल से अवकाशप्राप्त प्राचार्या सुश्री इन्दु हेबालकर ने लिखा है-
कवयित्री ने काव्य को सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक अन्तःप्रवाह को प्रभावशाली बनाया है। 
     श्रीमती आशालता सक्सेना ने अपनी बात कहते हुए लिखा है-
मन में उमड़ते विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए मैंने कविता लेखन को माध्यम बनाया है...।
"अन्तःप्रवाह" में कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है। ज़िन्दगी के बारे में वे लिखतीं हैं !
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यह ज़िन्दगी की शाम


अजीब सा सोच है

कभी है होश

कभी खामोश है !
  बेटी अजन्मी सोच रही
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क्यूँ उदास माँ दिखती है

जब भी कुछ जानना चाहूँ
यूँ ही टाल देती है
रह न पाई
कुलबुलाई
समय देख प्रशन दागा
क्या तुम मुझे नहीं चाहती !
मृगतृष्णा पर प्रकाश डालते हुए कवयित्री कहती है
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जल देख आकृष्ट हुआ
घंटों बैठ अपलक निहारा
आसपास था जल ही जल
जगी प्यास बढ़ने लगी
खारा पानी इतना
कि बूँद-बूँद जल को तरसा
गला तर न कर पाया
प्यासा था प्यासा ही रहा..

अंग्रेजी की प्राध्यापिका होने के बावजूद कवयित्री ने हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग व्यक्त करते हुए लिखा है
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भाषा अपनी
भोजन अपना
रहने का अंदाज अपना
भिन्न धर्म और नियम उनके
फिर भी बँधे एक सूत्र से
.....
भारत में रहते हैं
हिन्दुस्तानी कहलाते हैं
फिर भाषा पर विवाद कैसा
....
सरल-सहज
और बोधगम्यता लिए
शब्दों का प्रचुर भण्डार
हिन्दी ही तो है..
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     उसके बाद अभी कुछ समय पूर्व मुझे आशा जी तीसरी पुस्तक प्रारब्ध मिली ! 
लेकिन पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन  है आज के समय में साहित्य जगत में अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप देना हर किसी के बस की बात नहीं है !
इस कृति के बारे में डॉ. रंजना सक्सेना (शासकीय संस्कृत महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष  ) लिखती हैं -
     “श्रीमती आशा सक्सेना का काव्य संकलन प्रारब्ध सुखात्मक और दुखात्मक अनुभूति से उत्पन्न काव्य है। पहले अनकहा सचफिर अन्तःप्रवाह और अब प्रारब्ध’... ऐसा प्रतीत होता है कवयित्री अब कहने लगी तो वह प्रवाह अन्तःकरण से निरन्तर बह निकला।
    डॉ.शशि प्रभा ब्यौहार ( प्राचार्य शासकीय संस्कृत महाविद्यालय ) इन्दौर ने अपने शुभाशीष देते हुए पुस्तक के बारे में लिखा है- 
    "मैं हूँ एक चित्रकार रंगों से चित्र सजाता हूँ। 
हर दिन कुछ नया करता हूँ आयाम सृजन का बढ़ता है।
      आशा लता सक्सेना का लेखकीय सरोकार सृजन रंगों से सराबोर जीवन यथार्थ की इसी पहचान से जुड़ा है ! प्रारब्ध उनका तृतीय काव्य संग्रह है संग्रह की कविताये जीवन के उद्देश्य को तलाशती है  !
     मैं तो एक छोटा सा दिया हूँ
अहित किसी का ना करना चाहू
परहित के लिए जलता हूँ !!

कवयित्री अपनी एक और कविता में कहती हैं
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दीपक ने पूछा पतंगे से
मुझमें ऐसा क्या देखा तुमने
जो मुझ पर मरते मिटते हो
जाने कहाँ छिपे रहते हो
पर पाकर सान्निध्य मेरा
तुम आत्म हत्या क्यों करते हो..."
        विश्वास के प्रति अपनी वेदना प्रकट करते हुए कवयित्री कहती है
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ऐ विश्वास जरा ठहरो
मुझसे मत नाता तोड़ो
जीवन तुम पर टिका है
केवल तुम्हीं से जुड़ा है
यदि तुम ही मुझे छोड़ जाओगे
अधर में मुझको लटका पाओगे..."
      और अंत में “प्रारब्ध” काव्य संग्रह की पहली रचना !
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“जगत एक मैदान खेल का
हार जीत होती रहती
जीतते-जीतते कभी
पराजय का मुँह देखते
विपरीत स्थिति में कभी होते
विजय का जश्न मनाते
राजा को रंक होते देखा
रंक कभी राजा होता...!"
  
