29 मई 2010
क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय इस देश में बेटियों के लिए बड़े-बड़े प्रोत्साहन की घोषणाये करता है, राज्य सरकारें बेटी होने पर पता नहीं क्या-क्या खाते खुलवाकर इनाम बाटती फिरती है, उन्हें मुफ्त शिक्षा और पता नहीं क्या-क्या सुविधाए उपलब्ध कराती है। मगर फिर सवाल वही की हकीकत में क्या सचमुच ऐसा होता है? सुनने और पढने में यह भली ही हास्यास्पद लगता हो लेकिन हकीकत भी इससे बहुत दूर नहीं है।
आज देश सेटेलाईट तक की कीमतों का निर्धारण दुनिया के तमाम बाजारी शक्तियां निर्धारित करती है। और आज जिन खुले बाजार की ताकतों के बलबूते पर, वायदा कारोबारियों की मिलीभगत के चलते सोना आसमान चढ़ता जा रहा है उससे तो नहीं लगता कि आने वाले समय में इस देश में पहले ही बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहा एक गरीब, अपनी बेटी की शादी कर पायेगा |
सरकार कुछ भी नियंत्रण रख पाने में अपने को इन शक्तियों के आगे असमर्थ पा रही है, यदि वाकई सरकार लड़कियों के विषय में गंभीर है तो लड़कियों के बेहतर भविष्य और प्रोत्साहन के नाम पर कोरे प्रोत्साहनों और करोडो रूपये इधर से उधर करने के बजाये, उन गरीब लोगो को हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराये, जिससे गरीब लोगो अपनी बेटियाँ की शादी आराम से कर सके |
जिससे गरीबो के बच्चे भी सुखी रह सके |उन्हें कम कीमतों पर सभी साधन उपलब्ध करवाए जिससे गरीब लोगो अपनी बेटियाँ की शादी आराम से कर सके |
परन्तु आज के कालाबाजारी युग में ये सब असंभव लगता है |
26 मई 2010
विलुप्त नहीं हुई बस बदल गई हैं पंरंपराएं.......!!!
पैर छू कर प्रणाम करना एक अदब एक इज्जत होती थी। जिसे संस्कार के रूप में भी आंका जाता था पर अब ये नमस्ते, हाय हेलो तक सीमित होकर रह गई है। .
ऐसा नहीं है कि वह उनको प्यार नहीं करता या फिर उनका सम्मान नहीं करता। बस उसे पाव छूना अटपटा सा लगता है, उसे यह पसंद नहीं। वो नमस्ते से ही अपना काम चला लेता है। आज के इस दौर में जहा सब कुछ बदल रहा है। वहा युवाओं की सोच भी बदल रही है। वे बड़ों को सम्मान देते हैं, उनका आदर भी करते हैं। लेकिन वे पुरानी सभ्यताओं के नाम पर कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं।
भारतीय सभ्यता की निशानी बड़ों के पांव छूकर आर्शीवाद लेना एक बहुत ही पुरानी भारतीय परंपरा है। यहा पर पैर छूना सामने वाले को सम्मान देने की दृष्टि से देखा जाता है। जब भी हम किसी बड़े से मिलते हैं जिसका हम सम्मान करते हैं, तो उसका पैर छूकर उसका आर्शीवाद लेते हैं। भारतीय परंपराएं और तहजीब तो दुनिया भर में मशहूर हैं। और आर्शीवाद लेने की यह प्रक्रिया भी इसी का ही एक हिस्सा है। लेकिन आज के दौर में इसमें जरा सा बदलाव आ गया है। इनके मायने तो नहीं बदले हैं लेकिन इसे व्यक्त करने का तरीका जरूर बदल गया है।
अपना अलग है अंदाज-आज की पीढ़ी के लिए वह उनके सबसे करीब है जिसके सामने वे खुलकर खुद को व्यक्त कर सकें और न कि वह जिसके सामने वे नार्मल भी बिहेव न कर पाएं। सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा। ऐसे में यह जेनरेशन रिश्तों को एक नया रूप देने में लगी है जिससे वक्त की इस तेज दौड़ में जाने-अंजाने भी उसके अपनों का साथ न छूटे। जो चीज आज की जेनरेशन को नहीं भाती वे उसे करना तो दूर उसके बारे में सोचते भी नहीं हैं।
अभिषेक का सोचना भी कुछ ऐसा ही है। वह कहता है कि मुझे पैर छूना अच्छा नहीं लगता। मैंने कभी भी किसी भी अपने बड़े से व्यक्ति से बूरी तरह बात नहीं की। क्योंकि मैं उनका सम्मान करता हूं। लेकिन पैर छूना, नहीं। वह नहीं। हर किसी की अपनी सोच होती है। और मेरी नजर में सम्मान देना ज्यादा जरूरी है और वह कैसे दिया जा रहा है वह नहीं। हैं इसके भी फायदे कई लोगों का मानना है कि पैर छूने से सामने वाले की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह आपके अंदर होता है। इसके साइंटिफिक मायने से भी बहुत फायदे हैं। आज यह परंपरा शहरों में अपने मायने जरूर खोती जा रही है। लेकिन गांवों में आज भी यह जीवित है। समय के साथ इस जेनरेशन ने हर बात में अपनी दखलंदाजी जरूर शुरू कर दी है लेकिन आज भी यह अपनी जड़ों से जुड़ी है। अपनों के लिए इसके दिल में आज भी वहीं सम्मान है बस जरूरत है उसे गलत न समझकर उसकी बातों को और उसके विचारों को समझने की कोशिश करने की।
24 मई 2010
रास्ते भी इंतज़ार करते है ....!!!!
