आने वाले दिनों में जब हम सब |
कविता लिखते पढ़ते बूढ़े |
हो जायेंगे ! |
उस समय लिखने के लिए |
शायद जरूरत न पड़े |
पर पढने के लिए एक मोटे चश्मे की |
जरूरत पड़ेगी |
जिसे आज के समय में हम |
अपने दादा जी की आँखों पर |
देखते है ! |
तब पढने के लिए |
ये मोटा चश्मा ही होगा |
अपना सहारा |
आने वाले दिनों में |
देखता हूँ यह स्वप्न |
मैं कभी - कभी |
क्या आपको भी
ऐसा ही
ख्याल आता है कभी ........:)
ख्याल आता है कभी ........:)
@ संजय भास्कर
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जवाब देंहटाएंबहुत खूब संजय जी ... उस समय को याद कर के हूबहू ऐसा ही चित्र उभरता है ... मोटे चश्में वाले दादा जी ... बहुत अच्छा लिखा है ...
जवाब देंहटाएंbahut door ki sochi h sanjay bhai....
जवाब देंहटाएंklpna ki udaan me jane kaha pahunch h..
kunwar ji
यहाँ तो चश्मा चढ़ भी गया :-)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है ....
अनु
ऐसा ही
जवाब देंहटाएंख्याल आता है कभी ....
......................................
ekdam..ekdam...
बहुत खूब,,,संजय जी,
जवाब देंहटाएंआप तो आने वाले समय में चश्मा लगने की बात सोच रहे है और यहाँ सोचने के(४५ साल पहले)ही चश्मा लग गया,,,,
RECENT POST... नवगीत,
चस्मा दूसरी आँख है कबसे हमारे साथ है -चिंता किस बात की --बहुत खूब
जवाब देंहटाएंLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
हमारा तो अभी से सहारा है वाह क्या भविश्य का चित्र उकेरा है
जवाब देंहटाएंकविता लिखने वाले चाहे बूढ़े हो जाए चाहे चश्मे के नंबर बढ़ जाए। वे लेखन रोग के रोगी उससे मुक्त नहीं हो पाते और लिखते लिखते ही मर जाते हैं . अच्छी बात सोची है।
जवाब देंहटाएंलिखने पढ़ने का शौक है तो चश्मे से कैसा संकोच ! हम तो सालों से चढ़ाए हुए हैं ! बुढापे का अच्छा चित्र खींचा है !
जवाब देंहटाएंहमको लग गया
जवाब देंहटाएंदांत हिल रहे है संजय
पर हमने लिखा है अभी अभी
लबों का थोड़ा सा खुलना
पलक का हौले से गिरना
समझ लेता हूं प्रिया तुम
चाहती हो क्या है कहना !!
http://voi-2.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
Beautiful as always.
जवाब देंहटाएंIt is pleasure reading your poems...Sanjay bhai
आने वाले दिनों में
जवाब देंहटाएंदेखता हूँ यह स्वप्न
मैं कभी - कभी
क्या आपको भी
ऐसा ही
ख्याल आता है कभी ........:)
......बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....!!!
bahut khoob ...khyal ka kya hai kabhi bhi bin bulaye chale aate hai aur apne kal ko dikha jate hai :)
जवाब देंहटाएंbahut aage ki soch sundar
जवाब देंहटाएंचष्मे से ही सही शब्दों की मुस्कुराहटें देखने तो मिलेंगी न... बहुत सुन्दर रचना... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत खूब संजय जी, बहुत अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब संजय जी, बहुत अच्छा लिखा है
एक कोकिला से दूसरी कोकिला तक - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें ।
chashma pahne na pahne par dadajee to banna hi hai ....ho sakta hai ki aapki aankhen us samay bhi majboot hon ...hamari aankhon par to 9th se hi chashma lag gaya tha sanjay jee....bahut acchi kalpana .....