पता - श्रीमती आशा लता सक्सेना
सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456010 
पुस्तक प्राप्ति हेतु कवयित्री (आशा सक्सेना जी ) से दूरभाष- 0734 - 2521377 से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।
 मेरी और से श्रीमति आशा सक्सेना जी को तीनो काव्य संकलनो के लिए हार्दिक बधाई व ढेरो शुभकामनाये .....! 


-- संजय भास्कर 
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34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लगा श्रीमती आशालता सक्सेना जी के बारे में जानकर।

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  2. प्रिय संजय बहुत प्रसन्नता हो रही है तीनों पुस्तको पर तुम्हारी प्रतिक्रया देख कर |तुम्हें इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई |
    आशा

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  3. आशा जी की कवितायेँ उनके ब्लॉग पर पढ़ते रहे हैं...
    उनकी पुस्तकों से परिचय कराती आपकी इस पोस्ट के लिए आभार और उन्हें अनंत शुभकानाएं!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लागर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शनिवार हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल :007 (http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ )लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर ..

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  5. आदरणीय आशा जी सुंदर कवितायें लिखती है ।संकलन समीक्षा पढ़कर अच्छा लगा

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  6. स्वागत है पुनः!!

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  7. मेरी ओर से भी श्रीमति आशा सक्सेना जी को तीनो काव्य संकलनो के लिए हार्दिक बधाई व ढेरो शुभकामनाये ....
    समीक्षा पढ़कर अच्छा लगा

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  8. आशा माँ की पुस्तक समीक्षा के लिए ढेरों शुभकामनाएँ

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  9. आशालता जी को बहुत-बहुत बधाई..
    इसी तरह वे लिखतीं रहे इसलिए बहुत शुभकामनाएँ ...
    सुन्दर समीक्षा...
    :-)

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  10. धन्यवाद आपका एक बेहतरीन रचनाकार और उनकी रचना से परिचित करवाने के लिये....

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  11. आशा जी की कवितायेँ पर पढ़ते रहे हैं...उन्हें शुभकानाएं ..
    पुस्तकों से परिचय कराती इस पोस्ट के लिए आभार ...

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  12. संजय जी आपकी समीक्षा और पुस्तकों के प्रकाशन के लिए बधाई

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  13. वाह...खूब.........बहुत अच्छा लगा श्रीमती आशालता सक्सेना जी के बारे में जानकर।

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  14. मै भी सब किताबें खरिइद ना चाहूंगा

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  15. wqqh bahut badhiya laga aasha je ki uplabdhi ko jankar ...

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  16. Ashaji kay bare mey aur unkay pustako kay bare mey padh kar accha laga...sundar samikhsha

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  17. आशा जी को बधाई ! सुंदर समीक्षा !

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  18. bahut hi achhalaga shreemati ashalta saxena ji aur unki kritiyo ke baarenme jaankar ....
    bhagwan se prarthna hain ki unki yah yatra jaari rahe-
    “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”

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  19. बहुत सुंदर समीक्षा .आशा जी को शुभकामनाएँ .
    नई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक

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  20. बहुत सुन्दर समीक्षा...

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  21. संजय,आशा जी के काव्य संकलनों की अच्छी समीक्षा की है आपने बधाई आशा जी को !

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  22. संजय जी बहुत सुंदर समीक्षा की है आपने दीदी की तीनों किताबों की ! उनकी एक और बहुत ही खूबसूरत पुस्तक 'शब्द प्रपात' भी छप कर आ चुकी है ! लेखिका व समीक्षक दोनों को ही बहुत-बहुत बधाई एवँ शुभकामनायें !

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  23. म्हारो हरयाणा ब्लॉग लिंक का एड्रेस दीजिये

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  24. बहुत अच्छा लगा, श्रीमती आशालता सक्सेना जी के बारे में जानकर।

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  25. बेनामी9/23/2013

    धन्यवाद्

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  26. umda jaankari .. ashaji jaisi sakjhsiyat se parichay karane ke liye or sath me unki rachnaye sajha karne ke liye sukriya .. uttm racnanaye .. :)

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  27. सुंदर समीक्षा ...आशाजी की रचनाएँ उनके ब्लॉग पर पढ़ी है ...यहाँ उनका परिचय पाकर और अच्छा लगा

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  28. आशा जी को मेरी भी बहुत बधाई। आपकी सुंदर समीक्षा के लिय आपको भी।

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  29. Aashlata ji ke baare mein jaan kar bohot accha laga... unki rachnaayien dil ko chu jaati hain..

    aapko aur ashalata ji ko meri aur se hardik shubhkamnayein..

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  30. बहुत अच्छा लगा श्रीमती आशालता सक्सेना जी के बारे में जानकर।

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- संजय भास्कर