जो सफ़र की शुरुआत करते है
वो मंजिल को पार करते है ,
बस एक बार चलने का हौसला रखिये
आप जैसे मुसाफिरों का तो ,
रास्ते भी इंतज़ार करते है |
....Sanjay Bhaskar....
21 मई 2010
आपके इंतज़ार में...
बरसों बीत गए
तुम्हारे इंतज़ार में
आँखें तरस गए
तुम्हारी राह देखते हुएं
यादें ताज़ा होती रही
हरपल आपकी याद में
वादें सताने लगे
आपकी गैर मौजूदगी में
साँसे थमसी गयी
खबर आपकी ना आने में ...
तुम्हारे इंतज़ार में
आँखें तरस गए
तुम्हारी राह देखते हुएं
यादें ताज़ा होती रही
हरपल आपकी याद में
वादें सताने लगे
आपकी गैर मौजूदगी में
साँसे थमसी गयी
खबर आपकी ना आने में ...
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Pravallika जी जी की कलम से ये पंक्तिया आप तक | |||
पहुंचा रहे है प्रवाल्लिका जी को मेरी १०० वी समर्थक है जिन्होंने मुझे सैकड़े तक पहुचाया है बहुत बहुत आभार प्रवाल्लिका जी इसी पर आप सभी आदरणीय सुधिपाठक महानुभावों तक पेश है प्रवाल्लिका जी की एक सुंदर कविता............... आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित कर हौसला बढाईयेगा |
19 मई 2010
शुक्रिया ऐ ब्लॉगस्पॉट तेरा बहुत शुक्रिया
मुझे यह बताते हुए बहुत ही ख़ुशी हो रही है. आज बलाग जगत में मेरे समर्थको (Followers) की संख्या १०० हो गई है
इसी पर एक छोटी सी कविता पेश करता हूँ आपके सामने
शुक्रिया ऐ ब्लॉगस्पॉट
तेरा बहुत शुक्रिया
मेरे जीवन में एक तरंग लाए हो तुम
लगता खुशियां अपने संग लाए हो तुम
मुझे साथ खड़े हैं सौ दिमाग
दो सौ आंखे, दो सौ हाथ
जारी है गिनती, मेरी बढ़ती खुशियों की
बढ़ाने को मेरा हौसला हर कदम पर
शुक्रिया ऐ ब्लॉगस्पॉट!
बनी रहेगी आदत... मुस्कुराने की मेरी
तेरे संग ऐ ब्लॉगस्पॉट
शुक्रिया,
..बहुत शुक्रिया..
.......आमीन.......
.......आमीन.......
