17 मई 2010

खुद की तलाश में


खुद की तलाश में
क्यूं भटक रहे हैं।
मैं नाम हूं
मैं ज़िस्म हूं
मैं जान हूं
मैं रूह हूं
हम किस गली
से गुजर रहे हैं।
अपना कोई
ठिकाना नहीं।
अपना कोई
फसाना नहीं।
अपनी कोई
मंजिल नहीं।
भटक रहें हैं
मायावी जंगल में।
सब है पर
कुछ भी नहीं।
फिर भी तलाश है
फिर भी प्यास है ।
क्यूं भटक रहे हैं हम
खुद की तलाश में ।
  
पहुंचा रहे है 
 संजय भास्कर

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त। हर्षिता जी से अवगत करवाने के लिए।

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  2. ....प्रशंसनीय रचना

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  3. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  4. हर्षिता जी,

    बहुत अच्छी सोच है....सुन्दर अभिव्यक्ति...

    संजय जी आका आभार...इसे यहाँ पढवाने का..

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  5. ...बहुत खूब ....प्रस्तुति प्रसंशनीय है .... छा रहे हो संजय जी !!!!

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  6. फिर भी तलाश है
    फिर भी प्यास है ।
    ये प्यास और तलाश तो जारी रहेगी और रहनी चाहिये वर्ना सफर खत्म हो जायेगी
    अभार

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  7. वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति, धन्यवाद!

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  9. Khoobsoorat rachnase ru-b-ru karaya hai aapne...shukriya!

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  10. kaaash ham swayam ko samajh saktey... Hamara jivan issiliye rochak hai, kyonki ham apni poori umra swayam ko khojney mey bita detey hain shayad....

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  11. वाह! ऐसी कवितों से जीने की उर्जा मिलती है.
    ..आभार.

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  12. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

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  13. शुक्रिया दोस्त। हर्षिता जी से अवगत करवाने के लिए।

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  14. सुंदर, सटीक और सधी हुई।

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  15. Sundar aur bhavpurn.Aap dono ko badhai.

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  16. jane ye talash kab khatam hogi
    bahut sunder or stariya rachna..

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  17. वाह दोस्त
    कमाल कर दिया
    बहुत अच्छा लगा पढ़कर

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  18. मैं नाम हूं
    मैं ज़िस्म हूं
    मैं जान हूं
    मैं रूह हूं
    ....हर्षिता जी,

    सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  19. प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  20. हर्षिता जी,

    ....सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  21. धन्यवाद संजय जी जो आपने मेरी कविता को इस लायक समझा तथा अपने ब्लाग पर पोस्ट किया। आप के ब्लाग पर आए सभी ब्लागरों को विशेष रूप से धन्यवाद जो आपने इस नाचीज को सराहा एवं पढने योग्य समझा।

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  22. accha hai...apki pani kavitaaye kaha hai sir...

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  23. मैं रूह हूं
    ....हर्षिता जी,

    सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  24. aapki in sundar panktiyon ko padhte padhte Atif aslam ke gaaye ek geet ki yaad aa gai.. - 'hum kis gali ja rahe hai, hum kis gali jaa rahe, apna koi theekana nahi'.

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- संजय भास्कर