जवाब देंहटाएंउस समय लिखने के लिए
जवाब देंहटाएंशायद जरूरत न पड़े
पर पढने के लिए
एक मोटे चश्मे की
जरूरत पड़ेगी
यथार्थपरक कविता....
बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय भास्कर जी -
badi swabhavik soch hai.......
जवाब देंहटाएंलगता तो है कुछ ऐसा ही है...!
जवाब देंहटाएंkabhie kabhie nahi balki aksar mahsoos hota hai
जवाब देंहटाएंबहुत खूब संजय जी ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ..
जवाब देंहटाएंलगता है ऐसा ही होगा एक दिन....
:-)
दादी तो हूँ ही पर चश्मा मोटा नहीं है अभी तक तो ,अब भढ़ेगा तो भी ठीक.जहाँ इतना वहाँ उतना सही !
जवाब देंहटाएंहूँ..... काफी कुछ शायद ऐसा ही हो....
जवाब देंहटाएंbahut badhiya ...
जवाब देंहटाएंVery nice! Atleast for me spectacles are part of my body!
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात कही है आपने मीडियाई वेलेंटाइन तेजाबी गुलाब आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
जवाब देंहटाएंबहुत सीधे साधे शब्दों में बहुत सही लिखा है |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
आप जैसा ख्याल हमको भी आता है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder...
जवाब देंहटाएंभविष्य को चित्रांकित करती सीधी कविता , खूबसूरत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सही है संजय भाई....कुछ ऐसा ही आने वाला कल
जवाब देंहटाएंअरे टेक्नॉलॉजी कितनी आगे चली गई है, चश्मा वस्मा कहां सीधे लैंस ही नया लगेगा और आंख नई । चश्मा तो हमारे जैसे सीनियर सिटिजन्स लगाते है ।
जवाब देंहटाएंनिश्चिन्त रहें ।
बहुत अच्छा लिखा है.
जवाब देंहटाएंमोटे चश्में वाले दादा जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है
हाँ संजय भाई जब आप ने याद दिलाया तो याद आया कल आने वाला वो ज़माना वैसे भी कम्प्यूटर महाराज आँखों से प्रेम ज्यादा ही करते है ह हा ...
श्री प्रकाश नाना जी की याद आई
ठुल्लम ठुल्लम हाथी की बाल कविता
भ्रमर 5
hehe...
जवाब देंहटाएंno I never think about that..
will deal with at that time only :P
sahi kaha apne....very nice lines
जवाब देंहटाएंबूढ़े और अभी से ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
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जवाब देंहटाएंक्या खूब कहा आपने या शब्द दिए है
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
बूढ़े होने तक होंगे कि नहीं... पर चिता तक चश्मा... ये तो पक्का है. यही जीवन का सत्य है. सुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात है अभी से क्यों इतनी चिंता. आखिर चश्मा भी और अधिक गहरे से देखने के लिये प्रेरित करेगा क्योंकि उसके साथ ही होगा एक लंबा अनुभव.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही
जवाब देंहटाएंएकदम वही चित्र उभर कर सामने आता है
भविष्य दर्शन कराने के लिए शुक्रिया :-)
उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंसंजय भाई बहुत ही सुन्दर लाजवाब भविष्य का रूप दिखा दिया आपने.
जवाब देंहटाएंहमें तो यह स्वप्न नहीं आता क्योंकि पहले ही इस स्वप्न में से गुज़र रहे हैं !
जवाब देंहटाएंहाँ तुम्हारे लिए शुभकामनायें संजय !
:)
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने संजय जी..
शायद पड़ ही जाये ज़रूरत..!!
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंबहुत सही ...कुछ ऐसा ही आने वाला कल
जवाब देंहटाएंSochna padega :)
जवाब देंहटाएंअब आदमी इतना बूढा कहाँ हो पा रहा है ..आपकी रचना ने भविष्य को सामने लाकर खड़ा कर दिया ..बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत खूब संजय जी.....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, बहुत अच्छा लिखा है आपने .........
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सही लिखा है....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!!!