17 मई 2010
खुद की तलाश में
खुद की तलाश में
क्यूं भटक रहे हैं।
मैं नाम हूं
मैं ज़िस्म हूं
मैं जान हूं
मैं रूह हूं
हम किस गली
से गुजर रहे हैं।
अपना कोई
ठिकाना नहीं।
अपना कोई
फसाना नहीं।
अपनी कोई
मंजिल नहीं।
भटक रहें हैं
मायावी जंगल में।
सब है पर
कुछ भी नहीं।
क्यूं भटक रहे हैं।
मैं नाम हूं
मैं ज़िस्म हूं
मैं जान हूं
मैं रूह हूं
हम किस गली
से गुजर रहे हैं।
अपना कोई
ठिकाना नहीं।
अपना कोई
फसाना नहीं।
अपनी कोई
मंजिल नहीं।
भटक रहें हैं
मायावी जंगल में।
सब है पर
कुछ भी नहीं।
फिर भी तलाश है
फिर भी प्यास है ।
क्यूं भटक रहे हैं हम
खुद की तलाश में ।
फिर भी प्यास है ।
क्यूं भटक रहे हैं हम
खुद की तलाश में ।
पहुंचा रहे है
संजय भास्कर
14 मई 2010
कन्फर्म है.......... इश्क अंधा ही होता है .........
पिछले दिनों एक लड़के से मिला। वह इंडिया में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा है। उनका परिवार करीब सात साल पहले पाकिस्तान से यहां आया था। अब वे वापस पाकिस्तान नहीं जाना चाहते। वजह? उनका कहना है कि पाकिस्तान में उनके साथ जो बरताव किया जाता है, वह तो नरक में भी न होता होगा। वे करीब 7 हिन्दू परिवार हैं।
एेसे हालातों की जानकारी भला किसे नहीं है। फिर भी सानिया मिर्जा ने पाकिस्तान खिलाड़ी से निकाह कर लिया है। भारत में भी कई मुस्लिम परिवार हैं जिनके पास बेशुमार धन है। उनमें से भी कोई चुना जा सकता था। खैर, उनकी निजी जिंदगी में कोई भी इंटरफेयर नहीं कर सकता। यह सानिया का हक है।
एक अखबार में पढ़ा कि अभिनेत्री रीना राय ने भी एक पाकिस्तानी से शादी की थी। इसके बाद उनका जो हाल हुआ था, पूरी दुनिया जानती है। उन्हें इतना प्रताडि़त किया गया कि वे आज भी उस लम्हों को याद करके सिहर उठती हैं। सानिया को भी रीना के बारे में जानकारी तो होगी ही।
दूसरी बात यह कि शोएब मलिक पहले ही सानिया की सहेली आएशा को छोड़ चुका है और तलाक तक नहीं दिया। सानिया को भला इस बात का पता कैसे नहीं होगा। इतने सब के बाद भी सानिया का यह फैसला इस बात को कन्फर्म करता है कि इश्क अंधा होता है। पूरी तरह अंधा।
12 मई 2010
सांभा के रूप में वह हमेशा याद किए जाएंगे।.......... मैक मोहन
फिल्म शोले में डाकू सांभा का किरदार निभाने वाले अभिनेता मैक मोहन का सोमवार को निधन हो गया। 71 वर्षीय मैक मोहन ने मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में आखिरी सांस ली। वह कैंसर से पीड़ित थे।
मैक मोहन ने अपना फिल्मी करियर 1964 में आई हकीकत से शुरू किया था। करीब पांच दशक के अपने करियर में उन्होंने 175 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली 1975 में रिलीज हुई शोले से। शोले में उन्होंने गब्बर सिंह की गैंग के डाकू सांभा का किरदार निभाया था। फिल्म के एक दृश्य में गब्बर कहता है, 'अरे ओ सांभा, कितना इनाम रखे है सरकार हम पर'। इसके जवाब में सांभा कहता है - 'पूरे पचास हजार।' यह डायलाग भारतीय सिनेमा के इतिहास के कुछ सबसे मशहूर डायलाग्स में एक है।
मैक मोहन ने कई अन्य हिट फिल्मों जैसे डान, द बर्निग ट्रेन और सत्ते पे सत्ता में भी काम किया। शोले के निर्देशक रमेश सिप्पी ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा, सांभा की भूमिका मैक मोहन के अलावा कोई दूसरा इतनी अच्छी तरह नहीं कर सकता था। सांभा के रूप में वह हमेशा याद किए जाएंगे।
10 मई 2010
बराक ओबामा, नाम तो सुना ही होगा।
बराक ओबामा, नाम तो सुना ही होगा। कुछ समय पहले यह शख्स दुनिया की सबसे बड़ी कथित शक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे। इन महाशय की नियुक्ति पर सबसे ज्यादा खुशी हमें मतलब भारतीयों को हुई थी। हम सोच रहे थे कि वे आतंकवाद के खिलाफ लडऩे में हमारी मदद करेंगे, लेकिन....। वे हमारी किसी भी अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे। उन्होंने पाकिस्तान पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया।
मैं उनके कुछ फोटो आपको दिखाना चाहता हूं...। ताकि आप भी जान सकें प्रेजिडेंट ओबामा का बचपन कैसा था।
मैं उनके कुछ फोटो आपको दिखाना चाहता हूं...। ताकि आप भी जान सकें प्रेजिडेंट ओबामा का बचपन कैसा था।
08 मई 2010
बस्तों के बोझ में दबे ........मासूम बच्चे..!!!
स्कूलों के नए सत्र आरभ होने से बच्च पर बसतो का बोझ लादना शुरू हो गया है
शनिवार की सुबह साढ़े छह बजे मासूम सा दिखने वाला एक बच्चा अपने दो साथियों के साथ पीठ पर आठ किलो का बस्ता लिए पैदल ही स्कूल चला जा रहा था। देखने में उसकी उम्र लगभग आठ वर्ष रही होगी। पीठ पर बस्ता होने के नाते आगे की ओर झुका हुआ वह अपनी धुन में आगे बढ़ा जा रहा था।
वैसे उसके शरीर का कुल वजन 20 किलो से अधिक नहीं होगा। पूछने पर अपना नाम विशाल कुमार बताया, जो कि नगर के एक महंगे कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है। विशाल तो महज एक बानगी है। उसके जैसे तमाम ऐसे बच्चे हैं जो कम उम्र में ही बस्ते के बोझ तले दबे जैसे-तैसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह निजी शिक्षा पद्धति का नमूना है। जहां दूसरी व तीसरी कक्षा के छात्रों के पास काफी पुस्तकें हैं। उनका बोझ भी कम नहीं। छह से आठ किलोग्राम तक की पुस्तकें ढोना कान्वेंट स्कूलों ने बच्चों की नियति बना दी है।
मासूम बच्चे बस्तों के बोझ उठाकर कम उम्र में ही कमर जनित बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। निजी विद्यालयों में महंगी किताबों के साथ ही महंगी फीस जहां अभिभावकों को परेशान कर रही है वहीं छात्र भी बस्ते के बोझ तले दबे हुए हैं।
हालत यह है कि केजी वन से लेकर केजी थ्री तक पढ़ने वाले एक बच्चे का सलाना विद्यालय शुल्क हजारों रुपये आता है। ऊपर से महंगे यूनिफार्म तथा आए दिन स्कूल फी के अलावा विद्यालय प्रबंधन की डिमांड से अभिभावक भी पेशोपेश में आ जाते हैं।
07 मई 2010
कुछ कसूर चेहरों का भी होगा ! ! !
कुछ मेरे कदमो का ,
कुछ कसूर अंधेरो का भी होगा
इतनी गुस्ताख निगाहे नहीं हैप्पी ,
कुछ कसूर चेहरों का भी होगा |
05 मई 2010
मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ाता चला गया
बरबादियों का शोक मानना फिजूल था
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ा…
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया में उसको भूलता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ा…
ग़म और खुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मुकाम पे लाता चला गया
हर फिकर को धुएँ में उड़ा…
मेरा पसंदीदा गाना जिसमें एक प्रेरणा है - जीने की।
03 मई 2010
फ्री की 'नींबूज'
आज हमारे ऑफिस में बंटी फ्री की 'नींबूज'
स्वाद इसका गजब का, जैसे असली नींबूज
जिसने भी पी वाह! वाह! ही की
जब देखा, कुछ और ही थी अंदर की बात
इसके एक्सपायर होने में बचे थे दिन पांच
देखो यारो, क्या जमाना आया
प्रोमोशन के लिए क्या दिमाग लड़ाया |
स्वाद इसका गजब का, जैसे असली नींबूज
जिसने भी पी वाह! वाह! ही की
जब देखा, कुछ और ही थी अंदर की बात
इसके एक्सपायर होने में बचे थे दिन पांच
देखो यारो, क्या जमाना आया
प्रोमोशन के लिए क्या दिमाग लड़ाया |
01 मई 2010
बढ़ता जा रहा है गंगा के आंचल पर मैल
पवित्र गंगा का मैल धोने की जिम्मेदारी गंगा एक्शन प्लान से अब नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथारिटी के हवाले हो चुकी है, लेकिन फिर भी अमृत जैसे गंगा के पानी की गुणवत्ता हरिद्वार जैसे तीर्थ में आचमन करने योग्य भी नहीं रह गई है।
उत्तराखंड में अब तक एक्शन प्लान के अंतर्गत गंगा की सफाई में 37 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं मगर गंगा के आंचल का मैल लगातार बढ़ता ही जा रहा है। गंगा की सफाई के लिए केंद्र पोषित गंगा एक्शन प्लान 1985 में शुरू हुआ था। पहले चरण में तीन शहरों हरिद्वार, ऋषिकेश और स्वर्गाश्रम-लक्ष्मणझूला को इसमें लिया गया था। पहले चरण में 14.62 करोड़ रुपये खर्च हुए। एक्शन प्लान के दूसरे चरण में नौ शहर लिए गए हैं, जिनकी 30 परियोजनाओं में 23.38 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इसके बाद भी यह तय नहीं है जिन शहरों-कस्बों में ट्रीटमेंट परियोजनाएं संचालित हो रही हैं, वहां का संपूर्ण सीवर और नाले इसके दायरे में आ गए हों। यदि गंगा के किनारे बसे किसी कस्बे के संपूर्ण सीवर तथा सभी गंदे नाले ट्रीटमेंट के दायरे में नहीं होंगे तो गंगा प्रदूषित होने से कैसे बच सकती है।
उत्तराखंड में गंगा एक्शन प्लान की नोडल एजेंसी जल संसाधन विकास निगम के नोडल अधिकारी प्रभात राज कहते हैं कि अब गंगा एक्शन प्लान, नेशनल गंगा रीवर बेसिन अथारिथी में हस्तांतरित हो गया है। इस योजना के तहत 2020 तक गंगा को पूरी तरह क्लीन करने की योजना है। अर्थात गंगा के किनारे बसे हर शहर-कस्बे का सीवर तथा नाला ट्रीटमेंट प्लांट की जद में होगा। तेजी से बढ़ते जा रहे शहरीकरण के कारण गंगा में गंदगी जाने से नहीं बचाया जा सकता है।
गंगा में शव दाह से भी अत्यधिक प्रदूषण होता है। हरिद्वार में विद्युत शव दाह गृह का निर्माण किया गया, जो शुरू से ही काम नहीं कर रहा है। कम लकड़ी में शव जलाने वाले दाह गृह चल रहे हैं। अब धूम्र रहित शवदाह गृह बनाने की योजना है लेकिन गंगा की धारा के साथ शवों का दाह करने की प्रवृत्ति नई तकनीकों को दरकिनार कर देती है। हरिद्वार में बिल्कुल यही हो रहा है।
गंगा एक्शन प्लान के तहत वर्तमान में अलकनंदा और भागीरथी को शामिल किया गया है। उत्तराखंड की नदियां आगे जाकर कहीं न कहीं गंगा में ही मिलती हैं। इसलिए नदियों के किनारे बसे उत्तराखंड के 17 शहरों को ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ने का प्रस्ताव नोडल एजेंसी जल निगम ने केंद्र को भेजा है।
मुश्किल यह है कि केंद्र परियोजना के बोझ को कम करने के लिए अपना हाथ खींचता जा रहा है। पहले गंगा एक्शन प्लान शत प्रतिशत केंद्र पोषित था। अब 70 प्रतिशत हिस्सा केंद्र और 30 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करेगी। इतनी सारी योजनाओं के बावजूद हरिद्वार में गंगा का प्रदूषण स्तर इस कदर बढ़ गया है कि पवित्र गंगा का पानी आचमन करने योग्य नहीं रह गया है।
अधिकारी दावा करते हैं कि कुंभ के लिए बनाई गई नई परियोजनाओं की वजह से गंगा का प्रदूषण कम हुआ होगा। वास्तविकता यह है कि गंगा में सीवर बहने से गंगा की हालत और खराब हुई है। यदि गंगा एक्शन प्लान के तहत भागीरथी और अलकनंदा को ही लिया जाए तो इन नदियों के किनारे बसे कई शहर और कस्बे अभी सीवर ट्रीटमेंट के दायरे से बाहर हैं। इनमें गोचर, नंदप्रयाग, कीर्तिनगर और केदारनाथ शामिल हैं।